Contents
- 1 प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोत:
- 2 प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के साहित्यिक स्रोत :
- 3 साहित्यिक स्रोत-
- 3.1 1. धार्मिक साहित्य :
- 3.2 प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के साहित्यिक स्रोत-
- 3.3 बौद्ध साहित्य:-
- 3.3.1 विनय पिटक:-
- 3.3.2 सुत्त पिटक:-
- 3.3.3 अभिधम्म पिटक :-
- 3.3.4 दीपवंश , महावंश:- (भाषा: पालि)
- 3.3.5 मिलिन्दपन्हों:- (पालि भाषा)
- 3.3.6 महावस्तु:- (भाषा- संस्कृत)
- 3.3.7 दिव्यावदान:- (भाषा- संस्कृत)
- 3.3.8 आर्यमंजुश्रीमूलकल्प:- (भाषा- संस्कृत)
- 3.3.9 ललित विस्तार:- (भाषा-संस्कृत)
- 3.3.10 अश्वघोष कृत बुद्धचरित व सौन्दरानंद काव्य:-(संस्कृत)
- 3.3.11 कथावस्तु:-
- 3.3.12 वैपुल्य सूत्र:- (संस्कृत)
- 3.3.13 नेति प्रकरण:-
- 3.4 प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के साहित्यिक स्रोत-
- 3.5 जैन साहित्य :-
- 3.6 प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के साहित्यिक स्रोत-
- 3.7 -:धर्मेत्तर साहित्य:-
- 3.7.1 1) कौटिल्य कृत “अर्थशास्त्र” :-
- 3.7.2 2) कल्हण की राजतंगिणी :-
- 3.7.3 5) पाणिनी की अष्टाध्यायी:-
- 3.7.4 6) विशाख दत्त का “मुद्राराक्षस”:-
- 3.7.5 7) कात्यायन के वार्त्तिक:-
- 3.7.6 8) पतंजलि का महाभाष्य:-
- 3.7.7 9) शुक्रनीतिसार:-
- 3.7.8 10) गार्गी संहिता:-
- 3.7.9 11) बाणभट्ट का हर्षचरित्र:-
- 3.7.10 12) वाक्पति का गौडहवो:-
- 3.7.11 13) मलविकाग्निमित्रं:-
- 3.7.12 14) विक्रमांक देव चरित्र:-
- 3.7.13 15) कुमारपाल चरित:-
- 3.7.14 16) हमीर महाकाव्य:-
- 3.7.15 17) जयानक की पृथ्वीराज विजय:-
- 3.7.16 18) शूद्रक का मृच्छकटिकम :-
- 3.7.17 19) विष्नुशर्मा का पंचतंत्र:-
- 3.7.18 20) गुणाढ्य की कथामन्जरी:-
- 3.7.19 21) कामन्दनीय नीतिशास्त्र:-
- 3.7.20 22) बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र:-
- 3.7.21 23) नवसहसांक चरित्र:-
- 3.7.22 24) सोमदेव सूरि के नीतिसार नीतिवाक्यामृत :-
- 3.7.23 26) बल्लालचरित:-
- 3.7.24 27) रामचरित:-
- 3.7.25 28) पृथ्वीराजरासो:-
- 3.7.26 29) पृथ्वीराज विजय:-
- 3.7.27 30) अच्युतराजभ्युदय:-
प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोत:
जिस प्रकार इतिहास लेखन की परंपरा रोम व अन्य यूरोपीय देशों में दिखाई पड़ती है वैसी श्रृंखला बद्ध परंपरा भारतवर्ष में नहीं पायी जाती फिर भी हम अन्य क्षेत्रों से जुड़े हुए अन्य ग्रंथो के द्वारा हम प्राचीन इतिहास की जानकारी प्राप्त करने में सक्षम हो पाते हैं।
प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के साहित्यिक स्रोत :
पाश्चात्य एवं मध्यकालीन मुस्लिम विचारधारा मनुष्य की लौकिक उपलब्धियों का उल्लेख, उनके ऐतिहासिक क्रम में स्वीकार करती है जिनमे घटनाओं के कालक्रम की प्रधानता हो।
इसलिए उन्होंने ऐसे शुध्द ग्रंथ की रचना नहीं की जिसे आधुनिक तौर पर इतिहास की संज्ञा दी जा सके ।
किन्तु ऐसे अनेकों ग्रंथो की रचना की है जिनसे हमें भरपूर मात्रा में इतिहास की विशिष्ट जानकारियां मिलती हैं।
इन ग्रंथों के यदि विषय वस्तु की बात करें तो मुख्य रूप से इनसे धर्म,समाज,अर्थ,राजनीति,प्रशासन और नीतिशास्त्र से संबंधित जानकारी मिलती है।
इस प्रकार भारत के इतिहास बोध के रूप में अनेक स्रोत हैं जिन्हें मुख्यतः हम 3 भागों में बांट सकते हैं-
1. साहित्यिक स्रोत Sahityik srot
2. पुरातात्विक स्रोत
3. विदेशी विवरण
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साहित्यिक स्रोत-
1. धार्मिक साहित्य :
ब्राम्हण साहित्य:-
वेद : ऐतिहासिक स्रोत
1. ऋग्वेद:-
इसमें 10 मंडल,1028 सूक्त ( वालखिल्य पाठ के 11 सूक्तों सहित) एवं 10462 ऋचायें हैं।
इस वेद के ऋचाओं के पढ़ने वाले को होतृ कहते हैं।
इसमें वैदिक कालीन आर्यों के रहन-सहन तथा भारतवर्ष में उनके प्रसार,उनके संघर्षों, समेत राजनीतिक प्रणाली आदि की जानकारी मिलती है।
विश्वामित्र द्वारा रचना किये गए ऋग्वेद के तृतीय मंडल में सूर्य देव सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र का वर्णन है।
इसमें एक स्थान पर 10 राजाओं के युद्ध (दाशराज्ञ युद्ध ) का वर्णन है।
2. सामवेद:-
3. यजुर्वेद:-
Note: ऋग्वेद, सामवेद तथा यजुर्वेद को अपौरुषेय कहा जाता है, क्योंकि इनके रचनाकार के बारे में जानकारी नहीं मिलती है। इन्हें ब्रम्हा जी द्वारा रचित माना जाता है।
4. अथर्ववेद:-
Note: ऋग्वेद को सबसे प्राचीन तथा अथर्ववेद को सबसे बाद का वेद माना गया है ।
ब्राम्हण :-
बीतते समय के साथ साथ समाज मे यज्ञों कर्मकांडो की प्रतिष्ठा बढ़ती गयी। ये अत्यंत जटिल हो गए । इनके विधानों को समझने के लिए एक नए साहित्य का प्रादुर्भाव हुआ जिसे ‘ब्राम्हण ग्रंथ’ कहते हैं।
‘ब्राम्हण’ शब्द ‘ब्रम्ह’ से बना है जिसका अर्थ है ‘यज्ञ’। अतः यज्ञ का प्रतिपादन करने वाले ग्रंथ ‘ब्राम्हण’ कहलाए।
प्रत्येक वेद के ब्राम्हण हैं।
ऋग्वेद: ऐतरेय, कौषीतकी
सामवेद: (i) प्रौढ़ या पंचविश ब्राम्हण (इसे ताण्डव ब्राम्हण भी कहते हैं)
(ii) षडविंष ब्राम्हण
(iii) आर्षेय ब्राम्हण
(iv) मंत्र या छान्दोग्य/छांदिग्य ब्राम्हण
(v) जैमिनीय या तावलकर ब्राम्हण
यजुर्वेद:
(i) शुक्ल यजुर्वेद:
(ii) कृष्ण यजुर्वेद :
अथर्ववेद:-
आरण्यक:-
उपनिषद:-
वेदांग:-
वेदांगों में से कल्प का विशेष महत्व है।
कल्प का अर्थ है विधि- नियम । ऐसे सूत्र(कल्प) जिनमें विधि नियम का प्रतिपादन किया गया है कल्प सूत्र कहलाते हैं।
इसके 3 भाग हैं- श्रौत सूत्र , गृह्य सूत्र , धर्म सूत्र।
◆ शुल्व सूत्र श्रौत सूत्र का ही भाग है जिसमें यज्ञ की वेदियों की माप तथा अन्य ज्यामितीय आकृतियों की जानकारी है।
◆ शुल्व सूत्र से ही पायथागोरस प्रमेय का ज्ञान हुआ।
2. जो सूत्र मनुष्य के समस्त लौकिक और पारलौकिक कर्तव्यों का वर्णन करते हैं वे गृह्य सूत्र कहलाते हैं।
3. जो सूत्र मनुष्य के विभिन्न धार्मिक , सामाजिक , एवं राजनीतिक अधिकारों और कर्तव्यों का वर्णन करते हैं वे धर्म सूत्र कहलाते हैं।
स्मृतियाँ:-
महाकाव्य:-
रामायण हमारा आदि-काव्य है जिसकी रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। इससे हमें हिन्दुओं तथा यवनों और शकों के संघर्ष का विवरण प्रोप्त होता है। इसमें यवन- देश तथा शकों का नगर, कुरु तथा मद्र देश और हिमालय के बीच स्थित बताया गया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उन दिनों यूनानी तथा सीथियन लोग पंजाब के कुछ भागों में बसे हुये थे।
महाभारत की रचना वेदव्यास ने की थी। इसमें भी शक, यवन, पारसीक, हूण आदि जातियों का उल्लेख मिलता है। इससे प्राचीन भारतवर्ष की सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक दशा का परिचय मिलता है। राजनीति तथा शासन के विषय में तो यह ग्रन्थ बहुमूल्य सामग्रियों का भण्डार ही है। महाभारत में यह कहा गया है कि ‘धर्म’, अर्थ, काम तथा मोक्ष के विषय में जो कुछ भी इसमें है, वह अन्यत्र कहीं नहीं है।’
महाकाव्यों में जिस समाज और संस्कृति का चित्रण है उसका उपयोग उत्तर वैदिक काल के अध्ययन के लिये किया जा सकता है।
दोनों महाकाव्यों की विशेषता यह है कि ये दोनों ही आर्य संस्कृति का दक्षिण में प्रसार के निर्देश देते हैं।
पुराण :-
इनकी संख्या 18 है। इनकी रचना का श्रेय सूत लोमहर्षण व उनके पुत्र उग्रश्रवा या उग्रश्रवस को जाता है।
पुराणों का रचना काल 400 ई.पू. से 400 ई. के मध्य माना जाता है।
‘पुराण’ का शाब्दिक अर्थ ‘प्राचीन’ होता है। अतः पुराण साहित्य के अंतर्गत वे समस्त प्राचीन साहित्य आते हैं जिसमें प्राचीन भारत के धर्म , इतिहास , आख्यान , विज्ञान आदि का वर्णन हो ।
वस्तुतः कौटिल्य ने इतिहास के अंतर्गत पुराण और इतिवृत्त दोनों को रखा।
सर्वप्रथम पार्जिटर(Pargiter ) नामक विद्वान ने इनके ऐतिहासिक महत्व की ओर विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया ।
अमरकोष में पुराणों के 5 विषय बताए गए हैं –
1. सर्ग अर्थात सृष्टि जगत की रचना
2. प्रतिसर्ग अर्थात प्रलय के बाद जगत की पुनः सृष्टि
3. वंश अर्थात ऋषियों तथा देवताओं की वंशावली
4. मन्वन्तर अर्थात महायुग
5. वंशानुचरित अर्थात प्राचीन राजकुलों का इतिहास
इनमें से ऐतिहासिक दृष्टि से वंशानुचरित का विशेष महत्व है।
