पुरातत्त्व क्या है ? पुरातत्त्व का विज्ञान व मानविकी के विषयों से संबंध | Puratatva kya hai, aur puratatva ka manviki aur vigyan se sambandh in Hindi

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Puratatva kya hai :Archaeology May be simply defined as a systematic study of antiquities as a means of reconstructing the past..”

Puratatva kya hai
what is archaeology in hindi

कोफोर्ड के अनुसार:-पुरातत्व विज्ञान की वह शाखा है जिसमें अतीत के गर्भ में विलुप्त मानव संस्कृतियों का अध्ययन किया जाता है।”

मनुष्य अपने जन्म काल से ही जीवन संस्कृति और कला के विकास की ओर बढ़ता जा रहा है।उसने इसका विकास कब? और किस रूप में किया इसका प्रकाशन ही इतिहास का विषय है।

पुरातत्व एक अध्ययन की विद्या है जो पुरानी काल की पृथ्वी में गड़ी सामग्रियों को उजागर करता है तथा उनके सहारे हमारा अतीत मुखरित करते हैं।”

पुरातत्त्व क्या है : Puratatva kya hai

पुरातत्व शब्द को अंग्रेजी भाषा में ( Archaeology) कहते हैं। यह शब्द यूनानी भाषा के दो शब्दों Archaios (पुरातन)+logos (ज्ञान)  से मिलकर बना है।

पुरातत्व वह ज्ञान की शाखा है जिसके द्वारा पुरावशेषों का अध्ययन कर संस्कृति के क्रम का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।”

पुरातत्व वह ज्ञान का पक्ष है जो प्रागैतिहासिक और आघऐतिहासिक काल के विषय में अध्ययन की सामग्री प्रदान करता है।” जिनके विषय में कुछ लिखित विवरण नहीं प्राप्त होता इसमें स्मारक, सिक्के, मूर्तियां जो एक व्यवस्थित काल की होती है, का अध्ययन किया जाता है।

इस प्रकार यह पुरातन सामग्रियों का एक व्यवस्थित अध्ययन है।  लेखनी के विकास के पूर्व का सम्पूर्ण इतिहास जो प्रागैतिहास के अंतर्गत आता है। उसका एक मात्र आधार पुरातत्व है।

पुरातत्व के अध्ययन का इस के उपकरण है। प्रायः उपकरणों से तात्पर्य ऐसी वस्तुओं से होता है जिनका मानव ने निर्माण व उपयोग किया हो ।

मानव द्वारा उपयोग में लाया गया प्रथम औजार :-

1) hand axe

2) pebbule

सभी प्रस्तर युगीन संस्कृतियां प्रागैतिहासिक काल के अंतर्गत आती हैं।

इनके ज्ञान का मुख्य आधार मानव के भौतिक अवशेष होते हैं। जिनका तत्कालीन मानव ने उपयोग किया था।

“Excavator is a digging up things he is digging up people : – M. Wheeler 

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पुरातत्व के दो स्पष्ट पक्ष हैं।

1) क्रियात्मक

2) विवेचनात्मक

क्रियात्मक के अंतर्गत क्षेत्रीय पुरातत्व एवं सम्पूर्ण पुरातात्विक प्रणालियाँ आती हैं।

जिसमें वह भौतिक साक्ष्यों का विशलेषण कर के इतिहास की रचना करता है।

 पुरातत्व का अन्य विषयों से सम्बंध :- puratatva ka manviki aur vigyan se sambandh

पुरातत्व एक बहुआयामी विषय है तथा अपने उद्देश्य प्राप्ति में मानव इतिहास का भौतिक साक्ष्यों के अधार पर संरचना करने के लिए इसे विविध सामाजिक विज्ञानो व प्रकृति विज्ञानों से सहयोग लेना पड़ता है।

मानविकी में ज्ञान की जिन मुख्य विषयों को लिया जाता है वें हैं : – इतिहास, भूगोल, नेतृत्व शास्त्र व समाज शास्त्र आते हैं।

प्रकृति विज्ञानों में यह मुख्यतः भूगर्भ शास्त्र(Geology) ,भौतिक शास्त्र, रासायनिक शास्त्र, व प्राणीशास्त्र, वनस्पति विज्ञान आते हैं।

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 पुरातत्व और इतिहास :-

पुरातत्व और इतिहास दोनों का मूल उद्देश्य है मानव के विकास का अध्ययन करना । इसलिए दोनों अत्यंत सन्निकर हैं। दोनों की पद्धति सामान्य है तथा कालानुक्रम उनकी आधारशिला है।

जहां इतिहास की गति अवरूद्ध हो जाती है।वहाँ पुरातत्व ही प्रागैतिहास के माध्यम से ही इतिहास को आगे बढ़ाता है।

इतिहास तथा पुरातत्व दोनों के केंद्र में मनुष्य होता है। तथा दोनों अपने अपने ढंग से अतीत का पुनः निर्माण करते हैं।

अभिलेख, सिक्के तथा प्राचीन स्मारकों की खोज पुरातत्व द्वारा की गई।और इन सब के सहयोग से इतिहास का पुनः निर्माण किया जाता है।यह काल्पनिक न हो कर प्रख्यात्मक होते हैं।

उदहारण:- बौद्ध ग्रँथ बुद्ध के समकालीन विभिन्न नगर शिल्प आदि का उल्लेख करते हैं।तो दूसरी तरफ पुरातत्व के उत्खनन से इसी काल के सिक्के, मुहरे, समृद्ध नगर जीवन की पुष्टि कर देते हैं।

अतः इतिहास और पुरातत्व घनिष्ठ रूप से सम्बंधित हैं।

पुरातत्व और भूगोल :-

भूगोल मानव जीवन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

वातावरण तथा परिस्थितिकी भौगोलिक परिस्थितियों पर आश्रित होती है।अतः मानव के सन्निवेश एवं तत्कालीन परिस्थितिकी को समझने के लिए भौगोलिक ज्ञान नितांत आवश्यक होता है।

इस काल की संस्कृति के अध्ययन के लिए पुरातत्ववेत्ता को जलवायु, वातावरण तथा प्राकृतिक स्थिति का ज्ञान रखना आवश्यक है।

इस प्रकार भारतीय संस्कृति के प्रागैतिहासिक स्वरूप की संरचना में भूगोल का विशेष योगदान है।

पुरातत्व और नृतत्व शास्त्र :-

प्राचीन युग में अब केवल पाषाण उपकरणों का संग्रह ही नही किया जाता। उनके संयोजन के आधार पर उन मानव के जीवन के बारे में निष्कर्ष निकाला जाता है। जो उन पुरावशेषों के लिए उत्तरदायी है।इस प्रकार के अध्ययन के लिए लुप्तप्रायः पुरास्थल के स्थान पर जीवित पुरास्थलों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

क्योंकि वहां से प्राप्त मानवाशेषो के नष्ट होने की सम्भावना कम होती है।

पुरातात्विक विशलेषण का कार्य चार अवस्था में पूरा होता है।

1) कालानुक्रम का निर्धारण(chronology)

2) लुप्त हो गई संस्कृतियों का वर्णन पुरावशेषों के आधार पर तैयार किया जाता है।

3) भौतिक क्षेत्रों के आधार पर तुलना की जाती है।

4) प्रत्यक्ष तौर पर सामाजिक भिन्नताएं ( Dynamics) पर जो सिद्धांत तैयार करता है।

वही मानव विज्ञान के क्षेत्र में प्रत्यक्ष योगदान होता है।

नृतत्व विज्ञान में मुख्यतः मानव के भौतिक ,सामाजिक व भाषा आदि से सम्बंधित ऐतिहासिक पक्षों का अध्ययन किया जाता है।

जबकि पुरातत्व द्वारा मानव पुरावशेषों का अध्ययन होता है।

दोनों विषयों में मूल अंतर यह है कि नृतत्व शास्त्र वर्तमान का अध्ययन करता है और पुरातत्व अतीत का।

नृतत्व शास्त्र के मुख्यतः दो अंग है।

1) physical Anthropology

2) social Anthropology

नेतृत्व शास्त्र मानव के शारीरिक अवयवों का अध्ययन करता है।

इसके माध्यम से कंकालों के दांतों का अध्ययन करके उनके जीवन शैली पर समुचित प्रकाश डाला जा सकता है।

नृतृत्व शास्त्र की नई शाखा का विकास हुआ है जिसे

1) Ethno_ Archaeology

2) monkey Archaeology  कहते हैं।

Ethno Archaeology के अंतर्गत आदिम जातियों के सांस्कृतिक अध्ययन पुरातात्विक विधि से करते हैं।

इस प्रकार का अध्ययन मानव के उद्भव एवं विकास की अनेक समस्याओं पर प्रकाश डालते हैं।

समाजशास्त्र और पुरातत्व :-

प्रागैतिहासिक मानव के सामाजिक विकास को समझने के लिए समाजशास्त्र अथवा प्रागैतिहास में हमारे अध्ययन की इकाई समाज ही होता है।

समाजशास्त्र के अध्ययन का क्षेत्र मानव समाज की रचना रीति रिवाज संस्कार प्रथाएँ आदि आते हैं।इनके ज्ञान के बिना इतिहास और संस्कृति का पुनर्निर्माण नही किया जा सकता है।

समाज एक प्रकार का संगठन है जो व्यक्ति तथा व्यक्तियों के मध्य विषमताओं में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करता है। जिससे मानव की survival की सम्भावना बढ़ जाती है।

  विज्ञानों से सम्बंध

जिस प्रकार पुरातत्त्व मानविकी के कई विषयों से संबंधित है और उनकी सहायता लेता व प्रदान करता है। ठीक उसी प्रकार पुरातत्त्व का विज्ञान से गहरा संबंध रहा है। लगभग सभी विज्ञानों का योगदान पुरातत्त्व स्वीकार करता है।

पुरातत्त्व का विज्ञान विषयों से संबंध निम्नवर्णित है—

 भूतत्व विज्ञान और पुरातत्व :-

भूतत्व विज्ञान का पुरातत्व से अत्यंत गहरा सम्बन्ध है । मानव के उद्भव एवं विकास के विषय में प्रसिद्ध वैज्ञानिक डारविन का सिद्धांत भूतात्विक अनुसन्धानों का ही परिणाम था । पुरातत्व ने स्तरीकरण का सिद्धांत भू तत्व से ही ग्रहण किया जाता है।तथा नीचे की परतें ऊपरी परतों की अपेक्षा प्राचीन है।

इसी आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि उत्खनन में ऊपरी सतह से प्राप्त सामग्रियां निचली सतह की सामग्रियों से काल अनुक्रम की दृष्टि से बाद की है।साथ ही औजार हथियार बनाने के लिए प्रयुक्त पाषाण खण्डों एवं उनकी प्राप्ति स्थानों के विषय में भी भू तत्व की सहायता से जानकारी प्राप्त की जा सकती हैं।

 रसायन विज्ञान और पुरातत्व :-

पुरातात्विक स्थलों से जो अवशेष प्राप्त होते हैं।उनमें से अधिकांश जैसे सिक्के आदि जंग लगने के कारण धूमिल रहते हैं।इन्हें साफ़ करने के लिए रासायनिक विधियों का सहारा लिया जाता है।

पुरातात्विक उत्खननों से प्राप्त उपकरणों के समुचित संरक्षण के लिए पुरातत्व विभिन्न रासायनिक तत्व जैसे बेरियम,कैल्शियम सल्फेट, सिल्वर नाइट्रेड , व मैग्नीशियम क्लोराइड आदि पदार्थ उपयोगी होते हैं।

अवशेष के आधार पर तिथि निर्धारण हेतु C14 विधियां उपयोग में लायी जाती है। जो पुरातत्व के लिए आज वरदान सिद्ध हो रहे हैं।

पुरातत्व और भौतिक विज्ञान :-

भौतिक विज्ञान ऐतिहासिक पुरावशेषों के काल निर्धारण में पुरातत्व की मदद करता है।

इसी आधार पर अवशेषों अथवा घटनाओं की प्राचीनता सिद्ध होती है।कार्बन डेटिंग तो काल गणना की एक प्रामाणिक पद्धति है।

