भूगोल के दो प्रमुख आधार स्तम्भ प्राकृतिक पर्यावरण एवं मानव हैं। प्राकृतिक पर्यावरण के तत्व मानव को प्रभावित करते हैं, तथा मनुष्य स्वयं एक भौगोलिक कारक के रूप में पर्यावरण में रूपान्तरण करता है। पृथ्वी एवं मानव दोनों ही गतिमान एवं परिवर्तनशील हैं। मानवीय क्रियाओं तथा उससे उत्पन्न सांस्कृतिक पर्यावरण के तत्वों का अध्ययन मानव भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है।
भौतिक भूगोल का स्वरूप UPSC :
लोबैक (Lobeck) के मत में "जीव और उसके भौतिक पर्यावरण के सम्बन्धों का अध्ययन भूगोल की विषय वस्तु है तथा भौतिक वातावरण का अध्ययन भौतिक भूगोल है।"
("The subject matter of geography may be defined as the study of the relationships existing between human life and physical environment. The study of physical environment alone constitutes [physiography. ")
भौतिक भूगोल को परिभाषित करते हुए आर्थर होम्स (Arthur Holmes, 1975) ने भी लिखा है- "भौतिक पर्यावरण का स्वयं में अध्ययन ही भौतिक भूगोल है, जिसके अन्तर्गत महाद्वीपों तथा सागरीय सतहों के धरातलीय उच्चावचन का (भू-आकृति विज्ञान), सागरों तथा महासागरों का (समुद्र विज्ञान), तथा वायु का (मौसम विज्ञान एवं जलवायु विज्ञान) अध्ययन सम्मिलित होता है, जो सभी अपने स्वयं के फलस्वरूप विज्ञान मण्डल के महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में विकसित हुए हैं।"
"The study of physical environment by itself is physical geography which includes consideration of the surface relief of the continents and ocean floors (Geomorphology) of the seas and oceans (Oceanography) and the air (Meteorology and Climatology), all of which have developed into members of the commonwealth of sciences on their own account."
विज्ञान की एक प्रमुख शाखा के रूप में भौमिकी (Geology) के अन्तर्गत मुख्यतः भूपटल के स्थलरूपों तथा स्वलाकृतियों का न केवल अध्ययन किया जाता है, अपितु इन भूस्वरूपों की संरचना तथा व्यवहार का विश्लेषण भी किया जाता है, जिसका सम्बन्ध दृश्यमान भूपटल की शैलों एवं संरचना तथा अन्य सम्बन्धित परिघटनाओं से होता है। इस प्रकार, प्रारम्भ में भौतिक पर्यावरण (उच्चावचन, वायु तथा जन) के क्रमबद्ध अध्ययन को भौतिक भूगोल कहा जाता था।
विगत काल में भौतिक भूगोल की परिभाषा विषय क्षेत्र, अध्ययन विधियों एवं उद्देश्यों में अधिकाधिक परिवर्तन एवं परिमार्जन हुआ जिसके फलस्वरूप भौतिक भूगोल की विभिन्न भू-विज्ञानों (earth sciences) या प्राकृतिक विज्ञानों (natural sciences) यथा भौमिकी (geology), मृदा विज्ञान (pedology), भू-आकृति विज्ञान (geomorphology), मौसम विज्ञान (meteorology), जलवायु विज्ञान (climatology), वनस्पति विज्ञान (botany), एवं भौतिकी (physics), का समूह-मात्र समझा जा सकता है।
इस सम्बन्ध में स्टाइलर (Strabler, 1960) ने स्पष्ट किया है "भौतिक भूगोल सामान्य रूप में अनेक भू-विज्ञानों के एकीकरण का अध्ययन है, जो मानव पर्यावरण की प्रकृति के बारे में पूरी जानकारी देते हैं। स्वयं में विज्ञान की स्पष्ट शाखा न होकर भौतिक भूगोल, भूविज्ञान के आधारभूत सिद्धान्तों का पिण्ड होता है, जिनका चयन इस दृष्टिकोण से किया जाता है कि उन पर्यावरण प्रभावों को सम्मिलित किया जा सके, जो भूतल पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर परिवर्तित होते रहते हैं।"
("Physical geography is simply the study of unification of a number of earth sciences which give us a general insight into the nature of man's environment. Not in itself a distinct branch of science, physical geography is a body of basic principles of earth sciences, selected with a view to include primarily the environmental influences that vary [from place to place over the carth's surface.")
भौतिक भूगोल के स्वरूप में दिन-प्रतिदिन अत्यधिक विस्तार होता जा रहा है। वर्तमान समय में भौतिक भूगोल के अन्तर्गत भू-विज्ञानों की अन्य अनेक शाखाओं के अनेक विषयों के समन्वयन एवं समूहने का अध्ययन ही नहीं, अपित भौतिक पर्यावरण एवं मानव की अन्तर्क्रियाओं के प्रतिरूप (patterns of interactions) का भी अध्ययन किया जाता है, जो विज्ञान की अन्य शाखाओं में नहीं होता है।
इस प्रकार "पर्यावरणीय तत्वों के स्थानिक प्रतिरूपों (spatial pattems) तथा स्थानिक सम्बन्धों के प्रादेशिक स्वरूप का, भूपटल पर मिलने वाले प्रादेशिक प्रारूपों के स्थानिक एवं कालिक सन्दर्भ में उन तत्वों के परिवर्तनों की व्याख्या एवं विश्लेषण का अध्ययन भौतिक भूगोल है।"
स्पष्ट है कि भौतिक भूगोल के अध्ययन का मूल केन्द्र पृथ्वी की जीवनदायिनी परत (life supporting layer) है जो जल, वायु तथा जीवमण्डल हेतु उपयुक्त आवास प्रदान करती है। उल्लेखनीय है कि पृथ्वी की ठोस परत सभी जीवों के लिये आवास (habitat) का निर्माण करती है, जहाँ से जीवन-निर्वाहक आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। अन्तर्जात बलों द्वारा भू-पृष्ठ पर अनेक विषमताओं तथा विविधताजों का आविर्भाव होता है, जो वहिजांत कारकों द्वारा नष्ट भी होते रहते हैं।
वायुमण्डल द्वारा अनेक पोषक तत्व प्राप्त होते हैं तथा पृथ्वी पर अनेक प्रकार की जलवायु का निर्माण तथा निर्धारण होता है। इस प्रकार जीवन मण्डल के अन्तर्गत भौतिक पर्यावरण द्वारा प्राणिजगत प्रभावित होता है, तो दूसरी ओर मानव अपने क्रिया-कलापों द्वारा भौतिक पर्यावरण को नियंत्रित एवं परिमार्जित करता है। इस प्रकार भौतिक भूगोल में भौतिक पर्यावरण के क्रमबद्ध अध्ययन के साथ-साथ उसके तथा मानव के मध्य पारस्परिक क्रियाओं का भी अध्ययन किया जाता है।
आधुनिक समय में "भूगोल तथ्यों का संग्रह मात्र नहीं है, यह वस्तुओं या पदार्थों के जानने की प्रक्रिया है।"
("Geography is not a collection of facts, it is a way of looking at things.")-Philip, Gerament, et al., 1980
इन विद्वानों के अनुसार "भौतिकी भूगोल पृथ्वी का अध्ययन है, जिसमें यह क्या है, किस प्रकार इसका कार्य सम्पन्न होता है, यह क्या है, का विकास कैसे होता है, किस प्रकार के परिवर्तन घटित हो रहे हैं, प्रकृति में वस्तुओं का वितरण कैसा है, ये सभी वस्तुएँ एक दूसरे को कैसे प्रभावित करती हैं और वे किस प्रकार मानव को प्रभावित करती हैं।"
("Physical geography is a study of the earth- what it is, what makes it function, how it develops into what it is, what kinds of changes are taking place, how things in nature are distributed, how these things affect each other and how they affect people.") आधुनिक भूगोल मनुष्य के भौतिक, जैविक एवं सांस्कृतिक
पर्यावरण का अध्ययन करता है। सम्पूर्ण पर्यावरण के अध्ययन के लिये प्रायः 'समष्टि' (space) शब्द का प्रयोग किया जाता है। भूगोल के अन्तर्गत पृथ्वी के धरातल के निश्चित खण्डों या विभागों का अध्ययन किया जाता है। हेटनर (Heltner) के अनुसार भूगोल एक त्रिविमीय (three dimensional) विज्ञान है जो अन्य विज्ञानों से भिन्न प्रत्येक वस्तु का तीन विभिन्न दृष्टिकोणों से अध्ययन करता है
(i) अन्तरिक्ष में वस्तु विशेष की स्थिति (arrangement in space),
(ii) अन्य अवयवों से सम्बन्ध (relationships) तथा
(iii) ऐतिहासिक गति (development in time),
उत्पत्ति एवं विकास एक भौतिक विज्ञान के रूप में भौतिक भूगोल प्राकृतिक तत्वों एवं प्रक्रमों की उत्पत्ति स्वरूप एवं वितरण को वैज्ञानिक प्रमाण एवं तकों के आधार पर प्रस्तुत करता है। इसमें अनेक विज्ञानों का समावेश पाया जाता है। भौतिक भूगोल का क्षेत्र (scope) निश्चित रूप से अन्तरिक्ष, स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल एवं जीवमण्डल तक विस्तृत है। पृथ्वी तथा वायुमण्डल को एक सूत्र में बाँधते हुए भौतिक भूगोल के विभिन्न अंग तथा प्रक्रम नीचे दिए गए चित्र में प्रस्तुत किये गये हैं।
ऊपर के चित्र से स्पष्ट है कि भौतिक भूगोल अनेक भूविज्ञानों का समन्धित रूप है, जो मानव के पर्यावरण का अध्ययन करते हैं। अतएव भौतिक भूगोल में निम्नलिखित विज्ञानों का अध्ययन सम्मिलित है
1. भूगणित (Geodesy) इसके अन्तर्गत पृथ्वी की आकृति का अध्ययन किया जाता है।
2. खगोलविज्ञान (Astronomy) इसके अन्तर्गत सौरमण्डल सूर्य, पृथ्वी, अन्य ग्रहों के पारस्परिक सम्बन्धों एवं ब्रह्माण्ड का अध्ययन किया जाता है।
3. अन्तरिक्षविज्ञान (Meteorology ) यह वायुमण्डल के तत्वों का अध्ययन करता है।
4. समुद्रविज्ञान (Oceanography) इसके अन्तर्गत सागरीय जल के रासायनिक, भौतिक एवं जैविक गुणों का अध्ययन किया जाता है।
5. भूविज्ञान (Geology)—इसके अन्तर्गत शैलों एवं जीवाश्मों का अध्ययन किया जाता है। इसकी एक विशिष्ट शाखा (petrology) खनिजों की उत्पत्ति का भी अध्ययन करती है।
6. जीवविज्ञान (Biology ) – इसके अन्तर्गत वनस्पतियों एवं प्राणियों का अध्ययन किया जाता है।
भौतिक भूगोल के क्षेत्र :
भौतिक भूगोल के अन्तर्गत निम्नलिखित क्षेत्रों का विशद अध्ययन सम्मिलित है-
1. पृथ्वी ग्रहीय सम्बन्ध (Planetary relations of (the earth) : पृथ्वी की उत्पत्ति, भूवैज्ञानिक इतिहास तथा आन्तरिक रचना, सूर्य व परिवार के अन्य ग्रहों से पृथ्वी के सम्बन्ध, पृथ्वी की गतियाँ आदि।
2. स्थलमण्डल (Lithosphere) : स्थलमण्डल की विभिन्न आकृतियों का अध्ययन भूआकृतिविज्ञान (geomorphology) के अन्तर्गत किया जाता है, जो भूविज्ञान (geology) की ही एक विशेष शाखा है। अनेक शक्तियों एवं प्रक्रम स्थलाकृतियों के निर्माण में सक्रिय रहते हैं तथा शैल संरचना एवं विकास की अवस्था स्थलाकृतियों का स्वरूप निर्धारित करने में विशेष योग देती है। स्थलाकृतियों के विकास में जलवायु का विशेष सहयोग होता है। वर्तमान स्थलाकृतियों का विवेचन अर्वाचीन स्थलाकृतियों के सन्दर्भ में ऐतिहासिक दृष्टिकोण से करना अभीष्ट है। से
3. जलमण्डल (Hydrosphere) पृथ्वी का दो-तिहाई से अधिक क्षेत्र जल द्वारा घिरा है। सागरों एवं महासागरों की उत्पत्ति एवं वितरण, समुद्री नितल, जल भौतिक एवं रासायनिक गुण एवं संरचना, जल संचार आदि जलमण्डल के अध्ययन के मुख्य पक्ष हैं।
4. बायुमण्डल (Atmosphere) धरातल को चारों ओर से घेरते हुए वायु का आवरण विद्यमान है। यही वायुमण्डल धरातल पर समस्त वायुमण्डलीय दशाओं तथा जीवधारियों के लिये आवश्यक है। इसका अध्ययन अन्तरिक्ष विज्ञान (meteorology) के अन्तर्गत किया जाता है।
5. जीवमण्डल (Biosphere) धरातल एवं वायुमण्डल के मध्य मिट्टी, वनस्पति एवं जीव-जन्तुओं की परत के रूप में विस्तृत एक संकीर्ण पेटी जीवमण्डल कहलाती । वनस्पति एवं जीवधारियों के विकास, वितरण, प्रकार, समूहों आदि का अध्ययन पारिस्थितिकी (ecology) के सन्दर्भ में किया जाता है। तदनुसार पादप पारिस्थितिकी (plant ecology), जन्तु पारिस्थितिकी (animal ecology) तथा मानव पारिस्थितिकी (human coology) विज्ञान विकसित हो गये हैं।
इस प्रकार भौतिक भूगोल मनुष्य के वातावरण के प्राकृतिक पक्षों का अध्ययन करता है। वायुमण्डल के तत्व ऋतु एवं जलवायु की दशाएँ, मिट्टी, प्राकृतिक वनस्पति, जलराशियाँ एवं उनका संचार तथा सम्पूर्ण स्थलमण्डल भौतिक भूगोल की विषय-वस्तु है। वातावरण के तत्वों एवं प्रक्रियाओं का अध्ययन जनसाधारण के लिये भी बहुत उपयोगी है इससे अनेक समस्याओं की समीक्षा तथा निदान सम्भव है। मौसम की जानकारी कृषि उत्पादन, वायु परिवहन आदि अनेक कार्यों में उपयोगी होती है भूकम्प एवं ज्वालामुखी क्रिया का ज्ञान बाँध, जलाशय आदि बनाते समय अपेक्षित होता है। परमाणु शक्ति केन्द्रों की स्थापना करते समय उनके पारिस्थितिकीय दुष्प्रभावों का विचार करना आवश्यक होता है। यही नहीं, दैनिक जीवन पर भी भौतिक तथ्यों का निश्चित प्रभाव पड़ता है। वास्तव में भौतिक भूगोल की महत्ता तथा उपयोगिता असीम है।