England ke samvidhan ki visheshtayen : भारतीय संविधान को विस्तार पूर्वक समझने के लिए हमें विश्व के कुछ प्रमुख देशों की संविधान की समझ स्थापित करनी पड़ेगी। जोकि राज्य व संघ लोक सेवा आयोग के परीक्षाओं की दृष्टि से तथा राजनीति विज्ञान से स्नातक करने वाले विद्यार्थियों के लिए बेहद उपयोगी है।
विश्व के प्रमुख संविधान अथवा उनकी राज्य व्यवस्थाओं का अध्ययन करने से हमें एक तो यह समझना आसान होगा कि भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था में कौन-कौन सी विशेषताएं अथवा प्रावधान किस देश के संविधान से ली गई है तथा साथ ही साथ भारतीय संविधान व राज्य व्यवस्था की तुलना अन्य देशों के संविधान से अथवा अन्य राजनीतिक प्रणालियों से करना आसान हो जाएगा।
तो आइए देखते हैं ब्रिटेन के संविधान की विशेषताएं —
शेष विशेषताएं अगली पोस्ट में बताई गई है।
● ब्रिटेन के संविधान की विशेषताएं भाग 2
ब्रिटेन का संविधान व राज्यव्यवस्था : England ke samvidhan ki visheshtayen
भारतीय संविधान और राजनीतिक व्यवस्था पर सबसे ज्यादा प्रभाव ब्रिटिश राजनीतिक प्रणाली का है। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि लंबे समय तक ब्रिटेन के अधीन रहने के कारण हमारे स्वतंत्रता संघर्ष के नेताओं को ब्रिटिश राजनीतिक प्रणाली के लक्षण से परिचित होने का पर्याप्त अवसर मिला था।
संसार के सबसे विचित्र संविधान को समझने के लिए उसकी विशेषताओं का अध्ययन आवश्यक है क्योंकि ब्रिटिश निवासी परंपरावादी है और अपनी पुरानी व्यवस्थाओं से जुड़े रहते हैं जिसमें वे अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं । वह इनमें आमूल परिवर्तन के विरोधी हैं क्योंकि उनका विश्वास धीरे-धीरे परिवर्तन में है जो परिस्थितियों के परिवर्तन के साथ स्वाभाविक ढंग से हो जाता है।
फ्रांसीसी विद्वान डी० टॉकेल (De Tocqueville) तथा अमेरिकी विचारक टॉमस पेन (Thomas Paine) का यह कथन सुविख्यात हो गया है कि ब्रिटेन में कोई संविधान नहीं है ।
निश्चय ही यदि हम संविधान’ शब्द का वैधानिक अर्थ में प्रयोग करते हैं जिसके अनुसार संविधान उस प्रपत्र (document) अथवा कई प्रपत्रों के उस समूह को कहते हैं जिसमें उन विधियों का संग्रह होता है जिसके अनुसार उस देश का शासन चलाया जाता है। तो ब्रिटेन में इस प्रकार का कोई प्रपत्र नहीं है जिसको देश की शासन व्यवस्था का मौलिक कानून कहा जा सके ।
परन्तु ‘संविधान’ शब्द का प्रयोग एक व्यवहारिक अर्थ में भी होता है, जिसके अनुसार ,”संविधान लिखित विधियों तथा नियमों के अतिरिक्त उन अलिखित आचार विचार के नियमों, रीति रिवाजों अथवा लोक प्रयाओं एवं परम्पराओं के समूह को कहते हैं जिनका कही संग्रह नहीं होता और न जिन्हें न्यायालय विधियों के रूप में ही स्वीकार करते हैं, परन्तु जो देश की शासन-व्यवस्था में आधारभूत होते हैं।”
निश्चय ही इस प्रकार का संविधान किसी एक समय, किन्हीं निश्चित सिद्धान्तों को सामने रखकर, किसी एक वैधानिक सभा द्वारा न बनाया जाकर ऐतिहासिक परिस्थितियों के बल पर शनैः शनै: विकसित होता है और इस विकास में विधान मंडल द्वारा बनाये गये नियम, ऐतिहासिक घोषणापत्र, न्यायालयों के निर्णय अथवा अन्य लिखित पत्र इतने महत्वपूर्ण नहीं होते जितने कि अलिखित रूप में विकसित रीति रिवाज एवम् प्रथायें व परम्परायें।
ब्रिटेन में इस दूसरे अर्थ में निश्चय ही संविधान है। यह पहले अर्थ के अन्तर्गत आने वाले संविधान से यह निम्नलिखित बातों में भिन्न है
(अ) यह मुख्यतः अलिखित है,
(ब) यह एक विकसित तथा विकासशील संविधान है।
(स) इसका किसी एक निश्चित समय में, किसी निश्चित सभा अथवा समिति द्वारा निर्माण नहीं हुआ। जैसे 26 जनवरी 1950, 20 सितम्बर 1954, 30 अप्रैल 1789 क्रमशः भारतवर्ष, चीन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में संविधान की उद्घाटन की तिथि कही जा सकती हैं ।
ब्रिटेन के संविधान के स्रोत:-
ब्रिटिश संविधान की विशेषताएं यह है कि इसके मौलिक नियम किसी एक प्रपत्र में न पाये जाकर विभिन्न प्रकार के कानूनों, अध्यादेशों तथा नियमों विधियों, न्यायालयों के निर्णयों, रीतिरिवाजों तथा परम्पराओं पर आधारित है जिनका किसी समय कोई संग्रह नहीं किया गया और जैसा कि ऊपर बताया गया है जिनके समुचित रूप को ही ब्रिटिश संविधान कहा जाता है।
संक्षेप में इस संविधान के स्रोत निम्नांकित हैं – ब्रिटेन के संविधान की विशेषताएं
(1) ऐतिहासिक घोषणापत्र, जैसे 1215 का मैग्राचारटा, 1628 का अधिकारों का आवेदनपत्र, 1688 का अधिकारपत्र आदि।
(2) पार्लियामेंट द्वारा पारित कानून जो कि शासन- संगठन तया शासन-संचालन का नियमन करते हैं जैसे— 1701, का उत्तराधिकार कानून 1832, 1867 तथा 1884 के सुधार कानून, 1918, 1928 तथा 1948 के जन प्रतिनिधित्व कानून, 1911 तथा 1949 के पालियामेन्ट एक्ट, 1873 का सर्वोच्च न्यायालय कानून, 1919 का मन्त्रियों के पुनर्निर्वाचन सम्बन्धी कानून, ‘मिनिस्टर ऑफ क्राउन एक्ट” (1937), रीजेनसी एक्ट (1953), लाइफ पीयरेज एक्ट (1958), पीयरेज एक्ट (1963) आदि ।
(3) सम्राट के राजाधिकार (prerogatives) जो कि पूर्णतः अलिखित एवम् अनिश्चित हैं और जिनकी सीमा व प्रभाव के सम्बन्ध में बड़ा मतभेद है।
(4) राजाधिकारों के अन्तर्गत तथा पार्लियामेंट द्वारा पारित कानूनों के अन्तर्गत जारी किये गये आदेश एवम् नियम ।
(5) न्यायालयों के निर्णय जिनमें महत्वपूर्ण संवैधानिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन होता है जैसेे— 1670 का वुशल का मामला, 1399 का हेक्सी का मामला, 1429 का लार्क का मामले 1460 का क्लर्क का मामला, 543 का फैरर का मामला ।
(6) लोक विधि अथवा कॉमन लॉ के सिद्धान्त व नियम, जैसे— फौजदारी के मामलों में जूरी (jurry) की सहायता से निर्णय करना, भाषण स्वातंत्र्य का अधिकार आदि।
(7) संविधान की प्रथायें व परम्परायें (conventions) जो शासन व्यवस्था का सर्वाधिक अंश है और वास्तव में इसकी मूलाधार भी ।
(৪) माननीय विद्वानों, न्याय शास्त्रियों तथा व्याख्याताओं के ग्रन्थ।
