उदारवादियों के अनुसार, समानता (Equality) वैधानिक होती है। अर्थात् व्यक्ति कानून व नियमों के समक्ष समान माने जाएंगे।’
• लॉक के अनुसार, प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान व स्वतंत्र पैदा किया है। कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के जीवन, स्वास्थ्य, स्वतंत्रता तथा संपत्ति का क्षति नहीं पहुंचा सकता।
• अमेरिकी स्वतंत्रता घोषणा पत्र में कहा गया है कि सभी लोग जन्म से समान हैं और निर्माता ने सभी मनुष्यों को समान अधिकार दिया है।
• वर्ष 1789 में फ्रांसीसी क्रांति के घोषणा-पत्र में कहा गया कि मर्यादा और अधिकारों में सभी लोग जन्म से स्वतंत्र एवं समान हैं।
•मार्क्सवादियों एवं समाजवादियों ने तात्विक समानता पर बल दिया, जिसमें रोजगार अधिकारों, संपत्तियों का समानतापूर्ण वितरण एवं राज्य के नियंत्रण पर बल दिया। • समानता की संकल्पना आधुनिक युग की देन है।
• आधुनिक युग में समानता की संकल्पना को केंद्रीय बनाने का श्रेय ‘रूसो’ को दिया जाता है।
समानता का आशय :- Meaning of Equality
• समानता ‘चाहिए’ से संबंधित संकल्पना है। • तथ्यात्मक रूप में समानता नहीं होती है।
• समानता का अर्थ समाज में विशेषाधिकारों एवं विषमताओं को समाप्त करना है।
• अतः समानता का अर्थ, ‘विभेदों का अंत’ है।
• परंतु समानता का आशय प्रत्येक प्रकार के विभेदों को समाप्ति नहीं, बल्कि अतार्किक विभेदों की समाप्ति है।
• अतार्किक विभेदों का आशय लिंग, जाति एवं धर्म के आधार पर किए गए विभेद हैं।
अतः समानता का अर्थ ‘उन विषमताओं को हटाना है. जो समाज द्वारा निर्मित हैं, न कि प्राकृतिक विषमताओं का अंत करना।
• समानता का आशय, सभी के साथ समान व्यवहार नहीं है।
• समानता का आशय, समान लोगों के साथ, समान व्यवहार करना एवं असमान लोगों के साथ, असमान व्यवहार करना समानता है।
• अतः समानता का समकालीन युग में सबसे सटीक अर्थ, ‘अवसर की समानता’ है।
• लास्की के अनुसार, ‘समाज में कोई व्यक्ति इतना ऊंचा न होने पाए कि पड़ोसी अपनी नागरिकता और स्थिति में स्वतः को हीन समझे।’
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विभिन्न विचारकों के अनुसार, समानता की संकल्पना :
• 20वीं शताब्दी में समानता के सबसे बड़े समर्थक आर. एच. दोनी है। इंग्लैंड में असमानता का धर्म व्याप्त है। इनकी रचना- “Equality” (1931) है। इनकी अन्य रचनाएं- “The Acquisitive Society” (1920) तथा “Religion and the Rise of Capitalism” (1926), “Education: the Socialist Policy” (1924) है।
• हॉब्स के लेखन के दौरान इंग्लैंड में समानता के लिए दो समानांतर आंदोलन चल रहे थे-
(i) Levellers- राजनीतिक समानता के समर्थको
(ii) Diggers आर्थिक समानता के समर्थक (नेता निन्स्टले)।
• लॉक के विचारों में नैतिक समानता की संकल्पना अंतर्निहित है। लॉक ने स्पष्ट कहा कि प्राकृतिक अवस्था में सभी मनुष्य समान थे तथा सभी व्यक्तियों को ईश्वर ने समान अधिकार दिया।’
• बेंथम ने पहली बार राजनीतिक समानता का सूत्र प्रस्तुत किया-‘एक व्यक्ति, एक मत।’
समानता के आयाम :
A. औपचारिक समानता या निरपेक्ष समानता :
• शास्त्रीय उदारवादी तथा नव उदारवादी विचारक इस समानता का समर्थन करते हैं।
• औपचारिक समानता के समर्थक हाँस, लॉक, बेथन मिल इत्यादि विचारक है।
औपचारिक समानता में निम्नलिखित प्रकार की समानता को शामिल किया जाता है-
1. नैतिक समानता
• समानता का आरंभिक विचार नैतिक समानता के रूप में आया।
• नैतिक समानता एक आदर्शवादी संकल्पना है।
• नैतिक समानता का आशय सभी व्यक्तियों के साथ समानता का व्यवहार होना चाहिए, क्योंकि सभी व्यक्ति ईश्वर की समान संतान है।
• हॉन्स, लॉक द्वारा वर्णित प्राकृतिक अवस्था में नैतिक समानता विद्यमान थी।
2. वैधानिक समानता
• वैधानिक समानता का आशय, विधि के समक्ष समानता से है। अतः विधि के समक्ष सभी व्यक्ति समान होंगे।
• वैधानिक समानता के समर्थक लॉक बंथम ऑस्टिन, मिल इत्यादि विचारक थे।
3. सामाजिक समानता
• समाज में धर्म, जाति एवं लिंग के आधार पर विभेद की समाप्ति।
• समाज में विशेषाधिकारों एवं विषमताओं का अंत करना तथा अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना है।
4. राजनीतिक समानता
• प्रत्येक व्यक्ति को राजनीतिक जीवन में सहभागिता का समान अधिकार प्रदान करना।
• प्रत्येक व्यक्ति को समान मत देने का अधिकर प्रदान करना। (बेंथम ने सर्वप्रथम एक व्यक्ति एक मत का विचार दिया।)
5. आर्थिक समानता
• इसका समर्थन कल्याणकारी राज्य के समर्थक एवं समाजवादी विचारक करते हैं।
• न्यूनतम आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना।
• व्यक्तियों को काम का अधिकार प्रदान करना।
6. लैंगिक समानता
• पितृसतात्मक सत्ता की समाप्ति करना।
• निजी एवं सार्वजनिक जीवन में विभेद की समाप्ति
• महिलाओं के परेलू कार्यों का महत्व स्वीकार करना।
• ब्रिटेन के वे विचारक जो समाजवादी झुकाव रखते थे। उनमें रिचर्ड टोनी जॉर्ज वेल एवं रिचर्ड टिटमस प्रमुख थे।
B. अवसर की समानता
• वह समानता का सर्वस्वीकृत आधुनिक रूप है।
• अवसर की समानता का अभिप्राय, समानों के साथ, समान व्यवहार तथा असमानों के साथ, असमान व्यवहार से है।”
• अवसर की समानता का मूल अभिप्राय, ‘आरंभिक स्थिति या मूलभूत रूप में समानता लाना है, प्रत्येक स्थिति में नहीं।’
• डार्किन ने अवसर की समानता को ‘संसाधनों की समानता? के रूप में व्यक्त किया।
• डार्किन के अनुसार, ‘आरंभिक स्थिति में लोगों को समान संसाधन दिए जाएंगे। ‘
• परंतु डॉकिन शारीरिक रूप से विकलांग लोगों को अन्य लोगों से अधिक सुविधाएं प्रदान करने का समर्थन करते हैं, जिसे डॉकिन ने पेंशन योजना’ का नाम दिया है। डॉन की रचना “Taking Rights Seriously” (1977) एवं इनकी अन्य रचना- “Law’s Empire” (1986) तथा Sovereign Virtue (2000) है।
• जॉन राल्स भी अवसर की समानता के समर्थक हैं। रॉल्स के अनुसार, अवसर की समानता का आशय व्यक्तियों को मूलभूत प्राथमिक वस्तुओं को प्रदान करना है।’
अवसर की समानता का व्यावहारिक पक्ष
1. सकारात्मक क्रिया (Affirmative Action)
• यह व्यवस्था अमेरिका में प्रचलित है, जिसके द्वारा अश्वेतों के सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक उत्थान के लिए सरकार विश्वविद्यालय द्वारा कुछ विशेष उपाय एवं प्रबंध किए जाते हैं।
• सकारात्मक क्रिया के अंतर्गत अमेरिका में विश्वविद्यालयों में अश्वेतों के लिए कम अंकों पर प्रवेश दिया गया ।
• अश्वेतों के लिए सीट आरक्षित कर दी गई।
2. भारत में अवसर की समानता
• भारतीय संविधान में अवसर की समानता को ‘संरक्षणात्मक विभेद’ या (Reverse Discrimination) या विधि के समक्ष समान संरक्षण की संज्ञा भी दी जाती है। इसके अंतर्गत पिछड़े वर्ग के लोगों को सेवाओं में आरक्षण प्रदान किया जाता है।
• यह विभेद संरक्षणात्मक है क्योंकि समाज के वंचित वर्ग के संरक्षण एवं उत्थान के लिए यह विभेद आवश्यक है।
C. परिणामों की समानता या परिस्थितियों की समानता
• परिणामों की समानता का समर्थन मार्क्सवादी विचारक करते हैं।
• परिणामों की समानता का आशय सभी व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति को समान बना देना है।
• परिणामों की समानता के अंतर्गत मार्क्सवादियों ने समाज से सामाजिक एवं आर्थिक विषमता को पूर्ण रूप में समाप्त करने का नारा दिया।
• पूजीवादी व्यवस्था की समाप्ति के बाद ही वास्तविक समानता स्थापित होगी।
परिणामों की समानता की आलोचना
• मिलोवन जिलास (Milovan Djilas) ने अपनी पुस्तक- “The New Class” (1957) में कहा कि ‘समाजवादी समाज में समानता केवल एक दिखावा है। वास्तविक रूप में पार्टी के मुट्ठीभर पदाधिकारियों ने व्यवस्था पर नियंत्रण कर रखा है।’
• जेम्स बनहम मे अपनी पुस्तक “The Managerial Revolution” (1941) में प्रबंधकीय क्रांति की चर्चा करते हुए आधुनिक समाज को उत्तर- औद्योगिक समाज की संज्ञा दी। उनके अनुसार, आधुनिक समाज में व्यवसायी और तकनीकी विशेषज्ञ महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। इसलिए न तो पूंजीपति प्रधान हैं, न ही सर्वहारा वर्ग।
विभिन्न विचारधाराओं के अनुसार, समानता का अर्थ
- शास्त्रीय उदारवादी या परंपरागत उदारवादी
• ये समानता को वैधानिक या औपचारिक या राजनीतिक समानता के रूप में स्वीकार करते हैं।
- मार्क्सवादी
• ये समानता को परिणामों की समानता या परिस्थितियों की समानता के रूप में स्वीकार करते हैं।
• ये मूल रूप में समानता को आर्थिक समानता के रूप में मानते हैं। इनके अनुसार, आर्थिक समानता के अभाव में राजनैतिक एवं वैधानिक समानता निरर्थक है।
- सकारात्मक उदारवादी या कल्याणकारी राज्य के समर्थक
• इनके अनुसार समानता का आशय, अवसर की समानता से है।
• अवसर की समानता के अंतर्गत वैधानिक, आर्थिक व राजनीतिक सभी तरह की समानता शामिल है।
4. समानता की समुदायवादी संकल्पना
• वॉल्जार (Walzer) ने ‘जटिल समानता’ (Complex equality) विचार प्रस्तुत किया। इनके अनुसार समाज में मूलभूत वस्तुओं के वितरण के भिन्न मानदंड होने चाहिए।
• प्रत्येक समाज के लिए एकसमान वस्तुएं उपयोगी नहीं होती।
• इनके अनुसार, सभी व्यक्तियों को समान मूलभूत सुविधाएँ प्राप्त होनी चाहिए। परंतु प्रत्येक क्षेत्र में समानता संभव नहीं है।
• चाल्र्स टेलर भी समुदायवादी हैं। इनकी प्रसिद्ध रचना-“Sources of the Self” (1989) है।
5. समानता की नारीवादी संकल्पना
उदारवादी नारीवाद
• उदारवादी नारीवादी, सार्वजनिक क्षेत्र में समानता के समर्थक हैं।
• समान राजनीतिक अधिकार एवं शिक्षा अधिकार के समर्थक हैं।
उग्र-नारीवाद
• उग्र नारीवादी, निजी जीवन में समानता के समर्थक हैं।
• नैतिक, वैधानिक, राजनीतिक व आर्थिक समानता आवश्यक है, लेकिन पर्याप्त नहीं।
• नारीवादियों ने पितृ सत्तात्मक सत्ता का विरोध किया।
• पितृ सत्तात्मक सत्ता का अभिप्राय, सार्वजनिक क्षेत्र पुरुषों का होता है। जबकि निजी एवं घरेलू क्षेत्र महिलाओं की दे दिया गया है। महिलाएं इस निजी एवं घरेलू क्षेत्र में भी पुरुषों के अधीन होती हैं।
• महिलाओं के सामने नाम न होने की समस्या या पहचान का संकट होता है।
• घरेलू श्रम का कोई मूल्य नहीं। Sex-जैविक संकल्पना, Gender सांस्कृतिक संकल्पना, परिधान, बड़े बाल का निर्धारण समाज द्वारा या पितृ सत्तात्मक समाज द्वारा होता है।
• समानता का आशय यह नहीं कि नारी को पुरुषों के समान बना दिया जाए, बल्कि नारीवादी मूल्यों की समाज में उचित स्थान दिया जाए।
• पुरुषों की बहादुरी और साहस को प्रभावी बनाकर प्रस्तुत किया गया।
कैरोल पेटमैन
• महिलाओं को पितृसतात्मक सत्ता द्वारा निजी क्षेत्र के तहत रखा गया है।
• कल्याणकारी राज्य को पितृ सचात्मक राज्य की संज्ञा दी।
• महिलाएं अभी भी प्राकृतिक अवस्था में है, सामाजिक समझी में शामिल नहीं थीं।
• इनकी रचना-“Feminist Critiques of the Public Private Dichotomy” (1983) है।
बेट्टी फ्रीडन
• महिला मुक्ति की जन्मदाता।
• द्वितीय चरण में नारीवादी आंदोलन (Radical Feminism) का आधार रखा गया। इनकी रचनाओं के नाम है-
(i) “The Feminine Mystique (1963)
(ii) “The Second Stage” (1981)
• मुख्य समस्या नाम न होने की समस्या महिलाओं के समक्ष विद्यमान है।
केट मिलेट
• नारीवादी राजनीति ‘दिन-प्रतिदिन की राजनीति’ है।
• ” The Sexual Politics” (1969) इनकी प्रसिद्ध रचना है।
जमींन ग्रीर की प्रसिद्ध रचनाएं
• “Sex and Destiny” (1984)
• “The Female Eunuch” (1970)
साइमन द बुवा
• साइमन द बुवा का प्रसिद्ध कथन, ‘महिलाएं पैदा नहीं होती, बल्कि बनाई जाती हैं।’
• इनका प्रसिद्ध कथन है कि व्यक्तिगत ही राजनीतिक है।”
• “The Second Sex” (1949) तथा “The Personal is Political” (1970) इनकी रचनाएं हैं।
वर्जीनिया वूल्फ
• महिला होने के नाते मेरा कोई देश नहीं हैं।
• A Room of One’s Own” (1929) इनकी रचना है।
• मारियोमा डल्ला कोस्टा (इटली) महिलाओं को उनके घरेलू कार्यों के लिए वेतन प्रदान करना चाहिए।’
कैरोल गिलिगन
• इनकी रचना- “In A Different Voice” (1982) है।
• मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से लड़कियों का लगाव मां से होता है, जबकि पुरुष अपनी पहचान स्वतंत्र रूप में बनाना चाहता है।
• उन्होंने देखभाल को नैतिकता’ (EthicsofCare) का विचार प्रस्तुत किया। जो गैस की न्याय की नैतिकता से अलग है।
एलस्टीन
• इनकी रचना ” Public Man, Private Womani” (1993) है।
• महिलाओं के पास केवल घरेलू कार्य हैं।
• शोषण का कारण सेक्स (Sex) नहीं (Gender) है।
• आयरिश मेरियम यंग ने “Justice and the Politics of Difference” (1994) नामक प्रसिद्ध रचना लिखी। इनकी अन्य रचनाएं “Inclusion and Democracy” (2001) एवं “On Female Body Experience (2005) है।
• कोहेन ने “Rescuing Justice and Equality” (2008) नामक रचना लिखी तथा इन्होंने रॉल्स के न्याय सिद्धांत की आलोचना भी की है।
• ओकिन की प्रसिद्ध रचना- “Justice, Gender and the Family” (1991) है।
बहुसंस्कृतिवादी समानता की संकल्पना
• भीखू पारिख एवं किमलिका इसके मान्यताकार हैं।
• विषमता केवल आर्थिक नहीं होती, बल्कि सांस्कृतिक भी होती है।
• समूह विशेष के अधिकारों की मांग करते हैं।
• पहचान की राजनीति का समर्थन करते हैं।
• किमलिका के अनुसार, विभेदीकृत नागरिकता (Differentiated Citizenship) प्रत्येक समूह की विभिन्न विशिष्ट आवश्यकताएं एवं लक्ष्य होते हैं।
• अल्पसंख्यकों को भी समाज में आत्म सम्मान प्राप्त होना चाहिए।
• किमलिका के अनुसार, अल्पसंख्यकों की सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने पर विशेष बल देना चाहिए।
• मेरियम यंग के अनुसार, ‘विभेद की राजनीति (Politics of Difference) का अर्थ केवल लोगों को अधिकार प्रदान कर देना नहीं है, बल्कि उनके प्रति व्याप्त पूर्वाग्रह और विभेद को भी समाप्त करना है।’
• सामान्यतः ब्रिटिश और अमेरिकी समाजों में एशियाई मूल्यों को हेय दृष्टि से देखा जाता है।
समानता के विरोधी विचारक
• अरस्तू ने असमानता को प्राकृतिक माना।
• लॉर्ड एक्टन के अनुसार, ‘समानता की आशा ने स्वतंत्रता को निष्फल बना दिया है।”
• टॉकविले के अनुसार, ‘समानता का आशय बहुमत की ‘निरंकुशता है।’
• पैरेटी, मोस्का एवं मिशेल जैसे अभिजनवादियों ने समानता का प्रबल विरोध किया।
• समकालीन विचारक क्रिस्टोल बेल ने योग्यता आधारित संकल्पना (Just Meritocracy) की संकल्पना का समर्थन किया। जिनके अनुसार, वर्तमान समाज में भी विषमता व्याप्त है, लेकिन यह विषमता योग्यता, कौशल और उपलब्धि के आधार पर है।
• माइकल यंग ने अपनी रचना – The Rise of the Meritocracy (1958) में योग्यता तंत्र की आलोचना की तथा योग्यता आधारित संकल्पना (Meritocracy) को भी आलोचना की। • उदारवादी कभी भी परिणामों की समानता की बात नहीं करते।