मोहनजोदड़ो का चित्र |
सिंधु और उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदान में भारत की कांस्य काल की प्राचीन सभ्यता का उदय हुआ था जिसको सामान्यत: है ‘सिंधु सभ्यता’ (Indus civilization) कहा जाता है।
सिन्धु सभ्यता भारत की प्राचीनतम नगरीय सभ्यता है। उसका सम्बन्ध कांस्य काल से है।
यह सभ्यता पूर्ण विकसित तथा नगरी सभ्यता के रूप में प्रकाश में आई जो कि भारतवर्ष में प्रथम नगरीकरण को प्रमाणित करती है।
सिंधु घाटी सभ्यता एक विशिष्ट वातावरण में मानव जीवन के सर्वांगीण विकास को दर्शाती है।
हड़प्पा सभ्यता से संबंधित अन्य लेख:
1. हड़प्पा सभ्यता की खोज:- (Discovery of harappan civilization):
चार्ल्स मैसन (1826 ई.):
सर्वप्रथम एक ब्रिटिश यात्री चार्ल्स मैसन (Charles Masson) का ध्यान हड़प्पा स्थित टीलों की ओर गया। उसने 1826 ई. में इस स्थान की यात्रा की थी। उसने 1842 ई. में प्रकाशित अपने एक लेख नैरेटिव ऑफ जर्मनी (Narrative of Journeys) में इस बात का उल्लेख किया। उसका अंदाजा था कि ये टीले किसी पुराने राजमहल के अवशेष हैं।
अलेक्जेंडर बर्न्स (1831 ई.):
सन् 1831 ई. में जब कर्नल अलेक्जेण्डर बर्न्स पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह से मिलने जा रहा था तब उसकी नजर हड़प्पा स्थित टीले पर पड़ी थी। उसका अनुमान था कि ये टीले किसी पुराने किले के अवशेष हैं।
बर्टन बंधु (1856 ई.):
सन् 1856 ई. में जब जेम्स बर्टन James Burton) और विलियम बर्टन (William Burton) दो अभियंता बंधु कराची-लाहौर लाइन के लिए रेल बिछाने में लगे थे तो उन्होंने पास के टीलों से अपनी लाइन के लिए ईंटें लेने के प्रयत्न किये। ईंटों के लिए की गई खुदाई से उन्हें किसी प्राचीन सभ्यता के अस्तित्व का आभास हुआ।
अलेक्जेंडर कनिंघम 1853,1856,1875 ई.):
अलेक्जेंडर कनिंघम (Alexander Cunningham) ने 1853 एवं 1856 ई. में हड़प्पा की यात्रा की और वहाँ अनेक टीलों के गर्भ में किसी प्राचीन सभ्यता के दबे होने की संभावना व्यक्त की।
उन्हें स्थानीय निवासियों ने बताया कि यह टीला हजारों वर्ष पुराना है और शासक के अत्याचार से नगर नष्ट हो गया।
जॉन मार्शल एवं उनके सहयोगी (1920 ई. का दशक):
अंततः 1921 ई. में दयाराम साहनी द्वारा हड़प्पा की खोज हुई। अगले वर्ष यानी 1922 ई. में राखाल दास (आर.डी.) बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज की। उस समय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रधान संचालक सर जॉन मार्शल थे और उन्हीं के निर्देश पर उनके सहयोगी दयाराम साहनी एवं राखाल दास बनर्जी ने खोज की थी।
साक्ष्य मिले हैं।
2. हड़प्पा सभ्यता का नामकरण :-(Nomenclature of Harappan civilization)
सिन्धु सभ्यता/सिन्धु घाटी की सभ्यता:-
Indus civilization/Indus valley civilization:
हड़प्पा सभ्यता: Harappan civilization
सिन्धु-सरस्वती सभ्यता: Indus- saraswati civilization
निष्कर्ष: Conclusion
3. हड़प्पा सभ्यता का उद्भव : Origin of harappan civilization
सिन्धु-सभ्यता का उदय सिन्धु नदी और उसकी सहायक नदियों की घाटियों में हुआ। यह सभ्यता पूर्ण विकसित नगरीय सभ्यता के रूप में प्रकाश में आयी।
आश्चर्य एवं खेद का विषय है कि इतनी विस्तृत सभ्यता होने के बावजूद भी इस सभ्यता के उद्भव और विकास के सम्बन्ध में विद्वानों में भारी मतभेद हैं। अभी तक की खोजों से इस प्रश्न पर कोई भी प्रकाश नहीं पड़ सका है, कारण कि इस सभ्यता के अवशेष जहाँ कहीं भी मिले हैं अपनी पूर्ण विकसित अवस्था में ही मिले हैं।
सैन्धव सभ्यता के उद्भव को लेकर पुरातत्त्वविदों के मत दो वर्गों में विभाजित हैं । कतिपय विद्वान् सिन्धु सभ्यता के उदय में विदेशी तत्वों को सहयोगी मानते हैं, जबकि अन्य पुरातत्त्वविद् स्थानीय संस्कृतियों से ही नगरीय सभ्यता का विकास मानने के पक्ष में हैं। इस प्रकार सिन्धु सभ्यता के उदय में दो विचारधाराएँ दिखाई देती हैं :
(1) विदेशी उत्पत्ति का सिद्धान्त,
(2) देशी (स्थानीय) उत्पत्ति का सिद्धान्त।
1. विदेशी उत्पत्ति का मत: Origin of harappan civilization
सर जॉन मार्शल, गार्डन चाइल्ड, सर मार्टीमर हीलर, क्रेमर, लियानार्ड वूली, एच.डी.संकालिया , डी.डी.कोशांबी आदि पुराविदों की मान्यता है कि सैन्धव सभ्यता की उत्पत्ति मेसोपोटामिया की सुमेरियन सभ्यता से हुई।
ह्वीलर समेत इन विद्वानों की धारणा है कि मेसोपोटामिया की सुमेरियन सभ्यता सिंधु की पूर्ववर्ती है।
विद्वानों ने सुमेरियन सभ्यता और सिन्धु सभ्यता में कतिपय समानताओं के आधार पर ही सिन्धु सभ्यता पर सुमेरियन सभ्यता का प्रभाव माना है।
(1) दोनों नगरीय (Urban) सभ्यताएं हैं।
(2) दोनों के निवासी कांसे तथा ताँबे के साथ-साथ पाषाण के लघु उपकरणों प्रयोग करते थे।
(3) दोनों के भवन कच्ची तथा पक्की ईटों से बनाये गये थे।
(4) दोनों सभ्यताओं के लोग चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाते थे।
(5) दोनों को लिपि का ज्ञान था।
विद्वानों का मानना है कि सभ्यता की प्रथम किरण मेसोपोटामिया में फूटी और वहीं से मिस्र होती हुई भारत पहुँची। उपर्युक्त समानताओं के आधार पर हीलर ने सैन्धव सभ्यता को सुमेरियन सभ्यता का एक उपनिवेश (Colony) बताया है।
किन्तु गहराई से विचार करने पर यह मत तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता है।
खंडन:-
देशी उत्पत्ति के मत:- Origin of harappan civilization
इनके अनुसार हड़प्पा संस्कृति के आरंभ में जो ग्राम संस्कृतियां विकसित हुई थी वे ही हड़प्पा संस्कृतियों का मूल आधार है।
इस क्षेत्र की प्रमुख प्राक सैंधव संस्कृतियों में जॉब संस्कृति , क्वेटा संस्कृति , कुल्ली संस्कृति , आमरी संस्कृति , सिंध तथा पंजाब की प्राक सैंधव संस्कृतियां , राजस्थान व हरियाणा की प्राक सैंधव संस्कृतियां आदि हैं।
-:प्राक्-सैंधव संस्कृतियाँ:-
हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा अन्य सैन्धव सभ्यता के पुरास्थलों के उत्खनन से प्राप्त नगरीय सभ्यता के पुरावशेष विकसित नगरों और कस्बों की ओर संकेत करते हैं।
पुरातत्वविदों की मान्यता है कि मानव इतिहास के अतीत में ऐसा काल भी था, जब नगरों का अस्तित्व नहीं था। मानव छोटे छोटे गाँवों और कस्बों में रहता था।
विद्वानों के मत को चार वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है- बलुची, सोथी, द्रविड़ एवं आर्य । इसमें बलुची एवं सोथी पर विशेष जोर है।
बलूची संस्कृति द्वारा उत्पत्ति संबंधी मत:-
1.जॉब संस्कृति:-
1. जॉब संस्कृति के प्रथम काल में सादे (अनलंकृत) पात्र मिले है, जिनका निर्माण हाथ से किया गया है। इस काल के अन्य पुरावशेषों में फ्लिण्ट के लघुपाषाण उपकरण, हड्डी की सुइयों, गधे और भेड़ की हड्डियाँ तथा खच्चर के चार दाँत उल्लेखनीय हैं।
2. इस संस्कृति के द्वितीय काल में लाल रंग के बर्तन मिले हैं, जिन पर काले रंग से चित्र बनाये गये हैं। इस काल के प्रमुख पात्र प्रकारों में कटोरे का उल्लेख किया जा सकता है। पुरातत्वविद् द्वितीय काल के पात्रों पर ईरानी प्रभाव मानते हैं। इस काल में मकान के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। मकानों की नींव में पत्थर का प्रयोग किया गया है।
5. जॉब संस्कृति के पंचम काल का सम्बन्ध भी उत्तरकालीन हड़प्पा संस्कृति से माना जाता है। इस काल के पात्रों पर चित्रण अभिप्राय नहीं मिलते हैं। बर्तनों को उभरी हुई नक्काशी से सजाया गया है। पात्रों के अलंकरण के लिए कपड़े और गेहूँ की बाल के चित्रों का प्रयोग किया गया है।
जॉब संस्कृति के अन्य महत्वपूर्ण पुरावशेषों में नारी की मृण्मूर्तियाँ, (यद्यपि राना घुंडई पुरास्थल से नारी प्रतिमाएँ नहीं मिली हैं) पाषाण के लिंग एवं योनि, लघु पाषाण उपकरणों में बाणाग्र, सेलखड़ी के प्याले, हड्डी और पाषाण के मनके, हड्डी की चूड़ियाँ आदि उल्लेखनीय हैं। इनके अलावा विशेष पुरानिधियों में पेरिआनो धुंडई से प्राप्त ताम्र शलाका, पिन, डाबरकोट से प्राप्त ताँबे का खण्डित प्याला, सोने की पिन आदि की गणना की जा सकती है।
2.क्वेटा संस्कृति:-
3. आमरी-नाल संस्कृति:-
पाण्डु रंग के मृद्भाण्डीय संस्कृति में आमरी के अतिरिक्त नाल पुरास्थल की भी गणना की जाती है। नाल पुरास्थल पश्चिमी बलूचिस्तान के कलात जिले में स्थित है। इस पुरास्थल का उत्खनन एच० हरग्रीब्स ने कराया था। उन्होंने नाल के समाधि क्षेत्र को उत्खनन के लिए चुना। नाल के उत्खनन से प्राप्त मृद्भाण्ड पाण्डु (भूरे) अथवा गुलाबी रंग के हैं।
नाल के मृद्भाण्डों पर विभिन्न प्रकार के अलंकार अभिप्राय मिले हैं।
4. कुल्ली संस्कृति:-
कुल्ली संस्कृति के लोग अपने पूर्वजों की अन्त्येष्टि भी करते थे। कुल्ली पुरास्थल से मृतकों के दाह-संस्कार के साक्ष्य मिले हैं, जबकि मेही में अस्थियों को कलशों में भर कर दफनाया गया है। मेही के उत्खनन में शवाधान के साथ अन्त्येष्टि सामग्री रखी गयी है। मेही के एक कब से ताँबे का दर्पण, मिट्टी के पात्र, मिट्टी की मूर्तियाँ और ताँबे की दो पिने अन्त्येष्टि सामग्री के रूप में मिली हैं।
सोथी संस्कृति से उत्पत्ति संबंधी मत:
द्रविड़ संस्कृति से उत्पत्ति संबंधी मत:
आर्य संस्कृति द्वारा उत्पति संबंधी मत:-
भारतीय संविधान की पोस्ट्स
● संविधान किसे कहते हैं: अर्थ और परिभाषा
● संविधान कितने प्रकार के होते हैं?
विश्व की सभ्यताएं की पोस्ट्स
● पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति कब हुई? भाग -1
● पृथ्वी पर जीव की उत्पत्ति व उसके क्रमिक विकास क्रम (भाग-2)
सिंधु सभ्यता की जाति:-
सैंधव सभ्यता तथा वैदिक सभ्यता:-
किन्तु उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता किसी विदेशी सभ्यता द्वारा उत्पन्न होने की मोहताज न थी अपितु वह मूलतः देशी सभ्यता थी।
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय