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Sumeria ki sabhyata : आज हम आपको विश्व की प्राचीन सभ्यता की catagory के अंतर्गत सुमेरिया की सभ्यता की व्याख्या करूँगा जो कि आपको जानना बहुत महत्वपूर्ण है। इसको पढ़कर आप इस सभ्यता की तुलना अपने भारत देश की प्राचीन सभ्यता सिन्धु घाटी की सभ्यता से खुद ब खुद कर पायेंगे।
मेसोपोटामिया मूल रूप से दो शब्दों से मिलकर बना है-मेसो + पोटामिया। मेसो का अर्थ मध्य ( बीच) और पोटामिया का अर्थ नदी है; अर्थात् दो नदियों के बीच के क्षेत्र को मेसोपोटामिया कहा जाता था।
पश्चिमी एशिया में फारस की खाड़ी के उत्तर में स्थित वर्तमान इराक को प्राचीन समय में मेसोपोटामिया कहा जाता था। मेसोपोटामिया की सभ्यता दजला और फरात दो नदियों के मध्य क्षेत्र में जन्मी, पली और विकसित हुई। इन नदियों के मुहाने पर सुमेरिया, बीच में बेबीलोन तथा उत्तर में असीरियन सभ्यता का विकास हुआ। इन तीनों सभ्यताओं को सम्मिलित रूप से मेसोपोटामिया की सभ्यता कहा जाता है।
सुमेरिया की सभ्यता (Sumerian civilization in hindi):-
18वीं शताब्दी तक संसार इस महान् मानव सभ्यता के ज्ञान से कोसों दूर था। 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में इंग्लैण्ड व फ्रांस के पुराविदों ने इस सभ्यता को खोज निकालने में सफलता प्राप्त की।
1850 ई० में अंग्रेज पुराविद् ‘रालिन्सन‘ ने बिहिस्तून के पास एक ऊँचे टीले पर ईरानी शासक डेरियस द्वारा उत्कीर्ण कराया गया एक शिलालेख खोज निकाला। इस शिलालेख पर फारसी और बेबीलोनियन भाषा का मिश्रण अंकित था। अथक प्रयास करके रालिन्सन ने इसे पढ़ने में सफलता अर्जित की और परिणामस्वरूप मेसोपोटामिया की सभ्यता का आवरण खुल गया।
काले पत्थर से निर्मित एक दूसरा शिलालेख सन् 1901 में सूसा से प्राप्त हुआ। इस शिलापट्ट पर बेबीलोनिया की भाषा में एक कानूनी संहिता लिपिबद्ध थी। 19वीं सदी के आरम्भ में ही सर लियोनार्ड वूली (Sir Leonard Wouly) ने ईरान के अति प्राचीन नगर उर (Ur) के उत्खनन द्वारा कतिपय महत्त्वपूर्ण अवशेष प्राप्त किये। इस नगर की खुदाई में मिट्टी की तख्तियाँ, इमारतों के खण्डहर, विभिन्न कलात्मक वस्तुएँ तथा शासकों की समाधियाँ आदि प्राप्त हुई। उत्खनन में प्राप्त विभिन्न वस्तुओं व शिलालेखों को पढ़ने के फलस्वरूप मेसोपोटामिया की महान् मानव सभ्यता प्रकाश में आयी।
सभ्यता के मूल निवासी:- Sumeria ki sabhyata
सुमेरियन सभ्यता के जनक कौन थे? यह प्रश्न अद्यतन विवादग्रस्त है। इस सभ्यता के मूल निवासियों के सम्बन्ध में सुपुष्ट प्रमाणों का अभाव है। अत: विद्वानों में मतभिन्य बना हुआ है।
कुछ विद्वानों का मत है कि सुमेरिया के मूल निवासी मंगोल अथवा द्रविड़ रहे होंगे, तो कुछ विद्वानों का मत है कि सुमेरियन सभ्यता में आर्य और द्रविड़ दोनों सभ्यताओं के तत्त्वों का समावेश है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार भूमध्यसागरीय लोग सुमेरियन सभ्यता के जनक थे।
डॉ० कीथ का मत है कि सिन्धु और सुमेरियन दोनों सभ्यताओं का उद्गम स्थान फरात और सिन्धु नदियों के बीच का स्थान था, क्योंकि दोनों सभ्यताओं में पर्याप्त समानता प्रतीत होती है।
सुमेरियन सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ : Sumeria ki sabhyata
सुमेरियन सभ्यता प्राचीन विश्व की महानतम सभ्यताओं में से एक थी। खनन द्वारा प्राप्त पुरातात्विक सामग्री व विभिन्न शिलालेखों के आधार पर सुमेरियन सभ्यता का जो जीवन्त रूप व विशेषताएँ उभरकर सामने आयीं वे निम्न प्रकार हैं―
1. सामाजिक जीवन- प्राचीन सुमेरिया की सभ्यता
सुमेरिया का समाज मुख्यतया तीन वर्गों में विभक्त था-प्रथम उच्च वर्ग, दूसरा मध्य वर्ग व तीसरा निम्न वर्ग।
उच्च वर्ग में राजा (शासक), पुरोहित व राज्य के बड़े अधिकारी सम्मिलित थे। इन्हें समाज में सर्वाधिक सम्मान प्राप्त था। मध्य वर्ग में बड़े कृषक, व्यापारी आदि आते थे। निम्न वर्ग में दास, श्रमिक और छोटे किसान होते थे। सुमैरियन समाज में दास प्रथा का प्रचलन ।
समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। उन्हें अपनी सम्पत्ति रखने का अधिकार था। वे स्वतन्त्र व्यवसाय भी कर सकती थी। समाज में स्त्रियों का सम्मान होता था। सुमेरिया के समाज में प्राय: लोग एक ही विवाह करते थे, किन्तु कतिपय उच्चवर्गीय लोग बहुविवाह भी करते थे।
सुमेरियनों का खान-पान व रहन-सहन उन्च कोटि का था। वे ऊनी तथा सूती वस्त्रों का प्रयोग करते थे, पक्के मकानों में राव थे। स्वच्छता और पवित्रता उनके जीवन के अंग थे। कंगन, गले का हार, अंगूठी और कर्णफूल उनके प्रमुख आभूषण थे। गेहूँ, जौ, खजूर इनके प्रिय खाद्य पदार्थ थे। समाज में दहेज-प्रथा का प्रचलन था।
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2. राजनीतिक जीवन-
सुमेरियन सभ्यता की काल-अवधि निर्धारण के सुपुष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, फिर भी अधिकांश विद्वान् 4500 ई० पू० से कोकर 2550 ई० पू० के समय को ही इस सभ्यता की अवधि मानते हैं।
3500 ई० पू० तक सुमेरिया में केन्द्रीय शासन स्थापित हो गया था। उर’ (Ur), उरुक (Urus), किश (Kish), निप्पुर (Nippur), लगाश (Lagash), उम्मा (Umma) अदि इस सभ्यता के प्रमुख नगर थे। ‘उर’ के राजा उर एंगर (Ur Engar), लगश के शासक गुड़िया (Gudea), किश की रानी अजगचाऊ इस सभ्यता के लेकप्रिय शासक थे। इन राजाओं के शासनकाल में कला, साहित्य, व्यापार आदि के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। कालान्तर में 2600 ई० पू० के बाद सुमेरिया शासकों की शक्ति क्षीण होने लगी थी।
सुमेरिया की सभ्यता में शासन धर्म पर आधारित था। राजा को ईश्वर का प्रतीक माना जाता था। सुमेरियन शासकों की कमजोरी का लाभ उठाकर सेमेटिक जाति की घुमन्तू जीवन जीने वाली एक शाखा ने आक्रमण कर सम्पूर्ण सुमेरिया पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। सारगोन प्रथम इस वंश का शक्तिशाली शासक था। इसके काल में सुमेरियन साम्राज्य फारस की खाड़ी से लेकर भूमध्य सागर के मध्य तक फैल गया था। कालान्तर में दो सौ वर्षों के बाद इस वंश का पतन हो गया।
3. प्रशासन-
सुमेरिया प्राचीन काल में छोटे-छोटे नगर-राज्यों में विभक्त था। प्रत्येक राज्य का स्वतन्त्र शासक होता था, जिसे सम्भवतः फ्तेसी अथवा फ्तेस्ती कहा जाता था। खुदाई में प्राप्त भग्नावशेषों से पता चलता है कि राजा एक विशाल महल में रहता था और कई अधिकारियों, कर्मचारियों तथा पुरोहित की सहायता से राजकीय कार्यों व शासन-सम्बन्धी कार्यों का संचालन करता था।
ऐसा प्रतीत होता है कि प्रारम्भ में सुमेरिया में लोकतान्त्रिक शासन-प्रणाली स्थापित थी। प्रत्येक नगर-राज्य में समय-समय पर जनसभा होती थी और राज्य का प्रत्येक वयस्क नागरिक इसका सदस्य होता था। इस जनसभा के द्वारा ही शासन के कार्य संचालित होते थे, किन्तु 3000 ई० पू० के लगभग सुमेरिया में राजतन्त्रीय शासन-प्रणाली की स्थापना हुई।
राजा राज्य शासन का प्रमुख होता था। उसका आदेश अन्तिम होता था। सुमेरिया में कड़ाई को कानूनों का पालन कराया जाता था। यहाँ दो प्रकार के न्यायालयों की व्यवस्था थी। पहला धार्मिक न्यायालय, जिनमें पुरोहित निर्णय किया करता था। दूसरा राजकीय न्यायालय, जिसमें राजा प्रमुख न्यायाधीश होता था।
प्रशासनिक कठोरता के कारण समाज में पूर्णतया शान्ति स्थापित थी। मुकदमों की सुनवाई का रिकार्ड लिखित रूप में रखा जाता था। बहुत-से रिकार्ड मिट्टी की तख्तियों पर उत्खनन से प्राप्त हुए है। उर एंगर तथा डूँगी आदि शासकों ने कानूनी संहिता का निर्माण भी कराया था। परिवार, व्यापार तथा सामाजिक जीवन से सम्बन्धित कानून बनाये गये थे।
4. आर्थिक जीवन-
सुमेरियन सभ्यता के लोगों का आर्थिक पक्ष पर्याप्त मजबूत था। वाणिज्य व्यापार, उद्योग-धन्धे, कृषि, पशुपालन, आभूषण निर्माण, शिल्प आदि इस सभ्यता के लोगों की अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार थे।
कृषि एवं पशुपालन-
सुमेरिया के निवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि एवं पशुपालन था। दो नदियों के मध्य का क्षेत्र होने के कारण यहाँ की भूमि उर्वर एवं उपजाऊ थी। अधिक उपज के लिए उन्होंने नदियों पर बाँध व नहरों का निर्माण किया था। गेहूं, जौ, दालें तथा विभिन्न प्रकार को सब्जियाँ इनकी मुख्य फसलें थी।
पशुपालन भी उनका एक उद्यम था सुमेरिया के लोग गाय, बैल, भेड़, बकरी, गधा और कुत्ता आदि पशुओं को पालते थे।
वाणिज्य एवं व्यापारः-
सुमेरिया में वाणिज्य एवं व्यापार उन्नत अवस्था में था। सुमेरियन व्यापारी भारत, मिस्र व खाड़ी के देशों के साथ आयात निर्यात करते थे। ये लोग सूती वस्त्र, चमड़े के बने सामान, ऊनी कपड़े, फल व खाद्य सामग्री का निर्यात करते थे और इसके बदले में हाथीदाँत तथा चन्दन की लकड़ी आदि की आयात करते थे।
सुमेरिया में उर (Ur) नामक नगर व्यापार का प्रसिद्ध केन्द्र था। सुमेरिया के कारीगरों का हस्तकौशल बहुत अच्छा था। ये हाथीदाँत, सोना चाँदी, लकड़ी आदि से विभिन्न प्रकार की सुन्दर एवं कलात्मक वस्तुओं का निर्माण करने में कुशल थे। सर्वप्रथम सुमेरिया में ही बहीखाता लिखने एवं ऋण प्रदान करने की व्यवस्था का आरम्भ हुआ।
ऐसा प्रतीत होता है कि पहिये के आविष्कारक सुमेरियन ही थे, क्योंकि यहाँ खुदाई में प्राप्त रथों के अवशेष विश्व में सबसे अधिक प्राचीन माने जाते हैं।
5. धार्मिक जीवन-
प्रारम्भ में सुमेरियन निवासियों के एकेश्वरवादी होने का संकेत मिलता है किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि 3500 ई० पू० के बाद सुमेरियन बहुदेववाद में विश्वास करने लगे थे ।बहुदेववादी उपासना के फलस्वरूप प्रत्येक नगर में अलग-अलग देवताओं की उपासना होने लगी थी।
‘सिन’ (चन्द्रमा), शमश (सूर्य), अनु (आसमान का देवता), एनलिल (तूफान का देवता) और ईश्तर (रक्षक देवी) इनके प्रमुख आराध्य देव थे।
सुमेरिया के निवासी जिगुरत (देवालय) बनाकर इन देवताओं की स्थापना करते थे। निप्पुर का वायु देवता और लगाव का सूर्य देवता का मन्दिर प्रमुख थे।
सुमेरिया के लोग अन्धविश्वासी थे। वे जादू-टोना, भूत-प्रेत आदि में विश्वास करते थे। सुमेरियन लोकोत्तर जीवन में भी आस्था रखते थे, इसीलिए वे मृतकों को कब्रों में दफनाते समय उनके शवों के साथ दैनिक जीवन के प्रयोग में आनेवाली सामग्री भी रखते थे। ऐसा प्रतीत होता है कि सुमेरिया के लोग देवताओ को प्रसन्न करने के लिए युद्धबन्दियों की सामूहिक रूप से बलि भी चढ़ाया करते थे।
लेखन-कला और शिक्षा : सुमेरिया की सभ्यता
खुदाई में प्राप्त अवशेष सुमेरिया के निवासियों के लेखन-कला के ज्ञान का संकेत देते हैं । विद्वानों का अनुमान है कि सुमेरिया के लोगों ने लगभग 3000 ई० पू० में लिपि का आविष्कार कर लिया था। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रारम्भ में सुमेरियन लिपि चित्रात्मक थी। कई प्रकार के चित्र व आकृतियाँ बनाकर शब्द यनाये जाते थे। विद्वानों ने सुमेरिया की लिपि को कीलाकार लिपि की संज्ञा दी है। कालान्तर में सुमेरियन कोणाकार अक्षर का प्रयोग करने लगे, जिनकी संख्या 250 से 300 तक रही होगी।
‘उर’ नगर की खुदाई में मिट्टी की तीस हजार तख्तियाँ मिली हैं, जिस पर कीलाकार लिपि के चिह्न अंकित हैं। विद्वानों ने इसे एक विशाल पुस्तकालय कहा है। सुमेरियन नागरिक मिट्टी की कच्ची तख्तियों पर दायीं ओर से बायीं ओर लिखते थे। बाद में इन तखियों को सुखाकर पका लिया जाता था। सुमेरिया की सभ्यता में मन्दिरों का प्रयोग विद्यालय के रूप में होता था कानून एवं व्यापार की शिक्षा सुमेरियन शिक्षा के मुख्य विषय थे। सुमेरिया की खुदाई में एक ऐसा पुस्तकालय मिला है, जिसमें 30 हजार तख्तियों को क्रम में रखा गया था।
साहित्य-
खुदाई में प्राप्त शिलालेख, मिट्टी की तख्तियाँ आदि सुमेरियन साहित्य के विकसित होने के प्रमाण हैं। सुमेरिया के लोगों ने कहानियों, धार्मिक ग्रन्थों, गीत-काव्यों आदि की रचना कर ली थी।
वैज्ञानिक उन्नति-
सुमेरियन नागरिकों को गणित व बीजगणित का पर्याप्त ज्ञान था। दस (10) का अंक उनकी गणना का प्रथम आधार था। उन्होंने दस में छह का गुणा करके 60 के अंक को दूसरी इकाई के रूप में मान्यता दी। विद्वानों ने अनुमान लगाया है कि सबसे पहले सुमेरियन नागरिकों में 1 घण्टा को 60 मिनट में एवं 1 मिनट को 60 सेकेण्ड में विभक्त किया। सुमेरियन समाज में नाप-तौल को प्रणाली विकसित थी।
मीना अथवा मिन इनके नाप-तौल का मात्रक था। इसे इन्होंने 60 शैकल में बाँटा था सुमेरिया के निवासी रसायन विज्ञान और वनस्पति विज्ञान से भी परिचित में। इस सभ्यता के लोगों को भौगोलिक ज्ञान भी था। सुमेरिया के उत्खनन में 2707 ई.पू. का एक मानचित्र प्राप्त हुआ है, जिसमें पृथ्वी का आकार गोल दिखाया गया है और सात महासागरों का उल्लेख किया गया है।
सुमेरियन सभ्यता में 360 दिन का एक वर्ष और 1 वर्ष में 12 माह होते थे। सुमेरिया के नागरिकों को नक्षत्रों का भी ज्ञान था। वे मंगल, सूर्य, शनि से परिचित थे। उन्हें चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण का भी ज्ञान था। सुमेरियन विद्वानों ने ग्रहों की स्थिति का अध्ययन कर पंचाग व फलित ज्योतिष की रचना की थी। इसी आधार पर इस सभ्यता के ज्योतिषी भविष्यवाणी भी किया करते थे ।
सुमेरियन कला-
सुमेरिया की खुदाई में आभूषण, बर्तन, मूर्तियाँ, मुहर, गुम्बद, देवालय (जिगुरत), कई प्रकार के वाद्य उपकरण आदि प्राप्त हुए है। इससे सुमेरियन सभ्यता’ की विभिन्न कलाओं का ज्ञान होता है। प्राप्त अवशेषों से प्रमाणित होता है कि सुमेरियन कला उत्कृष्ट कोटि की थी । सुमेरिया के कलाकारों का कौशल देखने योग्य था। सुमेरिया के शिल्पी वास्तुकला में दक्ष थे।
उन्होंने भव्य प्रासाद, मेहराब, गुम्बद और स्तम्भ बनाये। सुमेरिया के शिल्पकारों द्वारा बनाये गये देवालय (जिगुरत) इस काल की स्थापत्य कला के अनुपम उदाहरण सुमेरिया के इन मन्दिरों (जिगुरत) की छतों को लकड़ी की टाइलों से सजाया जाता था तथा दीवारों पर नक्काशी की जाती थी। उस नगर में स्थित ‘नन्नार’ का मन्दिर सुमेरियन कला का अनुपम उदाहरण है सुमेरियन समाज में संगीत व नृत्य कला की भी पर्याप्त उन्नति हुई। ‘बीन’ इनका प्रमुख वाद्य था। सुमेरिया में मूर्तिकला के क्षेत्र में देवताओं व राजाओं की मूर्तियों का निर्माण हुआ किन्तु उनमें सजीवता व सुन्दरता का अभाव परिलक्षित होता है। कतिपय सुमेरियन चित्रकारों ने युद्धों के दृश्यों को भी उकेरने का प्रयास किया था।
सभ्यता की देन- सुमेरिया की सभ्यता
सुमेरियन सभ्यता मानव सभ्यता एवं संस्कृति का प्रथम सोपान है। इस सभ्यता ने अपनी परवर्ती सभ्यताओं को प्रभावित किया। सुमेरिया के लोगों ने कृषि, विज्ञान, ज्योतिष, लिपि आदि की आधारशिला रखी, जिस पर कालान्तर में मानव सभ्यता का विशाल भवन निर्मित हुआ ।
सुमेरियन सभ्यता का मूल्यांकन करते हुए विल डूरेण्ट ने लिखा है कि “सिंचाई की सर्वप्रथम व्यवस्था, ऋण प्रणाली, न्याय विधान, लेखन-कला, पुस्तकालय, विद्यालय, प्राचीन मन्दिर व मूर्तियाँ और मेहराब, स्तम्भ तथा गुम्बद सुमेरिया की अभूतपूर्व देन है।”
सभ्यता का पतन-
इस सभ्यता का पतन ‘अवकादियन‘ जाति के आक्रमण के कारण हुआ। यह एक खानाबदोश जाति थी। इसका पहला राजा सारगन प्रथम था।
धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय