Draft of Indian Constitution in hindi :
भारतीय संविधान विश्व का सबसे विस्तृत संविधान है। हम जानते हैं कि इसके तैयार होने में भारतीयों को कड़ी मेहनत करनी पड़ी। भारतीय संविधान का विकास 1773 के Regulating act से होती है और यह भारत शासन अधिनियमों से होते हुए अंततः 1946 के कैबिनेट मिशन तक जाता है।
जब भारतीय संविधान का निर्माण प्रारम्भ हुआ था तो बहुत सी प्रक्रियाओं के बाद इसके प्रारूप तैयार करने की बारी आई। प्रारूप तैयार करने के लिए एक 7 सदस्यीय प्रारूप समिति का गठन किया गया। इसके सदस्य- डॉ० भीमराव अम्बेडकर (अध्यक्ष), एन. गोपालस्वामी आयंगर, के.एम. मुंशी, अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर, सैयद मो. सादुल्ला, बी.एल. मित्र तथा डी. पी. खेतान थे।
भारतीय संविधान का प्रारूप कैसे और किसने तैयार किया था?
आज के इस article में हम भारतीय संविधान के प्रारूप पर तथा प्रारूप समिति पर ही चर्चा करेंगे। क्योंकि इस सेक्शन से प्रतियोगी परीक्षाओं में बहुत बार प्रश्न पूछ लिए जाते हैं।
आईये जानते हैं―
भारतीय संविधान का प्रारूप | भारतीय संविधान की प्रारूप समिति
➤ संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने एक प्रारूप समिति का गठन किया था जिसके अध्यक्ष थे – डा. भीमराव अम्बेडकर और जिसमें 6 अन्य सदस्य थे।
➤ प्रारूप समिति को संविधान सभा की अनेक समितियों के प्रतिवेदनों (Reprots) पर लिए गए निर्णयों के अनुसार संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए कहा गया था। इन समितियों में प्रमुख थी- संघीय अधिकार समिति, संघीय संविधान समिति, प्रांतीय संविधान समिति, मूल अधिकारों आदि विषयक परामर्श समिति आदि।
संविधान सभा ने यह भी निर्देश दिया था कि कुछ मामलों में 1935 के भारत शासन कानून का पालन किया जाये।
➤ वास्तव में संविधान का प्रारम्भिक प्रारूप सभा के संवैधानिक सलाहकार के कार्यालय द्वारा तैयार किया गया था, जिसका निरीक्षण और आवश्यक संशोधन करके प्रारूप समिति ने भारत के संविधान के प्रारूप को अन्तिम रूप प्रदान किया।
➤ यह प्रारूप फरवरी 1948 में संविधान सभा के अध्यक्ष को सौंप दिया गया। इसमें कुल मिलाकर 315 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां (Schedules) थी। इस प्रारूप को प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित किया गया ताकि इस पर बुद्धिजीवी अपनी प्रतिक्रियाएँ, आलोचनाएं व्यक्त कर सकें और अपने सुझाव दे सकें।
➤ 29 अगस्त 1947 को डा. अम्बेडकर द्वारा विधिवत यह प्रारूप संविधान सभा में विचारार्थ प्रेषित किया गया।
➤ इसे प्रेषित करते समय डा० अम्बेडकर ने इसकी प्रमुख विशेषताओं पर थी प्रकाश डाला जो इस प्रकार थी–
(1) इस प्रारूप के अनुसार भारत में संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना का प्रावधान था।
(2) इसके अन्तर्गत भारतीय राज्य का संगठन संघात्मक बनाने का प्रयोजन था परन्तु संघात्मक प्रतिमान से हटकर इसमें कुछ विशेष प्रावधान थे जैसे दोहरी नागरिकता का न होना, संविधान संशोधन के लिए सरल पद्धति का अपनाया जाना, एकल न्यायपालिका, दीवानी और फौजदारी कानून की पूरे देश में एकरूपता, अखिल भारतीय सेवाएं आदि।
उपरोक्त विशेषताओं के बावजूद भारतीय संविधान के प्रारूप में तीन प्रकार की आलोचनाएं की गयी/की जाती हैं। आईये इन आलोचनाओं को जानने का प्रयास करते हैं-
भारतीय संविधान के प्रारूप की आलोचनाएं :
संविधान के प्रारूप के सम्बन्ध में तीन प्रकार की आलोचनाएं व्याप्त थीं
(1) इस प्रारूप में कोई मौलिकता नहीं है।
(2) लगभग आधा प्रारूप 1935 के भारत शासन कानून की प्रतिलिपि मात्र है,
(3) शेष विश्व के अन्य संविधानों से नकल किया हुआ है।
भारतीय संविधान के प्रारूप को प्रमुख पत्र पत्रिकाओं तथा अखबारों में, विद्वतजनों की प्रतिक्रियाओं या आलोचनाओं को जानने के लिए, प्रकाशित करने के बाद मुख्य रूप से यही तीन प्रकार की आलोचनाएं की गयी। जिसके बाद डॉ० भीमराव अंबेडकर ने इनके उत्तर दिए जिससे कि सभी आलोचक संतुष्ट हो सकें।
आलोचनाओं के उत्तर :
इन आलोचनाओं का उत्तर देते हुए डा० अम्बेडकर ने प्रश्न किया कि “20वीं सदी के मध्य में क्या कोई एकदम मौलिक संविधान निर्मित किया जा सकता है?”
दूसरे यह आरोप भी निराधार है कि संविधान दूसरे संविधानों की नकल मात्र है।
डा. अम्बेडकर ने कहा कि संविधान के मूल सिद्धान्त किसी के कॉपीराइट नहीं हैं। प्रत्येक देश इन सिद्धान्तों को अपनी आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुसार अपना सकता है। इसमें कोई आपत्ति नहीं हो सकती।
इस प्रकार इनके उत्तर डॉ० अम्बेडकर द्वारा दिये गए।
इसके बाद क्या हुआ ?
संविधान के प्रारूप पर सामान्य विचार विमर्श होने के उपरान्त उसके अनुच्छेदों पर विचार हुआ और उन्हें अपनाया गया। अन्त में पुनः पूरे संविधान पर सामान्य विचार विमर्श हुआ।
➤ प्रारूप समिति ने संविधान के मूल पाठ पर विचारोपरान्त उसे 21 फरवरी 1948 को संविधान सभा के समक्ष विचार के लिए, रखा जिसमें कुल 315 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थी। संविधान सभा द्वारा संविधान के प्रारूप में संशोधन हेतु बड़ी संख्या में टिप्पणियाँ आलोचनायें और सुझाव दिया गया। जिस पर विचार के पश्चात पुनः 26 अक्टूबर 1948 को संविधान का प्रारूप प्रारूप समिति ने संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत किया।
तत्पश्चात इस प्रारूप की प्रतिलिपियाँ संविधान सभा के सदस्यों को प्रदान की गयी। संविधान सभा में इस प्रारूप पर तीन वाचन (विचार-विमर्श) सम्पन्न हुए। यथा
◆ प्रथम वाचन 4 नवम्बर, 1948 से 9 नवम्बर 1948 तक चला।
◆ दूसरा वाचन 15 नवम्बर 1948 से 17 अक्टूबर -1949 तक चला।
दूसरे वाचन में संविधान के प्रत्येक खण्ड पर व्यापक विचार-विमर्श किया गया। तत्पश्चात 7635 संशोधन प्रस्तुत किये गये जिसमें से 2437 को स्वीकार कर लिया गया। इस वाचन की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि सभी प्रश्नों पर निर्णय लगभग पूर्ण सहमति से लिये गये। यह वाचन संविधान के 7वें अधिवेशन से 10वें अधिवेशन तक चला।
◆ तीसरा वाचन- 14 से 26 नवम्बर 1949 तक चला।
➤ डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान को पारित करने का प्रस्ताव रखा। 26 नवम्बर 1949 को यह प्रस्ताव पारित हुआ तथा इसी दिन संविधान सभा द्वारा भारतीय संविधान को अंगीकार (Adopted) कर लिया गया और संविधान सभा के 284 उपस्थित सदस्यों ने संविधान पर हस्ताक्षर किया। इसमें महिला सदस्यों की संख्या आठ (8) थी। इसमें श्रीमती सरोजनी नायडू, हंसा मेहता और दुर्गाबाई देशमुख प्रमुख थीं।
➤ इस प्रकार भारतीय संविधान के निर्माण के निमित्त कुल 11 अधिवेशन हुए और 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा, जिसमें संविधान के प्रारूप पर कुल 114 दिन बहस हुई।
➤ भारतीय संविधान के पारित (अंगीकृत Adopt) होने की तिथि 26 नवम्बर 1949 है। इस समय संविधान में कुल 395 अनुच्छेद 8 अनुसूचियाँ तथा 22 भाग थे।
➤ संविधान सभा की अन्तिम बैठक (12वीं बैठक ) 24 जनवरी 1950 को हुई। इसी दिन सदस्यों ने संविधान पर अन्तिम रूप से हस्ताक्षर किया तथा डा० राजेन्द्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया और संविधान सभा भंग कर उसे अन्तरिम संसद में परिवर्तित कर दिया गया।
➤ संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी 1950 को हुई थी। उस दिन संविधान पर सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर किये गये। तीन प्रतियाँ तैयार की गई थी। एक एक हस्तलिखित अंग्रेजी व हिन्दी में, एक छपी हुई अंग्रेजी में सदस्यों को तीनों पर हस्ताक्षर करने के लिये कहा गया था।
26 जनवरी 1950 संविधान को लागू करने की तिथि निश्चित की गई क्योंकि 20 वर्ष पूर्व इसी दिन लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य की मांग की घोषणा की थी।
इन्हें भी देखें:
▪︎ रेग्युलेटिंग एक्ट 1773 की पृष्ठभूमि , उद्देश्य , प्रावधान , महत्व आदि।
▪︎ संविधान किसे कहते हैं: अर्थ और परिभाषा
धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़ , उ०प्र०
छात्र: इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय
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