भारतीय पाषाण कालीन पुरास्थलों के उत्खनन के परिणामस्वरूप हमें वहां से पाषाण उपकरण तथा अन्य भौतिक अवशेषों के अलावा एक अन्य महत्त्वपूर्ण सामग्री प्राप्त हुई है जिसके माध्यम से पाषाण काल की संस्कृतियों का सटीक इतिहास लेखन नहीं किया जा सकता था। वह है ‘पाषाणकालीन शैल चित्रकला’ (Paleolithic paintings in hindi)।
शैल चित्रों से न केवल हम ततयुगीन मानव के क्रिया कलापों को भली भांति समझ सकते हैं बल्कि हमें इससे उनके बौद्धिक उन्नति के भी प्रमाण प्राप्त हो रहे हैं।
आज के इस article में हम इन्ही शैलचित्रों से जुड़ी बातों को जानने का प्रयास करेंगे। आप अंत तक इस पूरे लेख को पढ़ें क्योकि इसमें बताई गई जानकारियां आपके लगभग सभी परीक्षाओं के लिए उपयोगी सिध्द होंगी।
प्रागैतिहासिक चित्रकला : Paleolithic paintings in hindi
भारत के लगभग सभी शैल-आश्रयों में, जिनमें उत्तर पुरापाषाणयुगीन और मध्यपाषाणयुगीन लोग रहते थे और बहुत से अन्य लोग भी रहते थे, अनेक शैल-चित्र हैं, जिनमें विविध प्रकार के विषयों का, मुख्य रूप से पशुओं का और ऐसे दृश्यों का चित्रांकन किया गया है, जिनमें पशु और मनुष्य दोनों शामिल हैं।
प्राप्त शैल चित्रों का प्रसार क्षेत्र :
इन शैल चित्रों के स्थान बहुत व्यापक क्षेत्रों में फैले हुए हैं। ये पश्चिमोत्तर पाकिस्तान में चारगुल से लेकर पूर्व में उड़ीसा तक, और उत्तर में कुमाऊँ की पहाड़ियों से लेकर दक्षिण में केरल तक पाए जाते हैं। शैल-चित्रों के कुछ महत्त्वपूर्ण स्थल ये हैं : उत्तर प्रदेश में मुरहाना पहाड़, मध्य प्रदेश में भीमबेटका, आदमगढ़, लाखा जुआर और कर्नाटक में कुपागल्लू।
पाषाणकाल की चित्रकला : Pashankalin chitrakala
उत्तर पुरापाषाणयुगीन और मध्यपाषाणयुगीन काल के आवासीय मलबे में पाए गए हेमाटाइट टुकड़ों से निर्णायक रूप से यह सिद्ध होता है कि ये चित्र इन गुफाओं और आश्रयों में रहने वाले लोगों द्वारा बनाए गए थे। सबसे अधिक चित्रांकन पशुओं का अकेले अथवा बड़े और छोटे समूहों में किया गया है और उन्हें विभिन्न मुद्राओं में दिखाया गया है।
इसके अलावा, शिकार के भी कुछ दृश्य हैं, जिनमें आदमगढ़ की शैलाश्रय शृंखला के गैंडे के शिकार वाले चित्र से पता चलता है कि बड़े जानवरों का शिकार बहुत से लोगों द्वारा मिलकर किया जाता था। पशुओं का चित्रांकन मोटी रेखाओं द्वारा किया गया है, और उनके शरीर को कई बार पूर्णतः अथवा अंशतः आड़ी रेखाओं से भरा गया है।
इन तीनों तरीकों के उदाहरण उत्तर प्रदेश में मुरहाना पहाड़, मध्य प्रदेश में भीमबेटका, आदमगढ़ की गुफाओं और शैलाश्रयों में खींचे गए पशुओं के चित्रों में देखे जा सकते हैं। पशुओं के अलावा, पक्षियों, मछलियों, आदि के चित्र भी अंकित किए गए हैं।
प्रागैतिहासिक शैल चित्रकला :
शैल चित्रों में मानव आकृतियों का चित्रांकन एक आम बात है। ये सादी रूपरेखा के रूप में भी में हैं और तिरुरेखित जाली चित्रों के रूप में भी। मनुष्यों को विविध प्रकार के कार्य करते हुए; जैसे- नृत्य करते, भागते, शिकार करते, खेलते और युद्ध करते हुए दिखाया गया है। चित्र बनाने में गहरे लाल, हरे, सफेद और पीले रगों का उपयोग किया गया है।
धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़ , उ०प्र०
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक तृतीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय
Tags:
पाषाणकालीन शैल चित्र , पाषाण काल की चित्रकला , पाषाणयुगीन चित्रकारी , प्रागैतिहासिक चित्रकला , प्रागैतिहासिक काल की शैल चित्रकला , प्रागैतिहासिक कला , पाषाण काल के चित्र , प्रागैतिहास काल की चित्रकला , भारतीय चित्रकला का इतिहास।