रेडियो कार्बन विधि से 30 – 40 हजार वर्षों तक की तिथियां प्राप्त की जा सकती है। तथा कुछ प्रयोग शालाओंद्वारा 70 – 80 हज़ार वर्षों तक की तिथियां प्राप्त की जा सकती है।

Remote sensing, Insat – photography व Arial photography आदि भौतिकी की देन है और पुरातत्व के लिए उपयोगी है।

 वनस्पति विज्ञान और पुरातत्व :-

वनस्पति विज्ञान का पुरातात्विक सन्दर्भ में सबसे महत्वपूर्ण योगदान पराग परीक्षण को माना जाता है।

क्या है पराग परीक्षण:  पराग विशलेषण विधि के अनुसार पौधों में जो फूल निकलते हैं।उनमें पराग कण होते हैं।

सामान्यतः ये नष्ट नहीं होते शर्त यह है कि वहाँ अम्लीय तत्व न हो।

पराग युक्त बीजों के आधार पर वनस्पति के प्रसार तथा उनके समय की जलवायु के विषय में भी जाना जाता है।

Pollen analysis has been used for disting wish deposit from the various interglacial phases of the Pleistocene ice age.

वनस्पति विज्ञान से पराग परीक्षण के अलावा वृक्ष- वलय के परीक्षण भी उपयोगी है।

क्या है वृक्ष वलय विश्लेषण: वृक्ष- वलय विशलेषण के अनुसार परिवृक्षों को यदि बीच से काटा जाये तो उनके कटे भाग पर गोल गोल छल्लों की तरह बने हुए चिन्ह दिखाई देते हैं।

इसी को वलय यानि रिंग कहा जाता है।

वृक्षों में 1 वलय का निर्माण एक वर्ष में होता है।इन वलयों के आधार पर लकडी के किसी टुकड़े की तिथि निर्धारित की जा सकती है।

वृक्ष की आयु जलवायु की शुष्कता एवं आद्रता आदि का प्रभाव भी वलयों के निर्माण प्रक्रिया पर पड़ता है।

  प्राणि विज्ञान और पुरातत्व :-

इसमें जीवाश्मों का अध्ययन पुरा प्राणिविद जीवाश्मों के अध्ययन के द्वारा काल अनुक्रम का निर्धारण करते हैं।हाथी, घोड़े एवं अन्य पशु के जीवाश्मों के आधार पर प्रातिनूतन तथा अतिनूतन काल में अंतर स्थापित करते हैं।

प्राणिविज्ञान के ज्ञान से ही खाद्य व अखाद्य पदार्थों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

निष्कर्ष:-

इस प्रकार हम देखते है कि पुरातत्व मानविकी एवं प्रकृति विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के साथ किसी न किसी रूप से सम्बंधित है। तथा विषयों का यह अंतर्संबंध प्राचीन काल की अनेकों संस्कृतियों को उजागर कर चुका है तथा आज भी यह अपना योगदान दे रहा है।

अभी हाल ही में हरियाणा में हड़प्पा सभ्यता में 2 नदियों के विद्यमान होने की पुष्टि पुरातत्त्व विभाग इन्हीं के योगदान पर के सका है।

गार्डन चाइल्ड के शब्दों में,”भौतिक अवशेषों के माध्यम से मानव के क्रिया कलापों का ज्ञान ही पुरातत्व है।”

Note:- यह पोस्ट पुरातत्त्व क्या है? तथा उसका अन्य विषयों से संबंध की एक संक्षिप्त जानकारी है। इसकी विस्तृत, एक एक पक्षों पर  जानकारी विस्तारपर्वक अगले पोस्ट में दी जाएगी। अगर आपको पुरातत्त्व को गहराई से जानना है, समझना है, तथा आत्मसात करना है तो आगे की पोस्ट्स जरूर पढ़ें। 

धन्यवाद🙏 
आकाश प्रजापति
(कृष्णा) 
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र:  प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय

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