अलबरुनी का जीवन परिचय :
अलबरूनी (Al-beruni) को हम मध्यकाल में आये हुए एक विदेशी यात्री के रूप में जानते हैं।
अलबरूनी का पूरा नाम अबु रेहान मुहम्मद बिन अहमद अल-बरूनी था। उसकी उपाधि मुन्नजिम थी जिसका शाब्दिक अर्थ ‘खगोलविद् व ज्योतिषविद्’ है।
अलबरूनी का जन्म कब हुआ ?
अलबरूनी का जन्म 15 सितम्बर, 973 ई० में वर्तमान उज्बेकिस्तान में स्थित ख़्वारिज़्म या खीवा में हुआ था। ख़्वारिज़्म(खीवा) 19वीं शताब्दी में दौरान तुर्किस्तान का खान राज्य के नाम से जाना जाता था।
अलबरूनी भले ही खीवा में पैदा हुआ था किंतु उसके माता पिता ईरानी मूल के निवासी थे। अतः वहां उसे विदेशी जैसा व्यवहार किया जाता था और फ़ारसी भाषा के बिरुनी(बाहर के लोग) के नाम या उपाधि से जाना जाता था।
अलबरूनी के जन्म के समय ‘खीवा’ –
खीवा में उस समय(10वीं शताब्दी में) मामूनी या सामानी वंश शासनरत थे। जहाँ पर अलबरूनी का जन्म हुआ था अर्थात ख़्वारिज़्म या खीवा उस समय का शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। फलस्वरूप अलबरूनी ने उस समय की सबसे अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी।
अलबरूनी की विद्वता – Al-beruni
वह एक फ़ारसी विद्वान , लेखक, वैज्ञानिक, धर्मज्ञ व विचारक था। इसके साथ ही वह सीरियाई, हिब्रू, फ़ारसी तथा संस्कृत का भी जानकार था। इसके साथ ही यह भी मान्यता प्राप्त है कि “अलबरूनी भारतीय इतिहास का पहला जानकार था।” हालांकि यह विचारधारा भ्रामक होती जा रही है।
वह यूनानी भाषा का जानकार नही था तथापि वह प्लेटो तथा अन्य यूनानी दार्शनिकों से परिचित था, जिन्हें उसने अरबी अनुवादित ग्रंथो से पढ़ा था। उसने अपनी कृतियों में भी अरस्तु व प्लेटो का वर्णन किया है।
अपनी विद्वता के बल पर ही वह उस समय वहाँ के शासनरत मामूनी कुल या सामानी वंश का राजमंत्री बन गया। और उसने यहां भारतीय दर्शन व ज्योतिष का भी अध्ययन किया।
उस समय गजनी साम्राज्य में महमूद गजनवी का शासन था। हालांकि महमूद तत्कालीन खीवा के शासक का रिश्तेदार था किंतु अपनी महत्वाकांक्षा के कारण वह सर्वथा खीवा को छीनना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने कई प्रयास भी किये थे।
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अंततः 1017 ई० में महमूद ने ख़्वारिज़्म पर आक्रमण करके मामूनी वंश को नष्ट कर दिया तथा वहां के शासक समेत अलबरूनी व अन्य विद्वानों, कवियों को भी अपने राज्य ले गया।
महमूद अलबरूनी की विद्वता से प्रभावित होकर उसे अपने दरबार के विद्वानों में स्थान प्रदान किया।
अलबरूनी भारत कब आया?
वह 1017 ई० से 1020 ई० के मध्य के महमूद गजनवी के भारत आक्रमणों के साथ भारत आया। उस समय भारत विभिन्न भागों में बंटा हुआ था। चूंकि अलबरूनी महमूद के साथ भारत आया था।
महमूद के आक्रमण के समय मुल्तान और सिंध में 2 मुसलमानी राज्य थे।चिनाब से हिन्दुकुश तक के क्षेत्र(हिन्दूशाही राज्य) में जयपाल का शासन था, कश्मीर में ब्राह्मण, कन्नौज में प्रतिहार व बंगाल में पाल वंश का शासन था।
भारत मे रहते हुए उसने संस्कृत भाषा, भारतीय संस्कृति, भारतीय दर्शन व अन्य धर्मशास्त्रों के विषय मे गहनता से अध्ययन क़िया।
अलबरूनी की रचनाएं:-
इन्ही अध्ययनों के फलस्वरूप उसने लगभग 146 पुस्तकों (हालांकि यह संख्या निश्चित नहीं है) की रचना की जो कि खगोलशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, गणित, साहित्य व अन्य विषयों पर आधारित थीं।
उसकी प्रमुख रचनाएँ निम्न हैं―
ख़िताब-उल-तफ़ीम
अल कानून अल-मसूद
कानून अल मसूदी अल हैयत
अल नजूम
किताब-उल-हिन्द/तहक़ीक़-ए-हिन्द (मुख्य ग्रन्थ)
भारत के विषय में अलबरूनी:-
उसने अपने विभिन्न ग्रन्थों में भारत के विषय में में लिखा जिनमें तहक़ीक़-ए-हिन्द के विवरण सबसे प्रामाणिक हैं।
किताब-उल-हिन्द अथवा तहक़ीक़-ए-हिन्द:
यह 80 अध्यायों वाला एक विस्तृत ग्रंथ है जोकि अरबी भाषा में लिखी गयी। इसमें अलबरूनी ने भारत की जलवायु, प्राकृतिक स्थिति, भाषा, रीति-रिवाज, सामाजिक परम्पराएँ, धर्म, भारतीयों के कर्म-सिद्धान्त, जीव के आवागमन के सिद्धान्त, मोक्ष-सिद्धान्त आदि के सम्बन्ध में लिखा।
उसने भारतीयों के भोजन, वेश-भूषा, मेलों, धार्मिक उत्सवों, मनोरंजन के साधनों आदि के विषय में भी लिखा। उसने अपने विवरण में भगवद्-गीता, वेदों, उपनिषदों, पतंजलि के योग-शास्त्र आदि के विषय में भी लिखा। इस प्रकार, अलबरुनी ने भारतीय जीवन के प्रायः सभी पक्षों के बारे में लिखा।
इस प्रकार, तहकीक-ए-हिन्द में 11 वीं शताब्दी के भारतीय जीवन के सभी क्षेत्रों का विवरण दिया गया है और उसे तत्कालीन भारत के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन के बारे में जानने का एक उपयोगी स्रोत-ग्रन्थ माना गया है।
अन्तिम समय:-
जीवन के अंतिम समय में उसे महमूद गजनवी के उत्तराधिकारी मसूद का संरक्षण भी प्राप्त था। उसकी मृत्यु 13 दिसम्बर 1048 ई० को गजनी साम्राज्य, अफगानिस्तान(उस समय यह फारस के अंतर्गत आता था।) में हुई थी।
भारतीयों के प्रति अलबरूनी के विचार:-
★ उसने लिखा कि भारतीय शासकों में कोई पारस्परिक एकता नहीं है और विदेशी आक्रमण के अवसर पर वे कभी भी मिलकर एक नहीं हुए।
★ उसने लिखा कि जाति-प्रथा इतनी कठोर है कि यदि एक बार एक व्यक्ति को जाति से बहिष्कृत कर दिया जाये तो उसे पुनः जाति में सम्मिलित नहीं किया जा सकता।
★ उसके अनुसार भारतीय ब्राह्मण विद्वान तो थे किंतु वे कूप मंडूक थे। उनका विदेशों से संबंध नहीं था।
★ उसके अनुसार भारतीय अभिमानी थे। वे अपनी भाषा, संस्कृति, देश आदि सभी को सर्वश्रेष्ठ मानते थे ।
★ अलबरूनी के अनुसार भारतीय हिन्दू इतिहासकार नहीं थे।
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★ अलबरूनी पुराणों का अध्ययन करने वाला प्रथम मुसलमान था।
★ अल-बरूनी संस्कृत का विद्वान था। तथा वह त्रिकोणमिति का भी विशेषज्ञ था।
निष्कर्ष:-
उपरोक्त वर्णनों की समीक्षा करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि अलबरूनी उस समय का एक विद्वान था जिसे कई भाषा व उनके साहित्य, ज्योतिष, खगोलीय, भारतीय संस्कृति व दर्शन, विज्ञान आदि के विषय मे अच्छा ज्ञान था।
किन्तु उसने भारत और भारत वासियों को जिस दृष्टि से देखा वह वास्तव में वैसा नहीं था। उसके द्वारा भारतीयों पर लगाये गए आरोप सत्य से परे हैं, वस्तुतः यह उसकी जानकारी का अभाव व एकांगी दृष्टिकोण का परिणाम था।
धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद विश्वविद्यालय