वंशानुचरित मात्र 7 पुराणों – मत्स्य , भागवत , विष्णु , वायु , ब्रह्मा , भविष्य एवं गरुण – में ही प्राप्त होता है।
◆गरुड़ पुराण में पौरव, इक्ष्वाकु व ब्राहद्रथ राजवंशों की जानकारी
◆विष्णु पुराण , भविष्य पुराण में मौर्य वंश की जानकारी
◆ मत्स्य पुराण में आंध्र सातवाहन वंश की जानकारी
◆ वायु पुराण में गुप्त वंश की जानकारी
वर्णित है।
● छठी शताब्दी ई.पू. के पहले का इतिहास जानने के लिए पुराण एक अच्छा स्रोत है।
उपवेद:-
प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के साहित्यिक स्रोत-
बौद्ध साहित्य:-
इन्हीं ग्रंथों में बौद्ध संघ , भिक्षुओं , भिक्षुणियों , के लिए आचरणीय नियम/विधान वर्णित है।
बौद्ध ग्रंथों में प्रमुख ग्रंथ त्रिपिटक(विनय पिटक , सुत्त पिटक , अभिधम्म पिटक) हैं।
बौद्धों का मत है कि उनके पिटकों का संकलन बौद्ध संगीतियों में किया गया।
त्रिपिटक’ बौद्ध ग्रंथों में प्राचीनतम एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। त्रिपिटक के नाम हैं-विनयपिटक सुत्तपिटक, एवं ‘अभिधम्म पिटक’। विनयपिटक एवं सुत्तपिटक का संकलन प्रथम बौद्ध महासंगीति (483 ई.पू.) में या ‘अभिधम्म पिटक का संकलन तृतीय बौद्ध महासंगीति (2 ई.पू.) में हुआ। त्रिपिटक से ईसा से पूर्व की सदियों के भारत के सामाजिक व धार्मिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है।
विनय पिटक:-
सुत्त पिटक:-
1. दीर्घ निकाय:-
संयुक्त निकाय:-
मज्झिम निकाय:-
अगुन्तर निकाय:-
खुद्दक निकाय:-
अभिधम्म पिटक :-
दीपवंश , महावंश:- (भाषा: पालि)
मिलिन्दपन्हों:- (पालि भाषा)
महावस्तु:- (भाषा- संस्कृत)
दिव्यावदान:- (भाषा- संस्कृत)
आर्यमंजुश्रीमूलकल्प:- (भाषा- संस्कृत)
ललित विस्तार:- (भाषा-संस्कृत)
अश्वघोष कृत बुद्धचरित व सौन्दरानंद काव्य:-(संस्कृत)
कथावस्तु:-
वैपुल्य सूत्र:- (संस्कृत)
नेति प्रकरण:-
प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के साहित्यिक स्रोत-
जैन साहित्य :-
जैन ग्रंथों तथा बौद्ध ग्रंथों के विवेचनात्मक अध्ययन से इतिहास की घटनाओं को प्रमाणित भी किया जाता है।
जैन आगम:-
जैन आगम में महावीर के उपदेशों तथा जैन संस्कृति(सामाजिक जीवन) पर प्रकाश पड़ता है।
कल्पसूत्र:-
भद्रबाहु चरित्र:-
परिशिष्ट पर्वन:-
भगवती सुत्त:-
उत्तराध्ययन सूत्र:-
प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के साहित्यिक स्रोत-
-:धर्मेत्तर साहित्य:-
1) कौटिल्य कृत “अर्थशास्त्र” :-
2) कल्हण की राजतंगिणी :-
इसमें आदि काल से लेकर 1151 ई० तक के कश्मीर के प्रत्येक शासक के काल की घटनाओं का क्रमानुसार विवरण दिया गया है। अर्थात इसमें कश्मीर का इतिहास वर्णित है।
3) कश्मीर की भांति गुजरात में भी अनेक ऐतिहासिक ग्रंथ प्राप्त होते हैं जो अपने काल के भारतीय इतिहास के वर्णन के लिए सक्षम हैं।
इस ग्रंथ में प्रमुख निम्न हैं।:-
सोमेश्वर कृत ” कीर्ति कौमुदी” तथा रसमाला मेरुतुंग कृत प्रबंध चिंतामणि, राजशेखर कृत प्रबंधकोश आदि ।
गुजरात के इतिवृत्त, जैसे-‘प्रबंधकोष’ (राजशेखर), ‘हम्मीर मद मर्दन’ (जय सिंह), तेजपाल प्रशस्ति’ (वस्तुपाल), ‘प्रबंध चिंतामणि’ (मेरुतुंग) आदि से गुजरात के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है।
इनसे हमे गुजरात के चालुक्य वंश का इतिहास एवं अनेक समय की भरतीय संस्कृति का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त होता है।
5) पाणिनी की अष्टाध्यायी:-
इससे महाऋषि पाणिनी के काल की सामाजिक, आर्थिक दशा का भी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। यद्यपि इससे उत्तर भारत की भूगोल की भी जानकारी मिलती है।
6) विशाख दत्त का “मुद्राराक्षस”:-
इससे सिकंदर के आक्रमण के तुरंत बाद के भारतीय राजनीति का उद्घाटन प्रदर्शित होता है।
पोरस तथा सिकंदर की भी जानकारी मिलती है। तथा प्रमुख जानकारी चाण्क्य एवं चंद्रगुप्त द्वारा नन्दवंश के विनाश की मिलती है।
7) कात्यायन के वार्त्तिक:-
इससे भी मौर्य काल के पूर्व से लेकर मौर्य युग की राजनीति ब्यवस्था पर प्रकाश पडता है।
8) पतंजलि का महाभाष्य:-
पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे। उनकी रचना “महाभाष्य” से शुंगों के इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पडता है।
इससे राजनीतिक सम्बन्ध में जानकारी मिलती है।
9) शुक्रनीतिसार:-
इतिहास वर्णन का यह भी एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।जिसमें तत्कालीन सामाजिक स्थितियों , राजतंत्र का विवरण वर्णित है।
10) गार्गी संहिता:-
इसके अनुसार यवनों ने साकेत, पांचाल,मथुरा तथा कुसुमध्वज(पाटिलीपुत्र) पर आक्रमण किया।
11) बाणभट्ट का हर्षचरित्र:-
इसकी रचना बाणभट्ट ने 7वीं शताब्दीBC (620ई.) में की थी। बाणभट्ट हर्षवर्धन का दरबारी था।
समाज एवं धर्म विषयक अनेक महत्वपूर्ण सूचना मिलती है। तथा तत्कालीन भारतवर्ष की अवस्था पर प्रचुर प्रकाश पड़ता है।
इसमें कुल आट उच्छवास (अध्याय) है। प्रथम तीन उपवास में बाणभट्ट की आत्मकथा एवं शेष पाँच उच्छवामों में हर्ष का जीवन चरित दिया गया है। हर्षवर्द्धन के प्रारंभिक जीवन एवं उसकी विजयों का विवरण इसमें मिलता है।
12) वाक्पति का गौडहवो:-
13) मलविकाग्निमित्रं:-
इस नाटक की रचना महाकवि कालीदास ने की थी। इसमें शुंग कालीन राजनीतिक परिस्थितियों का विवरण है।
इसकी रचना चौथी अथवा पाचवीं शताब्दी के प्रारंभ में हुई होगी। इसमें पुष्यमित्र शुंग और यवन युद्ध का भी उल्लेख है।
यह कालिदास की पहली नाट्य-रचना है। इससे शुंग वंश एवं उनके पूर्ववर्ती राजवंशों की राजनीतिक परिस्थिति की जानकारी मिलती है। राजवंशों के आंतरिक जीवन का तो यह दर्पण है।
14) विक्रमांक देव चरित्र:-
यह विल्हण द्वारा लिखा गया था। इससे कल्याणी के चालुक्य वंश की जानकारी मिलती है। इसमें चालुक्य नरेश विक्रमादित्य IV के चरित्र का वर्णन है।
15) कुमारपाल चरित:-
इसकी रचना हेमचन्द्र ने की थी। इससे चालुक्य शासको – जयसिंह, सिद्धराज तथा कुमारपाल का जीवन तथा उनके समय की घटनाओ की जानकारी मिलती है।
16) हमीर महाकाव्य:-
इसकी रचना नयनचन्द्र शूरि ने की थी। इसमें राजस्थान के मध्यकालीन भारत के राजवंशो की जानकारी मिलती है। पृथ्वीराज चौहान की जानकारी भी मिलती है।
17) जयानक की पृथ्वीराज विजय:-
इससे हमें चाहमान राजवंश की जानकारी मिलती है।
18) शूद्रक का मृच्छकटिकम :-
मृच्छकटिकम से महाजनपद कालीन जानकारियां प्राप्त होती है।
मृच्छकटिकम से उज्जयिनी, पाटिलीपुत्र आदि महाजनपदों अथवा स्थानों के विषय में उनकी सामाजिक ब्यवस्था का विवरण भी मिलता है।
19) विष्नुशर्मा का पंचतंत्र:-
इसकी रचना विष्नुशर्मा ने लगभग 800 – 200 BC. में की।
इसमे तत्कालीन दक्षिण भारत के राजवंशों की न केवल जानकारी मिलती है। बल्कि उस समय की भी भारतीय सभ्यता अथवा संस्कतियो पर भी प्रकाश पड़ता है।
20) गुणाढ्य की कथामन्जरी:-
गुणाढ्य सातवाहनों के दरबार में रहता था। अतः इसके ग्रन्थों से सातवाहनों राजवंश की जानकारी मिलती है।
21) कामन्दनीय नीतिशास्त्र:-
इस नीतिशास्त्र की रचना कामन्दक ने की थी। इसका रचना काल 700 – 800 के लगभग रहा होगा।
इससे तत्कालीन आचार – व्यवहार और राजनीति सिद्धान्तों पर विशेष प्रकाश पड़ता हैं।
22) बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र:-
कौटिल्य की भांति ब्रहस्पति ने भी एक अर्थशास्त्र की रचना 900 – 1000 ई० के लगभग की । इसमें राजकीय कर्तब्यों का अच्छा वर्णन मिलता है।
23) नवसहसांक चरित्र:-
इसकी रचना परिमलगुप्त ने की । इसमें परमारवंश के बारे मे पर्याप्त व प्रमाणिक जानकारी मिलती है।
पद्मगुप्त परिमल के ‘नवमाहसांक चरित’ में मालवा के परमारवंशी शासक वाक्पति मुंज का जीवन-चरित मिलता है।
24) सोमदेव सूरि के नीतिसार नीतिवाक्यामृत :-
25) सिंध के इतिवृत्तों में ‘फतहनामा सर्वाधिक उल्लेखनीय है। एक अज्ञात अरबी लेखक ने 13वीं सदी ई. के आरभ में ‘फतहनामा’ की रचना अरबी भाषा में की थी जिसका फारसी अनुवाद ‘चचनामा नाम से अली बिन हामिद कूकी ने किया। इसमें मुहम्मद बिन कासिम के सिंध विजय (711-12 ई.) का वर्णन मिलता है।
26) बल्लालचरित:-
27) रामचरित:-
28) पृथ्वीराजरासो:-
29) पृथ्वीराज विजय:-
30) अच्युतराजभ्युदय:-
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
शानदार