Ashoka the great in hindi | अशोक महान की जीवनी | Biography of Ashoka the great in hindi | Ashoka | ashoka empire

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अशोक महान (Ashoka the great) को आज कौन नहीं जानता है किंतु अशोक के विषय में अधिकांश लोग ज्यादा कुछ नहीं जानते हैं ? अतः आज के इस लेख में अशोक के सम्पूर्ण जीवनवृत्त का वर्णन किया गया है। इसे आप पूरा पढ़कर अशोक के विषय में रोचक जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं। 

अशोक महान का जीवन परिचय ( Biography of Ashoka the Great in hindi ) :

अशोक (Ashoka) सिर्फ मौर्य वंश का ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतीय इतिहास का महानतम शासक था। यदि हम अशोक को विश्व का महान शासक कहें तो यह अतिश्योक्ति न होगी। 

बौद्ध ग्रंथों , अशोक व अन्य शासकों के अभिलेखों/शिलालेखों तथा अनेक विदेशी लेखकों के विवरणों से हमें अशोक महान (Ashoka the Great) के सम्पूर्ण जीवनचरित्र तथा उसके जीवन मे घटित समस्त घटनाओं की जानकारियां मिलती हैं। 

Ashoka history : अशोक का इतिहास

Ashoka image

सम्राट अशोक के विषय मे संक्षिप्त जानकारी:-


सम्राट अशोक का इतिहास ( History of Ashoka the great in hindi ) : 

अशोक का पूरा नाम : देवानांप्रिय अशोक मौर्य (देवताओं का प्रिय अशोक मौर्य)

उपाधि : सम्राट , राजा , देवानांप्रिय , प्रियदर्शी 

संबंधित वंश : मौर्य वंश (Maurya dynasty)

पिता : बिन्दुसार अमित्रघात 

माता : सुभद्रांगी (धम्मा/धर्मा) 

जन्म : 304 ई०पू० 

जन्मस्थान : पाटलिपुत्र (वर्तमान-पटना, बिहार)

शासनकाल : 273 ई०पू०/269 B.C. से 232 ई०पू० (हालांकि इस तिथि में मतभेद है किंतु अब तक सबसे प्रमाणित तिथि यही है)

प्रसिद्ध युद्ध : कलिंग का युद्ध (262-60 BC)

पत्नी : देवी , कारुवाकी , पद्मावती , असंधिमित्रा , तिष्यरक्षिता

संतान (पुत्र/पुत्री) : महेन्द्र , संघमित्रा , तीवल , कुणाल , जलौक , चारुमती (अब तक ज्ञात में प्रमुख)

धर्म : प्रारम्भ में ब्राम्हण धर्मावलंबी था किंतु बाद में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया

साम्राज्य विस्तार : उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बांग्लादेश से पश्चिम में अफ़गानिस्तान तक पहुँच गया था या पश्चिमोत्तर में हिंदुकुश तक।

मृत्यु : 232 ई०पू० (पाटलिपुत्र, पटना)

समाधि स्थल : पाटलिपुत्र

अशोक का उत्तराधिकारी : दशरथ मौर्य (अशोक का पौत्र)


Ashoka History ( in hindi ) 

सम्राट अशोक का प्रारम्भिक जीवन Early life of king Ashoka : 

सम्राट अशोक मौर्य (King Ashoka maurya) वंश का क्रम से तीसरे शासक था। वह चन्द्रगुप्त मौर्य का पौत्र तथा बिन्दुसार का पुत्र था। उसके अभिलेखों से उसके पूरे नाम की व्याख्या ‘देवानांप्रिय अशोक मौर्य’ के रूप में मिलती है।  उसका जन्म 304 ई०पू० में तत्कालीन राजधानी पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना , बिहार) में हुआ था। 

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार अशोक के पिता अर्थात बिंदुसार की 16 पत्नियां और 101 पुत्र थे। इन पत्नियों में अशोक की माता का नाम उत्तर भारत में सुभद्रांगी माना जाता है वहीं दक्षिण भारत में अशोक की माता को धर्मा कह कर पुकारा जाता है। 

महान राजवंश से संबंधित होने के कारण इनका प्रारम्भिक जीवन राजसी वैभव और सुख समृद्धि से बीतना स्वाभाविक था। बिंदुसार ने अपने सभी बेटों के लिए अच्छी शिक्षा की व्यवस्था की थी किन्तु अशोक सबसे कुशाग्र बुद्धि  का था अतः उसने श्रेष्ठता हासिल की। वह बचपन में बहुत ही उग्र और उद्दंड हुआ करता था। अशोक सैन्य ज्ञान में भी प्रवीण थे। 

अशोक की उपाधियां | अशोक के अन्य नाम Titles of Ashoka the great :- 

अशोक के अभिलेखों में सर्वत्र उसे ‘देवानांपिय’ , ‘देवानांपियदसि’ तथा ‘राजा’ आदि की उपाधियों से संबोधित किया गया है। 

मास्की तथा गुर्जरा तथा नेत्तूर लेख में उसका नाम ‘अशोक’ मिलता है। पुराणों में उसे ‘अशोकवर्धन’ कहा गया है। 

अन्य स्रोतों में ‘प्रियदर्शी’ उसके आधिकारिक नाम के रूप में  वर्णित है वहीं जूनागढ़ लेख में उसे अशोक मौर्य कहा गया है। 

Ashoka the great – राजा बनने से पूर्व प्रशासनिक कार्यभार : 

राजकुमार होने के कारण उसमें प्रशासनिक गुण भरे हुए थे। अतः बिन्दुसार ने अपने शासनकाल में ही उसे अवन्ति राष्ट्र (उज्जयिनी) का प्रशासक/राज्यपाल/वायसराय/गवर्नर नियुक्त किया था। वहां उसने बहुत ही सुचारू रूप से शासन किया। 

दिव्यावदान के अनुसार बिन्दुसार के शासन में एक बार तक्षशिला में विद्रोह हुआ । इस विद्रोह को दबाने में वहां का गवर्नर सुसीम अयोग्य साबित हुआ इसलिए अशोक को वहां भेजा गया। अशोक ने उस विद्रोह को सफलता पूर्वक दमन किया। 

चूंकि अशोक अपने सभी भाईयों में सबसे कुरूप था तथा सुसीम सबसे सुंदर व श्रेष्ठ था । इसलिए वह इस प्रकार से वह अपनी योग्यता को साबित कर बिंदुसार का प्रिय बन गया था। 

अशोक का विवाह किससे हुआ था ? – अशोक की पत्नी का नाम :

सिंहली परंपराओं से पता चलता है कि उज्जयिनी जाते समय अशोक विदिशा में रुका जहां उसने एक धनी व्यापारी के पुत्री ‘देवी’ या ‘महादेवी’ के साथ विवाह कर लिया जिससे महेंद्र और संघमित्रा पैदा हुए। यही उसकी पहली पत्नी थी। 

दिव्यावदान में अशोक की एक पत्नी का नाम ‘तिष्यरक्षिता‘ मिलता है। साथ ही अशोक के लेखों से केवल उसकी पत्नी ‘करूवाकि‘ का नाम ही मिलता है जो तीवर की माता थी। 

इनके अतिरिक्त महावंश से अशोक की एक अन्य पत्नी ‘असंधिमित्रा‘ का नाम मिलता है। यह उसकी अग्रमहिषी थी। दिव्यावदान में ही अशोक की एक अन्य पत्नी ‘पद्मावती‘ का उल्लेख मिलता है जो ‘धर्मविवर्धन/कुणाल’ की माता थी। 

इस प्रकार कुछ महत्वपूर्ण स्रोतों से अशोक की 5 पत्नियों के नाम अब तक ज्ञात हैं। 

क्या अशोक क्रूर और निर्दयी था ? King Ashoka Biography in hindi

बौद्ध ग्रंथ अशोक के बौद्ध होने से पूर्व अशोक को हिंसात्मक , रक्तपिपासु , निर्दयी , क्रूर व अत्याचारी आदि बताते हैं तथा उसे ‘चण्ड अशोक / चण्डाशोक’ कहते हैं। 

(किन्तु बौद्ध ग्रंथों के इन उल्लेखों को अक्षरशः सत्य नहीं माना जा सकता।) क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अशोक ने राज्यप्राप्ति के लिए अपने 99 भाईयों की हत्या कर दी थी।  

दूसरी बात की अशोक ने कलिंग युद्ध में इतने लोगों का निर्मम नरसंहार किया था इस कारण कुछ विद्वान इसे क्रूर और निर्दयी मानते हैं। फाह्यान भी उसकी क्रूरता का वर्णन करता है। 

जो भी हो परंतु इतना अवश्य निश्चित है कि बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक ने पूरी तरह से हिंसा को छोड़कर अहिंसा का समर्थक हो गया था तथा लगभग समस्त अच्छे मानवीय गुण (दया , दान , संयम , कृतज्ञता , विचारों की पवित्रता आदि) उसमें आ गए थे। 

क्या अशोक अपने 99 भाईयों की हत्या करके शासक बना था ? (उत्तराधिकार के लिए संघर्ष) : 

बौद्ध ग्रंथों से ऐसा पता चलता है कि बिंदुसार की बीमारी का समाचार सुनकर अशोक पाटलिपुत्र आया किन्तु तब तक उसके पिता की मृत्यु हो गयी थी। अतः उसने अपने 99 भाईयों की हत्या करके अगला सम्राट बन बैठा। क्योंकि अशोक व उसके भाईयों में परस्पर बैर भाव व प्रतिस्पर्धा रहती थी।  किन्तु बौद्ध ग्रंथों की ये बातें सन्देहयुक्त हैं जिसका अनेक विद्वानों ने कई आधारों पर खण्डन किया है। 

किन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है की बिंदुसार की मृत्यु (273 ई०पू०) से अशोक के राज्याभिषेक (269 ई०पू०) में 4 वर्षों का विलंब इस बात का प्रमाण है कि अशोक को सम्राट बनने के लिए संघर्षों के सामना करना पड़ा था जिसमें उसका विरोधी उसका सबसे बड़ा भाई सुसीम था। 

अशोक का शासन काल : 

अशोक आंतरिक संघर्ष में मंत्री राधागुप्त की सहायता से सफलता पाकर 269 ई०पू० में पाटलिपुत्र या मगध की गद्दी पर मौर्य वंश के तीसरे शासक के रूप में बैठा और 37 वर्ष तक (232 ई०पू०) शासन किया। 

 उसके शासन का प्रारंभिक काल एक सामान्य चक्रवर्ती राजा की भांति बीते।

कलिंग का युद्ध :- Kalinga war 

अशोक अपने 13वें शिलालेख में अपने शासनकाल के 8वर्ष बाद 9वें वर्ष कलिंग विजय का उल्लेख करता है। इसके कई व्यापारिक व सामरिक कारण माने जाते हैं। बता दें महानदी और गोदावरी नदी के बीच का क्षेत्र कलिंग नाम से विख्यात था इसकी राजधानी तोसली थी। 

प्लिनी के अनुसार अशोक की सेना में 60,000 पैदल सैनिक , 1000 घुड़सवार और 7000 हाथी थे। उसने इतनी विशाल सेना के साथ कलिंग पर आक्रमण किया।

अशोक के शिलालेख से स्पष्ट होता है कि यह युद्ध बड़ा भयंकर था तथा इसमें भीषण रक्तपात हुआ।  इसमें लाखों व्यक्ति मारे गए तथा घायल हुए और बंदी बनाए गए। 

अंततः अशोक ने कलिंग पर विजय प्राप्त की और उसे मगध साम्राज्य में मिला लिया। 

अशोक का साम्राज्य विस्तार : Ashoka empire | Ashoka empire map 

Ashoka empire map

स्रोतों से पता चलता है कि अशोक का साम्राज्य  उत्तर में हिंदू कुश उत्तरी पश्चिमी सीमा प्रांत अफगानिस्तान से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लेकर पश्चिम में काठियावाड़ तक था। 

 असम और सुदूर दक्षिण को छोड़कर समग्र भारत पर अशोक का अधिकार था। 

यह अब तक का सबसे बड़ा साम्राज्य था। जिसका श्रेय निश्चित रूप से चंद्रगुप्त मौर्य को दिया जा सकता है। 

अशोक का धर्म :- 

कलिंग की लड़ाई में हुई भीषण रक्तपात और नरसंहार का अशोक के ह्रदय पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उसका धर्म ही बदल गया । बता दे कल्हण के वर्णनानुसार प्रारंभ में अशोक ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था और उसके इष्ट देव शिव थे।  

किन्तु कालांतर में अशोक बौद्ध भिक्षुओं से प्रभावित होकर अन्ततः उपगुप्त से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। 

इसके बाद उसने बुद्ध को भगवत रूप समझा और भगवान बुद्ध से संबंधित सभी स्थानों की यात्रा की। उसने यह घोषणा की कि जो भी बुद्ध ने कहा वह सब सत्य है। अतः उसका संघ में और धर्म में अब पूर्ण विश्वास हो गया था।

उसने अपने ही शासन काल मे तीसरी बौद्ध संगीति का आयोजन राजधानी पाटलिपुत्र में कराया था। 

धर्म सहिष्णु शासक : 

अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया परंतु इसका अर्थ है यह नहीं है कि वह दूसरे धर्मों को उपेक्षा करता था। बल्कि उसने आजीवकों के लिए अनेक गुफाएं बनवाई और ब्राह्मणों को भी कई अवसरों पर खुले हाथों से दान दिए। 

 उसने अपनी धार्मिक नीति स्पष्ट शब्दों में प्रकट की , “सम्राट सब धर्मों के अनुयायी को समान दृष्टि से देखते हैं।” 

बौद्ध धर्म का प्रचार : 

बौद्ध धर्म में दीक्षित होने के बाद अशोक ने 1 वर्षों तक साधारण उपासक का जीवन व्यतीत किया और उसके बाद वह संघ की शरण में गया तथा अनेक माध्यमों से बौद्ध धर्म का प्रचार न केवल भारत वर्ष में किया बल्कि लगभग संपूर्ण एशिया के देशों में उसने बौद्ध धर्म को पहुंचाया। 

इसके लिए उसने कई धर्मयात्राएँ प्रारंभ की तथा कई राजकीय पदाधिकारियों व धर्म महामात्रों की नियुक्ति की। 

उसने धर्म के व्यापक प्रसार के लिए अपने पुत्र व पुत्री महेंद्र व संघमित्रा को श्री लंका भेजा था। 

निर्माता के रूप में अशोक : Ashoka the great 

अशोक ने अपने शासन के दौरान बड़ी संख्या में अभिलेख , शिलालेख , स्तंभ लेख , गुहलेख आदि लिखवाए तथा अनेक स्तंभ देश के अलग अलग क्षेत्रों में स्थापित कराए। उदाहरणतया प्रयाग अशोक स्तंभ लिया जा सकता है। 

बता दें अशोक स्तंभ के ही ऊपरी हिस्से को भारत के राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में स्वीकार किया गया है। 

स्तंभों के अलावा अशोक ने अपने ही शासनकाल में 84 स्तूपों के निर्माण कराए तथा अन्य कई निर्माण कार्यों को सम्पन्न किया। अशोक के स्तुपों में सारनाथ और सांची के स्तूप आज भी देखे जा सकते हैं। 

अशोक की मृत्यु कब हुई ? Ashoka the great death :

अशोक की मृत्यु के विषय में हमें अधिक कुछ ज्ञात न होने के कारण विद्वानों में विवाद का विषय बना हुआ है। किन्तु हमें पुराणों से इतना अवश्य ज्ञात है कि अशोक ने 37 वर्षों तक शासन किया था अतः इसके अनुसार अशोक की मृत्यु 232 ई०पू० मानी जाती है। 

तिब्बती स्रोत से हमे पता चलता है कि अशोक की मृत्यु तक्षशिला में हुई। वहीं उसके एक अभिलेख में उल्लेख है कि अशोक के जीवन का अंतिम कार्य बौद्ध भिक्षुसंघ में फुट को रोकना था। अशोक ने यह कार्य तृतीय बौद्ध संगीति में किया था जो पाटलिपुत्र में आयोजित की गई थी। इस अनुसार विद्वानों का अनुमान है कि अशोक की मृत्यु पाटलिपुत्र में ही हुई। 

निष्कर्ष | अशोक का मूल्यांकन – Ashoka The Grate : 

उपरोक्त वर्णन को ध्यान में रखते हुए यह निश्चय ही कहा जा सकता है कि अशोक ने केवल प्राचीन भारतीय इतिहास का अपितु सम्पूर्ण भारतीय इतिहास का महानतम सम्राट था। इसलिए वह विश्व के महानतम सम्राटों की श्रेणी में एक स्थान का अधिकारी है। वह एक वीर योद्धा , महान विजेता , कुशल प्रशासक , एवं सफल धार्मिक नेता के रूप में जाना जाता है। 

प्रो० एच० सी० रायचौधरी के शब्दों में, ” अशोक भारतीय इतिहास के श्रेष्ठतम व्यक्तियों में से एक रहा है वह चंद्रगुप्त के सदृश शक्तिमान समुद्रगुप्त की तरह बहुमुखी प्रतिभा वाला तथा अकबर जैसा धर्म प्रेमी था।”

ऐतिहासिक जीवन चरित्र

● गौतम बुद्ध की जीवनी

● महावीर स्वामी की जीवनी

● सिकंदर की जीवनी

● चंद्रगुप्त मौर्य का जीवन परिचय 

Note: 

अगर आपको हमारे द्वारा अशोक के संबंध में दी गयी जानकारी अच्छी और उपयोगी लगी हो तो Comment में जरूर बताएं और अपने दोस्तों के साथ share अवश्य करें। 

धन्यवाद🙏 
आकाश प्रजापति
(कृष्णा) 
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र:  प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय

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