Hadappa sabhyta ka patan kaise hua : हड़प्पा सभ्यता भारत की प्रथम नगरीय सभ्यता थी। इस सभ्यता का काल तीसरी सहस्राब्दी ई०पू० से दूसरी सहस्राब्दी ई०पू० में माना जाता है। हालांकि इसके कालानुक्रम को लेकर विद्वानों में मतभेद की स्थिति सदा से बनी रही है।
यह सभ्यता तकनीकी व अन्य क्षेत्रों से एक विकसित सभ्यता थी। इस सभ्यता के सभी पहलू इसे एक उत्कृष्ट , उन्नत तथा विकसित सभ्यता कहलाने के लिए पर्याप्त हैं। किन्तु यहां प्रश्न यह है कि ‘हड़प्पा सभ्यता का अंत कैसे हुआ’ ?
आईये इसके कुछ मूल कारणों को जानने का प्रयास करते हैं जिसके परिणामस्वरूप इतनी विकसित सिन्धु सभ्यता अचानक काल के गाल में समा गई―
सिन्धु घाटी सभ्यता के पतन के कारण : hadappa sabhyata ke patan ke karan
हड़प्पा सभ्यता जिस तीव्र गति से प्रकाश में आई उसी गति से यह विनष्ट हो गई। इस सभ्यता के पतन के अलग अलग विद्वानों ने कई कारण बताए हैं जो निम्नलिखित हैं―
1) बाढ़
2) आर्यों का आक्रमण
3) जलवायु परिवर्तन
4) भूतात्विक परिवर्तन
5) विदेशी व्यापार में गतिरोध
6) प्रशासनिक शिथिलता
7) महामारी
8) संसाधनों का अतिशय उपभोग
9) अदृश्य विपदा
आईये इन कारणों को एक एक करके समझने का प्रयास करते हैं-
सिन्धु सभ्यता के पतन के प्रमुख कारण : हड़प्पा सभ्यता का पतन
■ बाढ़ –
सिंधु सभ्यता के पतन का एक कारण विद्वानों ने बाढ़ को माना है। मार्शल ने मोहनजोदड़ो तथा एस आर राव ने लोथल के पतन का प्रमुख कारण बाढ़ को माना है । परन्तु इससे उन नगरों के पतन के कारणों पर प्रकाश नहीं पड़ता जो नदियों के किनारे स्थित नहीं थे।
■ आर्यों का आक्रमण –
व्हीलर, गार्डन चाइल्ड, मैके, पिग्गट आदि विद्वानों ने सिंधु सभ्यता के पतन का कारण आर्यों का आक्रमण माना है। अपने मत के पुष्टि में इन्होंने मोहनजोदड़ो से प्राप्त नर कंकालो तथा ऋग्वेद के देवता इन्द्र का उल्लेख दुर्ग संहारक के रूप में किया है परंतु अमेरिकी इतिहासकार केनेडी ने यह सिद्ध कर दिया है कि मोहनजोदड़ो के नर कंकाल मलेरिया जैसी बीमारी से ग्रसित थे।
परवर्ती अनुसंधान से यह सिद्ध होता है कि व्हीलर की यह धारणा की आर्य लोग हड़प्पाई सभ्यता का नाश करने वाले थे मात्र एक मिथक है। ऋग्वेद में दुर्गसंहारक के रूप में इंद्र को अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता, क्योंकि ऋग्वेद की सही तिथि निर्धारित नहीं की जा सकी है।
■ जलवायु परिवर्तन –
आरेल स्टाइन और अमलानंद घोष आदि विद्वानों के अनुसार जंगलों की अत्यधिक कटाई के कारण जलवायु में परिवर्तन आया। राजस्थान के क्षेत्र में पहले बहुत वर्षा होती थी वहां वर्षा कम होने लगी और सभ्यता धीरे-धीरे विनष्ट हो गई।
■ भू-तात्विक परिवर्तन –
एम. आर. साहनी, आर. एल. राइक्स, जार्ज एफ. डेल्स, एच .टी. लैम्ब्रिक सिंधु सभ्यता के पतन में भौतिक परिवर्तन को प्रमुख मानते हैं। भूतात्विक परिवर्तनों के कारण नदियों के मार्ग बदल गये, जिससे लोगों को सिंचाई, पीने के पानी का अभाव हो गया। इस कारण वे अपने स्थानों को छोड़कर दूसरे स्थानों को चले गये।
■ विदेशी व्यापार में गतिरोध –
सन 1995 ईस्वी में डब्ल्यू. एफ. अल्ब्राइट ने यह मत व्यक्त किया कि मेसोपोटामिया के साक्ष्यों के अनुसार सैंधव सभ्यता का अंत लगभग 1750 ईसा पूर्व में माना जा सकता है। दो हजार ईसा पूर्व के आसपास सैंधव सभ्यता में ग्रामीण संस्कृति के लक्षण प्रकट होने लगे थे, जिससे यह पता चलता है कि उनका आर्थिक ढांचा लड़खड़ाने लगा था।
■ प्रशासनिक शिथिलता –
मार्शल के अनुसार सिंधु सभ्यता के अंतिम चरण में प्रशासनिक शिथिलता के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगे थे।अब मकान व्यवस्थित ढंग से नहीं थे तथा उनमें कच्ची ईंटों का भी प्रयोग होने लगा था जिससे धीरे-धीरे यह सभ्यता नष्ट हो गई।
■ महामारी –
अमेरिकी इतिहासकार के. यू. आर. केनेडी अनुसार मलेरिया जैसी किसी महामारी से यह सभ्यता विनष्ट हो गयी।
■ संसाधनों का अतिशय उपभोग –
सैंधव सभ्यता से संबंधित आधुनिक मत यह है कि इस सभ्यता ने अपने संसाधनों का ज्यादा से ज्यादा व्यय कर डाला जिससे उसकी जीवन शक्ति नष्ट हो गयी।
■ अदृश्य विपदा के कारण –
रूसी विद्वान एम.दिमित्रियेव का मानना है कि सैंधव सभ्यता का विनाश पर्यावरण में अचानक होने वाली किसी भौतिक रासायनिक विस्फोट या अदृश्य गाज के कारण हुआ। इस अदृश्य गाज से निकली हुई ऊर्जा का तापमान 15000 डिग्री सेंटीग्रेड के लगभग मानी जाती है। उन्होंने इस संबंध में महाभारत में उल्लेखित ऐसे दृष्टिकोण की ओर संकेत किया है जो मोहनजोदड़ो के समीप हुआ था।
निष्कर्ष :- Hadappa sabhyta ka patan kaise hua
इन सभी कारणों का विश्लेषण करने से ज्ञात होता है कि किसी एक कारण विशेष को सभी पुरास्थलों पर लागू नहीं किया जा सकता बल्कि सैंधव सभ्यता का पतन इन सभी कारणों के सम्मिलित प्रभाव को माना जा सकता है संभव है कि यह सभ्यता अचानक लुप्त नहीं हुई बल्कि पतन क्रमिक रूप से और धीरे-धीरे हुआ।
हड़प्पा सभ्यता और उसकी परवर्ती देन :
फिर भी इस सभ्यता में विकसित अनेक सांस्कृतिक परंपराएं आज के भौतिक जीवन में देखी जा सकती है जैसे भारतीय सभ्यता के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, कलात्मक पक्षों का आदि रूप हमें यही से प्राप्त होता है।
सामाजिक जीवन के चतुर्वर्ण व्यवस्था के बीज सिंधु सभ्यता में मिलते हैं जहां विद्वानों ने सैंधव समाज को विद्वान, योद्धा, व्यापारी और शिल्पकार तथा श्रमिक जैसे चार वर्गों में बांटा था।
आर्थिक जीवन के क्षेत्र में कृषि, पशुपालन, उद्योग व्यापार वाणिज्य आदि का संगठित और उन्नतशील रूप यहां मिलता है। यहीं के निवासियों ने वाह्य जगत से संपर्क स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया जो बाद में भी संचालित रहा।
भारतीय आहत मुद्राओं पर अंकित कुछ प्रतीक सैंधव लिपि के चिह्नों जैसे हैं, जबकि साँचे में ढाल कर तैयार की गई मुद्रायें अपने आकार प्रकार के लिए सैंधव मुद्राओं की ऋणी हैं।
हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो के बर्तनों, मिट्टी की आकृतियाँ आदि पर अंकित कुछ चिह्न, आकृतियाँ, प्रतीक आदि पंजाब से ईसा पूर्व की प्रारंभिक सदियों से वस्तुओं पर अंकित मिलते हैं। सैंधव सभ्यता का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रभाव हिंदू धर्म और उसके धार्मिक विश्वासों पर दिखाई देता है।
धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़ , उ०प्र०
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक तृतीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय
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