Prithvi par jeev ki utpatti : क्या कभी आपने यह सोंचा कि जिस पृथ्वी पर आज हम सभी अपना जीवन बिता रहे हैं इसका विकास कब और कैसे कैसे हुआ? क्या कभी आपने यह सोचा है कि क्या पृथ्वी पर सबसे पहले मनुष्य ही आए या कोई अन्य जीव उत्पन्न हुआ? खैर मनुष्य तो नहीं आया क्या आदिमानव ही सबसे पहले उत्पन्न हुआ? आखिर पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद इस पर जीवन का विकास कैसे हुआ? आइए इस पोस्ट में जानते हैं।
Note:- इसके पहले के पोस्ट में इसके पहले की कुछ विशेष जानकारी (पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बंधित ) दी जा चुकी है, जिसकी लिंक नीचे दी गई है। आप उसे और इस पोस्ट को पूरा पढ़कर उपरोक्त प्रश्नों को स्पष्टतया समझ सकते हैं।
आइए देखते हैं पृथ्वी पर जीवन का उद्भव कैसे हुआ?
पृथ्वी पर जीवन का उद्भव एक बहुत ही मह्त्वपूर्ण रोचक विषय है जिस पर विस्तार पूर्वक बात करना आवश्यक है आइए देखते हैं—
पृथ्वी पर जीवन का उद्भव – Prithvi par jeev ki utpatti
जब से मनुष्य को प्राणिजगत् में अपने पृथक् अस्तित्व और वैशिष्ट्य का बोध हुआ, वह अपनी उत्पत्ति की समस्या पर विचार करता रहा है । विश्व के लगभग सभी धर्मों में प्राणियों के आविर्भाव और मनुष्य की उत्पत्ति पर प्रकाश डालनेवाली कथाएँ उपलब्ध होती हैं ।
सभी धर्मों का सामान्य मत:-
सभी धर्मों में सामान्यतः यह मत प्रतिपादित किया गया है कि ईश्वर ने सब प्रकार के प्राणियों की समकालीन परन्तु पृथक्-पृथक् विकसित रूपों में सृष्टि की थी, बाद में उनकी वंशानुवंश परम्परा चलती रही । इस सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य अन्य प्राणियों से सर्वथा पृथक् और श्रेष्ठ है और उसकी शारीरिक संरचना और मानसिक दशा में उसके आविर्भाव से लेकर अब तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ है ।
क्या कहते हैं आधुनिक रिसर्च:-
परन्तु आधुनिक काल में हुई वैज्ञानिक गवेषणाओं ने इस विश्वास को निराधार और सत्य के सर्वथा प्रतिकूल सिद्ध कर दिया है । आजकल नृवंशशास्त्री विकासवाद (थ्योरी ऑफ एवोल्युशन) के अनुसार यह विश्वास प्रकट करते हैं कि मनुष्य और नाना पशुओं तथा पौधों में एक ही प्राण की धारा प्रवाहित और विकसित हुई है । इस दृष्टि के अनुसार सुदूरभूत में, अब से लगभग 190 करोड़ वर्ष पूर्व, पृथिवी पर होनेवाली रासायनिक और भौतिक क्रियाओं के फलस्वरूप भौतिक तत्त्व से जीवतत्त्व स्वयं ही अस्तित्व में आ गया था।
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जीव की उत्पत्ति कैसे?
प्रारम्भ में जीवन का प्रादुर्भाव धूप से प्रकाशित छिछले जल में लसलसी झिल्ली के समान लगनेवाले प्राणियों के रूप में हुआ, कालान्तर में परिस्थितियों में परिवर्तन होने के कारण उसकी शरीर-संरचना सरल से जटिलतर होती चली गई जिससे विभिन्न प्रकार के प्राणी अस्तित्व में आए । जीव विकास के इस सिद्धान्त का प्रतिपादन सर्वप्रथम फ्रांस के लेमार्क, इंग्लैण्ड के डार्विन (१८०६-१८८२ ई०) तथा एल्फेड बालेस (१८२३-१९१३ ई०) इत्यादि विद्वानों ने किया।
हाल ही में ऑगस्टन बीजमान, ह्यागो द ब्रीज तथा सिम्पसन इत्यादि विचारकों ने इसमें महत्त्वपूर्ण संशोधन किए हैं।
प्रागैतिहासिक कालीन प्राकृतिक वातावरण एवं मानव:-
कतिपय भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की आयु लगभग 48 अरब वर्ष प्राचीन आकी जा सकती है। इसके विकास-क्रम को प्रमुख कल्पों में विभाजित किया जाता है।
कल्पों का वर्गीकरण का आधार पृथ्वी पर नवीन कोटि के जीव-जन्तुओं की उत्पत्ति को माना गया है।
आखिर कब हुई जीव की उत्पत्ति : Prithvi par jeev ki utpatti kab hui
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पृथ्वी पर जीव की सर्वप्रथम उत्पत्ति आज से लगभग 2 हजार सहस्र वर्ष पहले प्राथमिक कल्प (Precambrian or Archaen Era) में हुआ था। इस काल में जीव एककोषीय लार्वा अथव कीट डिम्ब स्वरूप में प्रकट हुआ माना जाता है। जीव वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके क्रमिक विकास-क्रम को निम्नलिखित 5 कल्पों (Eras) में विभक्त किया है-
1. आदि अथवा जीवन रहित कल्प (Archaeozoic Era)
2. प्रादि अथवा जीवन सहित कल्प (Proterozoic Era)
3. पुराजीवन कल्प (Palaeozoic Era)
4. मध्य जीवन अथवा मध्य कल्प (Mesozoic Era)
5. नूतन कल्प अथवा नवजीवन कल्प (Cenozoic Era)
आइए इन उपरोक्त कल्पों को समझते हैं—
पृथ्वी पर प्राणियों का विकास:-
जीवशास्त्रियों ने जीवन के विकास को कई युगों में विभाजित किया है । पृथ्वी पर प्राणियों के विकास क्रम को समझने के लिए ऊपर वर्णित कल्पों (Eras) में जीवन क्रम को समझना आवश्यक है।
आदिकल्प या प्राजीव युग (Archacozoic cra):-
यह प्रथम युग था। इसमें संभवतः पृथ्वी पर जीवन नहीं था अथवा अत्यन्त सूक्ष्म प्राणी रहे होंगे, जिनके पुरासाक्ष्य अब तक ज्ञात नहीं हो सके हैं। इनका अस्तित्व केवल अनुमान पर आधारित है। यह काल 120 करोड़ वर्ष पूर्व तक था।
प्रारंभिक जीव युग या प्रादि कल्प (Proterozoic Era):-
में पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व जीवशास्त्रियों ने स्वीकार किया है। इस कल्प में लसलसी झिल्ली अथवा काई के सदृश जीव अथवा वनस्पतियां पृथ्वी पर पैदा हो चुकी थी। इस युग की काल गणना अनुमानतः 120 करोड़ से 55 करोड़ के बीच तक की गई है।
पुराकल्प अथवा प्राचीन जीव युग (Palaeozoic Era):-
इसमें किञ्चित् बड़े जीव जन्तु उत्पन्न होने लगे। इस काल के उत्तरार्द्ध को भूतत्त्ववैज्ञानिकों ने प्राथमिक युग (Primary Period) कहा है।
प्राथमिक युग (Primary Period)
इसमें मेरुदण्ड विहीन जीव (Inverte brate Life) पैदा हुए। इसी काल में मछलियों एवं जलविच्छू प्रभृति रीढ़ रहित प्राणियों की उत्पत्ति स्वीकार की जाती है।
संभवतः इसी युग में जलबिच्छू रीढ़युक्त व विशालकाय भी हो गए थे और रीढ़ की हड्डी वाली मछलियां भी उत्पन्न हुई। ये संसार के रीढ़ की हड्डी वाले प्राचीनतम प्राणी थे।
अभी तक पृथ्वी पर प्रादुर्भूत होने वाले सभी प्राणी जलचर थे।
मत्स्य कल्प (age of fishes):-
मत्स्य-कल्प (एज ऑव फिशिज) के अन्त में अर्द्ध-जलचर-अर्द्ध-थलचर अर्थात् उभयचर प्राणी, जैसे मेंडक और केकड़े आदि तथा दलदली भूमि में उत्पन्न हो सकनेवाले पौधे अस्तित्व में आए।
मध्य जीव युग अथवा मध्य कल्प (Mesozoic Era):-
इस युग में पृथिवी की जलवायु में परिवर्तन होने के कारण सर्वथा नए प्रकार के प्राणी उद्भूत हुए इनमें सरीसृपों (रैप्टाइल्स) का अत्यधिक बाहुल्य था, इसलिए इस युग को सरीसृप-कल्प भी कहते हैं। इस कल्प में पृथ्वी पर सर्वप्रथम रीढ़ की हड्डी वाले जीव जंतुओं की उत्पत्ति हुई।
यह युग अब से लगभग छ: करोड़ वर्ष पूर्व तक चला ।
नूतन कल्प अथवा नवजीवन कल्प (Cenozoic age)
युग-मध्य-जीव युग के पश्चात् जीव- विकास के इतिहास में नव-जीव युग (कनोजोइक एज) आता है जो अब तक चल रहा है । यह पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति तथा उसके प्रारम्भिक विकास का काल माना जाता है।
भूतत्व वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी पर महासागरों, नदियों एवं पर्वतों आदि की प्राथनिक संरचना संभवतः इसी काल में हुए प्राकृतिक परिवर्तनों के फलस्वरूप संभव हुई। फलतः पृथ्वी पर इस काल में जीव-जन्तुओं के विकास में एक नवीनता प्रकट हुई।
अर्थात इसमें पृथिवी जंगलों और नये प्रकार के जीवों से परिपूर्ण हो जाती है । इनमें पक्षी और स्तनपायी प्राणी प्रमुख हैं । इन्हीं स्तनपायी प्राणियों के नर-वानर (प्राइमेट) परिवार के परिष्कार के द्वारा मनुष्य का आविर्भाव हुआ इसलिए मनुष्य के उद्भव और विकास के दृष्टिकोण से नव-जीव युग का अत्यधिक महत्त्व है।
नूतन कल्प (Cenozoic age):-
नूतन कल्प अथवा नवजीवन कल्प को जैविक विकास की दृष्टि से निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जाता है
1. तृतीयक काल (Tertiary)
2. चतुर्थक काल ( Quaternary)
1. तृतीयक काल (Tertiary period):-
इस युग की कालावधि आज से लगभग 6 करोड़ वर्ष पूर्व से लेकर लगभग 20 लाख वर्ष पूर्व तक मानी जाती है। पृथ्वी के तल पर हिमालय, आल्पस, एण्डीज जैसे बड़े-बड़े पर्वत इसी काल में अस्तित्व में आए। इतना ही नहीं, इस काल में पृथ्वी पर नए-नए जीव तथा जंगली जीव-जन्तु उत्पन्न हुए तथा अनेक क्षेत्रों में सघन जंगलों का विकास हो चुका था।
इस काल के उत्पन्न जीवों में स्तनपायी प्राणी तथा पक्षीगण उल्लेखनीय हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस काल में उत्पन्न स्तनपायी जीवों में प्राचीन नर-वानर मानव (Primate) के मस्तिष्क में किञ्चित् परिष्कार शुरू हुआ। नर-वानर मानव प्राणी धीरे-धीरे अफ्रीका महाद्वीप से आगे बढ़कर मायोसीन (Miocene) काल के आते आते एशिया एवं यूरोप महाद्वीप के अनेक देशों में फैलने लगे थे।
संभवतः इसमें मानव सम प्राणी (होमिनिड) अस्तित्व में आने लगे थे।
2. चतुर्थक काल ( Quaternary period):-
चतुर्थक युग (क्वार्टनरी पीरियड) के प्रारम्भ से उनका अस्तित्व निर्विवाद रूप से सिद्ध किया जा सकता है । इन्हीं मानवसम प्राणियों से कालान्तर में पूर्णमानवों (होमो सेपियन्स) की उत्पत्ति हुई ।
प्राणिजगत एवं प्राकृतिक वातावरण के विकास की दृष्टि से इस काल को क्रमशः दो काल-खण्डों में विभाजित किया जाता है
1. प्रातिनूतन काल (Pleistocene Period)
2. नूतन काल (Holocene Period)
1. प्रातिनूतन काल (Pleistocene Period):-
इसे नवयुग अथवा हिमयुग भी कहा जाता है। यह लगभग 20 हजार ई०पू० से 12,000 ई०पू० तक था।
इस काल में पृथ्वी की जलवायु में कई बार बड़े बड़े परिवर्तन होते रहे । इन जलवायुगत परिवर्तनों का मूल कारण उत्तरी गोलार्द्ध के उच्चांशों में बार बार भारी हिमपात अथवा हिमायन (Glaciation) को माना जाता है। फलतः पृथ्वी की जलवायु भारी हिमपातों के कारण अत्यन्त शीतल हो जाती थी। विद्वानों ने इस काल को हिम काल (Ice Age) कहा है।
विद्वानों का अनुमान है कि इन हिमपातों के बीच-बीच में समय समय पर हिम अपसर्पण (Recessions) होता रहता था। अर्थात बीच बीच में हिम पात होना बंद हो जाता था अथवा हिमपात में Gap हो जाता था। इसके फलस्वरूप पृथ्वी की जलवायु गर्म अथवा उष्ण हो जाती थी। इस प्रकार के उष्णतर जलवायु काल को अन्तर्हिम काल (Interglacial Age) कहा जाता है। पहला हिमयुग संभवतः आज से लगभग 30 लाख वर्ष पूर्व प्रकट हुआ था तथा लगभग 50 हजार पूर्व तक अपने चरमोत्कर्ष पर था।
प्राति नूतनकाल में हिमकालों एवं अन्तर्हिमकालों की जलवायु एवं तत्कालीन जीव जन्तुओं एवं वनस्पतियों के अस्तित्व के अध्ययन का क्रम आज भी जारी है। यूरोप, संयुक्त राज्य अमरीका तथा एशिया महाद्वीप के अनेक पुरा पर्वतीय एवं घाटी क्षेत्रों में इस काल के जमावों एवं अस्तित्वों की खोज की गई है।
भारतवर्ष में डी. टेरा तया टी.टी. पीटरसन नामक भूगर्भ वैज्ञानिकों ने हिमालय की कुनलुनशान एवं तियनशान पर्वतीय उपत्यका में हिमकालीन एवं अन्तर्हिमकालीन जमावों की खोज की है। शिवालिक क्षेत्र में सिन्धु नदी की सहायक सोहन नदी की अनेक वेदिका ओं की उक्त विद्वानों ने गहन खोजबीन करके प्रातिनूतनकालीन उपलब्ध पुरातात्विक सामग्रियों की विशद् व्याख्या प्रस्तुत की है।
प्रातिनूतन काल मानव युग के नाम से भी जाना जाता है। आदि मानव के जीवाश्म अब तक इसी काल से मिलना शुरू हुए हैं। परन्तु मानव की उत्पत्ति संभवतः प्रातिनूतन काल से पहिले ही हो चुकी थी।
इस काल की जलवायु में होनेवाले इन परिवर्तनों के कारण मनुष्य लिए स्वयं को नई परिस्थितियों के अनुसार ढालना आवश्यक हो गया । इससे उसकी शरीर-संरचना, रहन-सहन और मानसिक दशा में अनेक परिवर्तन हुए, जिनके कारण वह स्वयं को नर-वानर परिवार के अन्य प्राणियों से पृथक् कर सका और कालान्तर में प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सका।
नूतन काल (Holocene period):-
इसे अभिनव युग अथवा उत्तर हिमयुग भी कहा जाता है। यह 12000 ई०पू० से लेकर आज तक का काल है। मानवों ने अपनी समस्त सभ्यताएं इसी काल में विकसित की। अतः यह कहा जा सकता है की बर्बर व जंगली मानव इस युग में आकर धीरे धीरे सभ्य हो रहा था। आगे हम इसी युग के इतिहास का अध्ययन करेंगे।
निष्कर्ष (Conclusion):-
इस प्रकार हम देखते हैं कि पृथ्वी की उत्पत्ति के लाखों करोड़ों वर्ष तक इस पर जीवन का अभाव रहा है। दूसरे शब्दों में पृथ्वी की उत्पत्ति के कई करोड़ वर्ष तक यहां पर कोई जीव, वनस्पति, नदी कुछ नहीं थे। जीवों की उत्पत्ति एक लार्वा जैसे जीव से हुई। तथा अलग अलग कल्पों या युगों में अलग अलग जीवों कि उत्पत्ति हुई और कालांतर में नए जीवों की उत्पत्ति और पिछले युगों में उत्पन्न हुए जीवों का विकास हुआ। और अंततः नूतन कल्प में मानव के आदि रूप की उत्पत्ति हुई। और इसका विकास अब तक हो रहा है। मनुष्यों की उत्पत्ति के बाद उनका शारीरिक, व मानसिक विकास हुआ और कालांतर में मानव संस्कृतियां व सभ्यताएं विकसित हुई।
धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद विश्वविद्यालय