Misra ki sabhyta | प्राचीन मिस्र की सभ्यता | ancient Egyptian civilization in hindi

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संसार की प्राचीन सभ्यताएँ नदियों की घाटियों में जन्मीं और विकसित हुई। मिस्र की सभ्यता का विकास भी वहाँ की प्रमुख नदी ‘नील’ की तलहटी में हुआ। इसी कारण इसे ‘नील-नदी घाटी की सभ्यता’ के नाम से जाना जाता है। मिस्र अफ्रीका महाद्वीप के उत्तरी पूर्वी भाग में नील नदी की तलहटी में स्थित है। मिस्त्र के उत्तर में भूमध्य सागर, पश्चिम में विश्व प्रसिद्ध सहारा मरुस्थल (Sahara desert), पूर्व में लाल सागर एवं पश्चिम में घने जंगल हैं।

मिस्र की सभ्यता : Misra ki sabhyta

कुछ विद्वानों के कथन :

हेरोडोटस के अनुसार-“मिस्र की सभ्यता नील नदी का वरदान है।”

सेवाइन के अनुसार-“मिस्र की सभ्यता नील नदी की देन है।”

सखाराम देसाई के अनुसार-“मिस्र की सभ्यता नील नदी का उपहार है।”

विल ड्यूरेण्ट के अनुसार, “अपनी सुदृढ़ता और एकता की दृष्टि से, अद्भुत निर्माण-शिल्प और कलागत सफलता की दृष्टि से मिस्र की सभ्यता सम्भवतः इस पृथ्वी पर स्थापित होने वाली सभ्यताओं में महानतम थी। यदि हम उसकी बराबरी कर सकें, तो यह बहुत बड़ी बात होगी।”

जे. एच. बेस्टेड ने इस सम्बन्ध में लिखा है, “नील नदी हमारे एक विशाल ऐतिहासिक ग्रन्थ हैं, जिससे हमें बर्बर असभ्यता से लेकर सभ्यता तक क्रमानुसार रूप से मानव के प्रथम उत्थान का ज्ञान होता है।”

नील नदी मिस्र के हृदय प्रान्त में प्रवाहित होती है और लगभग 50 किमी चौड़े और 800 किमी लम्बे भू-क्षेत्र को उर्वर बनाती है। इसीलिए नील नदी को मिस्र की सभ्यता की जन्मदात्री माना जाता है।

सेवाइन के अनुसार, “यदि नील नदी न होती तो मिस्र एक विशाल रेगिस्तान बन गया होता।”

प्राचीन मिस्त्र के सभी प्रमुख नगर, यथा- काहिरा, मेम्फिस, कार्नाक और सिकन्दरिया आदि नील नदी के तट पर बसे हुए थे। सम्पूर्ण मिल में सिंचाई के लिए जल की आपूर्ति नील नदी से ही होती थी। लगभग 5000 वर्ष पूर्व सिकन्दरिया मिस्र का प्रमुख बन्दरगाह एवं व्यापार का केन्द्र था। इस प्रकार मिस्र की सभ्यता निःसन्देह नील नदी का वरदान है।

मिस्त्र की सभ्यता का काल-निर्धारण:-

मिल की सभ्यता के काल या अवधि के सम्बन्ध में इतिहासकार एकमत नहीं हैं। इतिहासकार पेरी ने इसे विश्व की प्राचीनतम सभ्यता माना है, किन्तु अधिकांश विद्वान् पेरी के इस मत से असहमत हैं। परन्तु यह निर्विवाद है कि पश्चिमी देशों में मिस्र की सभ्यता सबसे अधिक प्राचीन है। अद्यतन प्राप्त साक्ष्यों से ऐसा संकेत मिलता है कि जिस समय पूर्व में भारत और चीन की सभ्यताएँ विकसित हो रही थीं उसी समय मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताएँ भी विकास के पथ पर बढ़ रही थीं।

मिस्र की सभ्यता की खोज-

मिस्र की सभ्यता की खोज नेपोलियन बोनापार्ट के आक्रमण के फलस्वरूप हुई। 1798 ई० में मिस्र विजय के अभियान के दौरान नील नदी के मुहाने पर स्थित रोजीटा नामक स्थान से एक पत्थर का शिलालेख प्राप्त हुआ जो 112 सेमी लम्बा और 70 सेमी चौड़ा था। फ्रांसीसी विद्वान शाम्पोल्यो ने 1818 ई० में इस लेख को पढ़कर मिस्र की गौरवशाली सभ्यता के रहस्य का उद्घाटन किया।

कालान्तर में 1922 ई० में अंग्रेज पुराविद् हावर्ड कार्टर (Haward Carter) ने ‘तूतेन खामन’ नामक मिस्त्री सम्राट के पिरामिड के गुप्तद्वार की खोज करके मिस्र की सभ्यता को प्रकाशमान कर दिया।

मिस्र की सभ्यता का इतिहास (History of Egyptian civilization in hindi):-

मिस्र की सभ्यता image

इतिहासकार पिलण्डर्स पेट्री के अनुसार मिस्त्र में आज से लगभग 10 से 12 हजार वर्ष पूर्व सभ्यता का आरम्भ हो चुका था परन्तु मिस्र में 3400 ई० पू० में मेनीज नामक शासक द्वारा वास्तविक राजतन्त्रीय शासन-प्रणाली की स्थापना की गयी।

मिस्र पर लगभग 31 राजवंशों ने शासन किया। मिस्र के राजनीतिक इतिहास को मुख्य रूप से तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है―

पिरामिड युग ( 3400 ई०पू० से 2160 ई०पू० तक)-

मेनीज के पश्चात् पिरामिड युग में चार राजवंशों ने मिस्त्र पर शासन किया। इन राजाओं ने फारो, फराओ अथवा फरऊन की उपाधि धारण की। इस काल में विशालकाय पिरामिडों का निर्माण हुआ। इसीलिए इस अवधि को पिरामिड युग के नाम से सम्बोधित किया जाता है। इस युग के तीसरे राजवंश के शासनकाल में मिस्र में पिरामिडों का निर्माण हुआ। मिस्र में राजा (फारो) दैवी-शक्ति से सम्पन्न माना जाता था। मिल के निवासी फराओ की पूजा करते थे और उसे देवता के समान मानते थे।

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सामन्तवादी युग (2160 ई० पू० से 1580 ई० पू० तक)-

इस युग में सामन्तों की शक्ति बढ़ गयी थी वास्तव में शासन की बागडोर सामन्तों के हाथ में आ गयी गी। इनके प्रभाव के आगे राजा अपने को निर्बल समझता था। कालान्तर में केन्द्रीय शक्ति कमजोर हो गयी और सामन्तों ने छोटे-छोटे राज्यों में मिस्र को बाँट दिया। निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए इन सामन्तों में आपस में लडाइयाँ होने लगी और मिस्र में अराजकता फैल गयी।

मिस्र की कमजोरी और विभाजन का लाभ उठाकर 2000 ई० पू० में हिक्सोस नामक विदेशी आक्रान्ता जाति ने मिस्र पर आक्रमण कर उसके अधिकांश भाग पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। लगभग 400 वर्षों तक मिस्रवासियों का शोषण होता रहा। कालान्तर में इनके अत्याचारों से ऊबकर मिस्र निवासियों ने विद्रोह कर हिक्सोस जाति को 1580 ई० पू० में देश के बाहर खदेड़ दिया।

साम्राज्यवादी युग ( 1580 ई० पू० से 650 ई० पू० तक)-

इस युग में मिस्र का बहुमुखी विकास हुआ। थटमोस प्रथम ने छोटे-छोटे राज्यों को संगठित कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की और थीब्ज को अपनी राजधानी बनाया। यह काल मिस्र का स्वर्ण-काल था। कई महान् शासकों ने मिस्र पर उदारतापूर्वक शासन किया और इनके काल में स्थापत्य कला, मूर्तिकला, धर्म, दर्शन और विज्ञान के क्षेत्र में

रैमेसिज द्वितीय (1198 ई० पू० से 1167 ई० पू० तक) मिस्र का अन्तिम महान् शासक था। इसकी मृत्यु के पश्चात् मिस्र में योग्य शासक सत्तारूढ़ न हो सके और परिणामस्वरूप विदेशी आक्रमण होने लगे।

1100 ई० पू० के लगभग असीरिया ने मिस्र के अधिकांश भाग पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। 332 ई० पू० में यूनानी सम्राट सिकन्दर महान ने मिस्र पर कब्जा कर लिया। सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् टालमी वंश के शासकों ने मिस्र पर राज्य किया।

Egyptian civilization map | misra ki sabhyta ka bhaugolik kshetra
मिस्र की सभ्यता का भौगोलिक परिदृश्य

मिस्र की सभ्यता एवं संस्कृति की विशेषताएं :-

मिस्र की सभ्यता एवं संस्कृति को विशेषताएँ निम्नलिखित थी―

मिस्र की सभ्यता का राजनीतिक जीवन व शासन-व्यवस्था:

मिस्र की सभ्यता में राजा राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता था। मिस्र निवासी राजा को देवपुत्र के रूप में मानते थे। मिस्र का राजा जिसे ‘फराओ’ कहा जाता था, निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी होता था। फराओ का आदेश मिस्रवासियों के लिए कानून था। शासन कार्य मे राजा को परामर्श देने के लिए सारू नामक एक परिषद होती थी, किन्तु राजा परिषद की सलाह मानने को बाध्य नहीं था। इसी प्रकार सम्राट को प्रशासनिक कार्यों में सहायता के लिए कुछ मन्त्री होते थे।

वजीर (प्रधानमंत्री) का स्थान सर्वोच्च था। प्रशासनिक सुविधा के लिए मिस्र को प्रांतों (नोम) में विभक्त किया गया था। प्रत्येक प्रांत की देखरेख के लिए एक प्रांतपति (नोमार्क) की नियुक्ति सम्राट द्वारा की जाती थी।  नोमार्क सम्राट की इच्छा अनुसार प्रांत के शासन कार्यों का संचालन करता था। ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई थी ग्राम का शासन प्रबंध स्थानीय सामंतो द्वारा किया जाता था।

साम्राज्य की सुरक्षा के लिए राजा द्वारा स्थायी  सेना का गठन किया गया था।  साथ ही प्रत्येक प्रांत में अस्थायी सेना होती थी जो राज्य में विद्रोहों आदि का दमन करती थी। मिस्र की स्थाई सेना में घोड़ों और रथों का महत्वपूर्ण स्थान था।

मिस्र का न्याय विधान उच्च कोटि का था मुकदमों की सुनवाई लिखित रूप में की जाती थी। न्याय का सर्वोच्च अधिकारी सम्राट (फराओ) होता था। दंड विधान कठोर था।  साधारण अपराधी को आर्थिक दंड एवं जघन्य अपराध करने वालों को अपराध के आधार पर कठोर दंड दिया जाता था झूठी गवाही देने वाले को फांसी की सजा दी जाती थी।

मिस्र में राज्य की आय का मुख्य साधन भू राजस्व था जो किसानों से वसूल किया जाता था।  सिंचाई अर्थदंड एवं चुंगी से भी राज्य को भारी आय होती थी। फराओ को अधीनस्थ शासकों व सामंतो द्वारा दिए जाने वाले उपहारों के रूप में भी भारी आय प्राप्त होने के प्रमाण मिले हैं।

मिस्र की सभ्यता का सामाजिक जीवन :-

प्राचीन मिस्र के सामाजिक जीवन को निम्नवत समझा जा सकता है―

समाज का विभाजन-

प्राचीनकालीन मिस्र का समाज मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभक्त था।

प्रथम उच्च वर्ग था, जिसमें सम्राट, सामन्त, पुरोहित, जमींदार, राज्य के उच्च पदाधिकारी आदि आते थे। इनका जीवन वैभव एवं ऐश्वर्य से परिपूर्ण या। समाज में इन्हें विशेष सम्मान प्राप्त था। ये राजकीय करों से मुक्त होते थे तथा इन्हें राज्य द्वारा विशेषाधिकार भी प्रदान किये गये थे। ये  राजमहलों अथवा विशाल भवनों में शान-शौकत के साथ रहते थे। इनका जीवन स्तर उच्चकोटि का था।

दूसरा मध्य वर्ग था, जिसमें व्यापारी, बुद्धिजीवी, शिल्पी एवं लिपिक आदि आते थे। मिस्री समाज में इनके जीवन का स्तर भी अच्छा था तथा इन्हें भी समाज में आदर एवं सम्मान प्राप्त था।

तीसरा निम्न वर्ग था, जिसमें किसान, मजदूर, दास तथा अन्य निर्धन लोग शामिल थे इस वर्ग को दशा चिन्तनीय थी तथा इनका जीवन स्तर निम्नकोटि का था। किसानों को भू-स्वामित् प्राप्त नहीं था। सामन्तों एवं जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता था मजदूरों और दासों की दशा अत्यन्त शोचनीय थी। इस वर्ग के लोगों से जबरन बेगार कराया जाता था। मिस के विशाल पिरामिडों का निर्माण दासों द्वारा ही किया गया था।

रहन-सहन एवं खान-पान-

मिस्रवासियों का रहन-सहन अच्छा था। उच्च वर्ग के लोग आलीशान महलों में तथा निम्न वर्ग के लोग कच्चे मकानों में रहते थे। स्त्रियों और पुरुष दोनों ही आभूषणप्रिय थे। अंगूठी, जंजीर, कर्णफूल, कंगन, गलहार आदि इनके प्रमुख आभूषण थे। मिस्र की स्त्रियाँ शरृंगारप्रेमी थीं। वे विभिन्न प्रकार के सौंन्दर्य-प्रसाधनों का प्रयोग करती थीं।

मिस्रवासी शाकाहारी और मांसाहारी दोनों थे। गेहूँ, जौ, चावल, फल, दूध और दही शाकाहार करने वालों का मुख्य भोजन था, जबकि मांसाहारी लोग सूअर व मछली आदि के मांस का प्रयोग करते थे। मिस्रवासियों के मदिरापान करने के भी संकेत मिले हैं।

मनोरंजन-

पशुओं की लड़ाई, नृत्य, संगीत, शारीरिक कलाबाजी, कुश्ती, पक्षियों की लड़ाई एवं मछली मारना आदि इनके मनोरंजन के मुख्य साधन थे।

महिलाओं की स्थिति-

मिस्र में नारियों की स्थिति पर्याप्त अच्छी थी। इन्हें समाज में आदर व सम्मान प्राप्त था, साथ ही इन्हें राजनीतिक अधिकार भी प्राप्त थे। परिवार की सम्पूर्ण धन-सम्पत्ति पर स्त्री का हो अधिकार होता था। मिस्र का समाज मातृसत्तात्मक था। फलतः स्त्रियां पुरुषों पर शासन करती थीं। सामान्यतया मिस्र में एकविवाह की प्रथा थी, किन्तु राजा व धनी वर्ग के लोग एक से अधिक विवाह भी करते थे।

स्त्रियों की स्थिति स्पष्ट करते हुए सेवाइन कहते हैं कि “मिस्र में नारी का जो सम्मान था, उसकी समानता प्राचीन सभ्यताओं में कोई दूसरी सभ्यता नहीं कर सकती थी। ”

इख्नातन’ की महारानी, ‘नफरतीती’, ‘हेतशेप्सुत’ तथा ‘क्लियोपेट्रा यहाँ की प्रसिद्ध महिलाएँ थीं।।

मिस्र की सभ्यता का आर्थिक जीवन:-

मिस्री आर्थिक जीवन में निम्न तत्व आते हैं-

कृषि एवं पशुपालन-

नील नदी की तलहटी में बसे होने के कारण मिस्र एक उपजाऊ एवं उर्वर प्रदेश या। इसलिए यहाँ के निवासियों के जीवन का मुख्य आधार कृषि था। मिस्र की बहुसंख्यक (लगभग 80%) जनता खेती करके अपना भरण पोषण करती थी।

गेहूँ, जौ, कपास, पटसन, खजूर, अंगूर आदि मिस्रवासियों की प्रमुख फसलें थीं कृषि कार्य के लिए कृषकों को राजकीय सुविधाएँ दी जाती थीं। सिंचाई की सुविधा के लिए शासन की ओर से पक्की नहरों का निर्माण कराया गया था । राजकीय कर्मचारी कृषकों से लगान वसूलते थे। लगान अदा न करनेवाले कृषक को कठोर दण्ड दिया जाता था नील नदी पर बाँध बनाये गये थे तथा नहरें निकाली गयी थी।

मिस्र के निवासी कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी करते थे। गाय, बैल, भेड़, बन्दर और गये उनके प्रमुख पालतू पशु थे। गधे और बैल का प्रयोग वे कृषि कार्य में भी करते थे। ऐसा प्रतीत होता है कि शायद मिस्र के लोग ऊँट से परिचित नहीं थे।

उद्योग-धन्धे एवं व्यापार-

मिस्रवासियों ने उद्योग के क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति कर ली थी वे पत्थर काटने व तराशने, मिट्टी व धातु के बर्तन व आभूषण, काँसे व तांबे के औजार, लकड़ी के फर्नीचर व नाव तथा जहाज बनाने में कुशल थे। मिस्र के लोग पेपरिस नामक पौध से कागज बनाने की कला भी सीख चुके थे।
मिस्र में व्यापार एवं वाणिज्य उन्नत अवस्था में था। मिस्र के व्यापारी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करते थे । आन्तरिक व्यापार मुख्य रूप से नील नदी द्वारा होता था। भारत, अरब, सूडान आदि के साथ मिस्र के व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित थे। आयात और निर्यात मिस्र की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख आधार था। 1900 ई० पू० के लगभग रूम सागर तथा काला सागर को मिलाती हुई एक नहर का निर्माण किया गया था। इस नहर द्वारा व्यापार किया जाता था।

मिस्र की सभ्यता का धर्म:-

प्राचीन मिस्र के लोग बहुदेववादी थे। वे अनेक देवी देवताओं की उपासना करते थे। सम्पूर्ण मिस्र में प्रत्येक नगर का एक प्रधान देवता होता था। मिस्र में इस प्रकार के देवी-देवताओं की संख्या 2200 के लगभग थी।
 सूर्य मिस्र के सबसे महान् और महत्त्वपूर्ण देवता थे, जिन्हें ‘र’, ‘रा’, ‘होरस’, ‘एटन’ आदि नामों से पुकारा जाता था।
मिस्रवासियों का दूसरा प्रमुख देव ओसरिस था। इसकी पूजा नील नदी के देवता के रूप में की जाती थी। इसके अतिरिक्त ‘आइसिस’ (पृथ्वी की देवी), सिन (चन्द्रमा) नूत (आकाश का देवता) आदि की भी आराधना मिल में की जाती थी।
मिस्र में लोग देवी देवताओं के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षियों, वनस्पतियों और सम्राटों (फराओ) को भी पूजा अर्चना कारते थे। मिस्र के लोग लोकोत्तर जीवन एवं पुनर्जन्म में विश्वास करते थे। वे अपने व्यक्तियों के मृत शरीर को सुरक्षित रखने के लिए पिरामिडों का निर्माण किया करते थे।
 वे मृत शरीर को दफनाते समय दैनिक जीवन में उपयोग की वस्तुएँ व सुख-सुविधा की वस्तुएँ पिरामिषों में रखते थे । मिस्रवासी मृतक के शव को एक विशेष प्रकार का रासायनिक लेप लगाकर एक सन्दूक में बन्द करके सुरक्षित रख देते थे इसे मिस्र में ‘ममी’ कहा जाता था मिस्रवासियों ने अपने देवी देवताओं के लिए विशाल मन्दिर बनाये, जिनमें कार्नाक और अबू सिम्बल का मन्दिर विश्व प्रसिद्ध है।
मिस्र के प्रसिद्ध शासक इख्नातन ने बहुदेववादी पूजा-पद्धति का विरोध किया और उसने सम्पूर्ण मिस्र में एकेश्वरवादी उपासना का सिद्धान्त प्रचलित किया। एटन (सूर्य) को उसने सम्पूर्ण संसार का निर्माता तथा स्वामी बताया। कालान्तर में उसकी मृत्यु के साथ एकेश्वरवाद समाप्त हो गया।

प्राचीन मिस्र में साहित्य, विज्ञान और कला:-

स्थापत्य कला-

स्थापत्य कला के क्षेत्र में मिस्र के शिल्पकारों का कौशल उच्चकोटि का था। मिस्र के शासकों ने भव्य मन्दिर और विशालकाय पिरामिडों का निर्माण कराया। मिस्र के पिरामिडों की स्थापत्य कला आज के शिल्पियों के लिए आश्चर्य का विषय है।
मिस्रवासियों ने 70 पिरामिडों का निर्माण किया। इनमें गीजा का पिरामिड तो संसार-भर में प्रसिद्ध है। इस पिरामिड का निर्माण लगभग 2650 ई० में सम्राट सियोफ (खूफू) द्वारा कराया गया था। यह पिरामिड 13 एकड़ जमीन पर फैला हुआ है। इसमें ढाई टन वजन के लगभग 23 लाख पत्थर प्रयुक्त किये गये हैं। इसकी लम्बाई 755 फीट और ऊँचाई 80 फीट है। इस पिरामिड को बनाने में लगभग 20 वर्षों का समय लगा जिसमें लगभग 1 लाख मजदूर काम करते थे।
मिस्र के पिरामिडों को प्राचीन संसार की सात आश्चर्यजनक चीजों में रखना सर्वथा उचित है। वास्तव में पिरामिड मिस्र के राजाओं के मकबरे थे।
मिस्र वासियों ने अनेक भव्य एवं विशालकाय मन्दिरों का निर्माण किया, जिनमें कार्नाक, अबूसिम्बल एवं लक्सोर के मन्दिर तो अपनी कलात्मकता एवं भव्यता के लिए संसार- भर में प्रसिद्ध हैं। कार्नाक का मन्दिर 79 फीट ऊँचाईवाले 136 खम्भों पर निर्मित है।
इसके शिखर पर एक साथ 100 व्यक्ति आसानी से खड़े हो सकते हैं। इस मन्दिर की दीवारों पर की गयी चित्रकारी एवं स्तम्भों की कलात्मकता मिस्र की स्थापत्य कला का ज्वलन्त उदाहरण है।

मूर्तिकला-

प्राचीन मिस्र की मूर्तिकला उत्कृष्ट कोटि की थी। मिस्री शिल्पकारों द्वारा बनायी गयी फराओ की 80 से 90 फीट ऊँची पत्थर की मूर्ति को देखकर लोग आश्चर्यचकित रह जाते हैं। इसी तरह गीजा के पिरामिड के निकट स्फिक्स (Sphinx) की मूर्ति मिस्र की मूर्तिकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
मिस्र निवासियों द्वारा बनायी गयी स्फिक्स की मूर्ति का सिर मनुष्य का व शेष शरीर शेर का है। पत्थर को काटकर बनायी गयी
यह मूर्ति लगभग 13 फीट 8 इंच की है। गीजा के पिरामिड के निकट स्थित एक विशालकाय मूर्ति है, जिसकी लम्बाई 160 फीट तथा ऊँचाई 70 फीट है। इसके अतिरिक्त राजा तथा रानियों की धातु-मूर्तियाँ भी बनायी गयीं। धातु मूर्तियों में पेपी प्रथम की ताम्र निर्मित मूर्ति संसार- भर में प्रसिद्ध है।

चित्रकला-

मिस्र के चित्रकार भी कुशलहस्त थे। मिस्र के चित्रकारों ने मन्दिरों की दीवारों, महलों के कक्षों एवं पिरामिडों के अन्दर बड़े ही जीवन्त और आकर्षक चित्र बनाये। मिस्र के चित्रकार मुख्य रूप से राजाओं के दरबार, शिकार के दृश्य, नाव, पशु-पक्षी तथा प्रकृति के चित्र उकेरने में रुचि रखते थे।

शिक्षा एवं साहित्य-

विश्व में सर्वप्रथम शिक्षा का विकास मिस्र में ही हुआ। यहाँ मन्दिरों में पुरोहितों द्वारा शिक्षा दी जाती थी। सरकार शिक्षा के लिए आर्थिक सहागता उपलब्ध कराती थी। गणित, इतिहास, खगोलशास्त्र, ज्योतिष, धर्म तथा राजनीति की शिक्षा यहाँ दी जाती थी।
यहाँ उत्खनन में एक भोजपत्र मिला है जिस पर लिखा है, “खूब मन लगाकर पढ़ो और अपनी मां की तरह शिक्षा से प्यार करो।”
 यहाँ की शिक्षाओं का संग्रह आत्माओं की पुस्तक’ (Book ol Deads) के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इनमें धार्मिक विषय, प्रेमगीत, कविताएँ, स्मृतियाँ, बंशावलियोँ तथा नीति के उपदेश प्राप्त हुए हैं।
 हेरोडोटस के अनुसार, “संसार के प्राचीन साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में कोई ऐसा देश नहीं, जिसकी तुलना मिस्त्र से की जा सके।”

लेखन-कला―

लेखन-कला के सम्बन्ध में मिस्रवासियों का प्रथम स्थान है। विद्वानों का अनुमान है कि लगभग 3000 ई०पू० तक मिस्रवासियों ने लेखन-कला में कुशलता प्राप्त कर ली थी। आरम्भ में मिस्रवासियों की लिपि चित्रात्मक थी। कालांतर में मिस्रवासी चित्रों के स्थान पर चिन्हों अथवा शब्द संकेतों का प्रयोग करने लगे।
इस प्रकार धीरे-धीरे वर्णमाला का विकास हुआ। मिस्र की वर्णमाला में लगभग 2800 संकेत चिह्न थे, किन्तु साम्राज्यवादी युग तक इन चिह्नों की संख्या घटकर 500 हो गयी थी। मिस्र के प्राचीन स्मारकों पर इस लिपि के चिह्न आज भी अंकित मिलते हैं।
मिस्र की इस लिपि को हेरोग्लिफ (Hieruglyph) कहा जाता है। सम्भवतः इस लिपि को संसार की प्रथम लिपि होने का गौरव प्राप्त है।

 प्राचीन मिस्र में विज्ञान-

मिस्र के पिरामिड मिस्रवासियों के रेखागणित के ज्ञान के ज्वलन्त उदाहरण हैं । गणित के क्षेत्र में इन्होंने अंकों के लिए विशिष्ट चिन्ह निर्धारित किये। मिस्रवासियों ने गुणा और भाग की क्रिया खोजी तथा एक, सौ, हजार, लाख और दस लाख के लिए विशेष चिहों का प्रयोग किया।
चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भी उन्होंने अभूतपूर्व उन्नति की। इनकी पुस्तकों में कई प्रकार की बीमारियों एवं उनके निदान का उल्लेख प्राप्त होता है। मिस्रवासियों ने ऐसा रासायनिक लेप तैयार कर लिया था जिसे लाश पर लगाकर उसे हजारों वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सकता था। मिस्त्र की ममी इसका पुष्ट प्रमाण है।
मिस्रवासियों ने ज्योतिष विद्या का विशिष्ट ज्ञान अर्जित कर लिया था। उन्होंने सूर्य की गति के आधार पर संसार का पहला पंचांग बनाया मिस्र के ज्योतिषी सूर्य-चन्द्रमा के साथ अन्य ग्रहों से भी परिचित थे। वे भूकम्प और बाढ़ की भविष्यवाणी भी करने लगे थे उन्होंने नक्षत्रों के आधार पर 365 दिन का वर्ष बना लिया था। इनके अनुसार एक वर्ष में 12 माह और एक माह में 30 दिन होते थे तथा शेष 5 दिन भी वर्ष का ही भाग माना जाता था ।

प्राचीन मिस्र की सभ्यता की देन-

मिस्र की सभ्यता ने मानव जाति को अभूतपूर्व ज्ञान एवं आविष्कारों से विभूषित किया। मातृसत्तात्मक परिवार, वर्णमाला एवं कागज व स्याही का ज्ञान, सिंचाई के तरीके, बाँधों व नहरों का निर्माण, कर वसूली, पंचांग का निर्माण, पिरामिडों का निर्माण, भव्य एवं विशालकाय मन्दिर, अंक चिह्नों का ज्ञान, गुणा-भाग की क्रिया का ज्ञान तथा रासायनिक लेप लगाकर शव को ममी में रखकर शताब्दियों तक सुरक्षित रखने का ज्ञान मिस्रवासियों की महत्त्वपूर्ण देन रही है।
 प्रो० हर्न शॉ ने ठीक ही लिखा है-“ मिस्र ने वह पक्की नींव डाली, जिस पर पाश्चात्य जगत् की सारी संस्कृति खड़ी है। उसने अनुसन्धान किये और आविष्कारों को पूर्णता दी, जो मानव जाति की परम्पराओं का बहुमूल्य अंग है।”

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि-

(1) साम्राज्यवादी शासन एवं संगठित सरकार की नींव मिस्र ने डाली।
(2) मिस्र के विशाल पिरामिड तथा भव्य मन्दिर भवन निर्माण कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
(3). विशालकाय ‘स्फिक्स’ की मूर्ति मूर्तिकला का अनूठा नमूना है।
(4) मिस्र ने सर्वप्रथम वर्णमाला तैयार की। कागज, स्याही और कलम का आविष्कार किया।
 (5) यहाँ की धूप घड़ी और सौर पंचांग अपने- आप में अनूठा है।
(6) दशमलव-प्रणाली की खोज मिस्र की सभ्यता ने किया।
(7) ‘ममी’ का निर्माण रसायन विज्ञान की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।

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निष्कर्ष:-

 इस प्रकार हम देखते हैं कि मिश्र की सभ्यता और प्राची ने विश्व की अनेक सभ्यताओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।  सभ्यता ने जिस प्रकार पिरामिड का निर्माण के लिए तथा ममी के रूप में शव का रखरखाव करने की विधि परिवर्ती मानव को दी यह एक सभ्यता की विशेष उपलब्धि है। जिसकी बराबरी करना अन्य सभ्यताओं के लिए लगभग नामुमकिन साबित हुआ।
धन्यवाद🙏 
आकाश प्रजापति
(कृष्णा) 
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र:  प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय
 
 

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