हङप्पा सभ्यता (Hadappa sabhyta) भारतीय उपमहाद्वीप की प्रथम नगरीय सभ्यता थी। यह पश्चिमोत्तर भारत के एक बड़े से भूभाग पर तीसरी व दूसरी सहस्राब्दी में विद्यमान थी। हड़प्पा सभ्यता की उत्पत्ति के विषय में विद्वानों में काफी मतभेद है। कुछ विद्वान इसके देशी उत्पत्ति के समर्थक हैं तथा कुछ विद्वानों का मानना है कि इसकी उत्पत्ति विदेशी संस्कृतियों के द्वारा हुआ। इस विषय मे विस्तृत जानकारी के लिए नीचे दिए आर्टिकल को अच्छी तरह पढ़ें ―
● हड़प्पा सभ्यता का उद्भव/उत्पत्ति
सिंधु घाटी सभ्यता | Indus valley Civilization
सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज और हड़प्पा सभ्यता का नगर नियोजन के विषय मे हमने पूर्व के लेखों में बात की। आप उसे नीचे दिए गए लेखों के लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं। यहां हम आपको हङप्पा सभ्यता का राजीनीतिक जीवन , हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक जीवन , हङप्पा सभ्यता का आर्थिक जीवन तथा हड़प्पाई लिपि के बारे संक्षेप में पूर्ण जानकारियां देंगे। अतः आप इस पूरे लेख को ध्यान से पढ़ें।
हड़प्पा सभ्यता का राजनीतिक जीवन : Hadappa sabhyta
◆ उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर हड़प्पा सभ्यता की राजनीतिक संरचना का ज्ञान नहीं हो पाया है। इस विषय में विभिन्न इतिहासकारों ने अपने अलग-अलग विचार दिए हैं।
◆ हंटर महोदय का कहना है कि हड़प्पा सभ्यता का शासन राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक था।
◆ अर्नेस्ट मैके महोदय का कहना है कि यहाँ प्रतिनिध्यात्मक सरकार थी।
◆ एक ओर इतिहासकार वॉल्टर रूबेन ने हड़प्पा सभ्यता के प्रशासन को गुलामों पर आधारित प्रशासन कहा है।
◆ स्टुअर्ट पिग्गट का कहना है कि हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो दो पृथक राजधानियाँ थीं और यहाँ पर पुरोहितों का शासन था।
◆ एक और विचार सर्वाधिक लोकप्रिय है कि हड़प्पाई लोग व्यापार वाणिज्य में अधिक संलग्न थे। इसलिए यहाँ पर संभवतः शिल्पियों और व्यापारियों का शासन था।
हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक जीवन :
◆ हड़प्पा सभ्यता के नगरों एवं भवनों के आकार-प्रकार में अंतर की वजह से हड़प्पाई समाज एक बहुस्तरीय वर्ण विभाजन का संकेत देता है।
◆ हड़प्पाई समाज चार वर्णों पर आधारित था- योद्धा, विद्वान, व्यापारी और श्रमिक।
◆ यहाँ मुख्य रूप से चार प्रजातियों: भूमध्यसागरीय, प्रोटोऑस्ट्रेलॉयड, मंगोलॉयड और अल्पाइन प्रजाति के लोग रहते थे जिनमें भूमध्यसागरीय प्रजाति के लोग सर्वाधिक थे।
◆ मातृदेवी की पूजा एवं स्त्री मृण्मूर्तियों की संख्या देखते हुए अनुमान किया जाता है कि हड़प्पाई समाज मातृसत्तात्मक था।
◆ आवासों की संरचना समाज की आर्थिक विषमता की मौजूदगी को दर्शाती है। श्रमिक आवासों के आधार पर व्हीलर महोदय ने यहाँ दास प्रथा के अस्तित्व को स्वीकार किया है।
◆ इस सभ्यता के लोग ऊनी एवं सूती दोनों प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग करते थे।
◆ अनाजों के अवशेष तथा घरों के अंदर पाई गई जानवरों की हड्डियों के आधार पर भोजन के मांसाहारी तथा शाकाहारी दोनों तरह के होने के संकेत मिलते हैं।
◆ यहाँ के लोगों के वस्त्र सादे तथा कढ़ाईदार दोनों होते थे। मोहनजोदड़ो की प्रसिद्ध योगी की मूर्ति में तिपतिया साल, कढ़ाई का उत्तम उदाहरण है।
◆ यहाँ के लोग युद्धप्रिय नहीं थे, वे शांतिप्रिय अधिक थे। वे गणित, धातु निर्माण, माप-तौल प्रणाली, ग्रह-नक्षत्र, मौसम विज्ञान आदि की जानकारी रखते थे।
◆हड़प्पावासी साज-सज्जा पर विशेष ध्यान देते थे। स्त्री एवं पुरुष दोनों आभूषण धारण करते थे। यहाँ से प्रसाधन मंजूषा मिली है।
◆ हड़प्पा से एक बोतल में काजल के साक्ष्य, चन्हुदड़ो से लिपिस्टिक, धौलावीरा से मिट्टी का कंघा मिला है।
◆ इसके अलावा, मोहनजोदड़ो से चार कोने वाले तारे के अंकन वाला एक बालों का पिन एवं चांदी की अंडाकार चूड़ियाँ मिली हैं।
◆ तांबे एवं कांसे के उस्तरे के साक्ष्य से ज्ञात होता है कि पुरुष दाढ़ी भी बनाते थे।
◆ अंत्येष्टि में पूर्ण समाधिकरण सर्वाधिक प्रचलित था जबकि आंशिक समाधिकरण एवं दाह संस्कार का भी चलन था।
मनोरंजन के साधन :
◆ मछली पकड़ना, शिकार करना, पशु-पक्षियों को आपस में लड़ाना, चौपड़ और पासा खेलना यहाँ के लोगों के मनोरंजन के मुख्य साधन थे।
◆ मोहनजोदड़ो में ईंटों से बने दो अधूरे गेमबोर्ड प्राप्त हुए हैं। साथ ही यहाँ से एक ऐसे पुरुष का चित्र मिला है जो ढोल लिए हुए है।
◆ मिट्टी की गाड़ी से भी शायद खेला जाता था। यहाँ से उत्तम प्रकार के खिलौने भी मिले हैं। जैसे- तार पर चढ़ने-उतरने वाला बंदर, सिर हिलाने वाला बैल आदि।
◆ लोथल से कुत्ता, मेढ़ा, बैल की आकृति वाली गोटियाँ मिली हैं।
हड़प्पा सभ्यता का आर्थिक जीवन :
हड़प्पा सभ्यता के आर्थिक जीवन को हम विविध पहलुओं से समझ सकते हैं―
1. कृषि व्यवस्था :
◆ हड़प्पा सभ्यता के सभी बड़े नगरों में पाए गए अन्नागार, अनेक प्रतिच्छेदी वृत्त वाला जार, हड़प्पा से प्राप्त अनाज रखने के कोठारों से इस सभ्यता के उन्नत कृषि कार्य की जानकारी मिलती है।
◆ सिंधु व सहायक नदियों द्वारा प्रति वर्ष लाई गई जलोढ़ मिट्टियों से निर्मित मैदान में जुताई द्वारा खेती की जाती थी जिसमें हल तथा नुकीले कुदाल का प्रयोग होता था।
◆ कृषि कार्य में कांसे तथा पत्थर के उपकरणों का प्रयोग होता था। यद्यपि कालीबंगा में प्राक् हड़प्पा काल के जुते हुए खेत मिले हैं, परंतु हड़प्पा युग के फाल नहीं मिले हैं।
◆ मोहनजोदड़ो तथा बनावली में मिट्टी से निर्मित हल के साक्ष्य मिले हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सिंधु सभ्यता के हल लकड़ी से निर्मित होते थे।
◆ हड़प्पा सभ्यता में सामान्यतः नवम्बर में फसल बोयी जाती थी और अप्रैल में काटी जाती थी।
◆ इस सभ्यता के लोग गेहूँ, जौ, राई, मटर, तिल, सरसों, कपास आदि की खेती किया करते थे। वे दो किस्म के गेहूँ एवं जौ उपजाते थे।
◆ सर्वप्रथम कपास की खेती सिंधु सभ्यता में ही प्रारंभ हुई। इसलिए इसे यूनानी लोग सिण्डन भी कहते थे।
◆ इसके अलावा, वे पीपल, खजूर, नींबू, केला, अनार आदि पेड़-पौधों को भी उगाते थे।
2. पशुपालन –
◆ हड़प्पा सभ्यता में कृषि की उन्नति के साथ पशुपालन का भी विकास हुआ।
◆ कृषि, परिवहन, व्यापार एवं भोजन के लिए पशुओं को पाला जाता था। बैल, भैंस, गाय, भेड़, बकरी, कुत्ता, गधा, खच्चर आदि यहाँ के प्रमुख पालतू पशु थे।
◆ गुजरात के लोग हाथी पालते थे, साथ ही एक श्रृंगी पशु का भी खास महत्व था।
◆ व्याघ्र का अंकन सिर्फ सिंध प्रदेश के स्थलों में हुआ है। परंतु सिंध से बाहर मात्र कालीबंगा की मुहर पर बाघ का चित्रण मिलता है।
◆ सिंधु सभ्यता की मुहर पर सिंह का चित्रण नहीं मिलता है जबकि मेसोपोटामिया की मुद्रा पर मिलता है।
◆ सिंधु सभ्यता की मुहरों पर ऊँट तथा घोड़े का भी चित्रण नहीं है जबकि कालीबंगा से ऊँट की हड्डियाँ तथा लोथल से घोड़े का जबड़ा मिला है।
◆ राणा-घुंडई नामक स्थल से घोड़े के दाँत के अवशेष मिले हैं।
3. शिल्प एवं उद्योग –
◆ मिट्टी एवं धातु के बर्तनों के निर्माण के साथ मनके और मुहरों का निर्माण प्रमुख शिल्प था।
◆ बर्तन, चाक एवं हाथ दोनों से बने होते थे जिस पर लाल रंग होता था। इस पर काली पट्टी से पुष्पाकार ज्यामिति एवं प्राकृतिक डिजाइन बनाए जाते थे।
