उत्तर कालीन मुगल सम्राट | Later Mughal Emperors | औरंगजेब के बाद मुग़ल वंश का हुआ बुराहाल

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उत्तर कालीन मुगल सम्राट : जिस मुगल साम्राज्य (Mughal Dynasty) ने समकालीन संसार को अपने विस्तृत प्रदेश विशाल सेना तथा सांस्कृतिक उपलब्धियों से चकाचौंध कर दिया था. अठारहवीं शताब्दी के आरम्भ में वह अवनति की ओर जा रहा था। औरंगजेब का राज्यकाल मुगलों का सांध्य काल था। साम्राज्य को अनेक व्याधियों ने घेर रखा था और यह रोग शनैः-शनैः समस्त देश में फैल रहा था। 

उत्तर कालीन मुगल सम्राट | Later Mughal Emperors

औरंगज़ेब (Aurangzeb) की मृत्यु के पश्चात आने वाले बावन वर्षों में आठ सम्राट दिल्ली के सिंहासन पर आ हुए। भारत के भिन्न-भिन्न भागों में देशी और विदेशी शक्तियों ने अनेक छोटे-बड़े राज्य स्थापित किए। बंगाल, अवध और दक्कन आदि प्रदेश मुगल नियंत्रण से बाहर हो गए। उत्तर-पश्चिम की ओर से विदेशी आक्रमण होने लगे तथा विदेशी व्यापारी कम्पनियों ने भारत की राजनीति में हस्तक्षेप करना आरम्भ कर दिया। 


परन्तु इतनी कठिनाइयों के होते हुए भी मुगल साम्राज्य का दबदबा इतना था कि पतन की गति बहुत धीमी रही। 1737 में बाजीराव प्रथम और 1739 में नादिर शाह के दिल्ली पर आक्रमणों ने मुगल साम्राज्य के खोखलेपन की पोल खोल दी और 1740 तक यह पतन स्पष्ट हो गया।


उत्तरकालीन मुगल सम्राट (Later Mughal Emperors)


औरंगजेब की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार का प्रश्न : मार्च 1707 में औरंगजेब को मृत्यु उसके पुत्रों में उत्तराधिकार के युद्ध का बिगुल था। मुहम्मद मुअज्जम (शाह आलम), मुहम्मद आजम और कामबख्श में से सबसे बड़े पुत्र मुहम्मद मुअज्जम की विजय हुई। उसने जजाओ के स्थान पर 18 जून, 1707 (जजाओ का युद्ध) को आज़म को और हैदराबाद के समीप 13 जनवरी, 1709 को कामबख्श को हरा कर मार डाला और स्वयं बहादुरशाह प्रथम की उपाधि धारण कर सिंहासन पर बैठ गया।

बहादुरशाह प्रथम : Bahadur shah (I)


 उस समय उसको आयु 63 वर्ष की थी और वह एक सक्रिय नेता के रूप में कार्य नहीं कर सकता था। इस मुगल सम्राट ने शान्तिप्रिय नीति अपनाई यद्यपि यह कहना कठिन है कि यह नीति उसके शिथिलता की द्योतक थी अथवा उसकी सोच-समझ का फल था।

➤ उसने शिवाजी के पौत्र शाहू को, जो 1689 से मुगलों के पास कैद था, मुक्त कर दिया और महाराष्ट्र जाने की अनुमति दे दी। 

➤ राजपूत राजाओं से भी शान्ति स्थापित कर ली और उन्हें उनके प्रदेशों में पुनः स्थापित कर दिया। 

➤ परन्तु बहादुरशाह को सिक्खों के विरुद्ध कार्यवाही करनी पड़ी क्योंकि उनके नेता बन्दा बहादुर ने पंजाब में मुसलमानों के विरुद्ध एक व्यापक अभियान आरम्भ कर दिया था। बन्दा बहादुर लौहगढ़ के स्थान पर हार गया। मुगुलों ने सरहिन्द को 1711 में पुनः जीत लिया परन्तु यह सब होते हुए भी बहादुरशाह सिक्खों को मित्र नहीं बना सका और न ही कुचल सका।

 27 फरवरी 1712 को बहादुरशाह की मृत्यु हो गई। प्रसिद्ध लेखक सर सिडनी ओवन के अनुसार, "यह अन्तिम मुगल सम्राट था जिसके विषय में कुछ अच्छे शब्द कहे जा सकते हैं। इसके पश्चात मुगल साम्राज्य का तीव्रगामी और पूर्ण पतन, मुगल सम्राटों की राजनैतिक तुच्छता और शक्तिहीनता का द्योतक था।" 


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उत्तराधिकार का संघर्ष : 


1712 में बहादुरशाह I की मृत्यु के पश्चात उसके चारों पुत्रों, जहांदार शाह, अज़ीम उस शान, रफी-उस-शान और जहान शाह में उत्तराधिकार का युद्ध आरम्भ हो गया। इस उत्तराधिकार के प्रश्न को हल करने में उसके पुत्रों ने इतनी निर्लज्ज शीघ्रता की कि बहादुरशाह का शव एक मास तक दफन भी नहीं किया जा सका। 

दरबार में ईरानी दल के नेता जुलफ़िकार ख़ां की सहायता से जहांदार शाह (मार्च 1712 से फरवरी 1713) सफल हुआ। 

जहांदार शाह (मार्च 1712 से फरवरी 1713)


कृतज्ञ सम्राट ने जुलफिकार खां को अपन प्रधान मन्त्री नियुक्त कर दिया। दस मास के भीतर ही जहांदार शाह को अज़ीम-उस-शान के पुत्र फर्रुखसीयर ने सैयद बन्धुओं की सहायता से चुनौती दी और 11 फ़रवरी, 1713 को उसे हरा कर मार डाला। 


फुर्रुख़सीयर (1713-1719)


कृतज्ञ फुर्रुख़सीयर (1713-1719) ने अब्दुल्ला ख़ां को वजीर और हुसैन अली को मीर बख़्शी नियुक्त कर दिया। परन्तु शीघ्र ही सम्राट ने सैयद बन्धुओं के जूए को उतार फेंकने की सोची और इस हेतु एक षड्यन्त्र रचा। परन्तु सैयद बन्धु सम्राट से अधिक चालाक थे और उन्होंने मराठा सैनिकों की सहायता से 28 अप्रैल, 1719 को सम्राट फर्रुख़सीयर का ही गला घोंट दिया। 

➤ फर्रुख़सीयर के राज्यकाल ने मुगलों की सिक्खों पर विजय-दुंदुभी बजती देखी। गुरदासपुर के स्थान पर उनका नेता बन्दा बहादुर पकड़ लिया गया और दिल्ली में 19 जून, 1716 को उसका वध कर दिया गया। 

➤ 1717 में सम्राट ने ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी को बहुत सी व्यापार सम्बन्धी रियायतें दे दीं। इन से बिना सीमा शुल्क के बंगाल के रास्ते व्यापार भी किया जा सकता था।

अन्य प्रभावहीन शासक - 


फर्रुख़सीयर की मृत्यु के पश्चात सैयद बन्धुओं ने शीघ्रातिशीघ्र एक के पश्चात एक सम्राट दिल्ली के सिंहासन पर बैठाए। इस प्रकार रफी-उद्-दरजात (28 फ़रवरी से 4 जून, 1719) रफ़ी-उद्-दौला (6 जून से 17 सितम्बर, 1719 ) और फिर मुहम्मद शाह (सितम्बर 1719 से अप्रैल 1748) सम्राट रहे। 


घटना चक्र ने पूरा चक्कर काट डाला और तूरानी अमीरों के नेतृत्व में 9 अक्तूबर, 1720 को हुसैन अली का वध कर दिया गया और 15 नवम्बर, 1720 को अब्दुल्ला ख़ां बन्दी बना लिया गया।


☞ इसी मुहम्मदशाह के राज्य-काल में निज़ाम-उल-मुल्क ने दक्कन में एक स्वतन्त्र राज्य बना लिया।

सआदत खां ने अवध में और मुरशिदकुली खां ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा प्रान्तों में लगभग स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिए।

☞ मार्च 1737 में बाजी राव प्रथम केवल 500 घुड़सवार लेकर दिल्ली पर चढ़ आया। सम्राट डर कर भागने को उद्यत था। 

☞ 1739 में नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया और मुगल साम्राज्य को औंधा और ज़ख़्मी बना कर छोड़ गया।


नए मुगल सम्राट अहमद शाह (1748-54) और आलमगीर द्वितीय (1754-59) इतने निर्बल थे कि वे इस पतन को रोक नहीं सके। उत्तर-पश्चिम की ओर से अहमद शाह अब्दाली ने 1748, 1749, 1752, 1756-57 और 1759 में आक्रमण किए और वह अधिकाधिक उद्दण्ड होता चला गया। 


शीघ्र ही पंजाब पठानों ने और मालवा और बुन्देलखण्ड मराठों ने छीन लिए तथा अन्य स्थानों पर भी आक्रमण किए। शाह आलम द्वितीय (1759-1806) और उसके उत्तराधिकारी केवल नाममात्र के ही सम्राट थे और अपने अमीरों, मराठों अथवा अंग्रेजों के हाथ की कठपुतलियाँ ही थे। 

1803 में अंग्रेज़ों ने दिल्ली जीत ली। अंग्रेज़ों ने मुगल साम्राज्य का ढोंग 1858 तक बनाए रखा जब अन्तिम मुगल सम्राट बहादुरशाह ज़फ़र को रंगून में निर्वासित कर दिया गया।


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