British sanvidhan ki visheshtaen : ब्रिटिश शासन प्रणाली प्रधानतः रीति रिवाजों अथवा प्रथा-परम्पराओं पर ही आधारित है। अतः पार्लियामेंट की विधियों, ऐतिहासिक प्रपत्रों (charters), कार्यकारिणी के अध्यादेशों तथा नियमों और न्यायालयों के निर्णयों के रूप में लिखित संवैधानिक तत्व होते हुये भी ब्रिटिश संविधान को अलिखित कहा जाता है।
Note:- यह ब्रिटिश संविधान की विशेषताओं की दूसरी पोस्ट है इसके पहले की महत्वपूर्ण जानकारी पिछली पोस्ट में दी गई है संपूर्ण ज्ञान के लिए आप उस पोस्ट को अवश्य पढ़ें जिसका लिंक नीचे दिया गया है।
• ब्रिटेन के संविधान की प्रमुख विशेषताएं भाग 1
(8) ब्रिटिश संसद की विशेषताएं : British sanvidhan ki visheshtaen
ब्रिटिश संसद के दो सदन हैं, कॉमन सभा (House of Commons) तथा लॉर्डस सभा (House of Lords)। कॉमन सभा को निचला सदन भी कहा जाता है और लॉर्डस सभा को उच्च सदन कहते हैं।
कामन सभा :-
कॉमन सभा कहने को भले ही निचला सदन हो, शक्तियों की दृष्टि से यह लॉर्डस सभा से बहुत आगे है। यह सदन इंग्लैंड के सम्बन्ध में सिद्धान्ततः ऐसा सब कुछ कर सकता है जो प्राकृतिक दृष्टि से असंभव न हो।
कॉमन सभा के सदस्यों की वर्तमान संख्या 650 है। ये सभी सदस्य प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से इस सदन में आते हैं। इनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता है। विधेयकों को पारित करने की दृष्टि से कॉमन्स सभा, लार्ड्स सभा से बहुत अधिक शक्तिशाली है, क्योंकि धन विधेयक तो सिर्फ इसी में शुरू हो सकते हैं; शेष विधेयकों में से भी महत्वपूर्ण विधेयक इसी में शुरू होते हैं।
लॉर्ड्स सभा की शक्ति सिर्फ औपचारिक किस्म की है क्योंकि कॉमन सभा यदि किसी विधेयक को एक वर्ष में दो बार पारित कर देती है तो वह कानून बन जाता है, चाहे लॉर्ड्स सभा इसके पक्ष में हो या न हो।
ब्रिटिश कार्यपालिका एक मंत्रिपरिषद के अधीन काम करती है जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। मंत्रिपरिषद के सदस्य आम तौर पर कॉमन सभा के लिए निर्वाचित सांसद ही होते हैं। मंत्रिपरिषद का अस्तित्व तभी तक रहता है जब तक उसे कॉमन सभा में बहुमत हासिल हो।
लॉर्ड्स सभा:-
संसद का दूसरा सदन लॉर्ड्स सभा है, जिसे सामान्यत: उच्च सदन भी कहा जाता है। ध्यातव्य है कि एकात्मक शासन प्रणाली को वस्तुत: दूसरे सदन की जरूरत नहीं होती, किंतु इंग्लैंड में कुछ अन्य कारणों से यह सदन चला आ रहा है।
इसके सदस्य जनसाधारण द्वारा निर्वाचित नहीं होते। इसमें वे लोग शामिल है, जिन्हें या तो वंशानुगत रूप से ‘लॉर्ड’ की पदवी मिली हुई है, या वे पुरोहित वर्ग (clergy) के प्रतिष्ठित सदस्य होने के कारण इसमें शामिल किए गए है, या फिर अपनी विशेष योग्यताओं के कारण उन्हें लॉर्डस नियुक्ति आयोग ने जीवन भर के लिए लॉर्डस सभा में मनोनीत कर दिया है। 1999 ई. के बाद से लेबर पार्टी के प्रयासों के कारण वंशानुगत रूप से लॉर्ड की पदवी दिए जाने की परंपरा बंद कर दी गई है और अब 100 से भी कम ऐसे सदस्य रह गए हैं जो वंशानुगत रूप से इस सभा में हैं।
लॉर्डस सभा के सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं है। आजकल इनकी संख्या 800 के आसपास है, हालांकि कभी-कभी यह 1200 तक भी गई है। इसके पुरूष और महिला सदस्यों को सम्मान देने के लिए उनके नाम से पूर्व क्रमशः ‘लॉर्ड’ तथा ‘लेडी’ शब्दों का प्रयोग किया जाता है। लॉर्ड्स सभा के प्रमुख को लॉर्ड चांसलर कहा जाता है। पुरोहित वर्ग से जुड़े लॉर्ड्स को लॉर्ड स्पिरिचुअल कहा जाता है, जबकि शेष को लॉर्ड टेम्पोरल कहते हैं।
लॉर्ड्स सभा की एक विशेष बात यह भी है कि इसमें 12 विधि लॉर्डस शामिल होते हैं, जो कानूनी क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं। इन्हें आजीवन नियुक्ति प्रदान की जाती है और इनकी भूमिका तब अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाती है जब लॉर्ड्स सभा इंग्लैंड के सर्वोच्च न्यायाधिकरण तथा अंतिम अपील न्यायालय के रूप में कार्य करती है।
जब लॉर्ड्स सभा उच्चतम न्यायालय के रूप में काम करती है तब उसमें लॉर्ड चांसलर के अलावा सिर्फ विधि लॉर्ड्स ही उपस्थित होते हैं। विधि लॉर्ड्स 75 वर्ष की उम्र तक विधि लॉर्ड्स रहते हैं, फिर वे विधि लॉर्ड्स नहीं रहते किंतु अन्य लॉर्ड्स की तरह आजीवन लॉर्ड्स सभा में बने रहते हैं।
गौरतलब है कि सामान्यत: लॉर्ड्स सभा के सदस्य राजनीति में भाग नहीं ले सकते। ऐसे बहुत कम उदाहरण हुए है, जब लॉर्ड्स सभा के सदस्यों ने राजनीतिक पद संभाले हैं। लॉर्ड्स सभा पर यह आक्षेप किया जाता है कि वह गैर-लोकतांत्रिक सदन है और अमीर वर्ग तथा रूढ़िवादियों का गढ़ है।
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(9) ब्रिटिश न्यायिक व्यवस्था : ब्रिटिश संविधान की विशेषताएं
ब्रिटिश सांविधानिक व्यवस्था के विश्लेषण में न्यायिक व्यवस्था का वर्णन भी आवश्यक है। ब्रिटिश न्याय व्यवस्था विधि के शासन पर आधारित है अर्थात वहाँ व्यक्ति नहीं कानून का शासन है छोटे बड़े, अमीर, गरीब सभी लोग कानून के अधीन हैं और इसी के अनुसार व्यवहार करने को बाध्य हैं।
ब्रिटेन में अन्य देशों की भाँति कोई लिखित विधि संहिता नहीं है, क्योंकि ब्रिटेन के अधिकांश कानून ‘सामान्य विधि‘ पर आधारित है जो समय के साथ साथ विकसित हुए हैं ब्रिटेन में बिखरे हुए कानूनों को अभी तक संहिताबद्ध (Codified) नहीं किया गया है।
ब्रिटेन में सम्पूर्ण विधि संहिता (Complete Legal Code) नहीं है। ब्रिटिश न्याय व्यवस्था में सफलता का अभाव है क्योंकि देश के विभिन्न क्षेत्रों की व्यवस्था समान नहीं है, जबकि भारत में न्यायिक व्यवस्था में समानता है। ब्रिटिश न्यायिक व्यवस्था में न्यायिक पुनरीक्षण का भी अभाव है, जबकि भारत और अमेरिका की न्यायपालिका इस शक्ति से परिपूर्ण है। इस प्रकार ब्रिटिश न्याय व्यवस्था में एकरुपता का अभाव है। ब्रिटिश न्यायालय खुली कार्यवाही करते हैं, यहाँ सरल न्याय प्रक्रिया को अपनाया गया है। ब्रिटेन में तीन प्रकार की विधियाँ प्रचलित हैं
(i) साधारण विधि (Common laws)
(ii) संविधि (Statute laws)
(iii) साम्य विधि (Equity)
यद्यपि न्यायिक पुनरीक्षण का अधिकार न होने पर ब्रिटिश न्यायपालिका कुछ कमजोर दिखाई पड़ती है परन्तु ब्रिटेन में विधि का शासन है और नागरिकों के अधिकार बिना न्यायिक पुनरीक्षण के भी सुरक्षित हैं।
(10) अभिसमयों व परंपराओं का समन्वय : ब्रिटिश संविधान की विशेषताएं
ब्रिटिश संविधान कई परंपराओं अधिनियमों तथा अभिसमयों पर आधारित है और यह सब ऐतिहासिक दस्तावेजों की तरह है, जिनके आधार पर ब्रिटिश संविधान के कुछ बुनियादी सिद्धांतों की उत्पत्ति हुई। मैग्नाकार्टा के द्वारा ही यह परंपरा स्थापित हुई कि राजा कानून के अधीन है और जनमानस के पास कुछ स्वतंत्रताएं है, जिसका सम्मान राजा को करना चाहिए। इसी प्रकार 1628 के पिटिशन ऑफ राइट्स में ससंद की सर्वोच्चता स्थापित की गई। समय-समय पर ब्रिटेनवासियों ने इन अभिसमयों पर आधारित परंपराओं का सम्मान किया है और उन्हें पूरे विश्वास से पारित किया गया है। मैग्नाकार्टा 1215 से जो सांविधानिक उपबंधों की शुरुआत हुई वह महज एक संयोग ही था, क्योंकि उस समय की परिस्थितियों ने इसको जन्म दिया इसलिए ब्रिटिश संविधान का अधिकांश भाग संयोगवश अचानक परिस्थितियों की आवश्यकता के परिणामस्वरूप हुआ।
(11) परिवर्तनशील संविधान – Britain ke sanvidhan ki visheshtaen
परिवर्तनशील संविधान क्या है? ऐसे संविधान जिनके संशोधन करने के लिये साधारण कानूनों से भिन्न किसी विशेष रीति की आवश्यकता नहीं होती, अर्थात् जिनकी व्यवस्थाओं में साधारण कानूनों की भाँति ही विधान मंडल परिवर्तन अथवा संशोधन कर सकता है, परिवर्तनशील संविधान कहे जाते हैं। ब्रिटिश संविधान भी परिवर्तनशील है। क्योंकि-
ब्रिटेन में पार्लियामेट देश के लिये एक विधान निर्मात्री सभा ही नहीं है वरन् एक सतत सवैधानिक सभा भी है । अर्थात् यह साधारण कानूनों को ही नहीं वरन् उन कानूनों को भी जिनका संवैधानिक महत्व होता है अपनी इच्छानुसार निर्मित, स्थागित तथा रद्द कर सकती है और ऐसा करने के लिए किसी विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती। जिस प्रकार पार्लियामेंट में उपस्थित सदस्यों के बहुमत से साधारण विधियाँ पारित की जाती है उसी प्रकार इसी पार्लियामेंट के साधारण बहुमत से संवैधानिक विधियाँ पारित की जाती हैं।
अग्रेज विद्वान आन्सन (Anson) ने लिखा है कि “हमारी पार्लियामेंट जंगली चिड़ियों एवम् शैल मछलियों की रक्षा के लिए कानून बना सकती है और उसी प्रक्रिया द्वारा राज्य और चर्च का परस्पर सम्बन्ध विच्छेद कर सकती है अन्यथा लाखों नागरिकों को राजनीतिक शक्ति प्रदान कर सकती है अथवा उसका वितरण नवीन निर्वाचन क्षेत्रों में कर सकती हैं।” अंग्रेज विद्वान का यह कथन ब्रिटिश संविधान की आलोचना है।
(12) विकसित तथा विकासशील : characteristics of UK constitution
ब्रिटेन का संवैधानिक इतिहास शासन-व्यवस्था के स्वेच्छाचारी राजतन्त्र से संवैधानिक राजतन्त्र में परिवर्तित होने की कहानी है। यह परिवर्तन किसी निश्चित समय किसी एक वैधानिक पत्र द्वारा न किया जाकर शनैः शनैः ऐतिहासिक परिस्थितियों के अनुसार अनेक साधनों द्वारा किया गया।
(13) पार्लियामेंट की सर्वोपरिता:-
ब्रिटेन का संवैधानिक इतिहास वस्तुतः सम्राट और पालियामेट के मध्य सघर्ष, का इतिहास है । 1688 की घटना ने पार्लियामेंट की सर्वोपरिता अथवा संप्रभुता सिद्ध कर दी।
राजपद दैवी न होकर पार्लियामेंट प्रदत्त हो गया और समय समय पर पार्लियामेंट ने उत्तराधिकार निर्धारित किया। 1701 का उत्तराधिकार कानून तथा 1953 का रीजेंसी कानून पार्लियामेंट के इस अधिकार के प्रमाण है। 1689 के अधिकार कानून ने वित्त व्यवस्था पर पार्लियामेंट का नियन्त्रण पूर्णतः स्थापित कर दिया था और यह व्यवस्था की थी कि बिना पार्लियामेंट की सम्मति के सम्राट कोई कानून स्थगित अथवा रद्द नहीं कर सकता।
इस प्रकार विधि निर्माण, वित्त व्यवस्था, प्रशासन पर नियंत्रण, सभी क्षेत्रों में पार्लियामेंट सर्वोच्च हो गई। न्यायालयों का संगठन भी पार्लियामेंट ही करती है और न्यायालय पार्लियामेंट द्वारा पारित कानूनों के अनुसार ही मुख्यत न्यायप्रशासन करते हैं।
(14) संसदात्मक लोकतंत्र:-
ब्रिटेन में प्रचलित व्यवस्था को संसदात्मक शासन-व्यवस्था कहा जाता है। कार्यकारिणी का संसद के प्रति उत्तरदायी होना इसकी मूल विशेषता है । अतः इसको उत्तरदायी सरकार कहा जाता है।
संसदात्मक शासन प्रणाली की 4 मूल विशेषतायें हैं :-
(1) कार्यकारिणी का संसद की सदस्यता में से ही गठित किया जाना।
(2) कार्यकारिणी का संसद के प्रति उत्तरदायी होना,
(3) कार्यकारिणी का कार्य-काल संसद की इच्छा पर निर्भर करना अर्थात् पूर्व निर्धारित न होना,
(4) नाम मात्र की कार्यकारिणी और वास्तविक कार्यकारिणी में भेद होना।
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निष्कर्ष : ब्रिटिश संविधान की विशेषताएं
इस प्रकार हम यह देखते हैं कि ब्रिटिश संविधान समूचे विश्व में एक ऐसा संविधान है जोकि संपूर्ण रुप से लिखा नहीं गया है। यह संविधान एक लोकतंत्र होकर भी राज्य पद को स्वीकार करता है अर्थात यहां राज्य पथ आज भी सुरक्षित है तथा वंशानुगत है। संसदात्मक व्यवस्था भी इस प्रकार के संविधान में किसी आश्चर्य से कम नहीं है तथा उसके अधिकार काफी विस्तृत है। ब्रिटिश संविधान के स्रोत निरंतर परिवर्तित होते रहते हैं तथा बढ़ते रहते हैं। इस प्रकार यह एक अनूठा मौलिक तथा विशिष्ट संविधान है।
कृपया ध्यान दें:- इसके बाद ब्रिटिश संविधान विस्तार पूर्वक समझाया जाएगा जो कि संघ व राज्य लोक सेवा आयोग की तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से बेहद उपयोगी साबित होगा तथा साथ ही साथ राजनीति शास्त्र से स्नातक करने वाले विद्यार्थियों के लिए भी महत्वपूर्ण होगा।
सिर्फ ब्रिटिश संविधान ही नहीं विश्व के कई महत्वपूर्ण संविधानों को विस्तारपूर्वक समझाया जाएगा। आप सभी सारे पोस्ट पढ़े और इसका लाभ लें।
धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र: राजनीति शास्त्र विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय