इनमे से कुछ ने तो भारत मे कुछ समय तक निवास किया और अपने स्वयं के अनुभव से लिखा है तथा कुछ यात्रियों ने जनश्रुतियों एवं भारतीय ग्रंथो को अपनी विवरण का आधार बनाया है।
उनमें से बहुत से खो गये तथा बहुत से किंवदंतियों अथवा अप्रमाणिक बातों के मिल जाने से संदिग्ध दिखायी पड़ते हैं।
परंतु बहुत से आज तक अपनी प्रमाणिकता को न्यूनाधिक मात्रा में संरक्षित रखते हुए विद्यमान हैं।
प्राचीनकाल से ही विदेशी व्यापारी, राजदूत, इतिहासकार,धर्मनिष्ठ यात्री, पर्यटक आदि के रूप में भारत आते रहे हैं और उनमें से कइयों ने अपने विवरण लिख छोड़े हैं। इन विवरणों (Videshi vivran) से प्राचीन भारतीय इतिहास लेखन में, विशेषकर तिथिक्रम की गुत्थी सुलझाने में, बड़ी मदद मिली है।
विदेशी यात्रियों के विवरण : Videshi yatriyon ka vivaran
●विदेशी विवरणों (Videshi vivran) को चार वर्गों में विभाजित किया जाता है—यूनानी, चीनी, तिब्बती एवं अरबी।
संबंधित लेेेख:- ऐतिहासिक स्रोत
यूनानी लेखक:-
यूनानी रोमन (क्लासिकल) लेखको के लेखों ने भारतीय इतिहास निर्माण में बड़ी महत्वपूर्ण सहायता की है।
ये लेखक 3 कोटियों में विभक्त किये जा सकते हैं।
- सिकंदर के पूर्व के यूनानी लेखक
- सिकंदर के समकालीन यूनानी लेखक
- सिकंदर के बाद के यूनानी लेखक
(i) सिकन्दर के पूर्व के यूनानी लेखक:-
सिकन्दर के पूर्ववर्ती यूनानी (ग्रीक) लेखकों के नाम हैं – स्काइलैक्स, हिकेटियस मिलेट्स, हेरोडोटस एवं टेसियस ।
स्काईलैक्स:- 6ठी सदी ई.पू.
इस काल के लेखको में सर्वप्रथम स्काइलैक्स उल्लेखनीय हैं। भारत के बारे में लिखनेवाला प्रथम यूनानी लेखक था। वह पारसीक/फारस (ईरान) के सम्राट डेरियस (550 ई.पू.-486 ई.पू.) का यूनानी सैनिक था। हेरोडोटस का साक्ष्य है कि वह सम्राट के आदेशानुसार सिन्धु घाटी का पता लगाने भारत आया था। उसने अपनी यात्रा का विवरण तैयार किया , किन्तु उसकी जानकारी विशेषकर सिन्धु घाटी तक ही सीमित थी।
हिकेटियस मिलेट्स:- 549 ई.पू.- 496 ई.पू.
दूसरा यूनानी लेखक हिकेटियस मिलेट्स था। उसने ज्योग्राफी/भूगोल नामक ग्रंथ की रचना की।
उसका यह ग्रंथ स्काईलैक्स के विवरण तथा पारसीयों की सूचनाओं पर आधारित था। उसका ज्ञान भी सिंधु घाटी तक सीमित था।
उपर्युक्त दोनों यूनानी लेखकों से भारतीय इतिहास का कोई विशेष ज्ञान नहीं होता। परंतु उनसे कहीं अधिक महत्वपूर्ण था हेरोडोटस।
हेरोडोटस:- (484 ई.पू.- 425 ई.पू.)
इसे इतिहास का जन्मदाता माना जाता हैं। इसके ग्रंथ का नाम हिस्टोरिका हैं जिसमें अनेक देशो के विषय में विवरण दिये गये हैं। इसमें भारतवर्ष के विषय मे भी उल्लेख है। हिस्टोरिका से भारत-फारस संबंध की जानकारी मिलती है।
हालांकि हेरोडोटस कभी भारत नहीं आया लेकिन वह हमें अपने समय के उत्तर पश्चिमी भारत की सांस्कृतिक जानकारी तथा राजनीतिक स्थिति का
परिचय पाया था और वह भी दूसरे लोगो के माध्यम से। इसलिए उसका भारतीय विवरण भी पूर्ण अथवा नितांत प्रामाणिक नही है।
उसने लिखा है : “हमारे ज्ञात राष्ट्रों में सबसे अधिक जनसंख्या भारत की ही है। उत्तरी भारत का भू-क्षेत्र डेरियस के साम्राज्य का 20वौं प्रांत है, जो 360 टैलेन्ट्स गोल्ड डस्ट वार्षिक भेंट चुकाता है।”
टेसियस:- (416 ई.पू. – 398 ई.पू.)
टेसियस यूनान का मूल निवासी था। यह एक राजवैद्य था तथा फारस के सम्राट अर्टाजेमेमन (अर्टाजग्जीर्ज) के दरबार में रहता था।
उसने पूर्वी देशों से लौटकर आये हुए यात्रियों के मुह से तथा पारसीक अधिकारियों की सूचनाओ को सुन-सुनकर भारत के संबंध में अद्भुत कहानियों का संग्रह किया था। ‘पर्शिका’उसका प्रमुख ग्रंथ है, जो अब उपलब्ध नहीं है। लेकिन उद्धरण अवश्य मिल जाते हैं जिनसे कुछ सहायता मिल जाती है। किन्तु प्रामाणिकता की दृष्टि से उसकी अधिकांश सामग्री संदेहास्पद है। जो कि ऐतिहासिक स्रोत (Videshi vivran) की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है
(ii) सिकंदर के समकालीन यूनानी लेखक:- Videshi vivran
भारतवर्ष पर आक्रमण करने के लिए आया हुआ सिकंदर अपने साथ लेखको और विद्वानों को भी लेकर आया था।इन लेखको का उद्देश्य अपने लेखों द्वारा अपने देशवासियों को भारत के विषय में बताना था। अर्थात इनका वृत्तान्त प्रामाणिक और यथार्थ है। इन्होंने प्रमाण-मार्ग तथा युद्धों के अनुभवों को लेखबद्ध किया। यदि इन लेखको ने संसार को अपने लेख न दिये होते तो हमें भारत पर सिकन्दर के आक्रमण की अतिमहत्वपूर्ण घटना का ज्ञान न हो पाता। क्योंकि किसी भी भारतीय ग्रंथ अथवा अन्य साक्ष्यों में इस आक्रमण का उल्लेख नहीं है।
इनके मूल लेख विलुप्त हो गए है परन्तु उद्धरण ही स्ट्रेबो,प्लिनी, और एरियन आदि लेखको के लेख में मिलते हैं।
सिकन्दर के समकालीन लेखकों के नाम हैं—नियार्कस, आनेसिक्रिटिस एवं अरिस्टोबुल्स । इन लेखकों ने तत्कालीन भारतीय जीवन की झांकी अपने-अपने यात्रा-वृत्तान्त में प्रस्तुत किया है।
नियार्कस:-
नियार्कस, सिकन्दर का सहपाठी था तथा जहाजी बेड़े का अध्यक्ष (एडमिरल) था। इसे सिकन्दर ने सिन्धु और फारस की खाड़ी के बीच के तट का पता लगाने के लिए भेजा था। इसके मूल लेख विलुप्त हो चुके हैं।
इसके लेखों के उद्धरण(अवशेष) स्ट्रेबो तथा एरियन के लेखों में मिलते हैं।
आनेसिक्रिटस:-
आनेसिक्रिटिस सिकन्दर के जहाजी बेड़े का पायलट था। इसने नियार्कस की समुद्री यात्रा में उसका साथ दिया था।और बाद में इसने अपनी इस यात्रा तथा भारत के बारे में एक पुस्तक लिखी। इसने ‘सिकन्दर की जीवनी’ भी लिखी है।
यद्यपि इसमें किंवदंतियों और गल्पों का समावेश अधिक हुआ था तथापि अनेक स्थलों पर इसके विवरण महत्वपूर्ण थे।
अरिस्टोबुलस:-
यह एक भूगोलविद था। इसे सिकंदर ने कुछ उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य सौंपे थे।
इसने अपने अनुभवों को युद्ध का इतिहास ( history of the war) नामक ग्रंथों में लेखबद्ध किया था। एरियन और प्लूटार्क ने अपने ग्रंथों को लिखने में इनसे काफी सहायता ली थी।
इन लेखको के अतिरिक्त सिकंदर के समकालीन चारस तथा यूमेनीस लेखको ने भी अपने अपने ग्रंथों में भारत संबंधी अनुभवों को व्यक्त किया था।
सिकन्दर के पश्चात के लेखक:-
इस प्रकार सिकंदर के पश्चात के लेखकों के लिये काफी पृष्ठभूमि बन गयी थी।अब वे पूर्वोलिखित सामग्री एवं आत्मगत अनुभवों के आधार पर वास्तविक इतिहास लिख सकते थे।
सिकन्दर के परवर्ती लेखकों के नाम हैं-मेगस्थनीज, डायमेकस, डायोनिसस, पेट्राक्नीज, टिमोस्थीन, एलियन, डियोडोरस, स्ट्रेबो, कर्टियस, प्लूटार्क, ‘पेरिप्लस का अज्ञात लेखक, एरियन एवं कॉस्मस इण्डिकोप्नुस्टस ।
मेगास्थनीज:- 350 ई.पू. – 290 ई.पू.
मेगास्थनीज का जन्म एशिया माइनर (आधुनिक तुर्की) में हुआ। वह फारस और बेबीलोन के यूनानी शासक सेल्यूकस के राजदूत के रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया और 6 वर्षों तक (302 ई.पू.-296 ई.पू.) पाटलिपुत्र में निवास किया। उसने मथुरा के पाण्ड्य राज्य की यात्रा की। उसने भारत की तत्कालीन सामाजिक तथा
राजनीतिक परिस्थिति के विषय में लिखा है। यद्यपि उसकी मूल पुस्तक इंडिका (Indica) उपलब्ध नहीं है किन्तु अन्य ग्रंथों में इसके उद्धरण प्राप्त होते हैं। ‘इण्डिका’ के सहारे डियोडोरस, स्ट्रैबो, प्लिनी (रोमन), एरियन, जस्टिन जैसे यूनानी-रोमन लेखकों ने भारत का वर्णन किया है। बाद में मेगास्थनीज के ‘इण्डिका के उद्धरणों का मैक्रिण्डल ने अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया है। इण्डिका’ के बिखरे हुए अंशों को एकत्रित कर शान बैक ने 1846 ई. में ‘मेगास्थनीज इण्डिका’ शीर्षक से ग्रंथ प्रकाशित किया। मेगास्थनीज ने पाटलिपुत्र नगर की संरचना एवं सैनिक प्रबंधों के विषय में विस्तार से लिखा है। उसने भारतीय संस्थाओं, भूगोल एवं वनस्पति के संबंध में भी लिखा। ‘इण्डिका’ पहली पुस्तक है जिसके माध्यम से प्राचीन यूरोप को भारत विषयक जानकारी मिली। मेगास्थनीज पहला विदेशी राजदूत है जिसका भारतीय इतिहास में उल्लेख मिलता है।
इसने भारतवर्ष पर अपने लिखित पुस्तक * इंडिका* में मौर्य युगीन समाज एवं संस्कृति तथा पाटलिपुत्र संबंधी विवरण प्रत्यक्ष रूप से देखी सुनी बातो पर किया था । यह अपने मूल रूप में उपलब्ध नहीं है। तथापि इसके कुछ अंश स्ट्रैबो, एरियन, जस्टिन आदि के ग्रंथों में प्राप्त होता है।
डायमेकस:-
(यूनानी सम्राट/सीरियन नरेश) अन्तियोकस, जो कि सेल्युकस का उत्तराधिकारी था, का राजदूत के रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य के पश्चात उसके पुत्र बिन्दुसार(298ई.पू.-273 ई.पू.) की राजसभा में आया था।इसकी मूल रचना विलुप्त हो गयी परन्तु स्ट्रैबो ने अपने लेखों में 2 बार डायमेकस के कथनों के उदाहरण दिये थे। स्ट्रैबो ने मेगस्थनीज और डायमेकस को झूठा तथा इनके लेखो को अविश्वसनीय बताया।
डायोनिसियस:-
डायोनिसस को मिस्र के तत्कालीन शासक फिलाडेल्फस (टॉलेमी 10 ने अपना राजदूत बनाकर मौर्य शासक बिन्दुसार (298 ई.पू.-273 ई.पू.) के दरबार में भेजा। इसका भी मूल ग्रंथ उपलब्ध नहीं है किन्तु उसके विवरण का उपयोग बाद के लेखकों ने अपने ग्रन्थों में किया है।
स्ट्रैबो:- (64 ई.पू.-19 ई.पू.)
प्रथम शाताब्दी BC. का एक प्रसिद्ध लेखक , इतिहासकार व भूगोलवेत्ता था। इसने देश-विदेश में भ्रमण का व्यापक अनुभव प्राप्त किया था। इसका ग्रंथ ‘ज्योग्राफिया’ (Geographia) / भूगोल इतिहास में भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है इसके प्रथम अध्याय से सिकंदर और मेगास्थनीज के साथियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत का वर्णन किया है। इसमें भौगोलिक अवस्था के अतिरिक्त सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक व राजनीतिक अवस्थाओं का भी उल्लेख है। स्ट्रैबो ने सेल्यूकस और सैण्ड्रोकोट्स (चन्द्रगुप्त मौर्य) के बीच वैवाहिक संबंध का उल्लेख किया है। इसने चन्द्रगुप्त मौर्य की महिला अंगरक्षकों का जिक्र किया है।
पेट्राक्लीज:- 250 ई.पू.
पैटरोक्लीज नामक यूनानी लेखक सेल्यूकस ‘निकेटर’ और एन्टीऑकस I के किसी पूर्वी प्रान्त (कैस्पियन सागर व सिंधु नदी के बीच के प्रान्तों) का एक पदाधिकारी(गवर्नर) था।इसने “पूर्वी देशो का भूगोल” ग्रंथ लिखा जिसमें भारत वर्ष समेत अन्य देशों का भी वर्णन था।
टिमोस्थीन:-
यह फिलाडेल्फस(टॉलमी III) के बेड़े का नौसेनाध्यक्ष था।
एलियन:- 100 ई.पू.
एलियन एक यूनानी इतिहासकार था। इसने “A collection of miscellaneous history” और “on the peculiarities of Animal” नामक दो ग्रंथ लिखे जिनसे क्रमशः भारत वर्ष का इतिहास (पश्चिमोत्तर भारत)और भारत वर्ष के पशुवर्ग की बहुत सी बातें ज्ञात होती है।
डियोडोरस:- (मृ. 36 ई.पू.)
यह यूनान का प्रसिद्ध इतिहासकार था। ‘बिब्लिओथिका हिस्टोरिका’ इसकी प्रसिद्धि का आधार है। इसने मेगास्थनीज से प्राप्त विवरण के आधार पर भारत के बारे में लिखा है। इसके ग्रंथ से सिकंदर के भारत अभियान और भारत के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलती है।
कर्टियस:- 1ली सदी ई.
यह रोमन सम्राट क्लॉडियस (41 ई. -54ई.) का समकालीन था। इसकी पुस्तक से सिकंदर के विषय में प्राप्त जानकारी मिलती है।
प्लूटार्क:- 45 ई. – 125 ई.
इसके विवरणों में सिकंदर के जीवन और भारत का सामान्य वर्णन सम्मिलित है। इसके विवरण में चन्द्रगुप्त का उल्लेख एण्ड्रोकोट्टस के रूप में हुआ है। इसने लिखा है: “युवावस्था में वह (एण्ड्रोकोट्टस) सिकन्दर से मिला था।”
पेरीप्लस ऑफ द इरिथ्रयन सी ( Perilous of erythrean sea) :-
पेरिप्लस ऑफ एरिथ्रियन सी अर्थात् लाल सागर का भ्रमण (80 ई.-115 ई.) का अज्ञातनामा यूनानी लेखक 80 ई. के लगभग हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था। इसने इस ग्रंथ में भारत के तटों, बंदरगाहों एवं उनसे होनेवाले व्यापार का जिक्र किया है। यह ग्रंथ ‘समुद्री व्यापार की गाइड’ के रूप में जानी जाती है। यह संगम युग का महत्वपूर्ण विदेशी स्रोत है। इसमें दक्षिण भारत के पत्तनों (बन्दरगाहों) एवं पहली सदी ई. में रोमन साम्राज्य के साथ होनेवाले व्यापार का विस्तृत वर्णन मिलता है तथा भारत के वाणिज्य के विषय में जानकारी मिलती है।
एरियन:- 130 ई. – 172 ई.
यह एक प्रसिद्ध यूनानी इतिहासकार था। इसने ‘इण्डिका’ और ‘एनाबेसिस’ (सिकन्दर के अभियान का इतिहास) नामक दो ग्रंथ लिखे । ये दोनों ग्रंथ सिकन्दर के समकालीन लेखकों व मेगास्थनीज के विवरणों पर आधारित हैं। भारत के संबंध में उपलब्ध यूनानी विवरणों में एरियन का विवरण सर्वाधिक सही और प्रामाणिक है। इसके विवरण में चंद्रगुप्त का उल्लेख एण्ड्रोकोट्स के रूप में हुआ है।
कॉस्मस इण्डिकोप्लुस्टस:- (537ई.-547 ई.)
यह एक यवन (यूनानी) व्यापारी था जो बाद में बौद्ध भिक्षु हो गया इसने 537 ई. से 547 ई. तक भूमध्य सागर, लाल सागर और फारस की खाड़ी के क्षेत्रों तथा श्रीलंका व भारत की यात्रा की। इसके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘क्रिश्चियन टोपोग्राफी ऑफ द यूनिवर्स’ से श्रीलंका तथा पश्चिमी समुद्री तट पर स्थित अन्य देशों के साथ भारत के व्यापार के संबंध में बहुमूल्य जानकारी मिलती है।
रोमन/लातिनी लेखक
प्लिनी (23 ई.-79 ई.):
प्लिनी एक रोमन इतिहासकार था। यह कनिष्क का समकालीन था। इसने विश्वकोशीय रचना ‘नेचुरलिस हिस्टोरिया (Naturalis Historia i.e, Natural History) की रचना की। इसने यूनानी तथा पश्चिमी व्यापारियों की सूचनाओं के आधार पर भारत का विवरण दिया है। इस ग्रंथ में भारत के पशुओं, पौधों व खनिज पदार्थों का विस्तृत विवरण मिलता है साथ ही रोम (इटली) के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों पर प्रकाश पड़ता है।
टॉलमी :- 2री सदी ई.
टॉलमी का भूगोल भी भारतीय जानकारी देने मे सक्षम है। यह दूसरी शताब्दी का एक विद्वान था। इसे भारतवर्ष की प्राकृतिक सीमाओं का विशुद्ध ज्ञान नहीं था।फलतः इसके द्वारा प्रस्तुत भारतवर्ष का मानचित्र अशुद्ध है।
जस्टिन (2री सदी ई.):
यह एक रोमन इतिहासकार था। इसने “एपिटोम” (Epitome = सार-संग्रह) नाम से एक ग्रंथ लिखा। इसकी रचना यूनानी रचनाओं पर आधारित है । इसने भारत में सिकन्दर के अभियानों और सैण्ड्रोकोट्स (चन्द्रगुप्त) की सत्ता प्राप्ति का विवरण दिया है। उत्तर-पश्चिमी भारत से यूनानी सत्ता को समाप्त करने में चन्द्रगुप्त की भूमिका के बारे में जस्टिन ने लिखा है : “सिकन्दर की मृत्यु के बाद भारत ने अपनी गर्दन से दासता का जुआ उतार कर फेंक दिया और अपने (यूनानी) क्षत्रपों (गवर्नरों) की हत्या कर डाली। यूनानी शासक के विरुद्ध इस मुक्ति युद्ध का नायक सैण्ड्रोकोट्स (चन्द्रगुप्त) था।”
( चीनी लेखक )
अनेक चीनी यात्री समय-समय पर भारतीय संस्कृति एवं धर्म का अध्ययन करने अथवा परिभ्रमण की अभिरुचि से भारतवर्ष आए थे। इनमें से कुछ तो स्वयं बौद्ध थे। अतः उनका महात्मा बुद्ध की पुण्य जन्म- भूमि का दर्शन करने के हेतु भारतवर्ष में आना नितान्त स्वाभाविक था। यही नहीं, चीन में रहते हुए भी कुछ चीनी लेखकों ने भारतवर्ष की सुविक सित सभ्यता, संस्कृति और धर्म के विषय में महत्वपूर्ण उल्लेख किये हैं। ये सव हमारे इतिहास-निर्माण में विशेष रूप से सहायक हुए हैं।
सुमाचीन:-
यह चीन का सर्वप्रथम इतिहासकार था। चीनी इसे अपने इतिहास का पिता मानते हैं जो प्रथम शताब्दीBC. में जो ग्रंथ लिखा उसमें भारत वर्ष के बारे मे भी जानकारियां मिलती हैं।
◆पान कू एवं हन वे द्वारा लिखित ग्रंथों से कुषाण शासकों कुजुल कडफिसेस एवं विम कडफिसेस के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
फाह्यान/फाहियान/फा-शिएन:- (399-414 ई.)
गुप्त शासक चन्द्रगुप्त-II विक्रमादित्य के शासनकाल में 399 ई. में बौद्ध ग्रंथ के अध्ययन और अनुशीलन के उद्देश्य से भारत आया। 15-16 वर्षों तक (399-414) यह धर्म जिज्ञासु भारत में रहा और बौद्ध धर्म संबंधी तथ्यों का ज्ञानार्जन करता रहा।
इसने भारत वर्ष की धार्मिक(विशेषतः बौद्ध धर्म) पर प्रचुर प्रकाश डाला है।
इसने अपने ग्रंथ ” फो-को-की ” ( fo – kow – ki) के बारे मे बता कर म० प्र० की जनता को ‘ सुखी एवं समृद्ध’ बताया।
उसका यह ग्रंथ आज भी अपने मूल रूप में प्राप्य है। इससे गुप्तकालीन इतिहास, सभ्यता और संस्कृति पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
शुंग युन:- 518-22 ई.
शुंग युन बौद्ध ग्रंथों की खोज में भारत आया।
ह्वेनत्सांग/श्वेन त्सांग/युवान च्युआंग :-(629-45 ई.)
यह बौद्ध चीनी यात्री वर्द्धनवंशी शासक हर्षवर्धन के शासनकाल में(629 ई० के लगभग) भारत भ्रमण के उद्देश्य से भारत आया।
भारत में 16 वर्षों तक रहने के दौरान 6 वर्ष तक नालन्दा विश्वविद्यालय में रहकर शिक्षा प्राप्त की तथा शेष समय में इसने दक्षिण भारत को छोड़ कर सम्पूर्ण भारत में भी भ्रमण करने के साथ – साथ तीर्थों ,बिहारों, मठों आदि में भी गया इसने अपने अनुभवों को ” सि – यू – की” नाम से प्रसिद्ध पुस्तक में दिया जिसमें 138 देशों के विवरण के साथ – साथ हर्षकलीन समाज धर्म तथा राजनीति पर सुंदर विवरण देता है।
उसे यात्रियों का सम्राट’ या ‘यात्रियों का राजकुमार’ उपनाम से जाना जाता है।
हुई ली / ह्वूली :-
यह ह्वेनसांग का मित्र था । इसने ह्वेनसांग की जीवनी(life of HiuenT’ sang) लिखी जो भारत वर्ष पर भी प्रकाश डालती है।
इत्सिंग :-(613-15 ई.)
613 ई. में सुमात्रा होकर समुद्री मार्ग से भारत आया। वह 10 वर्षों तक नालंदा विश्वविद्यालय में रहा और संस्कृत व बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन किया उसने भारत तथा मलयद्वीप पूँज में बौद्ध धर्म का विवरण’ नाम से यात्रा-वृत्तांत लिखा। इस ग्रंथ से तत्कालीन भारत के राजनीतिक इतिहास के बारे में तो अधिक जानकारी नहीं मिलती, लेकिन संस्कृत साहित्य व बौद्ध धर्म के इतिहास के बारे में अमूल्य जानकारी मिलती है ।
अपने विवरण में नालन्दा, विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत की दशा का वर्णन किया है। परन्तु ह्वेनसांग के समान उपयोगी नही है।
हुई चाओ:- 727 ई.
इसने अपनी रचना में कश्मीर के शासक मुक्तापीड़ व कन्नौज के शासक यशोवर्मन का उल्लेख किया है।
मात्वालीन:- 13 वीं सदी ई.
मात्वालिन ने हर्षवर्धन के पूर्वी अभियान का विवरण लिखा है।
चाऊ जू कुआ :-(1225 ई.)
यह एक चीनी व्यापारी व यात्री था। उसके ग्रंथ ‘यू-फान-ची’ में चोल इतिहास का विवरण मिलता है। इसमें 12वीं-13वीं सदी ई. के चीनी और अरब व्यापार के संबंध का बडा रोचक विवरण मिलता है इसमें दक्षिण भारत और चीन के व्यापारिक संबंधों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
मोहान:- 15वीं सदी ई.
मोहान 1406 ई. में भारत आया। उसने बंगाल की यात्रा की। धन-धान्य से पूर्ण भारत के इस प्रांत को देखकर वह बड़ा प्रभावित हुआ। उसने यहाँ की तैयार वस्तुओं की बड़ी प्रशंसा की है।
(तिब्बती लेखक)
लामा तारानाथ:- 12 वीं सदी ई.
प्रसिद्ध तिब्बती लेखक और इतिहासकार, के ग्रंथों- ‘कंग्युर’ व ‘तंग्यूर’ से भारत के प्रारंभिक काल के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
धर्मस्वामी:- 13 वीं सदी ई.
यह 13 वीं सदी में भारत आया । इसके समय विक्रमशिला विश्वविद्यालय नष्ट हो चुका था, किन्तु नालंदा विश्वविद्यालय मौजूद था, जिसमें उसने 3 वर्ष (1234-36 ई.) अध्ययन किया
अरबी लेखक
सुलेमान:- 851 ई.
यह एक अरब सौदागर (व्यापारी) था । वह प्रथम अरब यात्री है जिसका यात्रा वृतांत मिलता है। उसने समुद्री यात्रा के क्रम में भारत के सारे समुद्री तट का चक्कर लगाया । वह प्रतिहार राजा मिहिर भोज-1 (836-885 ई.) के शासनकाल में भारत आया। वह राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष (815-77 ई.) की सभा में रहा और राजा के बल एवं ऐश्वर्य से बहुत प्रभावित हुआ। वर्ष 851 ई. में उसने ‘सिलसिला- उत्-तवारीख’ ग्रंथ की रचना की। इसमें उसने 9वीं सदी ई. के पूर्वार्द्ध के भारत की दशा का वर्णन किया है। उसने पाल, प्रतिहार व राष्ट्रकूट राजाओं के विषय में रोचक वर्णन किया है। उसने पाल साम्राज्य को ‘रुहमा’ (अर्थात् धर्म या धर्मपाल) कहा है। उसने गुर्जर (प्रतिहार) को ‘जजर’ की संज्ञा दी है। उसने लिखा है कि नजर के पास सबसे अच्छे घोड़े थे। उसने ‘बिहार’ (अर्थात् वल्लभराज) को दक्कन का राजा बताया है। उसने हिन्द महासागर को ‘दरिया-ए हरगन्द’ कहा है।
इब्न खुर्दाधबेह:- 864 ई.
यह एक अरब भूगोलवेत्ता था। उसने अपने ग्रंथ ‘किताब-उल-मसालिक-वल-ममालिक’ (मार्गों एवं राज्यों की विवरणिका) में 9वीं सदी ई. में अंतर संचार व्यवस्था के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएँ दी हैं। वह अरब भूगोलवेत्ताओं में प्रथम व्यक्ति था, जिसने हिन्दुओं की सात जातियों के बारे में लिखा है।
अलबिलादुरी:- मृ. 892-93 ई.
इसने ‘फुतुह-अल-बुल्दान’ की रचना की। इसमें अरबों के सिंध-विजय का वर्णन मिलता है।
अलमसूदी:- मृ. 956 ई.
एक अरब यात्री था। उसने 915 ई. में गुर्जर प्रतिहार राजा महिपाल-I के राज्यकाल में उसके राज्य की यात्रा की। उसने गुर्जर प्रतिहार वंश को “अल गुजर’ एवं इस वंश के शासकों को ‘बौरा’ कहकर पुकारा है। उसने ‘मुरुज उल-साहब’ की रचना की इसमें प्रतिहार राजा महिपाल-1 के घोड़ों व ऊँटों का विवरण दिया है। उसने पान का विस्तृत वर्णन किया है। उसने तत्कालीन भारत, विशेषकर पश्चिमी भारत—मुल्तान व मंसूरा—के संबंध में विस्तार से लिखा है।
इब्न हौकल:- 943-79 ई.
यह बगदाद का एक व्यापारी था। वह 943 ई. में बगदाद से चलकर यूरोप , अफ्रीका और पश्चिम के विभिन्न देशों से होता हुआ भारत पहुँचा था। उसने राष्ट्रकूटों के राज्य में भ्रमण किया। से ‘अस्काल-उल-विलाद’ की रचना की। उसने सिंध का नक्शा तैयार किया था। वह पहला अरब यात्री और भूगोलवेत्ता था, जिसने भारत की लंबाई और चौड़ाई बताने का प्रयास किया। किसी विदेशी द्वारा भारत की सीमा बताने का यह पहला प्रयास था।
अलबेरुनी :-(973-1048 ई.)
जन्म ~973 ई० ख्वाजिजम (खीवा)
पूरा नाम~अबूरेहान मुहम्मद इब्न अहमद अलबरूनी 1017 में महमूद गजनवी ने ख्वाजिजम के अधिकार के साथ – साथ अलबरूनी तथा कई अन्य लेखको को बंदी बना लिया। वह भारतीयों के दर्शन, ज्योतिष एवं विज्ञान संबंधी ज्ञान की प्रसंसा करता है।
इसने अपनी पुस्तक”तहकीक – ए – हिन्द” (भारत की खोज) में उसने यहाँ के निवासियों की दशा का वर्णन करने के साथ – साथ राजपूत कालीन समाज की धर्म, रीति – रिवाजराजनीति आदि पर सुंदर प्रकाश इसके वर्णन में कनिष्क विहार का वर्णन भी मिलता है।
अलबरूनी ने पृथ्वी की त्रिज्या मापने का फार्मूला बताया था।
इब्न बतूता:- 1304-69 ई.
इसका का पूरा नाम अबु अब्दुल्ला मुहम्मद इब्न अब्दुल्ला लवात-उत-तांगी इब्न बतूता था। उसका जन्म 1304 ई. में मोरक्को में हुआ था। वह एक विद्वान अफ्रीकी यात्री था। वह 1333 ई. में सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के राज्यकाल में भारत आया। सुल्तान ने उसका स्वागत किया और उसे दिल्ली का काजी नियुक्त किया। 1342 ई. में सुल्तान राजदूत के रूप में चीन जाने तक वह इस पद पर बना रहा
उसने अपनी भारत यात्रा का बहुमूल्य वर्णन लिखा है जिससे मुहम्मद बिन तुगलक के जीवन और काल के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। उसने सुल्तान द्वारा दिल्ली से दौलताबाद राजधानी परिवर्तन के कारणों और प्रक्रियाओं का वर्णन किया 1345 ई. में वह मदुरई के सुल्तान गयासुद्दीन मुहम्मद दमगान शाह के राजदरबार में रहा। 1353 ई. में वह अपने देश मोरक्को लौट गया। वहाँ उसने 1355 ई. में ‘रिहला’ (यात्रा) की रचना की । वर्ष 1369 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
शिहाब अल दीनूमारी:- (1348 ई.)
डमस्कस (सीरिया) का निवासी था। वह भारत तो नहीं आया था लेकिन भारत से लौटे हुए लोगों से मिली जानकारी के आधार पर ‘तालिका अबसरी मामलिक असर’ नामक ग्रंथ की रचना 1348 ई. में की। इससे भारत के समाजिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है।
अब्दुल रज्जाक (1413-82 ई.)
का जन्म हेरात (अफगानिस्तान) में 1413 ई. में हुआ। वह समरकंद (फारस) के सुल्तान व तैमूरलंग के पुत्र शाहरुख के दरबार में काजी के पद पर था। वह वर्ष 1442 ई. में शाहरुख का राजदूत बनकर भारत की यात्रा की। पहले वह कालीकट पहुँचा और वहाँ के शासक जमोरिन के राज दरबार में तीन वर्ष (1442-45ई.) तक रहा। इसके बाद वह विजयनगर गया, जहाँ का दिलचस्प वर्णन उसने किया है। उस समय विजयनगर का शासक देवराय-II था । उसने उसकी राजधानी में छह महीने बिताये। वह लिखता है: “विजयनगर जैसा सुंदर नगरी में अभी तक अपनी आँखों से नहीं देखा। इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती कि संसार में ऐसा कोई दूसरा नगर हो सकता है।” इसके अलावे उसने अपने ग्रंथ ‘माल्ता-उस-सदेन वा मजामा-उल-बहरैन’ (दो पवित्र नक्षत्रों का उदय एवं दो समुद्रों का संगम) में 14वीं-15वीं सदी में हिन्द महासागर के जरिये होनेवाले समुद्री व्यापार का वर्णन किया है।
◆ इन लेखको के अतिरिक्त एक वेनिस यात्री मार्कोपोलो का नाम मिलता है। यह तेरहवीं शताब्दी के अंत में पाण्डव देश की यात्रा पर आया था। उसका वृत्तांत पाण्डय इतिहास के अध्ययन के लिए उपयोगी है।
धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद विश्वविद्यालय