बेबिलोनिया की सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता के दूसरी चरण की सभ्यता है। बता दें कि सुमेरिया, बेबिलोनिया तथा असीरिया की सभ्यता को सम्मिलित रूप से मेसोपोटामिया की सभ्यता कहा जाता है।
यह सुमेरियन सभ्यता के बाद प्रमुखता स्थापित कर पाई। बेबिलोनिया की सभ्यता भी सुमेरियन सभ्यता की भांति दजला व फरात घाटी में उद्भूत , पुष्पित व पल्लवित हुई।
बेबिलोनिया की सभ्यता (babylonian civilization in hindi):-
बेबीलोनिया की सभ्यता के निर्माता सेमेटिक जाति के लोग थे जो सुमेरिया के आस-पास के क्षेत्रों अथवा अरब के रेगिस्तानी क्षेत्रों में खानाबदोशी जीवनयापन करते थे। अपनी घुमक्कड़ प्रवृत्ति के कारण ये कालान्तर में दजला-फरात घाटी में पहुँचे।
2750 ई० पू० में इस जाति के एक कबीले ने सुमेरिया पर आक्रमण कर शुक्रिया के कुछ प्रदेशों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया धीरे-धीरे इस कबीले ने अपनी शक्ति बढ़ाकर अक्काद नामक छोटा-सा राज्य स्थापित कर लिया। इस कबीले के शक्तिशाली शासक सारगोन प्रथम (Sargon Ist) ने 2500 ई० पू० तक सम्पूर्ण मेसोपोटामिया पर अधिकार कर लिया। इसी महान् शासक ने बेबीलोन नामक नगर की स्थापना की और इसे अपनी राजधानी बनाया। इसी नगर के नाम पर यह सभ्यता ‘बेबीलोनिया की सभ्यता‘ के नाम से प्रसिद्ध हुई।
बेबिलोनिया की सभ्यता की विशेषताएं:-
बेबिलोनिया की सभ्यता की विशेषताओं को समेटे हुए थे इसके अंतर्गत हम उसके राजनीतिक पक्ष उसके सामाजिक जीवन , धार्मिक जीवन, आर्थिक जीवन, कला एवं स्थापत्य, साहित्य व विज्ञान संबंधी विशेषताओं समझने का प्रयास करेंगे―
बेबिलोनिया की सभ्यता का राजनीतिक इतिहास:-
2500 ई०पू० के आस पास तक बेबीलोन नगर की स्थापना तथा राजधानी बनाने के बाद लगभग दो सौ वर्षों तक अक्काद वंश का शासन बना रहा। बाद में सारगोन महान् के परवर्ती शासकों की शक्ति क्षीण होने लगी, जिसका लाभ उठाकर सेमेटिक जाति के ‘एलोराइट’ कबीले ने 2300 ई० पू० के आस-पास दक्षिणी मेसोपोटामिया के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया।
इसके बाद 2200 ई० पू० के लगभग एमोराइट कबीले ने मेसोपोटामिया पर आक्रमण कर अधिकांश भाग पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। हम्मूराबी इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था, जिसने लगभग 42 वर्ष (2124 ई० पू० से 2080 ई० पू०) तक बेबीलोनिया पर शासन किया।
हम्मूराबी कौन था ?
हम्मूराबी बेबिलोनिया की सभ्यता का सबसे महत्वपूर्ण व शक्तिशाली शासक था। इसने बेबीलोन पर 2124 ई०पू० से 2080 ई०पू० तक लगभग 42 साल शासन किया।
अपने शासन में इसने कई छोटे राज्यों को जीतकर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। इस महान् शासक के शासनकाल में बेबीलोन की सभ्यता अपने चरमोत्कर्ष पर थी। हम्मूराबी विश्व का प्रथम कानून निर्माता था। वह एक महान् विजेता, कुशल प्रशासक, राजनीतिज्ञ तथा कानून निर्माता था।
विल डूरेण्ट ने लिखा है, “राज्य निर्माता के रूप में हम्मूराबी को पूजा जाता था। प्राप्त मुहरों और सीलों के आधार पर हम कह सकते हैं कि वह प्रतिभाशाली, अत्यन्त साहसी और शक्तिशाली राजा था। युद्ध में वह बिजली की तरह नाचता था और अपने शत्रुओं को गाजर-मूली की तरह काटता चलता था। दुर्गम पर्वत भी उसकी सेना का रास्ता नहीं रोक सकते थे।”
एडगर स्वेन के विचार से, “निःसन्देह हम्मूराबी एक महान् विजेता तो था ही पर इतिहास में एक प्रशासक के रूप में उसकी प्रसिद्धि अधिक है।” बेबीलोन पर ग्यारह राजवंशों ने शासन किया, जिनमें हम्मूराबी का राजवंश सर्वाधिक शक्तिशाली एवं महत्त्वपूर्ण था।
ग़ौरतलब है कि हम्मूराबी संसार का सबसे प्रथम कानून/विधिसंहिता निर्माता शासक था। इसके द्वारा निर्मित कानूनों का संग्रह हम्मूराबी की विधिसंहिता के नाम से विश्वविख्यात है।
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हम्मूराबी की विधि संहिता (Code of law of Hammurabi in hindi):-
हम्मूराबी की विधि संहिता |
हम्मूराबी संसार का प्रथम कानून निर्माता था। उसके द्वारा स्थापित कानूनों की उपयोगिता आज भी बनी हुई है। हम्मूराबी ने स्वस्थ समाज एवं राज्य की स्थापना के लिए कानून तैयार करके उसे पत्थरों पर उत्कीर्ण कराया 1902 ई० में सूसा (ईरान) की खुदाई में फ्रांसीसी पुराविद् को 8 फीट के लम्बे बेलनाकार पत्थर पर उत्कीर्ण हम्मूराबी की कानून संहिता प्राप्त हुई है।
इसमें हम्मूराबी को ‘शमांश’ (सूर्यदेव) से कानून अर्जित (प्राप्त) करते हुए दिखाया गया है। हम्मूराबी का यह महत्त्वपूर्ण ‘विधि लेख’ लन्दन के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। हम्मूराबी की विधि संहिता में 285 धाराएँ और लगभग तीन हजार छह सौ (3600) पंक्तियाँ हैं।
हम्मूराबी ने इस कानून संग्रह में बैंकिंग के नियम, गिरवी रखने के नियम श्रमिकों और मालिकों के कर्तव्य एवं अधिकार, व्याज-दरों के निर्धारण की विधि, कतिपय सामाजिक नियम, यथा-विवाह, उत्तराधिकार आदि के विधान व अपराधों के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था की थी।
हम्मूराबी की विधिसंहिता की धाराएं (Sections of Hammurabi’s Law) :-
1. कानून को कोई भी अपने हाथों में नहीं ले सकता। अपराधी को सजा देने का काम सरकार का है।
2. कानून अमीर-गरीब सबके लिए समान है।
3. सभी प्रकार के ठेकों के लिए नियम निर्धारित किये गये।
4. कर्जदारों को राहत देने के लिए रेहन रखने की प्रथा चालू की गयी।
5. ब्याज की दरें निर्धारित की गयीं।
6. मुआवजा देने की व्यवस्था चालू की गयी।
7. नौकर तथा नौकर-मालिक दोनों के लिए नियम बनाये गये।
8. श्रमिकों की मजदूरी तय की गयी।
9. यदि कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर हत्या का आरोप लगाता है, तो उस पर हत्या का आरोप लगाया जाता है, लेकिन यह साबित नहीं कर सकता कि अभियुक्त को मौत के घाट उतार दिया जाएगा।
10. यदि कोई व्यक्ति किसी मामले में गलत गवाह रखता है, या उस गवाही को स्थापित नहीं करता है जो उसने दी है, यदि वह मामला जीवन से जुड़ा मामला है, तो उस व्यक्ति को मौत के घाट उतार दिया जाएगा।
11. यदि कोई व्यक्ति चोरी करता पकड़ा जाता है तो वह मृत्युदंड का अधिकारी होता है।
12. यदि कोई पुत्र अपने पिता पर प्रहार करता है, तो वे उसका हाथ काट दिए जाते थे।
13. यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे की आंख छोड़ता था तो उसकी भी आंख फोड़ दी जाती थी।
14. यदि कोई व्यक्ति किसी की हड्डी या हाथ-पैर तोड़ता था तो उसका भी तोड़ दिया जाता था।
15. यदि वह किसी व्यक्ति के दास की आंख को नष्ट कर देता है या किसी व्यक्ति के दास की हड्डी को तोड़ देता है, तो उसे उसकी कीमत का आधा हिस्सा चुकाना होगा।
16. यदि किसी व्यक्ति की स्त्री किसी दूसरे पुरुष के साथ लेटी हुई पकड़ी जाती है तो उसे बांधकर पानी में फेंक दिया जाता था।
इसी प्रकार इस संहिता में बहुत सी धाराएं थीं।
हम्मूराबी के इन्हीं कार्यों की दृष्टि से प्लेट तथा जीन ने लिखा है, “बेबीलोन का राजा हम्मूराबो प्राचीन संसार के उन गिने चुने राजाओं में से एक था, जिन्होंने विधवाओं, गरीबों और अनार्थों के प्रति सहानुभूति दिखायी। किसान और मजदूर शोषक महाजनों, बेईमान व लालची अधिकारियों तथा क्रूर सामन्तों एवं बर्बर सैनिक अफसरों से रक्षा पाने के लिए उसका मुँह जोहते थे। “
बेबिलोनिया की शासन व्यवस्था:-
बेबीलोनिया में राजतन्त्रीय शासन प्रणाली लागू थी। लोग राजा की ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में मानते थे। राज्य की सर्वोच्च शक्ति राजा में निहित होती थी। उसका आदेश अन्तिम होता था। राजा को शासन संचालन के लिए पुरोहित एवं सामन्त वर्ग के सदस्य परामर्श देते थे, किन्तु राजा वास्तव में स्वेच्छाचारी होता था। शासन की सुविधा के लिए राज्य को प्रान्तों में विभक्त किया गया था और प्रत्येक प्रान्त की देखभाल के लिए राजा प्रान्तपति एवं अन्य अधिकारियों की नियुक्ति करता था। ये प्रान्तपति एवं अधिकारी पूर्णतया राजा की आज्ञा का पालन करते थे।
बेबिलोनिया की सभ्यता का सामाजिक जीवन:-
जीवन-बेबीलोनियन समाज मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित था-उच्च वर्ग, मध्य वर्ग एवं निम्न (दास) वर्ग।
उच्च वर्ग में पुरोहित, राज-परिवार के सदस्य, राजा को परामर्श देने वाले सदस्य एवं उच्च अधिकारी आदि आते थे। मध्य वर्ग में व्यापारी एवं किसान आते थे। निम्न वर्ग दासों और युद्धबन्दियों का था। इनकी दशा अत्यन्त शोचनीय थी।
बेबीलोनियन समाज में संयुक्त परिवार-प्रथा के कारण बड़े-बड़े परिवारों का प्रचलन था । सामान्यतया समाज में एकविवाह की मान्यता थी. किन्तु उच्च वर्ग के लोग बहुविवाह भी करते थे । बेबीलोनिया की सभ्यता में स्त्रियों की स्थिति के विषय में इतिहासकारों में मतभेद रहा है।
स्त्रियों की स्थिति:-
प्रसिद्ध इतिहासकार ‘हेरोडोटस’ (Harodotas) के अनुसार, “यहाँ के समाज में स्त्रियों की दशा शोचनीय थी और देह-व्यापार का व्यापक प्रचार था।”
परन्तु एच० जी० वेल्स (H. G. Wellis) का कहना है कि “बेबीलोन के समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। उन्हें पर्याप्त सम्मान प्राप्त था। राज्य की ओर से भी स्त्रियों को विशेष अधिकार दिये गये थे। उन्हें निजी सम्पत्ति रखने, व्यवसाय करने, राजकीय सेवाएँ प्राप्त करने, जीवन साथी चुनने, शिक्षा प्राप्त करने की पूर्ण स्वतन्त्रता थी।”
समाज में सामान्यतः एक विवाह का प्रचलन था, किन्तु कुछ लोग बहुविवाह भी कर लिया करते थे। इस समय विधवाओं को पुनर्विवाह तथा विवाहित स्त्रियों को तलाक लेने का अधिकार प्राप्त था। दहेज-प्रथा, गोद लेने की प्रथा, उत्तराधिकार प्रथा भी प्रचलन में थी।
खान-पान संगीत एवं नृत्य-कला-
बेबीलोनिया के निवासी शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों थे। अनाज, फल, मछली एवं दूध इनका मुख्य भोजन था। ये मदिरा का भी प्रयोग करते थे। संगीत एवं नृत्य इनके मनोरंजन के मुख्य साधन थे। धार्मिक समारोहों एवं उत्सवों में वेश्याओं के नृत्य आयोजित किये जाते थे ढोल एवं बाँसुरी इस काल के प्रमुख वाद्य उपकरण थे।
वस्त्र-आभूषण-
बेबीलोनिया के लोग आभूषण एवं श्रृंगारप्रिय थे। स्त्रियाँ विभिन्न प्रकार के गहने धारण करती थी एवं पैर में चमड़े की जूतियाँ भी पहनती थीं किन्तु पुरुष जूते का प्रयोग नहीं करते थे। वे गले में दुपट्टा एवं तहमद का प्रयोग करते थे। उच्च वर्ग की स्त्रियाँ विलासिता की वस्तुएँ तथा शृंगार प्रसाधनों का उपयोग करती थीं।
बेबिलोनियन सभ्यता का आर्थिक जीवन-
बरेबीलोनिया की आर्थिक संरचना कृषि पर आधारित थी। उर्वर प्रदेश होने के कारण उपज अच्छी होती थी।
अनाज, खजूर, जैतून और अंगूर यहाँ की मुख्य उपज थी कृषि के साथ-साथ लोग पशुपालन भी करते थे। गाय, भेड़, ऊँट और बकरी इनके प्रमुख पालतू पशु थे।
बेबीलोन के लोग व्यापार भी करते थे। उद्योग भी विकसित अवस्था में थे। वस्त्र निर्माण, मिट्टी एवं काँसे के बर्तनों का निर्माण, विभिन्न प्रकार के आभूषणों का निर्माण यहाँ के कारीगर बड़ी कुशलता के साथ करते थे। बेबीलोनिया के व्यापारी भारत से इमारती लकड़ी, मूल्यवान् पत्थर, ईरान से टिन, एलम से चाँदी व मित्र से सोना आदि आयात करते थे एवं मिट्टी व धातु के बर्तन, औजार, चमड़े का सामान आदि विदेशों को निर्यात करते थे ।
प्रारम्भ में यहाँ वस्तु-विनिमय व्यापार का माध्यम था किन्तु कालान्तर में सोना और चाँदी विनिमय के माध्यम बन गये व्यापार, बैंकिंग तथा उद्योगों का संचालन राजकीय नियमों के द्वारा किया जाता था।
हम्मूराबी ने व्यापार एवं उद्योगों के लिए निश्चित और स्पष्ट कानून बनाये थे। व्यापार आदि के लिए ब्याज पर ऋण प्रदान करने की व्यवस्था की गयी थी। उनका व्यापार पश्चिमी एशिया तथा भारत से होता था। इस समय माप तौल के प्रमुख साधन मीना, शैकल और टेलैण्ट थे।
बेबीलोन की सभ्यता का धार्मिक जीवन-
बेबोलोनिया के सामाजिक जीवन में धर्म का प्रमुख स्थान था। यहाँ के नागरिक बहुदेववादी थे। सूर्य ( शर्मांश या एनलिल), नन्नार (चन्द्रमा), अनु ( आकाश देवता), ‘ईश्तर’ (प्रेम की देवी) और ‘मार्दुक’ (सूर्य का पुत्र ) इनके प्रमुख आराध्य देव थे। बेबीलोनिया के निवासी प्रकृतिपूजक भी थे। वे जल, वायु और पृथ्वी की भी पूजा करते थे।
मार्दुक देवता का एक विशाल मन्दिर बेबीलोन नगर में प्राप्त हुआ है जिसमें हम्मूराबी की विधि संहिता का अंकन प्राप्त हुआ है बेबीलोन के लोग प्राकृतिक प्रकोपों द्वारा विनाश के भय से देवी-देवताओं के साथ भूत-प्रेतों की भी उपासना करते थे । पुरोहितों को समाज में विशेष स्थान प्राप्त था। वे पूजा-पाठ, जादू-टोना आदि के द्वारा भूत-प्रेतों से लोगों की रक्षा करते थे। कुछ पुरोहित ज्योतिषी का कार्य करते थे । बेबीलोन के निवासी परलोकवाद एवं पुनर्जन्म में विश्वास करते थे । विद्वानों का मत है कि यहाँ लोग 65 हजार देवी-देवताओं को पूजा करते थे।
शिक्षा एवं लिपि-
सुमेरिया की कीलाकार लिपि कतिपय सुधारों के साथ बेबोलोनिया की लिपि बन गयी 300 शब्द थे। बेबीलोनिया के मन्दिरों में शिक्षा दी जाती थी गणित, ज्योतिष, कानून, भूगोल, धर्म, दर्शन, इतिहास एवं विदेशी भाषा इनके मुख्य विषय थे। खुदाई में प्राप्त मिट्टी की तरख्तियों से संकेत प्राप्त होता है कि यहाँ के विद्यार्थी मिट्टी की तख्तियों पर लिखते थे। उत्खनन में हम्मूराबी के काल का एक विद्यालय भवन का खण्डहर भी प्राप्त हुआ है लड़कियों के लिए नृत्य एवं संगीत की शिक्षा की व्यवस्था की गयी थी।
साहित्य-
बेबीलोनियन साहित्य धार्मिक था। इस समय का साहित्यकार धार्मिक | उपदेश, कहानियाँ, कविताएँ एवं महाकाव्य लिखने में विशेष रुचि रखता था गिल्खमेश महाकाव्य इस समय का सर्वाधिक प्रसिद्ध महाकाव्य था। युद्धों के वर्णन, साहसिक कार्य, मित्रता, रति-प्रसंग (स्त्री प्रेम) आदि इस महाकाव्य के प्रमुख वर्ण्य-विषय थे। बैरिसस इस काल का प्रसिद्ध इतिहासकार था। इसने 280 ई० पू० में बेबीलोन के इतिहास को लिपिबद्ध किया था। ‘भाग्यलेख’ एटन गड़रिये की कथा, अमद मछुए की कहानी, मानव के आकाश में उड़ने की सबसे बड़ी कहानी इस काल की प्रमुख कहानियाँ थीं।
विज्ञान-
बेबीलोनिया के लोगों ने विज्ञान एवं गणित के क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति की। गुणा के नियम तथा 1, 10 और 100 के अंकों का प्रथम आविष्कार बेबीलोनिया के गणितज्ञों की देन थी। बेबीलोनिया के लोगों ने ग्रहों की स्थिति का अध्ययन कर चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण की भविष्यवाणियाँ कीं।
उन्होंने एक पंचांग का निर्माण किया, जिसमें वर्ष को 12 माह एवं एक माह को 4 सप्ताह तथा एक दिन को 24 घण्टों तथा 1 घण्टा को 60 मिनट एवं 1 मिनट को 60 सेकेण्ड में बाँट रखा था। ऐसा प्रतीत होता है कि ये दशमलव- प्रणाली से भी परिचित हो चुके थे।
इन्होंने धूप घड़ी एवं जल घड़ी का भी आविष्कार कर रखा था बेबीलोनिया के निवासो अन्थ-विश्वासी थे। भूत-प्रेतों को वे बीमारी का कारण मानते थे। वे दवा की जगह ताबीज, जादू-टोना, ओझा आदि में विश्वास करते थे। विद्वानों ने बेबीलोन को ‘खगोल विद्या की माता’ कहा है।
बेबिलोनिया की कला-
बेबीलोनिया की सभ्यता में विभिन्न प्रकार की कलाएँ विकसित हुईं। स्थापल्य कला के क्षेत्र में बेबीलोनियन शिल्पकारों ने भव्य एवं विशाल देवालयों (जिगुरत) का निर्माण किया । मूर्तिकला के क्षेत्र में भी मूर्तिकारों ने विभिन्न प्रकार की मूर्तियों का निर्माण किया किन्तु वे मूर्तियों में जीवन्तता एवं सजीवता लाने में सफल नहीं हो सके।
इस सभ्यता के लोगों ने चित्रकला का भी विकास किया। प्रकृति के दृश्यों के चित्र, राजाओं के चित्र, पशुओं के चित्र इस काल के चित्रकारों के मुख्य चित्रण थे। बेबीलोनिया के राजमहलों तथा देवालयों की दीवारों पर इस प्रकार के चित्रों के अंकन प्राप्त हुए हैं। बेबीलोन के चित्रकार सात रंगों का प्रयोग करते थे।
बेबोलोनिया में वस्त्र-निर्माण, मुद्रा-निर्माण, मिट्टी व धातु के बर्तनों का निर्माण, आभूषण-निर्माण आदि की कला पर्याप्त उन्नत अवस्था में थी। इस काल में निर्मित झूलते हुए बाग संसार के आश्चर्यों में माने जाते हैं।
बेबिलोनिया सभ्यता की देन-
अद्यतन ज्ञात विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में बेबीलोनिया की सभ्यता का विशिष्ट स्थान है। बेबीलोन ने ज्योतिष, विज्ञान, गणित, दर्शन एवं चिकित्सा विज्ञान की आधारशिला रखी। साहित्य के क्षेत्र में महाकाव्यों एवं लोकप्रिय कहानियों की रचना की। एक पंचांग बनाया एवं ग्रहों, नक्षत्रों का नामकरण किया तथा लोगों को खगोल विद्या का ज्ञान कराया। बेबीलोनिया ने संसार को मीनारें व गुम्बद बनाना सिखाया। मानव को कानून का ज्ञान बेबीलोनियन सम्राट हम्मूराबी की विधि-संहिता की देन है।
हर्न शॉ के अनुसार, “बेबीलोनिया की सभ्यता हमारे विधि-विधान, हमारे ज्योतिष ज्ञान, कलेण्डर, समय- विभाजन आदि में भीजीवित है।”
सभ्यता का पतन-यह सभ्यता 100 वर्षों तक ही चल सकी। 1700 ई० पू० में केसाइट लोगों ने बेबीलोन पर आक्रमण करके ठस पर अधिकार कर लिया और बेबीलोन सभ्यता का अन्त कर दिया।
निष्कर्ष:-
इस प्रकार हम देखते हैं कि बेबिलोनिया की सभ्यता प्राचीन विश्व की विकसित सभ्यताओं में से एक है जिसे मेसोपोटामिया की सभ्यता होने का गर्व प्राप्त है। यह सभ्यता सुमेरिया के सभ्यता केक केंद्र सुमेर से उत्तर की ओर दजला और फरात घाटी के बीच में अवस्थित होने के कारण महत्वपूर्ण साबित हुई। इस सभ्यता ने परवर्ती मेसोपोटामिया सभ्यता तथा विश्व की अन्य सभ्यताओं को उत्तराधिकार स्वरूप अनेक चीजें प्रदान की।
इस प्रकार यह विश्व इतिहास की एक प्रसिद्धि प्राप्त सभ्यता थी।
धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय
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