संसार की प्राचीन सभ्यताएँ नदियों की घाटियों में जन्मीं और विकसित हुई। मिस्र की सभ्यता का विकास भी वहाँ की प्रमुख नदी ‘नील’ की तलहटी में हुआ। इसी कारण इसे ‘नील-नदी घाटी की सभ्यता’ के नाम से जाना जाता है। मिस्र अफ्रीका महाद्वीप के उत्तरी पूर्वी भाग में नील नदी की तलहटी में स्थित है। मिस्त्र के उत्तर में भूमध्य सागर, पश्चिम में विश्व प्रसिद्ध सहारा मरुस्थल (Sahara desert), पूर्व में लाल सागर एवं पश्चिम में घने जंगल हैं।
मिस्र की सभ्यता : Misra ki sabhyta
कुछ विद्वानों के कथन :
हेरोडोटस के अनुसार-“मिस्र की सभ्यता नील नदी का वरदान है।”
सेवाइन के अनुसार-“मिस्र की सभ्यता नील नदी की देन है।”
सखाराम देसाई के अनुसार-“मिस्र की सभ्यता नील नदी का उपहार है।”
विल ड्यूरेण्ट के अनुसार, “अपनी सुदृढ़ता और एकता की दृष्टि से, अद्भुत निर्माण-शिल्प और कलागत सफलता की दृष्टि से मिस्र की सभ्यता सम्भवतः इस पृथ्वी पर स्थापित होने वाली सभ्यताओं में महानतम थी। यदि हम उसकी बराबरी कर सकें, तो यह बहुत बड़ी बात होगी।”
जे. एच. बेस्टेड ने इस सम्बन्ध में लिखा है, “नील नदी हमारे एक विशाल ऐतिहासिक ग्रन्थ हैं, जिससे हमें बर्बर असभ्यता से लेकर सभ्यता तक क्रमानुसार रूप से मानव के प्रथम उत्थान का ज्ञान होता है।”
नील नदी मिस्र के हृदय प्रान्त में प्रवाहित होती है और लगभग 50 किमी चौड़े और 800 किमी लम्बे भू-क्षेत्र को उर्वर बनाती है। इसीलिए नील नदी को मिस्र की सभ्यता की जन्मदात्री माना जाता है।
सेवाइन के अनुसार, “यदि नील नदी न होती तो मिस्र एक विशाल रेगिस्तान बन गया होता।”
प्राचीन मिस्त्र के सभी प्रमुख नगर, यथा- काहिरा, मेम्फिस, कार्नाक और सिकन्दरिया आदि नील नदी के तट पर बसे हुए थे। सम्पूर्ण मिल में सिंचाई के लिए जल की आपूर्ति नील नदी से ही होती थी। लगभग 5000 वर्ष पूर्व सिकन्दरिया मिस्र का प्रमुख बन्दरगाह एवं व्यापार का केन्द्र था। इस प्रकार मिस्र की सभ्यता निःसन्देह नील नदी का वरदान है।
मिस्त्र की सभ्यता का काल-निर्धारण:-
मिल की सभ्यता के काल या अवधि के सम्बन्ध में इतिहासकार एकमत नहीं हैं। इतिहासकार पेरी ने इसे विश्व की प्राचीनतम सभ्यता माना है, किन्तु अधिकांश विद्वान् पेरी के इस मत से असहमत हैं। परन्तु यह निर्विवाद है कि पश्चिमी देशों में मिस्र की सभ्यता सबसे अधिक प्राचीन है। अद्यतन प्राप्त साक्ष्यों से ऐसा संकेत मिलता है कि जिस समय पूर्व में भारत और चीन की सभ्यताएँ विकसित हो रही थीं उसी समय मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताएँ भी विकास के पथ पर बढ़ रही थीं।
मिस्र की सभ्यता की खोज-
मिस्र की सभ्यता की खोज नेपोलियन बोनापार्ट के आक्रमण के फलस्वरूप हुई। 1798 ई० में मिस्र विजय के अभियान के दौरान नील नदी के मुहाने पर स्थित रोजीटा नामक स्थान से एक पत्थर का शिलालेख प्राप्त हुआ जो 112 सेमी लम्बा और 70 सेमी चौड़ा था। फ्रांसीसी विद्वान शाम्पोल्यो ने 1818 ई० में इस लेख को पढ़कर मिस्र की गौरवशाली सभ्यता के रहस्य का उद्घाटन किया।
कालान्तर में 1922 ई० में अंग्रेज पुराविद् हावर्ड कार्टर (Haward Carter) ने ‘तूतेन खामन’ नामक मिस्त्री सम्राट के पिरामिड के गुप्तद्वार की खोज करके मिस्र की सभ्यता को प्रकाशमान कर दिया।
मिस्र की सभ्यता का इतिहास (History of Egyptian civilization in hindi):-
इतिहासकार पिलण्डर्स पेट्री के अनुसार मिस्त्र में आज से लगभग 10 से 12 हजार वर्ष पूर्व सभ्यता का आरम्भ हो चुका था परन्तु मिस्र में 3400 ई० पू० में मेनीज नामक शासक द्वारा वास्तविक राजतन्त्रीय शासन-प्रणाली की स्थापना की गयी।
मिस्र पर लगभग 31 राजवंशों ने शासन किया। मिस्र के राजनीतिक इतिहास को मुख्य रूप से तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है―
पिरामिड युग ( 3400 ई०पू० से 2160 ई०पू० तक)-
मेनीज के पश्चात् पिरामिड युग में चार राजवंशों ने मिस्त्र पर शासन किया। इन राजाओं ने फारो, फराओ अथवा फरऊन की उपाधि धारण की। इस काल में विशालकाय पिरामिडों का निर्माण हुआ। इसीलिए इस अवधि को पिरामिड युग के नाम से सम्बोधित किया जाता है। इस युग के तीसरे राजवंश के शासनकाल में मिस्र में पिरामिडों का निर्माण हुआ। मिस्र में राजा (फारो) दैवी-शक्ति से सम्पन्न माना जाता था। मिल के निवासी फराओ की पूजा करते थे और उसे देवता के समान मानते थे।
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सामन्तवादी युग (2160 ई० पू० से 1580 ई० पू० तक)-
इस युग में सामन्तों की शक्ति बढ़ गयी थी वास्तव में शासन की बागडोर सामन्तों के हाथ में आ गयी गी। इनके प्रभाव के आगे राजा अपने को निर्बल समझता था। कालान्तर में केन्द्रीय शक्ति कमजोर हो गयी और सामन्तों ने छोटे-छोटे राज्यों में मिस्र को बाँट दिया। निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए इन सामन्तों में आपस में लडाइयाँ होने लगी और मिस्र में अराजकता फैल गयी।
मिस्र की कमजोरी और विभाजन का लाभ उठाकर 2000 ई० पू० में हिक्सोस नामक विदेशी आक्रान्ता जाति ने मिस्र पर आक्रमण कर उसके अधिकांश भाग पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। लगभग 400 वर्षों तक मिस्रवासियों का शोषण होता रहा। कालान्तर में इनके अत्याचारों से ऊबकर मिस्र निवासियों ने विद्रोह कर हिक्सोस जाति को 1580 ई० पू० में देश के बाहर खदेड़ दिया।
साम्राज्यवादी युग ( 1580 ई० पू० से 650 ई० पू० तक)-
इस युग में मिस्र का बहुमुखी विकास हुआ। थटमोस प्रथम ने छोटे-छोटे राज्यों को संगठित कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की और थीब्ज को अपनी राजधानी बनाया। यह काल मिस्र का स्वर्ण-काल था। कई महान् शासकों ने मिस्र पर उदारतापूर्वक शासन किया और इनके काल में स्थापत्य कला, मूर्तिकला, धर्म, दर्शन और विज्ञान के क्षेत्र में
रैमेसिज द्वितीय (1198 ई० पू० से 1167 ई० पू० तक) मिस्र का अन्तिम महान् शासक था। इसकी मृत्यु के पश्चात् मिस्र में योग्य शासक सत्तारूढ़ न हो सके और परिणामस्वरूप विदेशी आक्रमण होने लगे।
1100 ई० पू० के लगभग असीरिया ने मिस्र के अधिकांश भाग पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। 332 ई० पू० में यूनानी सम्राट सिकन्दर महान ने मिस्र पर कब्जा कर लिया। सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् टालमी वंश के शासकों ने मिस्र पर राज्य किया।
मिस्र की सभ्यता का भौगोलिक परिदृश्य |
मिस्र की सभ्यता एवं संस्कृति की विशेषताएं :-
मिस्र की सभ्यता एवं संस्कृति को विशेषताएँ निम्नलिखित थी―
मिस्र की सभ्यता का राजनीतिक जीवन व शासन-व्यवस्था:
मिस्र की सभ्यता में राजा राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता था। मिस्र निवासी राजा को देवपुत्र के रूप में मानते थे। मिस्र का राजा जिसे ‘फराओ’ कहा जाता था, निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी होता था। फराओ का आदेश मिस्रवासियों के लिए कानून था। शासन कार्य मे राजा को परामर्श देने के लिए सारू नामक एक परिषद होती थी, किन्तु राजा परिषद की सलाह मानने को बाध्य नहीं था। इसी प्रकार सम्राट को प्रशासनिक कार्यों में सहायता के लिए कुछ मन्त्री होते थे।
वजीर (प्रधानमंत्री) का स्थान सर्वोच्च था। प्रशासनिक सुविधा के लिए मिस्र को प्रांतों (नोम) में विभक्त किया गया था। प्रत्येक प्रांत की देखरेख के लिए एक प्रांतपति (नोमार्क) की नियुक्ति सम्राट द्वारा की जाती थी। नोमार्क सम्राट की इच्छा अनुसार प्रांत के शासन कार्यों का संचालन करता था। ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई थी ग्राम का शासन प्रबंध स्थानीय सामंतो द्वारा किया जाता था।
साम्राज्य की सुरक्षा के लिए राजा द्वारा स्थायी सेना का गठन किया गया था। साथ ही प्रत्येक प्रांत में अस्थायी सेना होती थी जो राज्य में विद्रोहों आदि का दमन करती थी। मिस्र की स्थाई सेना में घोड़ों और रथों का महत्वपूर्ण स्थान था।
मिस्र का न्याय विधान उच्च कोटि का था मुकदमों की सुनवाई लिखित रूप में की जाती थी। न्याय का सर्वोच्च अधिकारी सम्राट (फराओ) होता था। दंड विधान कठोर था। साधारण अपराधी को आर्थिक दंड एवं जघन्य अपराध करने वालों को अपराध के आधार पर कठोर दंड दिया जाता था झूठी गवाही देने वाले को फांसी की सजा दी जाती थी।
मिस्र में राज्य की आय का मुख्य साधन भू राजस्व था जो किसानों से वसूल किया जाता था। सिंचाई अर्थदंड एवं चुंगी से भी राज्य को भारी आय होती थी। फराओ को अधीनस्थ शासकों व सामंतो द्वारा दिए जाने वाले उपहारों के रूप में भी भारी आय प्राप्त होने के प्रमाण मिले हैं।
मिस्र की सभ्यता का सामाजिक जीवन :-
प्राचीन मिस्र के सामाजिक जीवन को निम्नवत समझा जा सकता है―
समाज का विभाजन-
प्राचीनकालीन मिस्र का समाज मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभक्त था।
प्रथम उच्च वर्ग था, जिसमें सम्राट, सामन्त, पुरोहित, जमींदार, राज्य के उच्च पदाधिकारी आदि आते थे। इनका जीवन वैभव एवं ऐश्वर्य से परिपूर्ण या। समाज में इन्हें विशेष सम्मान प्राप्त था। ये राजकीय करों से मुक्त होते थे तथा इन्हें राज्य द्वारा विशेषाधिकार भी प्रदान किये गये थे। ये राजमहलों अथवा विशाल भवनों में शान-शौकत के साथ रहते थे। इनका जीवन स्तर उच्चकोटि का था।
दूसरा मध्य वर्ग था, जिसमें व्यापारी, बुद्धिजीवी, शिल्पी एवं लिपिक आदि आते थे। मिस्री समाज में इनके जीवन का स्तर भी अच्छा था तथा इन्हें भी समाज में आदर एवं सम्मान प्राप्त था।
तीसरा निम्न वर्ग था, जिसमें किसान, मजदूर, दास तथा अन्य निर्धन लोग शामिल थे इस वर्ग को दशा चिन्तनीय थी तथा इनका जीवन स्तर निम्नकोटि का था। किसानों को भू-स्वामित् प्राप्त नहीं था। सामन्तों एवं जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता था मजदूरों और दासों की दशा अत्यन्त शोचनीय थी। इस वर्ग के लोगों से जबरन बेगार कराया जाता था। मिस के विशाल पिरामिडों का निर्माण दासों द्वारा ही किया गया था।
रहन-सहन एवं खान-पान-
मिस्रवासियों का रहन-सहन अच्छा था। उच्च वर्ग के लोग आलीशान महलों में तथा निम्न वर्ग के लोग कच्चे मकानों में रहते थे। स्त्रियों और पुरुष दोनों ही आभूषणप्रिय थे। अंगूठी, जंजीर, कर्णफूल, कंगन, गलहार आदि इनके प्रमुख आभूषण थे। मिस्र की स्त्रियाँ शरृंगारप्रेमी थीं। वे विभिन्न प्रकार के सौंन्दर्य-प्रसाधनों का प्रयोग करती थीं।
मिस्रवासी शाकाहारी और मांसाहारी दोनों थे। गेहूँ, जौ, चावल, फल, दूध और दही शाकाहार करने वालों का मुख्य भोजन था, जबकि मांसाहारी लोग सूअर व मछली आदि के मांस का प्रयोग करते थे। मिस्रवासियों के मदिरापान करने के भी संकेत मिले हैं।
मनोरंजन-
पशुओं की लड़ाई, नृत्य, संगीत, शारीरिक कलाबाजी, कुश्ती, पक्षियों की लड़ाई एवं मछली मारना आदि इनके मनोरंजन के मुख्य साधन थे।
महिलाओं की स्थिति-
मिस्र में नारियों की स्थिति पर्याप्त अच्छी थी। इन्हें समाज में आदर व सम्मान प्राप्त था, साथ ही इन्हें राजनीतिक अधिकार भी प्राप्त थे। परिवार की सम्पूर्ण धन-सम्पत्ति पर स्त्री का हो अधिकार होता था। मिस्र का समाज मातृसत्तात्मक था। फलतः स्त्रियां पुरुषों पर शासन करती थीं। सामान्यतया मिस्र में एकविवाह की प्रथा थी, किन्तु राजा व धनी वर्ग के लोग एक से अधिक विवाह भी करते थे।
स्त्रियों की स्थिति स्पष्ट करते हुए सेवाइन कहते हैं कि “मिस्र में नारी का जो सम्मान था, उसकी समानता प्राचीन सभ्यताओं में कोई दूसरी सभ्यता नहीं कर सकती थी। ”
इख्नातन’ की महारानी, ‘नफरतीती’, ‘हेतशेप्सुत’ तथा ‘क्लियोपेट्रा यहाँ की प्रसिद्ध महिलाएँ थीं।।
मिस्र की सभ्यता का आर्थिक जीवन:-
मिस्री आर्थिक जीवन में निम्न तत्व आते हैं-
कृषि एवं पशुपालन-
नील नदी की तलहटी में बसे होने के कारण मिस्र एक उपजाऊ एवं उर्वर प्रदेश या। इसलिए यहाँ के निवासियों के जीवन का मुख्य आधार कृषि था। मिस्र की बहुसंख्यक (लगभग 80%) जनता खेती करके अपना भरण पोषण करती थी।
गेहूँ, जौ, कपास, पटसन, खजूर, अंगूर आदि मिस्रवासियों की प्रमुख फसलें थीं कृषि कार्य के लिए कृषकों को राजकीय सुविधाएँ दी जाती थीं। सिंचाई की सुविधा के लिए शासन की ओर से पक्की नहरों का निर्माण कराया गया था । राजकीय कर्मचारी कृषकों से लगान वसूलते थे। लगान अदा न करनेवाले कृषक को कठोर दण्ड दिया जाता था नील नदी पर बाँध बनाये गये थे तथा नहरें निकाली गयी थी।
उद्योग-धन्धे एवं व्यापार-
मिस्र की सभ्यता का धर्म:-
प्राचीन मिस्र में साहित्य, विज्ञान और कला:-
स्थापत्य कला-
मूर्तिकला-
चित्रकला-
शिक्षा एवं साहित्य-
लेखन-कला―
प्राचीन मिस्र में विज्ञान-
प्राचीन मिस्र की सभ्यता की देन-
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि-
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निष्कर्ष:-
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय