प्राचीन भारतीय इतिहास में वैदिक काल के समाप्त होते होते वैदिक साहित्य एक विशाल रूप ले चुका था। इतने विस्तृत वैदिक साहित्य को कंठस्थ करना मुश्किल हो गया। जबकि प्राचीन श्रुति परंपरा के अनुसार इन्हें कंठस्थ करना आवश्यक भी था।
अतः इस सम्पूर्ण साहित्य को संक्षिप्त करने की आवश्यकता थी। इसी उद्देश्य से एक नए प्रकार के साहित्य का जन्म हुआ जिसे सूत्र साहित्य कहते हैं। इन्हें सूत्र साहित्य इसलिए कहा गया क्योंकि ये बहुत अधिक बातों को बेहद संक्षिप्त रूप में (सूत्र रूप में) लिखे गए हैं। क्योंकि इन्हें कण्ठस्थ करना आसान था ।
सूत्र साहित्य व सूत्र काल :
इन सूत्र ग्रंथों की रचना ई०पू० 700 से ई०पू० 300 के मध्य की गई अतः यही काल भारतीय इतिहास में सूत्र काल के नाम से जाना जाता है।
Note: सूत्र ग्रंथ वैदिक साहित्य नहीं हैं किंतु इनसे ये वैदिक ग्रंथों को समझने में सहायक होते हैं।
सूत्र ग्रंथ क्या हैं ?
श्रुतिविहित कर्म को ‘श्रौत’ एवं स्मृतिविहित कर्म को ‘स्मार्त’ कहते हैं। श्रौत एवं स्मार्त कर्मों के अनुष्ठान की विधि कल्प वेदांग के द्वारा नियंत्रित है। हम जानते हैं कि वेदांग 6 होते हैं – (शिक्षा , कल्प , निरुक्त , व्याकरण , ज्योतिष , छंद)। इनमें कल्प सर्वप्रमुख हैं। कल्प में ही श्रौत सूत्र , गृह्य सूत्र , धर्म सूत्र व शुल्व सूत्र समाहित हैं।
पाणिनी के अष्टाध्यायी में ‘कल्प’ अथवा सूत्र साहित्य को ‘वेद का हाथ’ कहा गया है।
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● प्राचीन भारतीय इतिहास का सूत्र काल व सूत्रकालीन सभ्यता
सूत्र शब्द का अर्थ और परिभाषा :
सूत्र किसी बड़ी से बड़ी बात को अति संक्षेप में अभिव्यक्ति का तरीका है। सूत्र का शाब्दिक अर्थ ‘रस्सी’ या ‘धागा’ होता है। किन्तु वर्तमान में ‘सूत्र’ शब्द का प्रयोग गणित में ‘फार्मूला’ के अर्थ में किया जाता है।
सूत्र एक विशिष्ट साहित्यिक विधा का सूचक है। इस प्रकार के साहित्य में छोटे छोटे किन्तु बेहद सारगर्भित वाक्य होते हैं जो छोटे होकर भी विस्तृत अर्थ को समेटे होते हैं।
पुराणों में सूत्र को निम्नवत् परिभाषित किया गया है :
अल्पाक्षरं असंदिग्धं सारवत् विश्वतोमुखम्।
अस्तोभं अनवद्यं च सूत्रं सूत्र विदो विदुः॥
[ अर्थात : कम अक्षरों वाला, संदेहरहित, सारस्वरूप, निरन्तरता लिये हुए तथा त्रुटिहीन (कथन) को सूत्र कहते हैं। ]
सूत्र साहित्य :- श्रौत सूत्र , गृह्य सूत्र , धर्म सूत्र
सूत्र साहित्य को 4 भागों में वर्गीकृत किया गया है- श्रौत सूत्र , गृह्य सूत्र , धर्म सूत्र व शुल्व सूत्र।
प्रमुख सूत्रकारों में गौतम , बौधायन , आपस्तम्ब , वशिष्ठ , भारद्वाज आदि आते हैं।
इन्होंने बहुत से सूत्र ग्रंथों की रचना की। जैसे – आश्वलायन श्रौतसूत्र , बौधायन धर्मसूत्र , भारद्वाज श्रौतसूत्र , वात्स्यायन कृत कामसूत्र , आपस्तम्ब धर्मसूत्र , वासिष्ठ धर्मसूत्र , पतंजलि योगसूत्र ।
Note : पाणिनी कृत अष्टाध्यायी भी एक सूत्र साहित्यिक ग्रंथ है।
सूत्र साहित्य कितने हैं ?
सूत्रों के चार विभाग हैं–
(1) श्रौतसूत्र – इनमें श्रुति प्रतिपादित यज्ञों का क्रमबद्ध विवेचन होता है।
( 2 ) गृह्यसूत्र – इनमें गार्हिक यज्ञों एवं उत्सव आदि से सम्बद्ध विविध विधियों का विधिवत् वर्णन किया गया है।
( 3 ) धर्मसूत्र – इन सूत्र ग्रन्थों में मुख्यतः आचारशास्त्र का निरूपण किया गया है।
( 4 ) शुल्वसूत्र – इन सूत्र ग्रन्थों में वेदी निर्माण की रीति का विवेचन किया गया है।
श्रौत सूत्र –
श्रौत सूत्र का संबंध पूर्णतः यज्ञादि कर्मकाण्डों से है इसीलिए इसका ऐतिहासिक महत्व अल्प है किंतु यज्ञ , हवन , अनुष्ठानों व कर्मकाण्डों आदि में इसका सर्वाधिक महत्व है।
श्रौतसूत्रों में अग्निहोत्र, पौर्णमास्य यज्ञ, चातुर्मास्य एवं पशुयज्ञ आदि की विधियों का सर्वांगीण विवेचन सूत्र भाषा में किया गया है। यही नहीं, इन यज्ञों में प्रयुक्त होने वाली तीन प्रकार की अग्नियों का भी विधान एवं वर्णन सूत्र ग्रंथों में है।
प्रत्येक वेद से सम्बद्ध श्रौत सूत्र , गृह्य सूत्र व धर्म सूत्र लिखे गये हैं ।
ऋग्वेद के श्रौत सूत्र : शांखायन , आश्वलायन।
सामवेद के श्रौत सूत्र : आर्षेय कल्पसूत्र (मशक कल्पसूत्र) , लाट्यायन , द्राह्यायण ।
यजुर्वेद के श्रौत सूत्र ग्रंथ : कात्यायन श्रौतसूत्र , आपस्तम्ब श्रौतसूत्र , हिरण्यकेशी श्रौतसूत्र , बौधायन श्रौतसूत्र , भारद्वाज श्रौतसूत्र , मानव श्रौतसूत्र , वैखानस श्रौतसूत्र ।
अथर्ववेद के श्रौतसूत्र : वैतान श्रौतसूत्र ।
गृह्य सूत्र :
गृह्य सूत्रों में अनेक विषयों का प्रतिपादन किया गया है। इनमें समस्त क्रियाकलापों , संस्कारों , उत्सवों एवं यज्ञों की विधियों का विशद विवेचन किया गया है।
गृह्य सूत्रों में लोगों के घरेलू जीवन की चर्चा है। जन्म से मृत्यु तक लोगों के कर्तव्यों गृह्यसूत्रों में का उल्लेख है। लोगों को बहुत से संस्कार करने पड़ते थे जो वास्तव में जन्म से पहले ही शुरू हो जाते थे। कर्तव्य पालन करना लोगों के लिए अनिवार्य था।
गृह्य सूत्रों में आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन किया गया है– ब्राह्म-विवाह, प्राजापत्य-विवाह, आर्ष-विवाह, दैव-विवाह, गान्धर्व विवाह, असुर-विवाह, राक्षस विवाह और पैशाच-विवाह पहले चार विवाह गृह्य सूत्रों में मान्य हैं लेकिन शेष चार मान्य नहीं हैं।
गृह्यसूत्रों के अनुसार हर गृहस्थ को पंच महायज्ञ करने पड़ते थे ब्रह्म-यज्ञ, पितृ यज्ञ, देव-यज्ञ, भूत-यज्ञ और अतिथि यज्ञ कुछ निश्चित अवधियों के बाद गृहस्थों को इनके अतिरिक्त अन्य सात पाकयज्ञ भी करने पड़ते थे।
चार आश्रमों के नाम थे : ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास।
इन सभी का उल्लेख गृह्यसूत्रों में मिलता है।
ऋग्वेद के गृह्यसूत्र : शांखायन गृह्यसूत्र , शाम्भव गृह्यसूत्र , आश्वलायन श्रौतसूत्र।
सामवेद के गृह्यसूत्र : गोभिल गृह्यसूत्र , खादिर गृह्यसूत्र।
यजुर्वेद के गृह्यसूत्र : वाजसनेय गृह्यसूत्र , आपस्तम्ब गृह्यसूत्र , हिरण्यकेशी गृह्यसूत्र , बौधायन गृह्यसूत्र , मानव गृह्यसूत्र , काठक गृह्यसूत्र , भारद्वाज गृह्यसूत्र , वैखानस गृह्यसूत्र।
अथर्ववेद के गृह्यसूत्र : कौशिक गृह्यसूत्र।
धर्मसूत्र :
धर्मसूत्र से सामाजिक व्यवस्था, जैसे- वर्णाश्रम, पुरुषार्थ आदि की जानकारी मिलती है। धर्मसूत्र के प्रणेता स्रोत आपस्तम्ब माने जाते हैं। धर्मसूत्रों में व्यक्ति के धर्मसम्बन्धी क्रियाकलापों पर विचार किया गया है, किन्तु धर्मसूत्रों में प्रतिपादित धर्म किसी विशेष पूजा-पद्धति पर आश्रित न होकर समस्त आचरण व व्यवहार पर विचार करते हुए सम्पूर्ण मानवजीवन का ही नियन्त्रक है।
धर्मसूत्रों में वर्णाश्रम-धर्म, व्यक्तिगत आचरण, राजा एवं प्रजा के कर्त्तव्य आदि का विधान है। ये गृह्यसूत्रों की शृंखला के रूप में ही उपलब्ध होते हैं।
किन्तु धर्म सूत्रों के लेखक स्वयं ही सहमत नहीं हैं। वे आपस में कई बातों पर असहमत हैं।
गौतम, बौधायन और वसिष्ठ नियोग को स्वीकृति प्रदान करते हैं लेकिन आपस्ताब ने उसको भर्त्सना की है।
गौतम और बौधायन के आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन किया है लेकिन आपस्तम्ब ने केवल छः प्रकारों का ही उल्लेख किया है और पैशाच-विवाह और प्रजापत्य विवाह का उसने नाम भी नहीं लिया।
प्रमुख धर्मसूत्र : आपस्तम्ब धर्मसूत्र , हिरण्यकेशी धर्मसूत्र , बौधायन धर्मसूत्र , गौतम धर्मसूत्र , वशिष्ठ धर्मसूत्र , मानव धर्मसूत्र , वैखानिक धर्मसूत्र।
शुल्व सूत्र :
श्रौतसूत्र , गृह्यसूत्र व धर्मसूत्र की भांति शुल्वसूत्र भी सूत्र साहित्य का ही भाग है। शुल्व सूत्र का भी संबंध श्रौत कर्मों से है।
संस्कृत भाषा के शुल्ब शब्द का अर्थ है – नापने की रस्सी या डोरी। अतः अलग अलग रचनाकारों के नाम के अनुसार शुल्व सूत्रों में यज्ञ-वेदियों को नापना, उनके लिए स्थान का चुनना , उनका आकार , आकृति तथा उनके निर्माण आदि विषयों का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है।
अर्थात शुल्बसूत्र में यज्ञ-वेदी की रचना से सम्बन्धित ज्यामितीय ज्ञान दिया हुआ है।
शुल्वसूत्र ही भारतीय ज्यामिति के प्राचीनतम ग्रंथ है। दूसरे शब्दों में शुल्बसूत्र ही भारतीय गणित के सम्बन्ध में जानकारी देने वाले प्राचीनतम स्रोत हैं।
प्रमुख शुल्वसूत्र ग्रंथ :
प्रमुख शुल्वसूत्रों के नाम निम्नलिखित हैं–
आपस्तम्ब शुल्ब सूत्र , बौधायन शुल्ब सूत्र , मानव शुल्ब सूत्र , कात्यायन शुल्ब सूत्र , मैत्रायणीय शुल्ब सूत्र (मानव शुल्ब सूत्र से कुछ सीमा तक समानता है) , वाराह (पाण्डुलिपि रूप में) , वधुल (पाण्डुलिपि रूप में) , हिरण्यकेशिन (आपस्तम्ब शुल्ब सूत्र से मिलता-जुलता)।
ये उपरोक्त ग्रंथ सूत्र साहित्य के अंतर्गत आते हैं ।
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धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय