हड़प्पा सभ्यता |
सिन्धु सभ्यता (indus valley civilization) वास्तव में भारतीय ही है। यह भवन निर्माण और उद्योग के साथ – साथ वेश भूषा तथा धर्म में आधुनिक भारतीय संस्कृति का आधार है ।मोहनजोदड़ो में ऐसी विशेषताएं दृष्टिगोचर होती है ऐतिहासिक भारत में सदा विद्दमान रहीं हैं।……….प्रो० गार्डन चाइल्ड
असिकन्या मरुद्वधे वितसत्यार्जीकीये शृणुह्या सुषोमया।। …… ऋग्वेद
इसका प्रसार अरब सागर से लेकर सुदुर j&k की पहाड़ियों तक था ।
इस सभ्यता की उत्पत्ति के विषय में कहा गया है कि “सिंधु घाटी सभ्यता (Hadappa sabhyata) का कोई प्रारंभिक चरण अभी तक सकारात्मक रूप से पहचाना नहीं गया है।”
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार (extent of harappan civilization):
वर्तमान समय में उपलब्ध जानकारी के अनुसार हड़प्पा सभ्यता (Harappan civilization) का भौगोलिक विस्तार उत्तर में मांडा ( j & k) से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने ( भगतराय) तक एवं पश्चिम बलूचिस्तान के मकराल समुद्र तट से लेकर उत्तर-पूर्व में मेरठ तक है।
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार |
हङप्पा सभ्यता से संबंधित अन्य लेेेख:-
● हड़प्पा सभ्यता का उद्भव/उत्पत्ति
सन 1922 ई० में जॉन मार्शल ने इस संबंध में लिखा है कि मौर्य साम्राज्य के उदय से भी सुविकसित और समृद्ध सभ्यता का अस्तित्व था। लेकिन उन युगों में निर्मित स्मारकों का राजगृह की साइक्लोपीयन प्राचीर को छोड़ कर कोई उदहारण अवशिष्ट नही है।
इस संस्कृति के विकास में विदेशों से सम्पर्क होना स्वाभाविक ही है। यह आश्चर्यजनक है कि इतने व्यापक भौगोलिक विस्तार के बावजूद इस सभ्यता में अदभुत एक रुपता दृष्टिगोचर होती है।
रहन- सहन के संदर्भ में इस सभ्यता के लोगों का स्तर उन्नत था।
सिंधु घाटी सभ्यता का नगर नियोजन(Town planning of Indus valley civilization):
सिंधु घाटी सभ्यता (Indus valley civilization) मूलतः एक नगरीय सभ्यता थी।
इन नगरों के बारे मे विशिष्ट बात यह थी कि ये सम्यक रूपेण विख्यात थे। सिंधु घाटी सभ्यता से सम्बंधित अनेक पुरास्थल- राजस्थान, गुजरात यहाँ तक कि सुदूर केरल में भी हाल ही के खुदाई में पाये गये है।
इस समय तक इस नगर का महत्व बना हुआ है यहां की निवासी नगर निर्माण प्रणाली से पूर्णत: परिचित थे।
इतिहासकार दीक्षित के अनुसार,”ऐसी उत्तम प्रणाली संसार के अन्य किसी प्राचीन देश में देखने को नहीं मिलती हैं। यहां की इमारतों में पकी ईटो का प्रयोग होता था। ऐसा प्रतीत होता है कि शहर एक निश्चित योजना के आधार पर बसाया गया था।
हड़प्पा में नगर रक्षा की दीवारों को कच्ची इटो से बनाया गया था। मकान के प्रायः 2 खण्ड होते थे।
मोहनजोदड़ो के भवनों में आम सड़कों की अपेक्षा मुख्य सड़कों की ओर कम दरवाजे पाये गये है।
ऊपरी खण्डों पर जाने के लिए सीढ़ियां बनी होती थी।एक ही योजना निर्माण का आधार थी। बड़े -बड़े मकानों में अतिथि गृह और विश्रामगार का भी प्रबन्ध था।
चूल्हे मकान के बाहर बनते थे।
