Biography of Gautama buddha in hindi : महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय
नाम : गौतम बुद्ध (Gautama buddha)
जन्म (Date of birth) — वैशाख पूर्णिमा 563 ई०पू०
मृत्यु (Death) ― 483 ई०पू०
जन्म स्थान (Birth place) ― लुम्बिनी (वर्तमान-रूममिनदेई, नेपाल का तराई क्षेत्र)
गृहत्याग ― 29 वर्ष में
पत्नी (Wife) ― यशोधरा
घोड़ा (Horse) ― कंथक
सारथी― चन्ना
महात्मा बुद्ध का जीवन चरित्र (biography of Mahatma gautama buddha):-
बौद्धधर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध (Gautama buddha) थे। उनके पिता का नाम शुद्धोदन (Shuddodhana) था जो कि कपिलवस्तु के शाक्यों के गणराजा थे। उनकी माता का नाम महामाया था, जो कोशल-राज्य की राजकुमारी थीं। गौतम का जन्म(Birth) 566 या 563 ई० पू० में कपिलवस्तु से लगभग 14 मील की दूरी पर स्थित लुंबिनी(रुक्मिनदेई) ग्राम के आम्रकुंज में हुआ था।
कपिलवस्तु कोशल राज्य के उत्तर में क्षत्रियों का एक छोटा सा गणराज्य था।
जिस समय गौतम बुद्ध (Gautama buddha) का जन्म हुआ उनके पिता शुद्धोधन वृद्ध हो रहे थे। इसलिए मैं उनसे बहुत प्रेम करते थे।
महात्मा बुद्ध शाक्य वंश से संबंधित थे इसीलिए उन्हें ‘शाक्यमुनि‘ भी कहा जाता है।
महात्मा बुद्ध के विषय में जानकारी के स्रोत:- Sources about mahatma buddha
महात्मा बुद्ध के विषय में हमें कोई प्रमाणिक सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाती है अतः हमें प्राचीन परंपरा से प्राप्त कथानक कविताओं तथा बौद्ध ग्रंथों पर ही विश्वास करना पड़ता है।
बुद्ध का नामकरण संस्कार:-
बीते समय के साथ-साथ जब गौतम बुद्ध कुछ दिन के हुए तो उनके पिता ने विशाल नामकरण संस्कार का आयोजन कराया तथा दूर-दूर के देशों राज्यों से ब्राह्मणों विद्वानों को बुलाया। सिद्धार्थ का नामकरण किया गया तथा नामकरण संस्कार में आए भविष्यवेत्ताओं ने उनके जीवन के विषय में भविष्यवाणी की। विद्वानों में से 90% विद्वान कह रहे थे कि यह बड़ा होकर सन्यासी बनेगा तथा 10% लोग कह रहे थे कि यह एक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा। उसी में आए एक 12 वर्षीय विद्वान ने शुद्धोधन को बताया कि “हे राजन आपका पुत्र बड़ा होकर सन्यासी बनेगा।”
शुद्धोधन को बहुत दुख हुआ तथा उन्होंने इसका उपाय पूछा कि वह सन्यास ना ले। विद्वानों ने बताया कि इनको जीवन भर भ्रम में रखो क्योंकि जिस दिन इन्हें सांसारिक दुख दिखा अथवा अनुभव हुआ यह सब कुछ त्याग कर संन्यास ले लेंगे।
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बुद्ध के विषय में क्या कहते हैं बौद्ध ग्रंथ:-
बुद्ध के जन्म से संबद्ध अनेक रोचक कथाएँ पालि-साहित्य में संगृहीत हैं। कहा जाता है कि बालक के जन्म पर देवताओं ने स्वर्ग से पुष्पवर्षा की और भविष्यवक्ताओं ने भविष्यवाणी की कि आगे चलकर यह बालक एक चक्रवर्ती राजा या महान संन्यासी बनेगा।
साथ ही यह भी कहा जाता है कि महात्मा बुद्ध अथवा सिद्धार्थ जन्म लेते ही कुछ 7 मंत्रों का उच्चारण किया जो कि कुछ इस प्रकार थे ―
Gautam buddha quotes:- ” मैं अच्छाइयों का उदाहरण बनूंगा, यह मेरा अंतिम जन्म है और इसके पश्चात में जन्म मरण के समुद्र को सदा के लिए पार कर जाऊंगा।”
गौतम के जन्म के एक सप्ताह के अंदर ही उनकी माता की मृत्यु हो गई बालक का पालन- पोषण उनकी मौसी महाप्रजाप्रती गौतमी ने किया। इस बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया; परंतु गौतम गोत्र में उत्पन्न होने के कारण उन्हें गौतम भी कहा जाता था।
महात्मा बुद्ध का प्रारंभिक जीवन:- gautam buddha ka jivan parichay
सिद्धार्थ(Siddhartha) का बचपन ठीक वैसे ही व्यतीत हुआ, जैसे अन्य किसी राजपुत्र का हो सकता है। उनके पिता ने उनकी सुख-सुविधा एवं शिक्षा-दीक्षा की यथोचित व्यवस्था की।
एक क्षत्रिय राजकुमार को दी जानेवाली राजोचित शिक्षा की व्यवस्था उनके लिए की गई। शीघ्र ही वह पुस्तक की ज्ञान के अतिरिक्त घुड़सवारी, तीरंदाजी आदि में निपुण हो गए थे।
उनके लिए सभी सांसारिक सुख सुविधाओं की व्यवस्था की गई ताकि वे संन्यास ना ले- यहां तक की उनके निवास के लिए विभिन्न ऋतुओं में रहने योग्य महल, उपवन इत्यादि बनाए गए। उनके बगीचे में सूखे पत्ते नहीं होते थे। उन्हें सदैव रास-रंग, भोग विलास में बाँधे रहने का प्रयास किया गया इसी उद्देश्य से 16 वर्ष की आयु में ही उनका विवाह यशोधरा (गोपा/बिम्बा/भद्रकच्छना। तीनों एक ही के अलग-अलग नाम है) नामक सुंदरी से करवा दिया गया, जिससे सिद्धार्थ को राहुल नामक पुत्र भी उत्पन्न हुआ। पुत्र जन्म से गौतम को कोई प्रसन्नता न हुई। कहते हैं कि जब उन्हें पुत्र जन्म का समाचार मिला तो उनके मुख से सहसा निकला कि राहु(बंधन) उत्पन्न हुआ। इसी से नवजात शिशु का नाम राहुल पड़ा।
चिंतनशील गौतम बुद्ध:-
शुध्दोधन के प्रयासों के बावजूद सिद्धार्थ बचपन से ही चिंतनशील रहने लगे। वे हमेशा एकांत में जम्बू वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न होकर बैठ जाते थे। यशोधरा और राहुल भी उन्हें सुख और शान्ति प्रदान नहीं कर सके। वे संसार की अवस्था और जीवन की निःसारता से दुखी रहा करते थे। राजप्रासाद का समस्त वैभव और विलासितापूर्ण जीवन उन्हें रास नहीं आया। वे मोहमाया से छुटकारा पाने का उपाय सोचते रहते थे।
सन्यास हेतु प्रेरक घटना:-
महात्मा बुद्ध ने संन्यास क्यों लिया? त्रिपिटक में ऐसे अनेक दृश्य और घटनाओं का उल्लेख है जिनसे गौतम के वैराग भाव को प्रेरणा मिली। राया में नगर दर्शन हेतु विभिन्न अवसरों पर बाहर जाते रहते थे। एक बार मार्ग में उन्होंने जर्जर शरीर वृद्ध देखा। तथा क्रमशः व्यथा पूर्ण रोगी मृतक तथा अंत में एक प्रसन्न चित्त सन्यासी देखा। (एक ही भ्रमण में अथवा अलग-अलग बार)। इन्हें देखकर उनके हृदय में वैराग्य उत्पन्न हो गया। बता दें कि उनकी घोड़े का नाम कंजक तथा उनके सारथी का नाम चन्ना था।
इस घटना के बाद क्या हुआ?
घटनाओं की खबर जब महाराज शुद्धोधन को मिली तो वे बहुत चिंतित हुए तथा उनके लिए भोग विलास, गीत संगीत, आदि सुविधाएं बढ़ा दी गई। किंतु यह सभी सिद्धार्थ गौतम को सन्यास लेने से ना रोक सकी।
सिद्धार्थ/महात्मा बुद्ध की विरक्ति:-
एक रात जब नृत्य-संगीत के कार्यक्रम के पश्चात सभी व्यक्ति निद्रा-निमग्न हो गए, तब गौतम की नींद सहसा टूट पड़ी। अस्त-व्यस्त, श्रृंगार-विहीन, लगभग निर्वस्त्र गणिकाओं को देखकर गौतम के मन में वितृष्णा और घृणा की भावना पैदा हुई। अपनी पत्नी और पुत्र को निद्रावस्था में ही छोडकर वे सत्य की खोज में घर से निकल पड़े। इस समय उनकी अवस्था 29 वर्ष की थी। बौद्धग्रन्थों में गौतम के गृहत्याग को महाभिनिष्क्रमण कहा गया है।
गृहत्याग के पश्चात:-
गृहत्याग करने के पश्चात उन्होंने राजसी वेशभूषा भी त्याग दी और सन्यासी भेष में सत्य और ज्ञान की खोज में निकल पड़े। इसके पश्चात् ज्ञान की खोज में वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करने लगे। सर्वप्रथम वैशाली के समीप अलारकालाम नामक संन्यासी के आश्रम में उन्होंने तपस्या की। वह सांख्य दर्शन का आचार्य था तथा अपनी साधना-शक्ति के लिये विख्यात था। यहां गौतम ने शून्य का ज्ञान और सांख्य दर्शन सीखा परन्तु यहाँ उन्हें शान्ति नहीं मिली।
यहाँ से वे रुद्रकरामपुत्त नामक एक दूसरे धर्माचार्य के समीप पहुँचे जो राजगृह के समीप आश्रम में निवास करता था। यहां उन्होंने योग दर्शन सीखा तथा यहां भी उनके अशान्त मन को संतोष नहीं मिल सका। खिन्न हो उन्होंने उनका भी साथ छोड़ दिया तथा उरुवेला (बोधगया) नामक स्थान को प्रस्थान किया।
तब सिद्धार्थ गौतम ने क्या किया?
यहाँ उनके साथ पाँच ब्राह्मण संन्यासी भी आये थे। अब उन्होंने अकेले तपस्या करने का निश्चय किया। प्रारम्भ में उन्होंने कठोर तपस्या किया जिससे उनका शरीर जर्जर हो गया और कायाक्लेश की निस्सारता का उन्हें भास हुआ। तब उन्होंने एक ऐसी साधना प्रारम्भ की जिसकी पद्धति पहले की अपेक्षा कुछ सरल थी। इस पर उनका अपने साथियों से मतभेद हो गया तथा वे उनका साथ छोड़कर सारनाथ में चले गये।
सिद्धार्थ गौतम को ज्ञान प्राप्ति:-
गौतम बुद्ध अब मध्यम मार्ग अपनाने लगे थे अर्थात न ही अधिक कायाकलेश में विश्वास करते थे और ना ही अत्यधिक भरपेट भोजन में। सिद्धार्थ मध्यमतः अन्न-जल भी ग्रहण करने लगे। छ: वर्षों की साधना के पश्चात 35 वर्ष की आयु में उन्होंने सुजाता नामक बालिका से खीर भी खायी। खीर खाने के उपरांत एक वट या पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर समाधि लगाई और निश्चय किया कि जब तक ज्ञान नही प्राप्त हो जाता यह स्थान नही छोडूंगा।
Gautam buddha quotes:- “मैं इस स्थान को तब तक नहीं छोडूंगा जब तक मुझे ज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी, जिसके लिए मैं कितने ही वर्षों से जगह-जगह घूम रहा हूं।”
इसके बाद भी 7 दिन और 7 रात अखंड समाधि में स्थित रहे तथा आठवीं दिन वैशाख पूर्णिमा की रात को एक पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें ‘ज्ञान’ प्राप्त ह आ। अब उन्होंने दुख तथा उसके कारणों का पता लगा लिया। अर्थात उन्हें बोध हो गया था। इस समय से वे ‘बुद्ध’ नाम से विख्यात हुए। उस दिन से वे ‘तथागत’ हो गए।
ज्ञान प्राप्ति के पश्चात महात्मा बुद्ध:-
ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात गौतम बुद्ध ने अपने मत के प्रचार का निश्चय किया। उरुवेला से वे सर्वप्रथम ऋषिपत्तन (सारनाथ) आये। यहाँ उन्होंने पाँच ब्राह्मण संन्यासियों को अपना पहला उपदेश दिया ये संन्यासी कठोर साधना से विरत हो जाने के कारण पहले उनका साथ छोड़ चुके थे।
इस प्रधम उपदेश को ‘धर्मचक्रप्रवर्तन’ (धम्मचक्कापवतन) की संज्ञा दी जाती है। यह उपदेश दुख, दुख के कारणों तथा उनके समाधान से सम्बन्धित था। इसे “चार आर्य सत्य (चतारि आरिय सच्चानि) कहा जाता है।
चार आर्य सत्य:-
1. दुख
2. दुःख समुदाय
3. दुःख निरोध
4. दुःख निरोधगामिनीप्रतिपदा
इस प्रकार ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् बुद्ध ने अपने शेष जीवन को लोगों के हित में लगाने का निश्चय किया। यह कार्य उसने 45 वर्ष तक किया। इस समय बुद्ध अपने श्रद्धालु जनों और अनुयायियों के साथ सदा भ्रमण ही करते रहे। उनका प्रथम उपदेश बनारस के निकट सारनाथ में हुआ। उसे ‘धर्म-चक्र-प्रवर्तन‘ कहा गया महात्मा बुद्ध देश के विभिन्न भागों में भ्रमण करते रहे। वे अपनी जन्मभूमि में भी गए। उनका पुत्र राहुल भी भिक्षु बन गया।
महात्मा बुद्ध का अंतिम दिवस और महापरिनिर्वाण:-
45 वर्ष के अनवरत धर्मोपदेश के पश्चात् महात्मा बुद्ध(Mahatma buddha) की वृद्धावस्था आ पहुँची। उनके शरीर पर जरा के समस्त लक्षण प्रकट हो गये। अपना अवसान-काल आया देख कर एक दिन महात्मा बुद्ध ने आनन्द से कुछ शब्द कहे।
Gautam buddha quotes:- “मैं जीर्ण, वृद्ध, अध्वगत, वयः प्राप्त हूँ। अस्सी वर्ष की मेरी आयु है। आनन्द ! जैसे पुरानी गाड़ी बाँध बूंधकर चलती है, वैसे ही आनन्द ! तथागत का शरीर बाँध-बूंधकर चल रहा है। इसलिए हे आनन्द! आत्मदीप, आत्मशरण, अनन्यशरण, धर्मदीप, धर्मशरण, अनन्य शरण होकर बिहरो’।”
वैशाली से महात्मा बुद्ध पावा गये और वहाँ चुन्द कर्मार पुत्र (सोनार) के घर पर भोजन किया। इसके पश्चात् पेचिश / अतिसार हो गई किन्तु उस वेदना को किसी प्रकार सहन करते हुए वे कुशीनारा पहुँचे। अब उनका निर्वाण अति सन्निकट था । इसलिए उन्होंने भिक्षुओं को बुलाकर अन्तिम उपदेश दिया कुछ इस प्रकार दिया।
Gautam buddha quotes:- “आनन्द! शायद तुम ऐसा सोचो कि हमारे शास्ता चले गये अब हमारा शास्ता नही है। आनंद! ऐसा मत समझना। मैने जो धर्म और विनय के उपदेश दिए हैं, मेरे बाद वे ही तुम्हारे शास्ता होंगे।”
इस प्रकार आनंद और अन्य व्यक्तियों को उपदेश देते हुए 80 वर्ष की उम्र में महात्मा बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया तथा उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पुनीत अवशेष भागों में विभक्त किए गए और उन पर भिन्न-भिन्न स्थानों पर 8 स्तूप बनवाए गए।
Note:- यह महात्मा बुद्ध की जीवनी की पोस्ट है । तथा बौद्ध धर्म और महात्मा बुद्ध से संबंधित है परीक्षा उपयोगी जानकारियां प्राचीन इतिहास के अंतर्गत दी जाएंगी।
धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय