राखीगढी : राखीगढ़ी भारत के हरियाणा, हिसार जिले में एक पुरातात्विक स्थल है। यह सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे बड़ी बस्तियों में से एक है, जो 2600-1900 ईसा पूर्व की है। यह स्थल घग्गर नदी के मैदान में स्थित है, जो मौसमी घग्गर नदी से लगभग 27 किमी दूर है।
राखीगढ़ी : Rakhigarhi
◆ खोज व खोजकर्ता- (1969) सूरजभान,
◆ प्रथम उत्खननकर्त्ता- अमरेन्द्रनाथ।
-हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर (~800 हेक्टेयर)
राखीगढ़ी 800 हेक्टेयर (2,000 एकड़) क्षेत्र में फैला हुआ है, जो इसे भारत में सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल बनाता है।
-साइट कैचमेंट विश्लेषण के आधार पर सर्वेक्षित दूसरा हड़प्पीय पुरास्थल (प्रथम कुन्तासी) ।
-राखीगढी को एशिया के 10 सबसे अधिक संकटग्रस्त पुरास्थलों में शामिल किया गया है। हड़प्पा सभ्यता के पूर्वी विस्तार की प्रान्तीय राजधानी के रूप में पहचान। -यहाँ से कुल 11 पुरातात्विक टीले मिले हैं। जिनमें से प्रत्येक की अलग-अलग मात्रा में खुदाई की गई है। सबसे महत्वपूर्ण टीला माउंड A है, जो सबसे बड़ा है और इससे सबसे महत्वपूर्ण खोजें प्राप्त हुई हैं।
राखीगढ़ी से प्राप्त पुरावशेष :
- प्राचीनतम स्तर से सोथी संस्कृति के साक्ष्य / प्राक् हड़प्पा व विकसित हड़प्पा चरण उपलब्ध है।
-चबूतरे पर एक सीध में अग्निवेदिकाएं प्राप्त।
-योनि-लिंग व मानवाकार अग्निवेदिकाएं/ बलि वेदिका तथा उनमें विभिन्न पशुओं की अस्थियों के अवशेष प्राप्त
- एक ईंट पर जानवर के पदचिह्न प्राप्त।
- 10 कक्षों वाला अंग्रेजी के L अक्षर के आकार का अन्नागार।
- अनाज के रूप में गेहूँ, जौ व धान के दानों की प्राप्ति केला, शहद व खट्टी दाल के रूप में हड़प्पा कालीन भोजन के साक्ष्य
-चांदी या कांस्य की वस्तु में लिपटे सूती वस्त्र का साक्ष्य नमस्कार की मुद्रा में योगी की प्रतिमा की प्राप्ति।
-कालीबंगा की भांति प्रतिकात्मक समाधियों की प्राप्ति ।
-एक युगल समाधि (लोथल से भिन्न) की प्राप्ति, जो हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त प्रेमी जोड़े की एकमात्र समाधि है।
-3 महिला कंकाल के हाथ पर शंख की चूड़िया व गले में सेलपड़ी का हार प्राप्त एक शवाधान के पास होने की छोटी पट्टिका या बाजूबन्द प्राप्त, एक महिला कंकाल से मांग में सिन्दूर के साक्ष्य।
-राखीगढी प्रोजेक्ट ऑव इण्टरनेशनल सिग्निफिकेंट-2012 में प्रारम्भ, नेतृत्व कर्ता बसन्त शिन्दे (द्वितीय उत्खननकर्ता)
- राखीगढ़ी से सबसे महत्वपूर्ण खोज एक महिला का कंकाल है जिसे विस्तृत कब्र के सामान के साथ दफनाया गया था। राखीगढी एकमात्र हड़प्पाकालीन पुरास्थल है, जहाँ प्राप्त कंकाल का डी.एन.ए. परीक्षण किया गया है। यह कंकाल 4,600 साल पुराना है, जो इसे भारत में पाए गए सबसे पुराने मानव अवशेषों में से एक बनाता है। इस महिला कंकाल को 16113 जेनेटिक नाम दिया गया है। कंकाल के प्रटेस वोन (मानव कपाल का हिस्सा) से यह डी.एन.ए. प्राप्त किया गया। यह शोध कार्य 'सेल' नामक | पत्रिका में 'एन एन्शेन्ट हड़प्पन जीनोम लैक्स एनसेस्स्ट्री फ्रॉम स्टेपे पेस्टोरेलिस्ट और ईरानी फॉर्मर्स' शीर्षक से प्रकाशित हुआ है।
- आर्यों का जीन R1 A1 इस कंकाल में नहीं मिलता है। यह शोध पूरी तरह से आर्य आक्रमण के सिद्धान्त को खण्डित करता है।
- हाल ही में भारत समेत दिन देशों के वैज्ञानिकों ने साथ मिलकर पहली बार हड़प्पा स्थल राखीगढ़ी से मिले कंकाल की खोपड़ियों का कम्प्यूटेड टेमोग्राफी के आधार पर चेहरा तैयार किया है, जिससे यह पहचान करना आसान हो गया है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग कैसे दिखते थे। दुर्ग -टीला के चारों तरफ कच्ची ईंटों से निर्मित रक्षा प्राचीर स्थित थी। टेराकोटा के बने पहिए व विभिन्न आकार की नालियां इस क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं।
राखीगढ़ी के प्री हड़प्पा से 'रंगरेज के कुण्ड' तथा विकसित हड़प्पा चरण से हाथी दाँत के तराजू का राड़ मिला है। राखीगढ़ी से प्राप्त मुहरें लेखविहीन हैं, जबकि मृदभाण्ड भित्तीय अभिरेख युक्त है। यहाँ से सिन्धु लिपि युक्त एक लघु मुद्रा भी प्राप्त हुई है।
यहां 'मनका बनाने की एक कार्यशाला' भी मिली है जिसमें 3000 अर्धनिर्मित मनके, अगेट, कार्नेलियन, चैल्सीडेनी, जैस्पर पत्थर आदि के अवशेष, मनकों को चिकना करने का घर्षण पत्थर, पत्थरों को गर्म करने के लिए अंगीठी (U आकार) आदि प्राप्त हुए हैं।
राखीगढी से हड्डी, हाथीदाँत, बारहसिंगा के सींग, अस्थि शीर्ष, सुई, कंघा, खुरचनी आदि प्राप्त हुए हैं जिससे प्रमाणित होता है कि हाथी दाँत व अस्थि निर्मित वस्तुओं का शिल्प केन्द्र था। बच्चों द्वारा खेले जाने वाले पिट्टू के खेल के प्राचीनतम प्रमाण यहीं से मिले हैं। यहां आवास क्षेत्र की उत्तर दिशा से एक कब्रगाह से प्राप्त 8 शवाधानों में ईंटों से घिरे गड्ढे मिले हैं तथा एक में तो लकड़ी का ताबूत भी मौजूद है।
राखीगढ़ी का महत्व :
राखीगढ़ी क्यों महत्वपूर्ण है इसके कुछ कारण यहां दिए गए हैं:
यह सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे बड़ी बस्तियों में से एक है।
इससे मिट्टी के बर्तन, मुहरें, मोती और मूर्तियाँ सहित विभिन्न प्रकार की कलाकृतियाँ प्राप्त हुई हैं।
उस स्थान पर एक महिला का कंकाल मिला था जिसे विस्तृत कब्र के सामान के साथ दफनाया गया था।
राखीगढ़ी की खोज ने सिंधु घाटी सभ्यता पर नई रोशनी डाली है और इस प्राचीन सभ्यता के बारे में बेहतर समझ पैदा हुई है।
राखीगढ़ी पुरातत्वविदों और इतिहासकारों के लिए एक मूल्यवान संसाधन है। यह भारत के समृद्ध और जटिल इतिहास की याद दिलाता है और इससे नई खोजें होती रहती हैं।
निष्कर्ष :
राखीगढ़ी की खोज ने सिंधु घाटी सभ्यता पर नई रोशनी डाली है। अब यह माना जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता पहले की तुलना में अधिक जटिल और परिष्कृत सभ्यता थी। 50,000 से अधिक लोगों की आबादी वाला राखीगढ़ी एक प्रमुख शहरी केंद्र था। शहर में एक अच्छी तरह से विकसित जल निकासी प्रणाली थी, और किलेबंदी द्वारा संरक्षित थी। राखीगढ़ी के लोग कुशल कारीगर और व्यापारी थे। उन्होंने क्षेत्र में अन्य संस्कृतियों के साथ व्यापार किया, और उनका प्रभाव अन्य सिंधु घाटी सभ्यता स्थलों पर पाई गई कलाकृतियों में देखा जा सकता है।
राखीगढ़ी एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है जिसकी अभी भी खुदाई चल रही है। इसमें हमें सिंधु घाटी सभ्यता और प्रारंभिक भारतीय सभ्यता के विकास में इसके महत्व के बारे में बहुत कुछ बताने की क्षमता है।