ब्रिटिश शासन प्रणाली प्रधानतः रीति रिवाजों अथवा प्रथा-परम्पराओं पर ही आधारित है । अतः पार्लियामेंट की विधियों, ऐतिहासिक प्रपत्रों (charters), कार्यकारिणी के अध्यादेशों तथा नियमों और न्यायालयों के निर्णयों के रूप में लिखित संवैधानिक तत्व होते हुये भी ब्रिटिश संविधान को अलिखित कहा जाता है ।
ब्रिटिश संविधान की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं—
(1) प्राचीनतम संविधान : ब्रिटिश संविधान की विशेषताएं
ब्रिटेन का संविधान संपूर्ण विश्व में प्राचीनतम संविधान है। यह संविधान एक समय में निर्मित संविधान नहीं है, बल्कि यह बहुत लंबे समय से विकसित हो रहे नियमों का संग्रह है। यह लगभग 1400 ई० से धीरे-धीरे विकसित हो रहा है। बता दें कि ब्रिटेन में ही सर्वप्रथम संवैधानिक शासन का शुभारंभ हुआ था। इसी कारण इसे विश्व के प्राचीनतम संविधान होने का गौरव प्राप्त है।
(2) यथार्थ लोकतंत्र का संस्थापक : features of the UK constitution
यदि ब्रिटेन को विश्व में वास्तविक लोकतंत्र का जनक कहा जाए अथवा ब्रिटेन के संविधान को यथार्थ लोकतंत्र का संस्थापक कहा जाए तो यह किसी भी प्रकार से गलत नहीं होगा। सर्वप्रथम इसी संविधान में राजा की निरंकुशता से प्रजा को मुक्ति मिली और कालांतर में लोकतंत्र स्थापित हुआ। गौरतलब है कि इसके पूर्व यूनान में लोकतंत्र था किंतु यह तत्कालीन ब्रिटेन के लोकतंत्र से और आधुनिक समय में विश्व के कई देशों में स्थापित लोकतंत्र से भिंन्न था।
(3) ब्रिटिश संविधान एक विकसित संविधान | ब्रिटिश संविधान की विशेषताएं
ब्रिटेन का संविधान विश्व के अन्य संविधानों की तुलना में स्वयं में विचित्र और अनोखा है क्योंकि किसी भी देश में क्रमिक विकास द्वारा निर्मित ऐसा संविधान दिखाई नहीं देता। ब्रिटिश संविधान एक विकास का परिणाम है क्योंकि इसका निर्माण योजनाबद्ध तरीके से नहीं किया गया है जैसे अमेरिका,भारत जैसे देशों में किया गया। ब्रिटेन में संविधान सभा द्वारा संविधान का निर्माण नहीं किया गया बल्कि यह पूर्णत: इतिहास की उपज है जो अनेक शताब्दियों तक विकसित होता रहा। इस प्रकार यह तीन विचारधाराओं का समन्वय करता है.
(i). रुढ़िवाद (ii). उदारवाद (iii). समाजवाद।
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ब्रिटेन के संविधान की विशेषताएं भाग 2
(4) अलिखित संविधानः features of the UK constitution
संविधान शब्द का साधारणतया यह अर्थ लिया जाता है कि संविधान एक सर्वोच्च कानून है जिसमें समस्त नियमों व अन्य कानूनों का वर्णन सूचीबद्ध ढंग से होता है. परन्तु ब्रिटेन इसका अपवाद है क्योंकि अन्य देशों की तरह वहाँ संविधान एक मुद्रित और पुस्तक के रूप में दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि अधिकांश हिस्सा अलिखित हैं जिनमें ब्रिटिश संवैधानिक व्यवस्था के मूल सिद्धांत हैं। जैसे-
मैग्नाकार्टा ( 1215), पिटिशन क्रमांक राइट्स (1628). अधिकार बिल (1689), हैवियस कार्पस एक्ट, जन प्रतिधिनित्व कानून (1918), समान मताधिकार कानून (1928) इत्यादि।
इस प्रकार यह उपबंध एवं संवैधानिक व्यवस्था के मुख्य सिद्धांत ही ब्रिटिश संविधान के मुख्य लिखित अंश है बाकी सभी अलिखित परपराएँ एवं परिस्थितियों की उपज है। इसी कारण ब्रिटिश संविधान तुलनात्मक रूप से लचीला भी है क्योंकि अधिकांशत: अलिखित होने से उसका परिवर्तन लचीले ढंग से संभव हो पाता रहा है।
(5) ब्रिटिश संविधान में एकात्मकता के गुणों की बहुलता:
आश्चर्य की बात यह है कि ब्रिटिश सरकार लिखित संविधान की अनुपस्थिति में भी स्वयं को मजबूत और शक्तिशाली तथा केन्द्रीय शक्तियों से परिपूर्ण हो पाई। एकात्मक ढाँचे की स्थापना ब्रिटिश संविधान के एकात्मकता के पुट को दर्शाती है। इंग्लैण्ड में केन्द्रीय सरकार और स्थानीय सरकार के होते हुए भी संविधान में संघात्मकता के बजाए एकात्मकता का रूख ज्यादा दिखाई देता है।
(6) सर्वोच्च संसद की स्थापना एवं कानून का शासनः
विश्व में ब्रिटेन एक ऐसा देश था जिसने संसदात्मक सरकार के विचार को स्थापित किया। इसलिए संसदीय प्रणाली को वेस्टमिन्स्टर प्रणाली भी कहा जाता है। ब्रिटिश संसद पृथक्करण के सिद्धांत पर आधारित नहीं है।
रैमले म्योर का कथन है कि “ब्रिटिश संसदीय व्यवस्था के उत्तरदायित्व का केन्द्रीयकरण संभवतः शक्तियों के पृथक्करण से अधिक है। ब्रिटिश संसद संसदीय प्रभुसत्ता के गुण को दर्शाती है जिसका अर्थ है कि संसद कोई भी अधिनियम का निर्माण, संशोधन या उसका रद्दीकरण कर सकती है और न्यायालय द्वारा उसे असंवैधानिक घोषित नहीं किया जा सकता।”
इसका अर्थ यही है कि संसद सर्वोच्च है, निरंकुश के गुण से परिपूर्ण दिखती है यद्यपि जनता का दबाव उसे निरंकुश नहीं बना पाता परन्तु संसद सर्वोच्च न्यायापालिका से भी ऊपर के दर्जे पर है क्योंकि उसके द्वारा निर्मित कानूनों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि संसद की सर्वोच्चता मनमानी है क्योंकि ब्रिटेन में कानून का शासन है, सरकार सांविधिक कानूनों के सिद्धांतों से शासन करती है न कि अपनी इच्छा से।
ए.वी. डायसी के अनुसार कानून के शासन के अन्तर्गत तीन प्रकार के अर्थ सम्मिलित हैं:
(i) कानून की अवज्ञा के अतिरिक्त किसी और आधार पर सजा नहीं दी जा सकती।
(ii) कानून की दृष्टि से सब समान हैं।
(iii) जन अधिकार और स्वतंत्रता किसी संविधान के उपबंध से नहीं जुड़े बल्कि साधारण कानूनों से जुड़े हुए हैं।
(7) लोकतंत्र होकर भी राजपद : ब्रिटेन के संविधान की विशेषताएं
ब्रिटिश राज्य का राज्याध्यक्ष राजमुकुट (Crown) को माना जाता है। ध्यातव्य है कि महारानी की सरकार वस्तुत: राजमुकुट की सरकार होती है। राजमुकुट एक संस्था है, जबकि सम्राट एक व्यक्ति विशेष है; राजमुकुट स्थायी है जबकि सम्राट बदलते रहते हैं। रोचक तथ्य है कि लोकतंत्र का जनक देश होने के बावजूद इंग्लैंड अभी तक राजमुकुट के आधार पर राजतंत्र (Monarchy) को बनाए हुए है, जिस पर कई लोकतांत्रिक देश व्यंग भी करते हैं।
Note:- यह ब्रिटेन की संविधान की विशेषताएं की पहली पोस्ट है इसके आगे विस्तार से अगली पोस्ट में बताया जाएगा जिसका लिंक ऊपर दे दिया गया है। आप इसके बाद की जानकारी (जो कि बेहद महत्वपूर्ण है) वहां से अवश्य पढ़ लें।
धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र: राजनीति शास्त्र विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय