important historical sites of ancient india : प्राचीन भारत के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल और उनका महत्व नीचे दिया गया है। इन ऐतिहासिक स्थलों से जुड़े प्रश्न राज्य व केंद्र की एकदिवसीय व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। इनके विवरण निम्नलिखित हैं-
प्राचीन भारत के ऐतिहासिक पुरास्थल :
अतरंजीखेड़ा – important historical sites of ancient india
अतरंजीखेड़ा (उत्तर प्रदेश में एटा जनपद में स्थित) से गैरिक मृद्भाण्ड संस्कृति से लेकर गुप्त युग तक के अवशेष प्राप्त हुए हैं। अधिकांश अवशेष चित्रित धूसर मृद्भाण्ड संस्कृति से सम्बद्ध हैं। अतरंजीखेड़ा को उत्तर वैदिककालीन स्थल स्वीकार किया जाता है। यहाँ से 1,000 ई० पू० के लौह प्रयोग, धान की खेती, वृत्ताकार अग्निकुण्ड तथा कटे निशान वाले पशुओं की हड्डियाँ प्राप्त हुई हैं, उत्तरीकाली ओपदान मृद्भाण्ड संस्कृति के चरण में यहाँ नगर-संस्कृति के चिन्ह दृष्टिगत हुए हैं। इस प्रागैतिहासिक स्थल की खोज एलेक्जेण्डर कनिंघम ने की थी।
पाटलिपुत्र –
पाटलिपुत्र (पटना) बिहार की राजधानी है। यहाँ महाजनपद युग से लेकर ब्रिटिश काल तक के ऐतिहासिक साक्ष्यों को संजोये हुए हैं। इसे कुसुमपुर अथवा पालिब्रोथा भी कहते हैं। पाटलिपुत्र को पाँचवी शताब्दी ई० पू० में उदयिन ने बसाया था। इसे भारत की प्रथम राजधानी होने का श्रेय प्राप्त है। मौर्य-पूर्व युग में यह नगर कालशोक तथा नन्दों की राजधानी था। यह भारत के समस्त व्यापारिक मार्गों व राजपथों से सम्बद्ध था। मौर्यो, शुंगों और कण्वों ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। शेरशाहसूरी ने सोलहवीं शताब्दी में इस नगर का पुनर्निर्माण कर उसे पटना नाम दिया था मुगलों के काल में यह (पटना) बिहार प्रान्त को राजधानी थी।
मथुरा-
उत्तर प्रदेश का जिला नगर मथुरा प्राचीन काल से व्यापारिक मार्ग पर स्थित होने के कारण आर्थिक, राजनीतिक महत्व का ऐतिहासिक स्थल रहा है। महाजनपद युग से यह सूरसेनों की राजधानी थी; कुषाणों की पूर्वी प्रदेशों की राजधानी थी; यहाँ से वैक्ट्रियाई यूनानी मिनेण्डर के सिक्के प्राप्त हुए हैं। मौर्योत्तर युग में यह मध्य एशिया से सम्बद्ध रेशम मार्ग से जुड़ा हुआ था मथुरा में विकसित मथुरा काल को बुद्ध की प्रथम मूर्ति बनाने का श्रेय है।
उज्जैन
उज्जैन अथवा उज्जयिनी अथवा अवन्तिका के नाम से चर्चित रहा। यह नगर शिप्रा नदी के तट पर स्थित मध्य प्रदेश का जनपदीय नगर है। ‘पेरिप्लस’ में इसे ‘ओजीनी’ कहा गया है; इसके प्रसिद्धि के विवरण 708 ई० पू० से 11वीं शताब्दी ई० तक के प्राप्त हुए हैं। महाजनपद युग में यह अवन्ति के उत्तरी क्षेत्र की राजधानी रहा था। उज्जैन की प्रसिद्धि का कारण यहाँ लौह प्रचुरता थी। शिशुनाग ने इसे इसकी शक्ति व प्रसिद्धि के कारण अपने साम्राज्य (मगध) में विलीन कर लिया था। मौर्य काल में यह अवन्ति प्रान्त की राजधानी रहा था।
अशोक ने उज्जैन में इसके सामयिक महत्व के कारण स्थानांतरण की चक्रवत प्रणाली अपनाई थी। मौर्योत्तर युग में यह अरब सागर के तटीय बन्दरगाह को उत्तर व पूर्वी भारत से जोड़ने वाले व्यापारिक मार्ग का सर्वाधिक प्रसिद्ध केन्द्र स्थल था। शुंगकाल में यह राजधानी का गौरव प्राप्त किए हुए था। उज्जैन रेशम मार्ग से सम्बद्ध था। उज्जैन में शक क्षत्रपों ने शासन संचालित किया था, बाद में यह गुप्त शासकों के अन्तर्गत सांस्कृतिक केन्द्र भी बना था। गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ ने इसे अपनी ‘द्वितीय राजधानी होने का गौरव प्रदान किया।
कालिदास ने उज्जयिनी की विशेष रूप से प्रशंसा की है तथा इसके वैभव का उल्लेख किया है। यहाँ का महाकालेश्वर शिव मन्दिर बहुत चर्चित रहा। जयपुर के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने अठारहवीं शताब्दी में जन्तर-मन्तर वेधशाला का निर्माण यहाँ कराया था। बौद्ध ग्रन्थों में इस नगरी को’ अच्युतगामी’ नाम से उल्लिखित किया गया है। महाभारत में यह नगरी ‘सान्दीपनि आश्रम’ के नाम से प्रसिद्ध थी। छठी शताब्दी ई० पू० में चण्ड प्रद्योत उज्जयिनी का प्रसिद्ध शासक रहा था।
सोमनाथ-
गुजरात में प्रभासपट्टन नामक समुद्रतटीय क्षेत्र में स्थित सोमनाथ शिव मन्दिर के लिए चर्चित रहा था जिसका निर्माण चालुक्यों ने किया था, इस मन्दिर में अधिक धन संग्रह था तथा दस हजार गाँव अनुदान में मन्दिर को प्राप्त थे। 1025 ई० में महमूद गजनवी ने इस मन्दिर पर आक्रमण कर शिवलिंग व मन्दिर को तोड़ दिया था तथा अतुलनीय धन-सम्पत्ति लूट ले गया था।
कांची-
कांचीपुरम् तमिलनाडु के चिंगलेपुर जनपद में स्थित है। यह पालार नदी के तट पर बसा हुआ है। कांची का उल्लेख पतंजलि के महाभाष्य, समुद्रगुप्त की प्रयाग-प्रशास्ति एवं पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में हैं। कांची के उत्खनन से प्राप्त अवशेष पल्लव पूर्व, पल्लव युग, चोल युग एवं विजय नगर के काल से सम्बद्ध हैं। कांची से रोम के साथ व्यापार करने के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। कांची पल्लव शासकों की राजधानी रही थी। 640 ई० में कांची की हेनसांग ने यात्रा की थी उसने इसे द्रविड़ देश की राजधानी लिखा है।
कालांतर में कांची पर चोलों, तुर्क अफगानों, मराठों एवं फ्रांसीसियों का प्रभुत्व स्थापित हुआ। प्राचीन काल में कांची शैक्षणिक, सांस्कृतिक गतिविधियों का महत्वपूर्ण केन्द्र स्थल था। कांची जैन, बौद्ध, भागवत और शैव आदि सभी सम्प्रदायों का संगम स्थल बना रहा था। बौद्ध दार्शनिक दिंगनाग तथा धर्मपाल एवं संस्कृत विद्वान भारवि और दण्डी कांची से सम्बद्ध रहे थे। कांची में मन्दिर निर्माण की द्रविड़ शैली का अद्वितीय विकास हुआ था, कैलाशनाथ मन्दिर, चौकुण्ठ परिमल मन्दिर इस शैली के सुन्दरतम प्रतीक कांची को गौरव प्रदान करते हैं। कांची में आदि शंकराचार्य ने एक पीठ की स्थापना की थी। कांची हिन्दुओं की पवित्रतम नगरियों में एक स्वीकार की जानी है। प्राचीन भारत में कांची की सड़कें श्रेष्ठ समझी जाती थीं।
सोपारा (सूर्पारक )-
सोपारा (महाराष्ट्र के थापो जिले में स्थित) प्राचीन भारत का चर्चित बन्दरगाह था। यह बन्दरगाह पश्चिम की ओर के मार्ग का प्रमुख केन्द्र था हिब्रू साहित्य में वर्णित “ओफोर ” पद से इसे चिन्हित किया गया है। जातक साहित्य तथा महाभारत में भी इसका उल्लेख है। सोपारा से अशोक का आठवाँ अभिलेख प्राप्त है, इससे अरबसागरीय क्षेत्र से होने वाले व्यापार पर मौर्य प्रभुत्व की पुष्टि होती है। शक सातवाहन युग में सोपारा (सूपरक) का विशिष्ट व्यापारिक महत्व स्थापित था।
महाबलीपुरम् (मामल्लपुरम् ) –
तमिलनाडु में मद्रास से 40 मील की दूरी पर समुद्रतट पर यह नगर स्थित है। सुदूर दक्षिण में शासन करने वाले पल्लव राजाओं के काल में यहाँ प्रसिद्ध समुद्री बन्दरगाह तथा कला का केन्द्र था। यहाँ मण्डप तथा एकाश्मक मन्दिरों (Monolithic Temples), जिन्हें ‘रथ’ कहा गया है, का निर्माण हुआ। ये पल्लव वास्तु एवं स्थापत्य के चरमोत्कर्ष के सूचक हैं। मुख्य पर्वत पर 10 मण्डप बने हैं जिनमें आदिवाराह, महिषमर्दिनी, पञ्चपाण्डव, रामानुज आदि मण्डप प्रसिद्ध हैं।
इन मण्डपों में दुर्गा, विष्णु, ब्रह्मा, गजलक्ष्मी, हरिहर आदि की कलात्मक प्रतिमायें उत्कीर्ण मिलती हैं। महाबलीपुरम् के रथ कठोर चट्टानों को काटकर बनाये गये हैं तथा मूर्तिकला के सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। इन्हें ‘ सप्तपगोडा’ कहा जाता है। ये महाभारत के दृश्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन पर दुर्गा, इन्द्र, शिव-पार्वती, हरिहर, ब्रह्म, स्कन्द, गंगा आदि की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। एक रथ पर पल्लव शासक नरसिंह वर्मा की भी मूर्ति खुदी है।
महाबलीपुरम् समुद्र पार कर जाने वाले यात्रियों के लिये मुख्य वन्दरगाह भी था। समुद्र यात्राओं की सुरक्षा के निमित्त यहां पहाड़ी पर दीप स्तम्भ बनवाया गया था।
तन्जौर –
तमिलनाडु के त्रिचनापल्ली जिले में स्थित तन्जौर नामक नगर प्राचीन समय में सुप्रसिद्ध चोल शासकों की राजधानी था। यह नगर कावेरी नदी के दक्षिण की ओर बसा है। चोल राजाओं के काल में इसकी महत्ती उन्नति हुई। प्रसिद्ध चोल शासक राजराज ने 1000 ई० के लगभग यहाँ के वृहदीश्वर (राजराजेश्वर) मन्दिर का निर्माण करवाया था। यह 500 x 500 के आकार वाले विशाल प्रांगण में स्थित है। इसमें मध्यकालीन वास्तुकला के सभी लक्षण मिलते हैं। मन्दिर के गर्भगृह, मण्डप तथा विमान सभी आकर्षक हैं।
विमान 190 ऊँचा है। मन्दिर की तीन बाहरी दीवारों पर विभिन्न देवी-देवताओं को कलात्मक प्रतिमायें बनी हुई हैं। गर्भगृह को भी अनेक सुन्दर मूर्तियों तथा चित्रों से अलंकृत किया गया है। यह मन्दिर दक्षिणी भारत का सर्वश्रेष्ठ हिन्दू मन्दिर माना जाता है। प्रो० नीलकण्ठ शास्त्री के शब्दों में भारत के मन्दिरों में सबसे बड़ा तथा लम्बा यह एक उत्कृष्ट कलाकृति है जो दक्षिण भारतीय स्थापत्य के चरमोत्कर्ष को व्यक्त करती है। द्रविड़ शैली का यह सर्वोत्तम नमूना है।”
बृहदीश्वर (शिव) के मन्दिर के अतिरिक्त तन्जौर से कई अन्य मन्दिरों के भी उदाहरण मिलते हैं। इनमें सुब्रह्मण्यम् मन्दिर तथा रामानाथस्वामी का मन्दिर उल्लेखनीय है। कुल मिलाकर यहाँ 75 से भी अधिक छोटे-बड़े मन्दिर विद्यमान हैं।