विवाह के 8 प्रकार | Types of hindu marriage in hindi | विवाह कितने प्रकार के होते हैं | उत्तर वैदिक कालीन विवाह के प्रकार

0

हम जानते हैं कि सूत्र काल में अनेक ग्रंथों की रचना हुई जिन्हें सूत्र साहित्य कहा जाता है। चूंकि ये बहुत संक्षिप्त रूप (सूत्र रूप) में लिखे गए हैं इसलिए इन्हें सूत्र साहित्य कहा जाता है। सूत्र साहित्य को हिन्दू धर्मशास्त्र भी माना गया है।

हिन्दू धर्म में विवाह के प्रकार :Types of hindu marriage in hindi

विवाह के 8 प्रकार | Types of hindu marriage in hindi
Types of hindu marriage in hindi

पिछले लेख में हमने हिन्दू धर्म के अथवा प्राचीन भारत में होने वाले 16 संस्कारों के बारे में बात की। इस लेख के अंतर्गत हम प्राचीन भारत में होने वाले 8 प्रकार के विवाहों के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे। आप इस लेख को अंत तक पूरा पढ़ें।

सूत्र काल : sutra period in hindi

जैसा कि पिछले लेख में ही हम जान चुके हैं कि प्राचीन भारतीय इतिहास के उस कालखण्ड को, जिसमें सूत्र साहित्य की रचना हुई , सूत्र काल (Sutra period) कहते हैं।

सामान्यता 7वीं-6वीं शताब्दी ई०पू० से लेकर 3री० शताब्दी ई०पू० तक का काल सूत्र काल कहा जा सकता है।

सूत्र साहित्य को मुख्यतः 3 भागों में बांटा गया है- श्रौत सूत्र , गृह्य सूत्र , धर्म सूत्र। 

सूत्र साहित्य और सूत्र कालीन भारतीय सभ्यता के विषय में विस्तार पूर्वक चर्चा हम कर चुके हैं। आप निम्नलिखित लिंक से उसे अच्छी तरह समझ सकते हैं–

● प्राचीन भारतीय इतिहास का सूत्र काल 

● सूत्र साहित्य : श्रौतसूत्र , गृह्यसूत्र , धर्मसूत्र , शुल्वसूत्र

● 16 संस्कार

विवाह संस्कार : vivah ke prakar

हिन्दू धर्म के 16 संस्कारों में से विवाह संस्कार एक प्रमुख संस्कार है। यह एक बेहद पवित्र संस्कार है जिसे बहुत ही विधि विधान से, धर्मशास्त्रों के अनुसार, वेद मंत्रों के साथ संपन्न किया जाता है। हिन्दू विवाह मात्र भोगलिप्सा का साधन नहीं, एक धार्मिक-संस्कार है। संस्कार से अंतःशुद्धि होती है और शुद्ध अंतःकरण में ही दांपत्य जीवन सुखमय व्यतीत हो पाता है।

अन्य धर्मों से अलग हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बन्ध होता है जिसे किसी भी परिस्थिति में तोड़ा नहीं जा सकता। अग्नि के सात फेरे ले कर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक सम्बन्ध से अधिक आत्मिक सम्बन्ध होता है और इस सम्बन्ध को अत्यंत पवित्र माना गया है।

प्राचीन भारत में विवाह के प्रकार :

विवाह के प्रकारों से हमारा तात्पर्य विवाह बंधन में बंधने की विभिन्न विधियों से है। गृह्य सूत्रों और स्मृतियों में विवाह के 8 प्रकारों का उल्लेख है। हालांकि वशिष्ठ ने विवाह के 6 स्वरूपों का ही उल्लेख किया है। किंतु मनु समेत अन्य स्मृतिकारों ने तथा गृह्यसूत्रों व पुराणों में 8 प्रकार की विवाह पद्धतियों का जो उल्लेख है वो अधिक मान्य है।

हिन्दू विवाह के 8 प्रकार :

स्मृतिकारों व सूत्रकारों ने जिन 8 प्रकार के विवाहों की व्याख्या की है वो निम्नलिखित है―

1. ब्रम्ह विवाह  2. दैव विवाह  3. आर्ष विवाह  4. प्रजापत्य विवाह  5. गंधर्व विवाह  6. असुर विवाह  7. राक्षस विवाह  8. पैशाच विवाह ।

★ बता दें कि विवाह के 8 स्वरूप वास्तव में विवाह की विभिन्न 8 परिस्थितियों को स्पष्ट करते हैं।

उपरोक्त विवाह के 8 प्रकारों में से प्रथम चार प्रकार  (ब्रम्ह विवाह , दैव विवाह , आर्ष विवाह व प्रजापत्य विवाह)  के विवाह उत्तम कोटि के विवाह माने जाते थे तथा बाद के चार प्रकार (गंधर्व विवाह, असुर विवाह, राक्षस विवाह, पैशाच विवाह) के विवाह निम्न कोटि के (निंदनीय) विवाह माने जाते थे। 

★ मनुस्मृति में कहा गया है कि प्रारम्भिक 4 प्रकार के उत्तम विवाहों से उत्पन्न संतान गुणवान , शीलवान , सम्पत्तिवान , आदर्श , योग्य , धार्मिक , यशश्वी , अध्ययनशील व सदाचारी होता है। जबकि बाद के 4 निम्न कोटि के निन्दनीय विवाहों से उत्पन्न संतान दुराचारी , व्यभिचारी , अधार्मिक , मिथ्यावादी व अन्य दुर्गुणों से युक्त होते हैं।

प्राचीन भारत में विवाह कितने प्रकार के होते थे?

प्राचीन काल में विवाह उपरोक्त 8 प्रकार से होते थे।

ब्राह्मो दैवस्तथैवार्षः प्राजापत्यस्तथासुरः।

गान्धर्वो राक्षसश्चैव पैशाचश्चाष्टमोऽधमः ।।

प्रत्येक प्रकार के विवाह किसी न किसी विशेष परिस्थिति का प्रतिनिधित्व करता है। गौरतलब है कि हिन्दू शास्त्रकार स्त्री सम्मान तथा शील रक्षा को विशेष महत्व दिया है तथा उसके जीवन को नष्ट होने से बचाने की दिशा में प्रयत्नशील रहे हैं।

हिन्दू विवाह के 8 प्रकारों की व्याख्या निम्नवत् है ―

1. ब्रम्ह विवाह :

हिन्दू विवाह में इस प्रकार के विवाह को सबसे अच्छा और सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह विवाह वर – कन्या के माता पिता की पूर्ण सहमति से होता था। शास्त्रों के अनुसार इस विवाह में एक पुत्री का पिता योग्य वर की खोज कर उसे बुलाकर अपनी सामर्थ्य के अनुसार अलंकारों से सजा-धजा कर कन्यादान दिया जाता है।

मनु ने ब्राह्म विवाह को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “वेदों के ज्ञाता शीलवान वर को स्वयं बुलाकर, वस्त्र, आभूषण आदि से सुसज्जित कर पूजा एवं धार्मिक विधि से कन्यादान करना ही ब्राह्म विवाह है।”

याज्ञवल्क्य के अनुसार इस प्रकार के विवाह के बाद पैदा पुत्र इक्कीस पीढ़ियों को पवित्र करने वाला होता है, ऐसा माना गया है।

भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रकार के विवाह वर्तमान में  सर्वाधिक प्रचलित हैं।

2. दैव विवाह :

इस विवाह के अन्तर्गत कन्या का पिता एक यश की व्यवस्था करता है एवं वस्त्र-अलंकार से सुसज्जित कन्या का दान उस व्यक्ति को कर देता है जो उस यश को समुचित ढंग से पूरा करता है। प्राचीन काल में गृहस्थ लोग समय-समय पर यज्ञ करवाते थे और ऋषियों के साथ आए हुए नवयुवक पुरोहितों में से किसी के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर देते थे। देवताओं की पूजा के समय इस प्रिकार का विवाह सम्पन्न होता था अतः इसका नाम देव विवाह पड़ गया।

आज न यज्ञों का महत्व है और न ही देव विवाह का प्रचलन।

मनु ने लिखा है कि सद्कर्म में लगे पुरोहित को जब वस्त्र और आभूषणों में सुसज्जित कन्या दी जाती है, तो इसे देव विवाह कहा जाता है। डॉ. इन्द्रदेव के अनुसार, “यज्ञों की महत्ता और अपनी कन्या से किसी के विवाह को उसके आदर की पराकाष्ठा मानना, विवाह के इस रूप के कारण प्रतीत होते हैं।”

देव विवाह की मनु ने बहुत ही प्रशंसा की है और यहाँ तक कहा है कि इस विवाह के उत्पन्न सन्तान सात पीढी ऊपर और सात पीढ़ी नीचे तक के लोगों का उद्धार कर देती है। पर मनु के विपरीत अनेक स्मृतिकारों ने देव विवाह को अनुचित मानते हुए कहा है कि देवताओं के पूजन के समय पूजा करवाने वाले वर और वधू की आयु में काफी अन्तर रह जाने की सम्भावना बती रहती है। यद्यपि अब ऐसे विवाहों का प्रचलन नहीं है। ए. एस. अल्तेकर के मतानुसार, देव विवाह वैदिक यज्ञों के साथ ही लुप्त हो गए।

3. आर्ष विवाह :

इस प्रकार के विवाह में विवाह का इच्छुक वर कन्या के पिता को एक गाय और एक बैल अथवा इनके दो जोड़े प्रदान करके विवाह करता है।

गौतम ने धर्मसूत्र में लिखा है, “आर्ष विवाह में वह कन्या के पिता एक गाय और एक बैल प्रदान करता है।

याज्ञवल्क्य लिखते हैं कि दो गाय लेकर जब कन्यादान किया जाय तब उसे आर्ष विवाह कहते हैं।

मनु लिखते हैं, “गाय और बैल का एक युग्म वर के द्वारा धर्म कार्य हेतु कन्या के लिए देकर विधिवत् कन्यादान करना आर्ष विवाह कहा जाता है।

आर्ष का सम्बन्ध ऋषि शब्द से है। जब कोई ऋषि किसी कन्या के पिता को गाय और बैल भेंट के रूप में देता है तो यह समझ लिया जाता था कि अब उसने विवाह करने का निश्चय कर लिया है। कई आचार्यों ने गाय व बैल भेंट करने को कन्या मूल्य माना है, किन्तु यह सही नहीं है, गाय व बैल भेंट करना भारत जैसे देश में पशुधन के महत्त्व को प्रकट करता है। बैल को धर्म का एवं गाय को पृथ्वी का प्रतीक माना गया है जो विवाह की साक्षी के रूप में दिये जाते थे। कन्या के पिता को दिया जाने वाला जोड़ा पुनः वर को लौटा दिया जाता था। इन सभी तथ्यों के आधार पर स्पष्ट है कि आर्ष विवाह में कन्या मूल्य जैसी कोई बात नहीं है।

वर्तमान में इस प्रकार के विवाह प्रचलित नहीं हैं।

4. प्रजापत्य विवाह :

इस प्रकार के विवाह में पिता सम्मानपूर्वक एक व्यक्ति को यह उपदेश देकर “तुम दोनों एक साथ रहकर आजीवन धर्म का पालन करो” , विधिवत वर की पूजा करके , अपनी पुत्री उपहार स्वरूप देता था।

याज्ञवल्क्य के अनुसार इस प्रकार के विवाह से उत्पन्न संतान अपने वंश की पीढ़ियों को पवित्र करने वाली होती है।

सत्यार्थप्रकाश‘ में कहा गया है कि, ‘वर और वधु दोनों का विवाह धर्म की वृद्धि के लिए हो’ यह कामना करना ही प्रजापत्य का आधार है।

वशिष्ठ और आपस्तम्ब ने इस प्रकार के विवाह का उल्लेख नहीं किया है , जिससे डॉ० आल्तेकर यह मत व्यक्त करते हैं कि विवाह के 8 प्रकारों को पूर्ण करने के लिए इसे और ब्रम्ह विवाह पद्धति को पृथक रूप दे दिया गया।

यह विवाह सामान्यतः ब्रम्हविवाह के समान ही होता था। दोनों में मूल अंतर यह है कि जहां ब्रह्म विवाह के अंतर्गत कन्या के पिता को अपनी पुत्री को वस्त्रादि आभूषणों से युक्त कन्या का दान करना आवश्यक होता था वहीं प्रजापत्य विवाह में वस्त्रों तथा विशेष अलंकारों की व्यवस्था के साथ कन्यादान आवश्यक नहीं था।

इस प्रकार ब्रम्ह विवाह उच्च वर्गीय व धनी लोग करते थे तथा प्रजापत्य विवाह जनसामान्य व निर्धन लोग करते थे।

5. गन्धर्व विवाह :

इस प्रकार को हम ‘प्रेम विवाह’ की भी संज्ञा दे सकते हैं। युवक-युवती तब परस्पर प्रेम या काम के वशीभूत होकर स्वेच्छा से संयोग कर लेते हैं तो ऐसे विवाह को गान्धर्व विवाह कहा जाता है।

याज्ञवल्क्य‘ पारस्परिक स्नेह द्वारा होने वाले विवाह को गान्धर्व विवाह कहते हैं।

महर्षि गौतम के अनुसार, “इच्छा रखने वाली कन्या के साथ अपनी इच्छा से सम्बन्ध स्थापित करना गान्धर्व विवाह कहलाता है।

इस प्रकार के विवाहों में माता-पिता की इच्छा का कोई महत्व नहीं होता। वास्तविक विवाह से पूर्व भी प्रेमिका से शरीर संयोग हो सकता है और बाद में उचित विधियों से सम्पन्न आज के प्रेम विवाह प्राचीनकाल के गान्धर्व विवाह ही माने जा सकते हैं। प्राचीनकाल में ऐसे विवाह प्रायः रूपवान गान्धर्व जातियों के लोग करते थे, इसीलिए इनका नाम गान्धर्व-विवाह पड़ गया।

कुछ स्मृतिकारों व शास्त्रकारों ने इसे स्वीकृत किया है तो कुछ ने इसे अस्वीकार किया है। बौधायन धर्मसूत्र में इसकी प्रशंसा की गई है। वात्स्यायन भी अपने कामसूत्र में इसे एक आदर्श विवाह स्वीकार करते हैं।

दुष्यंत का शकुंतला के साथ गान्धर्व विवाह ही हुआ था।

6. आसुर विवाह :

यह एक प्रकार का कय विवाह है अर्थात कन्या मूल्य चुकाया जाता है। इस विवाह में व्यक्ति द्वारा कन्या और कन्या के परिवार के लोगों को शक्ति के अनुसार धन देकर अपनी इच्छा से कन्या का ग्रहण किया जाता है।

मनु लिखते हैं, “कन्या के परिवार वालों एवं कन्या को अपनी शक्ति के अनुसार धन देकर अपनी इच्छा से कन्या को ग्रहण करना असुर विवाह कहा जाता है।”

याज्ञवल्क्य एवं गौतम का मत है कि अधिक धन देकर कन्या को ग्रहण करना असुर विवाह कहलाता है। कन्या मूल्य देकर सम्पन्न किये जाने वाले सभी विवाह असुर विवाह की श्रेणी में आते हैं।

कन्या मूल्य देना कन्या का सम्मान करना है साथ ही कन्या के परिवार की उसके चले जाने की क्षतिपूर्ति है।

यह विवाह निम्न वर्ग में होता था, उच्च वर्ग में इसे घृणित दृष्टि से देखा जाता था।

राजा दशरथ-कैकेयी तथा गांधारी-धृतराष्ट्र का विवाह इसी विवाह पद्धति में हुए थे।

वर्तमान समय में यह प्रचलित नहीं है।

7. राक्षस विवाह :

लड़ाई-झगड़ा करके, छीन झपट कर कपटपूर्वक या युद्ध में हरण करके किसी स्त्री से विवाह कर लेना राक्षस विवाह कहा जाता है। मनु के अनुसार, “मारकर, अंग छेदन करके घर को तोड़कर हल्ला करता हुआ, रोती हुई कन्या को बलात् अपहरण “युद्ध में कन्या का राक्षस विवाह कहलाता है। याज्ञवल्क्य के अनुसार “युद्ध में कन्या का अपहरण करके उसके साथ विवाह करना ही राक्षस विवाह है।” इस प्रकार के विवाहों को प्रचलन तब तक अधिक था जब युद्धों का बहुत महत्व था और स्त्री को युद्ध का पुरस्कार माना जाता था।

राक्षस विवाह में वर और वधु पक्ष के मध्य मार पीट , लड़ाई झगड़ा होता था। राक्षस विवाह अधिकतर क्षत्रिय करते थे इस कारण इसे ‘क्षात्र विवाह’ भी कहते हैं।

भगवान कृष्ण और रुक्मिणी का तथा अर्जुन और सुभद्रा का विवाह इस कोटि का उदाहरण है।

वर्तमान समय में इस विवाह पद्धति के विवाह लगभग न के बराबर होते हैं।

8. पैशाच विवाह :

सबसे निकृष्ट कोटि का माना गया पैशाच विवाह ऐसा विवाह है जिसमें – निद्रारत, उन्मत्त घबराई हुई, मदिरापान से प्रभावित या रास्ते में जाती हुई कन्या के साथ बल का प्रयोग करके यौन सम्बन्ध स्थापित करने के उपरान्त उससे विवाह किया जाता है। बलपूर्वक कुकृत्य कर लेने के बाद भी विवाह से संबंधित विधियों को पूर्ण कर लेने पर ऐसे विवाहों को मान्यता दे दी जाती थी। वशिष्ठ एवं आपस्तम्ब ने इस प्रकार के विवाह को मान्यता नहीं दी है, किन्तु इस प्रकार के विवाह को लड़की का दोष न होने के कारण कौमार्य भंग हो जाने के बाद उसे सामाजिक बहिष्कार से बचाने एवं उसका सामाजिक सम्मान बनाये रखने के लिए ही स्वीकृति प्रदान की गयी है।

मनु कहते हैं, “सोयी हुई उन्मत्त, घबराई हुई, मंदिरापान की हुई अथवा राह में जाती हुई लड़की के साथ बलपूर्वक कुकृत्य करने के बाद उससे विवाह करना पैशाच विवाह है।

आज भी पैशाच विवाह के यदा कदा उदाहरण मिल ही जाते हैं।

बालात्कार के कुछ मामलों में लड़की के माता पिता बदनामी के डर से न्यायालय की शरण न लेकर उस कन्या से शादी कर देते हैं जिसने बलात्कार किया है। जिससे प्रायः ऐसे मामले सामने नहीं आ पाते हैं।

निष्कर्ष : Types of hindu marriage in hindi

वर्तमान में हिन्दुओं में विवाहों के उपरोक्त समस्त स्वरूप दृष्टिगोचर नहीं होते, लेकिन इनमें से कुछ स्वरूप थोडे बहुत संशोधनों के साथ हमें दिखाई देते हैं।

हम बता चुके हैं कि प्रारम्भ के 4 प्रकार के विवाह (ब्रम्ह , दैव , आर्ष व प्रजापत्य) विवाह को उत्कृष्ट कोटि के विवाह तथा बाद के 4 प्रकार के विवाह (गंधर्व , असुर , राक्षस व पैशाच) विवाह को निम्न कोटि के विवाह माने जाते थे।

वर्तमान समय में ब्रह्म विवाह व गान्धर्व विवाह का सामान्य प्रचलन है।

डी एन मजूमदार ने ‘Races and Culture of India’ में लिखा है कि. हिन्दू समाज अब केवल दो स्वरूपों को मान्यता देता है ब्रह्म एवं असुर उच्च जातियों में पहले प्रकार का एवं निम्न जातियों में दूसरे प्रकार का विवाह प्रचलित है। यद्यपि उच्च जातियों में असुर-प्रथा पूरी तरह नष्ट नहीं हुई है।”

धन्यवाद🙏 
आकाश प्रजापति
(कृष्णा) 
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र:  प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक तृतीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय

Tag:

हिन्दू विवाह के 8 प्रकार , 8 प्रकार के विवाह , विवाह के प्रकार , हिन्दू विवाह के प्रकार , विवाह कितने प्रकार के होते हैं , प्राचीन भारत मे होने वाले विवाह के प्रकार , वैदिक कालीन विवाह के प्रकार , सूत्र कालीन विवाह के 8 प्रकार , ऋग्वैदिक काल , उत्तर वैदिक काल , उत्तर वैदिक काल में विवाह कितने प्रकार के होते थे ? , विवाह संस्कार के प्रकार , vivah ke prakar , vivah kitne prakar ke hote hain , vivah sanskar in hindi , hindu vivah ke prakar , prachin kalin vivah ke prakar , types of marriage , hindu marriage , types of hindu marriage in hindi , Brahm vivah in hindi , dev vivah , arsh vivah , prajapatya vivah , asur vivah , rakshas vivah , gandharv vivah , paishach vivah.

Important links for Study material :

 
● Books

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)
To Top
close