भारत पर अरबों का आक्रमण pdf | Arab invasion of India in hindi pdf | मुहम्मद बिन कासिम का सिन्ध पर आक्रमण | Arab invasion in hindi pdf UPSC

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शक्तिशाली गुप्त साम्राज्य के नष्ट हो जाने के बाद हर्षवर्धन ने एक बार फिर से भारत में एक विस्तृत साम्राज्य स्थापित करने का प्रयास किया । वह कुछ हद तक सफल भी रहा। परंतु वह संपूर्ण उत्तर भारत को भी अपने शासन के अधीन न कर सका। किन्तु तब भी उसका साम्राज्य शक्ति और संम्पन्नता कि दृष्टि से इतना समर्थ था कि वह किसी बाह्य आक्रमण को विफल कर सके।

परंतु हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात तक उसका साम्राज्य भी विखंडित हो गया और एक बार पुनः राजनीतिक एकता नष्ट हो गई।  छोटे-छोटे राज्य उभर कर सामने आए जिनमें आपस में प्रतिस्पर्धा और बैर भाव रहने के कारण लगातार युद्ध होते रहते थे।

यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि पश्चिमी और मध्य एशिया की घटनाएं अक्सर भारत को प्रभावित करती थी और कभी कभी कमजोर स्थिति की बदौलत उत्तर पश्चिमी भारत से घुसपैठ का कारण बन जाती थी। ऐसा ही एक आक्रमण 7-8वीं सदी (711-13 ई०) में अरबों द्वारा हुआ। इस आक्रमण के अभियान , कारण , परिणाम और प्रभाव की व्याख्या निम्नवत् है–

इस आक्रमण को भली भाँति समझने के लिए उस समय के भारत की स्थिति को समझना होगा। इसके लिए आप यहां जाएं और पूरा पढ़ें की आखिर किन किन परिस्थितियों के परिणामस्वरूप भारत को ऐसे आक्रमण का सामना करना पड़ा-

महत्वपूर्ण लेख 

● अरब आक्रमण से पूर्व भारत की स्थिति

अरबों का सिंध (भारत) पर आक्रमण           ( Arab invasion in hindi ) :-

भारत पर अरबों का आक्रमण Arab invasion in india

अरबों द्वारा किए गए भारत पर आक्रमण को जानने से पूर्व हमें उसके स्रोतों के बारे में जानना परमावश्यक है-

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भारत पर अरब आक्रमण के स्रोत – Source of arab invasion in india :-

अरबों द्वारा भारत में सिंध विजय का विस्तृत वृत्तांत किताब-फुतुह-अल-बलदान एवं ‘चचनामा’ नामक ग्रंथ में मिलता है। यह अरबी भाषा में लिखित ग्रंथ है।

मुहम्मद बिन कासिम द्वारा सिन्ध पर आक्रमण – Arab invasion of Sindh by Mo. Bin Qasim :

चूंकि भारत आठवीं शताब्दी के शुरुआत में विखंडित अवस्था में था तथा राजनीतिक दृष्टि से कमजोर था।  इसका लाभ उठाकर सन 712 ई० में बगदाद (ईराक) के गवर्नर खलीफा अल हज़्जाज के दामाद व चचेरे भाई (कहीं कहीं भतीजा मिलता है) मुुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर आक्रमण किया। इस आक्रमण का तात्कालिक प्रभाव नगण्य था किंतु इसके दूरगामी परिणाम सामने आए।

Note: जब मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर आक्रमण किया था तब दमिश्क का खलीफा वालिद (प्रमुख खलीफा) था तथा ईराक का खलीफा अल हज़्ज़ाज था। 

मुहम्मद बिन कासिम से पूर्व अरबों द्वारा भारत पर आक्रमण के किए गए असफल प्रयास :

यद्यपि सिंध को अरबों ने 712 ईस्वी में जीत लिया किन्तु  इसके पूर्व भी अरबों द्वारा भारत पर आक्रमण के कई असफल प्रयास किए गए।

प्रथम प्रयास : खलीफा उमर के समय मे 636-37 ई० में बम्बई के निकट थाना की विजय के लिए एक नाविक अभियान भेजा गया परंतु वह असफल रहा।

दूसरा प्रयास : खलीफा उस्मान के समय में सन 644 ई० में अब्दुल्ला बिन उमर के नेतृत्व में स्थल मार्ग द्वारा मकरान के पश्चिमी सिंध में आक्रमण किया गया। उसने मकरान और सिंध के शासकों को पराजित करने के बाद भी उसे अपने राज्य में नहीं मिलाया। अतः यह भी उसकी एक असफलता ही प्रतिबिंबित होती है।

तीसरा प्रयास : कुछ समय बाद अल हरीस ने 659 ई० में अगला अभियान किया किंतु वह मारा गया।

चौथा प्रयास : अल-मुहल्लब ने सन में 664 ई० में फिर से साहस किया किंतु वह भी परास्त हुआ।

पाँचवां प्रयास : अंततः 712 ई० में कुछ विशेष कारणों से (जिनकी व्याख्या निम्नवत् है) खलीफा अल हज़्ज़ाज ने अपने भतीजे व दामाद मो० बिन कासिम को भारत पर आक्रमण का आदेश दिया। उसने सिंध पर आक्रमण किया और सफलता भी पाई। इस प्रकार यह अरबों द्वारा किया गया प्रथम सफल अभियान था।

अरबों द्वारा भारत (सिंध) पर आक्रमण के कारण / अरबों ने भारत पर क्यों आक्रमण किया ?

712 ई० में मोहम्मद बिन कासिम द्वारा सिंध पर आक्रमण हुआ।  इसके मुख्य उद्देश्य धार्मिक राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से संपृक्त थे। ये निम्नवत् हैं–

1. तलवार की शक्ति के आधार पर इस्लाम का प्रचार करना यही सभी खलीफाओं की का प्रमुख उद्देश्य रहा था और उस समय भारत पूर्णता हिंदुओं और मूर्तिपूजकों का देश था तथा अरबों का मुख्य उद्देश्य मूर्तिपूजकों को नष्ट करना था। सिंध पर आक्रमण इस उद्देश्य से भी हुआ।

2. अरब समेत पश्चिमी एशिया के देशों से भारत का व्यापार प्राचीन काल से होता रहा था। तथा 636 ई० में अरबो द्वारा किए गए आक्रमण के बाद अनेक अरब व्यापारी भारत के मालाबार समुद्र तट पर आकर बस गए। इस प्रकार अरब लोग भारत की संम्पन्नता और धन के प्रति बहुत आकर्षित थे। इस कारण धन की लालसा भी इनके आक्रमण का एक लक्ष्य था इसमें संदेह नहीं किया जा सकता।

3. अरब शासकों की महत्वाकांक्षा भी उन्हें भारत पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। अब तक अरब लोग सीरिया , पेलेस्टाइन , मिस्र और पर्शिया पर विजय प्राप्त कर चुके थे तथा उन्होंने साम्राज्य विस्तार की दृष्टि से भारत पर आक्रमण किया।

4. इसी बीच सिंध के देवल बंदरगाह के पास लुटेरों ने जहाज को लूट लिया था जिसमें खलीफा के लिए अनाथ युवतियां और कुछ उपहार थे। उस समय सिंध का राजा दाहिर था। हज़्ज़ाज ने दाहिर  के पास लुटेरों को दंडित करने का संदेश भेजा किंतु दाहिर ने यह उत्तर देकर मना कर दिया कि लुटेरे उसके अधीन नहीं है और ना ही उनका उसके साम्राज्य से कोई संबंध है।

दाहिर के उत्तर से असंतुष्ट होकर खलीफा अल हज्जाज ने सिंध के राजा दाहिर पर आक्रमण की योजना बनाई।

ऐसा कहा जाता है कि दाहिर पर सन 711 ई० में उबेदुल्ला के नेतृत्व में आक्रमण हुआ किन्तु उबेदुल्ला मारा गया।

इसके बाद 712 ई० में बुदैल के नेतृत्व में दाहिर के विरुद्ध अभियान किया गया किन्तु यह भी असफल रहा।

अंततः हज्जाज ने अपने भतीजे/चचेरे भाई व दामाद मोहम्मद बिन कासिम को दाहिर पर आक्रमण करने के लिए 712 ईसवी में भेजा। इस आक्रमण में अरबों को सफलता मिली।

मुहम्मद बिन कासिम किस मार्ग से भारत आया ? Route of muhammad bin qasim :

उस समय पश्चिम एशिया से भारत में प्रवेश करने के लिए चार मार्ग थी जिसमें एक (1) जलमार्ग और तीन (3) स्थल मार्ग थे। जलमार्ग समुद्री तट के साथ-साथ था । वहीं स्थल मार्गों में एक हैबर की घाटी में , दूसरा बोलन की घाटी से तथा तीसरा मकरान के किनारे किनारे था।

मुहम्मद बिन कासिम ने इसी तीसरे स्थल मार्ग मकरान के रास्ते से सिन्ध पर आक्रमण किया।

मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में सिंध का विजय अभियान – Sindh Conquest by Muhammad bin Kasim :

712-13 ई० में जब मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर आक्रमण किया तब उसकी उम्र सिर्फ 17 वर्ष थी। मोहम्मद बिन कासिम ने मकरान के रास्ते स्थल मार्ग से सिन्ध पर हमला किया। उसकी सेना में खलीफा के सेना के उत्तम सैनिक , इराक और सीरिया के 6000 घुड़सवार , 6000 ऊँटसवार और 3000 बैक्ट्रिया के पशुओं पर लदी हुई युद्ध सामग्री का काफिला था।

जब कासिम मकरान पहुंचा तो वहां का गवर्नर मोहम्मद हारुन अपनी सेना और 5 तोपखाने यंत्रों के साथ उसकी सेना में मिल गया।

मार्ग में दाहिर से असंतुष्ट जाटों , मेढ़ों और बौद्धों ने भी आक्रमणकारियों का स्वागत किया।

इस प्रकार उसकी सेना अब 50,000 तक पहुँच गयी। और वह सर्वप्रथम देबल की ओर अग्रसर हुआ।

देबल की विजय:-

एक विशाल सेना के साथ 712 ई० में मो० बिन कासिम  देवल के बंदरगाह पर पहुंचा और उसे घेर लिया। दाहिर या तो भयभीत होकर या सामरिक दृष्टि से सिन्ध के पश्चिमी क्षेत्रों को छोड़कर उसके पूर्वी किनारे पर युद्ध की तैयारी में लग गया। अंततः अरब विजयी हुए।

17 वर्ष से ऊपर की आयु के सभी पुरुष इस्लाम स्वीकार ना करने के कारण कत्ल कर दिए गए और उनके बच्चों तथा स्त्रियों को गुलाम बना लिया गया 3 दिन तक नगर में कत्लेआम और लूटमार होती रही।

75 सुंदरतम स्त्रियां और लूट के माल का 5वां भाग हज़्ज़ाज के पास भेजा गया तथा शेष को सेना में बांट लिया गया।

नीरून का आत्मसमर्पण:-

देवल पर अधिकार करने के बाद मोहम्मद बिन कासिम नीरून की ओर बढ़ा जिस पर बौद्धों और श्रमणों का अधिकार था। बौद्धों ने बिना युद्ध लड़े आत्मसमर्पण कर दिया।

सेहवान:-

निर्गुण के बाद बिन कासिम सेहवान कि ओर बढ़ा। वहां दाहिर के चचेरे भाई बजहरा का शासन था। उसने अरबों का प्रतिरोध करना चाहा किन्तु नगर के अधिकांश निवासी बौद्ध थे उन्होंने युद्ध न करने का निर्णय लिया।

ततपश्चात बजहरा बुधिया/सीसम के जाटों के पास शरण ली। और नगर निवासी बौद्धों ने नगर अरबों को सौंप कर जजिया देना स्वीकार किया।

जाटों पर विजय:-

इसके बाद कासिम ने जाटों पर आक्रमण किया क्योंकि उन्होंने बजहरा को शरण दी थी। जाटों में से ही एक अरबों से मिल गया था इससे अरबों ने जाटों को परास्त किया और बजहरा मारा गया।

दाहिर से युद्ध और विजय:-

इस युद्ध के बाद बिन कासिम व उसकी सेना को सिंधु नदी पार करने के लिए उसने नावों का पुल बनाने की आज्ञा दी।  दाहिर इस हो रहे आक्रमण से चकित रह गया तथा अपनी सेना के साथ भाग कर रावर में शरण ली। वहां कई दिनों तक अरबों और हिंदुओं की सेनाएं एक दूसरे के सामने पड़ी रही। अंत में 20 जून 712 ई० को युद्ध हुआ। 

प्रारम्भ में वह हाथी पर बैठकर युद्ध कर रहा था किंतु उसका हाथी भयभीत हो गया। फिर उसे घोड़े पर युद्ध करना पड़ा। किन्तु उसकी सेना ने यह संदेह किया कि उसके नेता का अंत हो गया। क्योंकि सेना हाथी पर बैठे राजा को आसानी से देख सकती थी जबकि अब वह घोड़े पर था।

अंत मे उसकी सेना इस संदेह से डर कर कुछ सेना भागकर आरोर चली गयी और कुछ जयसिंह (दाहिर का पुत्र) के साथ ब्राम्हणाबाद भाग गई। अंततः इस युद्ध में दाहिर की पराजय हुई और वह मारा गया।

दाहिर की मृत्यु के बाद उसकी विधवा रानी रानी बाई ने सिन्ध की स्त्रियों के साथ वीरतापूर्वक रावर दुर्ग की रक्षा करने का प्रयास किया। किन्तु सफलता न मिलने पर उन सबने जौहर कर लिया।

ब्राम्हणाबाद पर आक्रमण:-

रावर से मोहम्मद बिन कासिम ने ब्राम्हणाबाद की ओर प्रस्थान किया जिस पर दाहिर के बेटे जयसिंह का शासन था। 6 माह तक कड़े प्रतिरोध के बाद जयसिंह का एक राजमंत्री कासिम से मिल गया। अब जयसिंह की पराजय निश्चित थी इसलिए उसने भागकर चित्तूर चला गया।

यहां 8000 – 20000 व्यक्तियों की हत्या की गई और दाहिर की दूसरी विधवा रानी लाड़ी और उसकी 2 कन्याओं सूर्यदेवी और परमल देवी को बंदी बना लिया।

आरोर को जीता:-

ब्राम्हणाबाद के पतन के बाद कासिम ने सिन्ध की राजधानी आरोर पर अधिकार कर लिया जोकि दाहिर के अन्य बेटे के शासन में था।

इस प्रकार मुहम्मद बिन कासिम का सम्पूर्ण सिन्ध पर अधिकार हो गया और अरबों की सिन्ध विजय पूर्ण हुई।

मुल्तान की ओर बढ़ा:-

713 ई० के आरंभ में मोहम्मद बिन कासिम सिंध को जीतने के बाद मुल्तान की और बढ़ा। एक विश्वासघाती देशद्रोही ने अरबों को उस जलधारा के बारे में बताया जिससे मुल्तान में जल की आपूर्ति होती थी। कासिम ने उस जलधारा को रोक दिया। इससे मुल्तान को आत्मसमर्पण करना पड़ा। यहां अरबों को इतना सोना प्राप्त हुआ कि उन्होंने मुल्तान का नाम स्वर्ण नगरी (सोने का नगर) रख दिया।

मुल्तान की विजय मुहम्मद बिन कासिम की भारत मे अंतिम विजय थी।

इन विजयों के बावजूद भी मुहम्मद बिन कासिम अधिक समय तक जीवित न रह सका।

मुहम्मद बिन कासिम की मृत्यु कैसे हुई :-

मुहम्मद बिन कासिम की मृत्यु के संबंध में 2 धारणाएं प्रचलित है–

प्रथम धारणा :

चचनामा के अनुसार ,” दाहिर की 2 कन्याओं सूर्यदेवी और परमल देवी को मोहम्मद बिन कासिम ने खलीफा को भेंट के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए खलीफा से यह बात कही कि मुहम्मद बिन कासिम ने उनके सतीत्व को नष्ट करके उन्हें खलीफा के पास भेजा है।

यह सुनकर खलीफा अत्यंत क्रुद्ध हुआ और आदेश दिया कि मुहम्मद बिन कासिम को कच्ची खाल में बंद कर के खलीफा की राजधानी में भेजा जाए।  मोहम्मद ने उस आदेश का पालन किया और स्वयं को बैल की खाल में बंद सिलवा दिया जिससे उसकी मृत्यु हो गई

जब उसकी लाश खलीफा के सामने प्रस्तुत की गई तो राजकुमारियों ने यह स्वीकार किया कि मोहम्मद का कोई दोष नहीं था उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उस पर ऐसा आरोप लगाया था। तब खलीफा ने आज्ञा दी कि राजकुमारियों को घोड़ों की पूछ से बांधकर तब तक घसीटा जाए जब तक उनकी मृत्यु न हो जाए। और ऐसा ही हुआ।

दूसरी धारणा:-

कुछ आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार मोहम्मद बिन कासिम की मृत्यु का वास्तविक कारण राजनीतिक था। 715 ईसवी में खलीफा वालिद के पश्चात सुलेमान खलीफा बना। वह हज्जाज से असंतुष्ट था किंतु हज्जाज की मृत्यु हो चुकी थी और उसके क्षेत्र का अधिकार मोहम्मद बिन कासिम के पास था। इसलिए वह मुहम्मद बिन कासिम उसके असन्तोष का शिकार बना क्योंकि वह हज़्ज़ाज का चचेरा भाई और दामाद था।

खलीफा सुलेमान ने याजिद को सिन्ध का नवीन सूबेदार बनाया और मोहम्मद बिन कासिम को कैद करके शारीरिक यातनाओं के द्वारा समाप्त कर दिया।

विजित क्षेत्रों पर अरबों की शासन व्यवस्था :-

अरबों में शासन की रचनात्मक बुद्धि का अभाव था। वे शासन में किसी ठोस-व्यवस्था का निर्माण न कर सके। सिन्ध को विभिन्न भागों में बाँट कर सैनिक अधिकारी नियुक्त किये गये थे जो शक्ति के आधार पर शासन करते थे, न्याय करते थे और कर वसूल करते थे।

परन्तु अरबों की संख्या बहुत कम थी। इस कारण उन्होंने भारतीय प्रशासन अधिकारियों से सहायता ली और स्थानीय शासन में हस्तक्षेप नहीं किया।

हिन्दुओं से जजिया, किसानों से लगान, जो पैदावार का 2/3 से 1/4 तक था। बगीचा कर तथा मछली, शराब, मोती आदि पर व्यापारिक कर लिये जाते थे।

साधारणतया अरबों का शासन एक विजेता जाति के शासन की भाँति रहा। अरब उच्च सैनिक और शासन अधिकारी रहे तथा भारतीय प्रजा उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने का साधन बनी।

न्याय कठोरता था किन्तु शीघ्र दिया जाता था। इस्लाम धर्म के नियमों के अनुसार निर्णय किया जाता था तथा वे हिंदुओं के प्रति अत्यधिक कठोर थे। चोरी करने पर हिंदू को जीवित जला दिया जाता था ऐसे अनेक कठोर दंड भेदभाव के आधार पर दिए जाते थे।

जजिया की शुरुआत:-

इस्लाम के अनुसार अन्य सभी धर्मों के व्यक्ति दो श्रेणियों में बाँटे गये थे-

एक वे जो ईश्वरीय ज्ञान के हिस्सेदार माने थे; जैसे—यहूदी और ईसाई। इनको ‘जिम्मी’ पुकारा गया था और वे जजिया (धार्मिक कर्) देकर इस्लामी राज्य में रहते हुए अपने धर्म का पालन कर सकते थे।

दूसरे व्यक्ति वे थे जो मूर्तिपूजक थे, और काफिर कहलाते थे। ऐसे व्यक्तियों को इस्लामी राज्य में रहने का अधिकार न था। उन्हें मृत्यु अथवा इस्लाम में से एक को चुनना पड़ता था।

इस कारण हिन्दू, जो मूर्तिपूजक थे, वे इस्लामी राज्य में रहने के अधिकारी न थे। मुहम्मद बिन कासिम ने देवल की विजय के पश्चात् हिन्दुओं से इसी आधार पर व्यवहार किया। परन्तु बाद में बहुसंख्यक हिन्दुओं को कत्ल करने में अपने को असमर्थ पाकर उसे अपने विचारों में परिवर्तन करना पड़ा । प्रायः सभी हिन्दू मूर्तिपूजक थे और उन सभी को मुसलमान बनाना अथवा उनको कत्ल करना सम्भव न था। इस कारण मुहम्मद बिन कासिम ने हिन्दुओं को जजिया देकर इस्लामी राज्य में रहने और अपने धर्म का पालन करने की स्वीकृति दे दी। बाद के तुर्क – आक्रमणकारियों को इससे सुविधा हो गयी और इन्होंने भी हिन्दुओं से जजिया लिया।

इसी कारण सर विलियम म्योर ने कहा कि “सिन्ध-विजय ने इस्लामी नीतियों में एक नवीन युग का आरम्भ किया।”

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अरबों की धार्मिक नीति :-

अरबों की धार्मिक नीति के बारे में एक बात यह भी कही जा सकती है कि वह बाद में आने वाले तुर्क आक्रमणकारियों की तुलना में अवश्य ही सहिष्णु थी। यह अन्य बात है कि उनकी इस सीमित सहिष्णुता का आधार उनकी धार्मिक उदारता न थी बल्कि अपनी सीमित शक्ति के कारण परिस्थितियों से समझौता करने की आवश्यकता थी।

इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि अरबों का धार्मिक जोश प्रायः एक सदी से इस्लाम को मानते रहने के कारण कुछ स्थिरता प्राप्त कर गया था, जबकि तुर्क इस्लाम धर्म के नवीन अनुयायी थे और भारत पर आक्रमण करने के अवसर पर उनका धार्मिक जोश नूतनता के उत्साह से ओत-प्रोत था ।

 मुहम्मद बिन कासिम की मृत्यु के बाद विजित राज्यों का क्या हुआ ?

 भारत पर हुए इस अरब आक्रमण के क्या प्रभाव हुए ? या
मुहम्मद बिन कासिम की सिन्ध विजय के प्रभाव ?

मुहम्मद बिन कासिम की सफलता के कारण अथवा दाहिर की पराजय के कारण ?

इस महत्वपूर्ण तथ्य को जानने के लिए इस लेख को पढ़ें :

भारत के अन्य क्षेत्रों पर अरबों की असफलता के कारण ?

इसे पढ़ें :

इन उपरोक्त सभी प्रश्नों को जानने के लिए अगली पोस्ट पर जाएं और अरब आक्रमण की जानकारी को पूर्ण करें। अगली पोस्ट इस लेख से अधिक महत्वपूर्ण है तो इसे अवश्य पढ़ें क्योंकि किसी भी घटना की सम्पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है। अगले अत्यंत महत्वपूर्ण लेख की लिंक निम्नवत् है– 

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धन्यवाद🙏 
आकाश प्रजापति
(कृष्णा) 
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र:  प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय

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