◆ इसके अलावा, मिट्टी से ईंट का निर्माण भी प्रमुख शिल्प था। शंख, सीप एवं हाथी दाँत से भी विभिन्न वस्तुओं का निर्माण किया जाता था।
◆ चन्हुदड़ो एवं लोथल से मनका बनाने का कारखाना मिला है। यहाँ के लोग गोमेद, फिरोजा, लाल पत्थर एवं सेलखड़ी तथा सोने एवं चांदी जैसे बहुमूल्य एवं अर्द्ध कीमती पत्थरों से सुंदर मनके का निर्माण करते थे।
◆ सिंधु सभ्यता के लोग माप-तौल में ऊपरी स्तर पर दशमलव प्रणाली तथा निचले स्तर पर द्विभाजन प्रणाली का प्रयोग करते थे। माप-तौल की इकाई 16 के गुणक में होती थी। मोहनजोदड़ो से सीप का बना मानक बाट मिला है।
◆ इसके अलावा, मुहरें, मृण्मूर्तियाँ प्रस्तर मूर्तियाँ, धातु की मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं।
4. वाणिज्य व्यापार –
◆ हड़प्पा सभ्यता में आन्तरिक एवं बाह्य व्यापार दोनों उन्नत अवस्था में था। हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो व्यापारिक मार्गों पर बसे थे तथा व्यापार के प्रसिद्ध केन्द्र थे।
◆ व्यापार जल और स्थल दोनों मार्गों से होता था। आंतरिक व्यापार के अंतर्गत विभिन्न हड़प्पाई स्थलों एवं भारतीय उपमहाद्वीप के भीतरी भागों में परस्पर व्यापार होता था।
◆ चूँकि सभी वस्तुओं का उत्पादन स्थानीय रूप से नहीं होता था। अतः ये सुदूर क्षेत्रों के विभिन्न केन्द्रों से नगरीय क्षेत्रों तक लाई जाती थीं।
◆ विभिन्न शहरों में पाए गए अन्नागारों से स्पष्ट होता है कि शहरी केन्द्र खाद्यान्न आपूर्ति के लिए गांवों पर ही निर्भर थे।
◆ आंतरिक व्यापार के अतिरिक्त बाह्य व्यापार के भी निश्चित प्रमाण मिलते हैं। मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान, बहरीन, ओमान, सीरिया आदि देशों से हड़प्पाई लोग व्यापार करते थे।
◆ बाह्य व्यापार के अंतर्गत सिंधु सभ्यता के लोगों द्वारा आयात की जाने वाली वस्तुएँ अलवास्ट (अर्द्ध-कीमती पत्थर), डामर, तांबा, चांदी, टिन, सीसा, फिरोजा तथा लाजवर्द मणि आदि थीं।
◆ साथ ही हड़प्पाई लोगों द्वारा सीप एवं हाथी दांत की वस्तुएँ, तैयार माल, कपास, अनाज आदि का निर्यात किया जाता था। व्यापार संतुलन हड़प्पा सभ्यता के पक्ष में था।
◆ बाह्य व्यापार की प्रकृति मुख्यतः समृद्ध लोगों की आवश्यकता से प्रेरित थी। इसलिए इस व्यापार में दैनिक उपयोग की वस्तुएँ नहीं होती थीं।
◆ लोथल, रंगपुर, प्रभासपाटन, सुरकोटदा, बालाकोट, सुत्कांगेडोर, बलूचिस्तान आदि हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख बंदरगाह थे। अन्तर्देशीय व्यापार का साधन बैलगाड़ी था।
हड़प्पा सभ्यता की लिपि :
◆ सर्वप्रथम 1853 में सिंधु लिपि का साक्ष्य प्राप्त हुआ था। 1923 तक पूरी लिपि प्रकाश में आई। किंतु वह अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
◆ हड़प्पाई लिपि एक भाव चित्राक्षर (पिक्टोग्राफ) लिपि है जिसमें 64 मूल चिन्ह हैं एवं 250-400 तक अक्षर हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों, तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं।
◆ चित्र के रूप में लिखा हर अक्षर किसी ध्वनि, भाव या वस्तु का सूचक है।
◆ चित्राक्षर लिपि को वाउसट्रोफेन्डम लिपि भी कहते हैं क्योंकि ऐसी लिपि दायें से बायें तथा पुनः बायें से दायें लिखी जाती है।
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धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़ , उ०प्र०
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक तृतीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय
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