मोहनजोदड़ो की अपेक्षा हड़प्पा में कम कुएँ मिले हैं।नालियों का इतना सुंदर प्रबन्ध था कि अन्य प्राचीन देशों में ऐसा प्रबन्ध नहीं मिलता।
नालियां 2 से 18 इंच तक गहरी थीं।
हड़प्पा व मोहनजोदड़ो दोनों नगर लगभग 5km के घेरे में बसा हुआ था।इन दोनों नगरों तथा कालीबंगा(राजस्थान) सुरकोटदा आदि नगर निर्माण योजना में पर्याप्त समानता दृष्टिगोचर होती है।
सिन्धु सभ्यता की नगर योजना में सड़कों का महत्व पूर्ण योगदान था।इस संदर्भ में यह सभ्यता अपनी समकालीन मिस्र और सुमेरियन से भिन्न और अधिक विकसित प्रतीत होती है।
मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी सड़क 33 फुट चौड़ी थीं।सम्भवता यह राजमार्ग था। चौराहे की तुलना आक्सफोर्ड सर्कल से की गई है।
नवीन उत्खनन में हरियाणा के रोहतक जिले में फरमाणा गाँव में जो हड़प्पा स्थल मिला है वहां से एक मकान में 26 कमरे , रसोई व आंगन है ।
दूसरी ओर केरल के उत्तर कोच्चि में कुछ सिन्धु सभ्यता के समान नागरीय बस्तियां मिली है। किन्तु किसी विशेष नगर विन्यास प्रणाली का ज्ञान नहीं होता है।जैसा कि गुजरात में पाए गये बनासकंठ नामक पुरास्थल में हुआ था। जहां पर चूडियों को बनाने का कारखाना मिला था।
” सिन्धु सभ्यता का उदभव”
Origin of Indus civilization
यदि इस सभ्यता के निर्माता बाहर से नहीं आये थे तो स्थानीय परिवेश से विकसित इस सभ्यता के आघ एवं आरम्भिक रुप से क्यो नहीं मिलते हैं ?
हड़प्पा संस्कृति के उदभव के संदर्भ में 2 मत है:-
1)देशी उतपत्ति का मत :-
हड़प्पा संस्कृति के आरम्भ के पूर्व जो ग्राम संस्कृतियाँ विकसित हुई थी वे ही हड़प्पा संस्कृतियों का मूल आधार है।
2) विदेशी उत्तपत्ति का मत :-
सम्भवतः सिंधु सभ्यता के निर्माता यहीं थे ।
1) आर्य:- डॉ. राजबली पाण्डेय
2) सुमेरियन:- गार्डन चाइल्ड
3) पणि:- वेदों में उल्लिखित
4) द्रविड़:- राखालदास बनर्जीब
5) दास व दस्यु:- मार्टिमर ह्वीलर
सिन्धु सभ्यता की विशेषताएं:- Characteristics of Indus civilization :
सिन्धु सभ्यता कुछ आधारभूत विशेषताएँ रखती हैं। सिन्धु-सभ्यता के सम्यक् बोध के लिए इन विशेषताओं को हृदयंगम कर लेना अति आवश्यक है: –
(2). यह हड़प्पा सभ्यता नगरीय तथा व्यापार-प्रधान है। इसके अन्तर्गत सिन्धुवासियों ने आश्चर्यजनक उन्नति की थी। विशाल नगरों, पक्के भवनों, सुव्यवस्थित सड़कों, नालियों और स्नानागारों के निर्माता, सुदृढ़ शासन-पद्धति और धार्मिक व्यवस्था के व्यवस्थापक तथा आन्तरिक उद्योग-धन्धों और विदेशी व्यापार के संगठनकर्ता सिन्धु निवासियों की चतुर्दिक अभ्युन्नति के पीछे साधना और अनुभव की एक सुदीर्घ परम्परा थी। सिन्धु-प्रदेश की सुख-शान्ति और विलासिता को देखते हुए जॉन मार्शल ने लिखा है कि “यहाँ साधारण नागरिक सुविधा और विलास का जिस मात्रा में उपभोग करता था उसकी तुलना समकालीन सभ्य संसार के अन्य भागों से नहीं हो सकती।”
(3). हड़प्पा सभ्यता (Hadappa sabhyata) शांति मूलक थी। उसके संस्थापक को युद्ध से अनुराग न था यही कारण है कि सिन्धु-प्रदेश के उत्खनन में कवच, शिस्त्राण और ढाल नहीं मिले हैं। जो अन्य अस्त्र-शस्त्र-धनुष-बाण, भाला, कुल्हाड़ी आदि-उपलब्ध हुए हैं उनका प्रयोग वहुधा आत्मरक्षा अथवा आखेट के लिए ही किया जाता था।
(6). सिन्धु-सभ्यता के अन्तर्गत धर्म द्विदेवतामूलक था। सिन्धु-निवासी की श्रद्धा-भक्ति के प्रमुख केन्द्र थे दो देवता-एक पुरुष के रूप में और दूसरा नारी के रूप में।
-: धार्मिक विश्वास एवं मान्यताएं :-
Religion of harappan civilization
डॉ. राधा कुमुद मुखर्जी के अनुसार यह धर्म कुछ बाहरी अंगो के होते हुए भी मुख्यतः इसी भूमि की उपज था। और हिंदू धर्म का पूर्व रूप जिसमें आज की कई विशेषताएँ पायी जाती है जैसे:- शिवशक्ति की पूजा, नाग पूजा, पशुपक्षी पूजा, वृक्ष व पाषाण पूजा , लिंग पूजा व योग आदि।
कुछ ऐसी मूर्तियां मिली है जिसमें एक नारी बच्चे के साथ प्रदर्शित है।मार्शल ने इसका समीकरण मातृदेवी से किया है
प्रशन यह है कि क्या प्रमाण है कि ये पूजा परख मूर्तियां है?
इस संदर्भ में मैके ने कुछ साक्ष्यों की ओर विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया है।
इन मूर्तियों पर धुयें के निशान है।यह सम्भावना है कि इन मूर्तियों के सामने पूजा के लिए कोई वस्तु जलायी गयी होगी जिससे ये निशान पड़ गए।
जॉन मार्शल के अनुसार,” सिंधुप्रदेश में मातृदेवी को आदिशक्ति के रूप में पूजा जाता था।
ये मूर्तियां टर्की, सीरिया, ईरान, बलूचिस्तान की कुल्ली संस्कृति, अफगानिस्तान के मुंडिगाक पुरास्थल से प्राप्त मातृदेवी की मूर्तियों से ये आभास होता है कि सिन्धु सभ्यता के बाहर मातृदेवी की उपासना प्रचलित थी।
इसके तीन मुख है। इसके दाहिने ओर हाथी तथा बाघ तथा बायीं ओर गैंडा व भैसा है। इस मूर्ति का निरूपण करते हुए राधाकुमुद मुखर्जी ने लिखा है।,”उसकी संज्ञा ऋग्वैदिक रुद्र या शिव के समान पशुपति सिद्ध होती है।
” संभवतः शिव नन्दी की पूजा का प्रारंभ भी यही से हुआ था।”
एक मुद्रा में पशु के जुड़वा सिरो के बीच में नवपीपल का धार्मिक महत्व आज भी है।
“अन्तरक्ष्य बहि दृष्टी निशेप्नयेष वर्जितः”
सिन्धु घाटी का धर्म केवल विश्वास तथा आस्था पर निर्भर था।अभी तक जितने भी प्रमाण उत्पन्न हो पाये है।उसके आधार पर हम यह कह सकते हैं कि हम यह प्रमाणित करने में सर्वथा असफल रहे कि सिन्धु निवासियों का कोई धर्म था या नहीं।
इस विषय में तब तक मौन रहना होगा जब तक सिन्धु लिपि बोधगम्य न हो जाये।फिर हम इतना तो निश्चय पूर्वक कह सकते हैं कि सिन्धु निवासी बहुदेववाद में आस्था रखने के साथ- साथ एकेश्वरवादी भी थे।
इसी एकेश्वरवाद के आधार पर उन्होंने परमपुरुष तथा मातृदेवी के मध्य द्वंदात्मक विचारों को जन्म दिया।
सिंधु घाटी सभ्यता की तिथि
Dating of Indus valley civilization
सिन्धु लिपि के अभी तक न पढ़े जाने के कारण सिन्धु सभ्यता के कालानुक्रम पुरातत्वविदो के लिए विवाद का विषय है। इसका एक कारण यह है कि जहां इसकी समकालीन मेसोपोटामिया एवं मिस्र की सभ्यता में एक प्रवाह दिखाई पड़ता है वहीं इसमें इसका नितांत अभाव है।
2) मैके:- 2800BC. ~25BC.
3) माधवस्वरूप वत्स:- 3500BC. ~ 2700BC.
4) मार्टिमर ह्वीलर:- 2500BC. ~ 1500BC.
5) सी० जे० गैड:- 2300BC.~1700BC.
6) फेयर सर्विस :- 2000BC.~ 1500BC.
7) D. P. अग्रवाल:- 2300BC.~ 1750BC.
8) अमलानन्द घोष:- 2500 BC.~ 1700BC.
9) आलचीन:- 2150 BC. ~ 1750BC.
B●Kotdiji:- 2800~ 2600BC.
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हड़प्पा संस्कृति के पतन के कारण
the collapse of the harappan culture
हड़प्पा संस्कृति के पतन के विभिन्न कारण विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रतिपादित किया गया है ये निम्न है।:-
1) बाह्य आक्रमण:- मार्टिमर ह्वीलर
2) जलवायु परिवर्तन:- ऑरेल स्ट्रेन और A.N. घोष
3) भुतात्विक परिवर्तन:-M.R. साहनी, R.L. राइक्स, F. डेल्स,H.T.लम्ब्रिक
4) बाढ़:- जॉन मार्शल, अर्नेस्ट मैके,S.R.राव
5) प्रशासनिक दुर्बलता:- सर जॉन मार्शल
6) आर्थिक संकट:- W.S.अलब्राइट
7)संसाधनों का दुरुपयोग:- वाल्टर फेयर सर्विस
8) महामारी:- K.V.R. कनेडी
9) घग्घर नदी के बहाव में परिवर्तन:- G.F. डेल्स
10) मोहनजोदड़ो के लोगों की आग लगा कर हत्या कर दी गई:- D.D. कौशाम्बी
11)विदेशी व आर्यों के आक्रमण से:- गार्डेन चाइल्ड, मार्टिमर ह्वीलर, D.H. गार्डन ,स्टुअर्ट पिग्गट
बाह्य आक्रमण:- विद्वान यह मानते हैं कि सिन्धु सभ्यता का अंत आर्यों के आक्रमण के फलस्वरूप हुआ।
इन विद्वानों में मार्टिमर ह्वीलर प्रमुख हैं।इन्होंने अपने मत के पक्ष में 2 कारण बताए हैं।:-
1) मोहनजोदड़ो के ऊपरी सतह पर कई सारे कंकालो का मिलना जिससे पुराविदों ने यह अनुमान लगाया है कि आर्य ने स्थायी जनसंख्या का व्यापक नरसंहार किया।
2) ऋग्वेद के एक श्लोक में इंद्र की ( CH ) समाधि के दूसरे स्तर से अंत्येष्ठि कलशों में आंशिक शवाधान से लगभग 140 समाधियाँ मिली है।
चाइल्ड की यह मान्यता है कि इन समाधियों के निर्माता आर्य कबीले से सम्बन्धित थे जिन्होंने इनका विनाश किया।
जमीन के असंतुलन हो जाने के कारण जहां नदी के प्रवाह में बाढ़ आयी वहीं रेत एकत्रित होने से पानी झील का रूप धारण कर लिया इससे यातायात जल परिवहन में बाधा उत्पन्न हुये और अंतर्देशीय व्यापार का हास्य(पतन) होता चला गया।
लोगो मे पलायन की प्रवित्ति जागृत हुयी और धीरे धीरे ये महान सभ्यता विलुप्त हो गयी।
चन्हूदड़ों से भी ऐसे साक्ष्य प्राप्त हुये है कि वहां के निवासियों को बाढ़ के कारण पलायन करना पड़ा था।अतः स्थान परिवर्तन से एक व्यतिक्रम पैदा हो गया। जिससे सभ्यता विनाश के कगार पर पहुंच गयी।
महामारी:-कतिपय विद्वान मरेलिया जैसी किसी संक्रामक बीमारी के कारण सभ्यता का विनाश मानते हैं।
इन विशाल नगरो की अपार हलचल इन भवनों की गौरवान्वित ऊँची अट्टालिकाएं नागरिकों के ठहाके एवं कार्य व्यवस्था सब आज अतीत की बातें बन गई।किन्तु भारतीय जीवन पर इनका प्रभाव आज भी अमिट है।
धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय