हम पिछली पोस्ट (मुहम्मद बिन कासिम का भारत आक्रमण pdf) में देख चुके हैं कि किस प्रकार 7वीं शताब्दी 636 ई० से 712 ई० तक के लगातार प्रयासों के परिणामस्वरूप अंततः 712-13 ई० में अरबों को सिन्ध विजय में सफलता मिली।
712 ई० में अरब आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम द्वारा भारत पर पहली बार सफल अभियान किया गया। अब तक इसके पूर्व के सभी प्रयास निष्फल साबित हुए। मुहम्मद बिन कासिम जिस समय भारत आया उस समय ईराक या बगदाद का खलीफा अल-हज़्ज़ाज था तथा मुहम्मद बिन कासिम उसका दामाद व भतीजा हुआ करता था।
कई विशेष कारणों से अरब आक्रमणकारी भारत पर लगातार जल व स्थल मार्ग से आक्रमण करते रहे उन कारणों की व्याख्या हम पिछली पोस्ट में कर चुके हैं।
इस लेख को पढ़ने के पूर्व पिछली पोस्ट को पढ़ना परम आवश्यक है क्योंकि यह लेख उसी पर आधारित है। अतः आप इस लिंक से उसे पढ़ सकते हैं–
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● भारत पर अरबों का प्रथम सफल आक्रमण : (मुहम्मद बिन कासिम द्वारा) [Part-1]
★ Note: मुहम्मद बिन कासिम को मीर कासिम के नाम से भी जाना जाता है।
आईये भारत पर हुए इस अरब के विषय में और कुछ महत्वपूर्ण बातें जानने का प्रयास करें-
अरबों की सिन्ध विजय के प्रभाव :- (राजनीतिक प्रभाव , व्यापारिक प्रभाव , सांस्कृतिक प्रभाव)
राजपूताना के इतिहास के सुविख्यात लेखक टॉड ने अरबों के आक्रमण के प्रभाव को हुत बढ़ा-चढ़ाकर बताया। उन्होंने यहाँ तक लिखा कि ” अरबों के आक्रमण से समस्त उत्तरी भारत दहल गया था।” परन्तु उनके विचारों को कोई भी आधुनिक इतिहासकार स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। राजनीतिक क्षेत्र में अरबों के आक्रमण का प्रभाव बहुत सीमित और साधारण था।
सर वूल्जले हेग ने लिखा है कि “भारत के इतिहास में वह एक साधारण दुर्घटना थी और उसने इस विशाल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र के एक छोटे प्रदेश मात्र को प्रभावित किया।”
लेनपूल ने लिखा है कि “यह इस्लाम के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटना थी।”
मुहम्मद बिन कासिम के इस आक्रमण के समस्त प्रभाव निम्नवत् हैं–
मुहम्मद बिन कासिम की सिन्ध विजय के राजनीतिक प्रभाव :-
★ अरबों की सिन्ध की विजय से भारत का कोई महत्त्वपूर्ण भाग मुसलमानों के हाथ में नहीं गया, अरबों ने भारत की राजनीतिक और सैनिक शक्ति को नहीं तोड़ा, क्योंकि भारत के किसी भी शक्तिशाली राज्य से उनका युद्ध नहीं हुआ तथा सिन्ध की विजय ने मुसलमानों के लिए भारत विजय का मार्ग नहीं खोला।
★ अरबों ने पहली बार भारत में इस्लामी राज्य की स्थापना की, एक बड़ी संख्या में भारत के एक देश में हिन्दुओं को जबर्दस्ती मुसलमान बनाया और अरब तथा इस्लामी संसार से भारत का निकट का परिचय कराया गया, इसमें सन्देह नहीं। परन्तु अरब आक्रमण का प्रभाव यहीं तक सीमित रहा। इस कारण उसका कोई गम्भीर राजनीतिक प्रभाव भारत पर नहीं पड़ा।
अरबों के सिंध पर आक्रमण के व्यापारिक प्रभाव :-
अरबों के विजय के परिणाम स्वरूप आठवीं से दसवीं शताब्दी के मध्य हिंद अरब व्यापारिक संबंधों का सर्वाधिक विकास हुआ। हिंद अरब व्यापार के विकास के कारण भारत में अनेक बंदरगाहों की समृद्धि बढ़ी।
अरब व्यापारियों की गतिविधियों के केंद्र दक्षिणी समुद्र तट थे परंतु अरब व्यापारी सिंध , पंजाब , बंगाल , असम तथा कश्मीर से भी व्यापारिक संबंध बनाए हुए थे।
अरबों की सिन्ध विजय के सांस्कृतिक प्रभाव :-
सांस्कृतिक दृष्टि से अरबों ने भारतीयों को प्रभावित नहीं किया, वरन् इसके विपरीत अरब भारतीय संस्कृति और सभ्यता से प्रभावित हुए।
भारत की कला, ज्योतिष, चिकित्सा शास्त्र, साहित्य आदि से अरब प्रभावित हुए और उन्होंने उनका सदुपयोग किया। उन्होंने अपनी मस्जिदों और इमारतों को बनवाने में हिन्दुओं से सहयोग लिया।
सर जॉन मार्शल ने लिखा है कि “अरबों में निर्माणात्मक प्रतिभा बिल्कुल नहीं थी। यदि वे अपने पूजागृहों को उतना ही आकर्षक बनाना चाहते थे जितना उनके प्रतिद्वन्द्वी धर्मों के अनुयायियों के थे, तो उनके लिए विजित देशों के शिल्पियों और कलाकारों से काम लेना अनिवार्य था।”
स्थापत्य कला के अतिरिक्त हिन्दू और बौद्ध दर्शन ने अरबों की विचारधारा को गम्भीरता से प्रभावित किया। तबरी ने लिखा है कि खलीफा हारुन-अल रशीद की बीमारी को एक भारतीय वैद्य ने ठीक किया था। इससे स्पष्ट है कि अरबों ने भारतीय चिकित्सा शास्त्र के ज्ञान से लाभ उठाया था।
अरबों ने अंकों का ज्ञान भी भारतीयों से प्राप्त किया। इस प्रकार, यद्यपि अरब सिन्ध में विजेता की दृष्टि से आये, परन्तु तब भी सभ्यता की दृष्टि से वे भारत को कुछ भी न दे सके वरन् उन्होंने भारत से बहुत कुछ प्राप्त किया।
यही नहीं वरन डॉ. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव का तो यहाँ तक कहना है कि “अरबों ने भारतीय ज्ञान को यूरोप में पहुँचाया, विशेषकर दर्शन, ज्योतिष और अंकों को। आठवीं और नवीं शताब्दी से यूरोप में जो ज्ञान की ज्योति फैली उसका मुख्य कारण अरबों का भारत से सम्पर्क था।”
इस प्रकार यह कहना उचित है कि यद्यपि अरबों के भारत पर किये गये आक्रमण का राजनीतिक प्रभाव नगण्य था परन्तु संस्कृति और सभ्यता की दृष्टि से वह अरबों के लिए ही नहीं वरन् संसार के अन्य देशों के लिए भी लाभदायक सिद्ध हुआ।
मुहम्मद बिन कासिम की मृत्यु के बाद विजित क्षेत्रों पर क्या हुआ ?
पिछली पोस्ट में हम देख चुके हैं की 715 ई० में खलीफा वालिद के बाद सुलेमान खलीफा बना। वह हज्जाज और कासिम से असंतुष्ट था अतः उसने मो० कासिम को हटाकर याजिद को सिंध का सूबेदार बनाया। याजिद की मृत्यु 18 दिन बाद हो गई और सिन्ध का सूबेदार हबीब बना। हबीब ने शांति की नीति का पालन किया जिससे दाहिर पुत्र जयसिंह ने ब्राह्मणाबाद को स्वतंत्र कर लिया। इसी तरह हबीब ने अन्य क्षेत्र भी स्वतंत्र होने दिए।
717 ई० में उमर खलीफा बना। उसने इस उदार नीति को छोड़कर हिंदुओं को इस्लाम स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। यहाँ तक कि जयसिंह को भी इस्लाम स्वीकार करना पड़ा।
इसके बाद खलीफा हिशाम और सूबेदार जूनियाद के काल में भी जबरन इस्लामीकरण की नीति अपनायी गयी।
जूनियाद ने सिन्ध में प्रत्यक्ष शासन स्थापित किया जिससे जयसिंह को ब्राम्हणाबाद छोड़कर भागना पड़ा।
750 ई० में उमय्यद खलीफा के स्थान पर अब्बासी खलीफा हुए। उस समय मूसा को सूबेदार बनाकर भेजा गया। अतः मूसा और तत्कालीन उमय्यद सूबेदार मंसूर का युद्ध अवश्यम्भावी हो गया। इसमें मूसा विजयी हुआ।
इस प्रकार निःसंदेह अरबों के इस पारस्परिक संघर्ष से सिन्ध में उनकी स्थिति दुर्बल हुई और आधिपत्य भी ढीला होता गया।
871 ई० तक सिंध में खलीफाओं की सत्ता लगभग समाप्त हो गई और सिंध दो स्वतंत्र अरबी राज्यों में बंट गया। इनमें से एक सिन्ध के ऊपरी भाग में मुल्तान को सम्मिलित करते हुए आरोर तक फैला था और दूसरा निचले सिन्ध में मंसूरी को सम्मिलित करते हुए समुद्र तक था।
महमूद गजनवी के आक्रमण तक यही स्थिति सिन्ध में बनी रही।
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धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय
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