Non-religuous text : लौकिक साहित्य | ऐतिहासिक स्रोत | धर्मेत्तर साहित्य | Non-religuous text of historical sources

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लौकिक साहित्य किसे कहते हैं  | धर्मेत्तर साहित्य 

लौकिक साहित्य | Non-religuous text

लौकिक साहित्य को धर्मेत्तर साहित्य (Non-religuous text) भी कहा जाता है। ये ऐसे साहित्य या ग्रंथ होते हैं जो किसी धर्म विशेष से संबंध नही रखते हैं। अर्थात ऐसे ग्रंथो की विषयवस्तु कोई धार्मिक विषय न होकर किसी व्यक्ति की जीवनी , व्याकरण, प्रशासनिक ग्रंथ या किसी वंश विशेष का इतिहास होता है।

हम जानते हैं कि धर्मेत्तर साहित्य (Non-religuous text) से हटकर धार्मिक ग्रंथ भी होते हैं जिनकी विषयवस्तु किसी धर्मविशेष पर आधारित होती है। किंतु हम देखते हैं कि धर्मेत्तर या लौकिक साहित्यिक रचनाएं किसी धर्मविशेष से प्रभावित नही होती हैं।

ऐसे साहित्यिक ग्रंथ भारत मे प्राचीन काल से ही लिखे जाते रहे हैं। लिहाजा इन ग्रंथों में अपने मूल आधारभूत बातों के अलावा हमें उनके रचना के समय की घटनाओं या सामाजिक आर्थिक स्थितियों की भी जानकारी मिल जाती है। इतिहासकार ऐसे ग्रंथों का उपयोग ऐतिहासिक सामग्री के लिए करता है इस प्रकार ये हमारे लिए ऐतिहासिक स्रोत की भूमिका भी निभाते हैं।

 

 लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक एवं अर्द्ध-ऐतिहासिक ग्रन्थों तथा जीवनियों का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है जिनसे भारतीय इतिहास जानने में काफी मदद मिलती है। 

ऐतिहासिक ग्रंथ : Non-religuous text

ऐतिहासिक रचनाओं में सर्वप्रथम उल्लेख ” अर्थशास्त्र का किया जा सकता है जिसकी रचना चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमन्त्री सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ कौटिल्य (चाणक्य) ने की थी। मौर्यकालीन इतिहास एवं राजनीति के ज्ञान के लिये यह ग्रन्थ एक प्रमुख स्रोत है। इससे चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन-व्यवस्था पर प्रचुर प्रकाश पड़ता है। 

कौटिल्यीय अर्थशास्त्र के अनेक सिद्धान्तों को सातवीं-आठवीं शताब्दी ईस्वी में कामन्दक ने अपने “नीतिसार” में संकलित किया। इस संग्रह में दसवीं शताब्दी ईस्वी के राजत्व सिद्धान्त तथा राजा के कर्तव्यों पर प्रकाश पड़ता है।  

ऐतिहासिक रचनाओं में सर्वाधिक महत्व कश्मीरी कवि कल्हण द्वारा रचित “राजतरंगिणी” का है। यह संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं के क्रमबद्ध इतिहास लिखने का प्रथम प्रयास है। इसमें आदिकाल से लेकर 1151 ई0 के आरम्भ तक के कश्मीर के प्रत्येक शासक के काल की घटनाओं का क्रमानुसार विवरण दिया गया है। 

कश्मीर की ही भांति गुजरात से भी अनेक ऐतिहासिक ग्रन्थ प्राप्त होते है जिनमें सोमेश्वर कृत रसमाला तथा कीर्तिकौमुद्री, मेरुतुंग कृत प्रवन्धचिन्तामणि, राजशेखर कृत प्रबन्धकोश आदि उल्लेखनीय हैं। इनसे हमें गुजरात के चौलुक्य वंश का इतिहास तथा उसके समय की संस्कृति का के अच्छा ज्ञान प्राप्त हो जाता है । 

इसी प्रकार सिंन्ध तथा नेपाल से भी कई इतिवृत्तियां (Chronicles) मिलती हैं जिनसे वहाँ का इतिहास ज्ञात होता है।

 

सिन्ध की इतिवृत्तियों के आधार पर ही “चचनामा” नामक ग्रन्थ की रचना की गयी जिसमें अरबों की सिन्ध विजय का वृत्तान्त सुरक्षित है। मूलतः यह अरवी भाषा में लिखा गया तथा कालान्तर में इसका अनुवाद खुफी के द्वारा फारसी भाषा में किया गया। अरब आक्रमण के समय सिन्ध की दशा का अध्ययन करने के लिये यह सर्वप्रमुख ग्रन्थ है। नेपाल की वंशावलियों में वहाँ के शासकों का नामोल्लेख प्राप्त होता है, किन्तु उनमें से अधिकांश अनैतिहासिक हैं। 

अर्द्ध-ऐतिहासिक ग्रंथ : 

अर्द्ध-ऐतिहासिक रचनाओं में पाणिनि की अष्टाध्यायी, कात्यायन का वार्त्तिक, गार्गीसंहिता, पतंजलि का महाभाष्य, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस तथा कालिदासकृत मालविकाग्निमित्र आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

      पाणिनि तथा कात्यायन के व्याकरण-ग्रन्थों से मौर्यो के पहले के इतिहास तथा मौर्ययुगीन राजनीतिक अवस्था पर प्रकाश पड़ता है। पाणिनि ने सूत्रों को समझाने के लिए जो उदाहरण दिये हैं उनका उपयोग सामाजिक-आर्थिक दशा के ज्ञान के लिये भी किया जा सकता है। इससे उत्तर भारत के भूगोल की भी जानकारी होती है।

 

      गार्गीसंहिता, यद्यपि एक ज्योतिष-ग्रन्थ है तथापि इससे कुछ ऐतिहासिक घटनाओं की सूचना मिलती है। इसमें भारत पर होने वाले यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है जिससे हमें पता चलता है कि यवनों ने साकेत, पंचाल, मधुरा तथा कुसुमध्वज (पाटलिपुत्र) पर आक्रमण किया था। 

      पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे। उनके महाभाष्य से शुंगों के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। 

      मुद्राराक्षस से चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में सूचना मिलती है। 

      कालिदास कृत ‘मालविकाग्निमित्र’ नाटक शुंगकालीन राजनीतिक परिस्थितियों का विवरण प्रस्तुत करता है।

ऐतिहासिक जीवनियाँ : 

ऐतिहासिक जीवनियों में अश्वघोषकृत बुद्धचरित, बाणभट्ट का हर्षचरित, वाक्पति का गौडवहो, विल्हण का विक्रमाङ्कदेवचरित, पद्यगुप्त का नवसाहसाङ्कचरित, सन्ध्याकर नन्दी कृत “रामचरित”, हेमचन्द्र कृत “कुमारपालचरित” (द्वयाश्रयकाव्य), जयानक कृत “पृथ्वीराजविजय” आदि का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है। 

 

बुद्धचरित” में गौतम बुद्ध के चरित्र का विस्तृत वर्णन हुआ है। 

हर्षचरित” से सम्राट हर्षवर्धन के जीवन तथा तत्कालीन समाज एवं धर्म-विषयक अनेक महत्वपूर्ण सूचनायें मिलती हैं। 

गौडवहो में कन्नौजनरेश यशोवर्मन् के गौड़नरेश के ऊपर किये गये आक्रमण एवं उसके बध का वर्णन है। 

विक्रमाङ्कदेवचरित में कल्याणी के चालुक्यवंशी नरेश विक्रमादित्य षष्ठ का चरित्र वर्णित है।

नवसाहसाँकचरित में धारानरेश मुञ्ज तथा उसके भाई सिन्धुराज के जीवन की घटनाओं का विवरण है।

रामचरित‘ से बंगाल के पालवंश का शासन, धर्म एवं तत्कालीन समाज का ज्ञान होता है।

आनन्दभट्ट कृत बल्लालचरित से सेन वंश के इतिहास और संस्कृति पर प्रकाश पड़ता है। 

 

कुमारपालचरित में चौलुक्य शासकों- जयसिंह सिद्धराज तथा कुमारपाल का जीवन चरित तथा उनके समय की घटनाओं का वर्णन है।

पृथ्वीराजविजय से चाहमान (चौहान) राजवंश के इतिहास का ज्ञान होता है। इसके अतिरिक्त और भी जीवनियां है जिनसे हमें प्रचुर ऐतिहासिक सामग्री मिल जाती है। 

राजशेखरकृत प्रबन्धकोश, बालरामायण तथा काव्यमीमांसा – इनसे राजपूतयुगीन समाज तथा धर्म पर प्रकाश पड़ता है।

दक्षिण भारत के लौकिक साहित्य : 

उत्तर भारत के समान दक्षिण भारत से भी अनेक तमिल ग्रन्थ प्राप्त होते है जिनसे वहाँ शासन करने वाले विभिन्न राजवंशों के काल का इतिहास एवं संस्कृति का ज्ञान होता है। 

तमिल देश का प्रारम्भिक इतिहास ‘संगम-साहित्य से ज्ञात होता है। नन्दिक्कलम्बकम्, कलिंगत्तुषर्णि, चोलचरित आदि के अध्ययन से सुदूर दक्षिण में शासन करने वाले पल्लव तथा चोल वंशों के इतिहास एवं उनकी संस्कृति का ज्ञान होता है। 

 

कलिंगत्तुपर्णि में चोल सम्राट कुलोत्तुंग प्रथम की कलिंग विजय का विवरण सुरक्षित है। 

तमिल के अतिरिक्त कन्नड़ भाषा में लिखा गया साहित्य भी हमें उपलब्ध होता है। इसमें महाकवि पम्प द्वारा रचित ‘विक्रमार्जुन विजय’ (भारत) तथा रन्न कृत ‘गदायुद्ध’ विशेष महत्व के हैं। इनसे चालुक्य तथा राष्ट्रकूट वंशों के इतिहास पर कुछ प्रकाश पड़ता है। 

धन्यवाद🙏 
आकाश प्रजापति
(कृष्णा) 
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़ , उ०प्र० 
छात्र:  प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक तृतीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय

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