हड़प्पा सभ्यता की वास्तुकला : भारतीय पुरातत्त्व के इतिहास में सन् 1921 ईसवी का वर्ष चिरस्मरणीय रहेगा क्योंकि इसी वर्ष दयाराम साहनी ने रावी नदी के बायें तट पर स्थित हड़प्पा के टीलों का अन्वेषण किया था, जो तत्कालीन मान्टगोमरी और वर्तमान शाहीवाल जिले में स्थित हैं।
अगले वर्ष सन् 1922 ईसवी में राखाल दास बनर्जी ने सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के दाहिने तट पर स्थित मोहनजोदड़ो के टीलों का पता लगाया था।
जॉन मार्शल, राखालदास बनर्जी, दयाराम साहनी, अर्नेस्ट मैके, के.एन. दीक्षित, एच. हरग्रीव्स, माधो स्वरूप वत्स, मार्टीमर हीलर, बी.बी. लाल, बी.के. थापर, एस. आर. राव एवं जे.पी. जोशी आदि पुरातत्त्ववेत्ताओं ने हड़प्पा सभ्यता से सम्बन्धित पुरास्थलों के उत्खनन एवं अध्ययन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, राखीगढ़ी, धौलावीरा, बनावली, कोटदीजी आदि प्रमुख हैं। इन्ही पुरास्थलों के आधार पर हड़प्पा सभ्यता की विशेषताएं व्याख्यायित की जाती हैं।
अगर बात करें हड़प्पा सभ्यता के कला की तो हड़प्पा सभ्यता में मुख्य रूप से 2 कला प्रमुख थी– 1. वास्तुकला, 2. मूर्तिकला।
इस लेख में हम हड़प्पा सभ्यता की वास्तु कला को विस्तारपूर्वक समझेंगे―
हड़प्पा सभ्यता की वास्तुकला :
प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता (लगभग 2600-1900 ईसा पूर्व) की वास्तुकला, विशिष्ट विशेषताओं को प्रदर्शित करती है। सबसे पहले, यहां के नगर उल्लेखनीय रूप से अच्छी तरह से योजनाबद्ध थे, जिसमें ग्रिड जैसी सड़क लेआउट और समान ईंट आकार थे। इमारतें अक्सर घरों और कार्यस्थलों के रूप में दोहरे कार्य करती थीं। पकी हुई ईंटों, मानक आयामों और उन्नत जल निकासी प्रणालियों के उपयोग ने उनकी इंजीनियरिंग कौशल का प्रदर्शन किया गया था।
सुरक्षा पर जोर देते हुए अधिकांश हड़प्पा शहरों को किलेबंद कर दिया गया था। इसके अलावा, शहरों ने ढकी हुई नालियों के साथ शहरी स्वच्छता की प्रभावशाली भावना प्रदर्शित की। ये विशेषताएं उन्नत शहरी नियोजन, इंजीनियरिंग और व्यावहारिकता पर ज़ोर देने वाले समाज को प्रकट करती हैं। हड़प्पा सभ्यता की वास्तुकला की मुख्य विशेषताएं निम्न हैं―
नगर नियोजन :
भारत में राजस्थान के गंगा नगर जिले में स्थित कालीबंगा तथा पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में स्थित कोटदीजी से प्राकू सैंधव काल में बस्ती में किलेबन्दी तथा भवनों के निर्माण में नियोजिन के कुछ संकेत मिले हैं। सिन्धु सभ्यता के काल में नगर-निवेश (Town Planning) के स्पष्ट साक्ष्य मिले हैं।
सिन्धु सभ्यता के नगर और कस्बे एक निश्चित योजना के अनुसार बसाये जाते ते सिन्धु सभ्यता की नगर-योजना में काफी हद तक समरूपता होते हुए भी कतिपय स्थानीय विशेषताएँ तथा क्षेत्रीय विभेद मिलते हैं। सिन्धु सभ्यता के भवनों को अध्ययन की सुविधा के लिए दो प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जा सका है :
1. सार्वजनिक महत्त्व के भवन,
2. आवासीय भवन ।
विस्तार से पढ़ें : हड़प्पा सभ्यता का नगर नियोजन
सार्वजनिक महत्त्व के भवन
सिन्धु सभ्यता के नगर सुनियोजित ढंग से बसाये गए थे। इस सभ्यता के अधिकांश प्रमुख पुरास्थलों पर दो टीले मिले हैं :
1. पश्चिम दिशा में स्थित टीले पर किला / दुर्ग (Citadel),
2. पूर्व दिशा में स्थित टीले पर प्रमुख नगर / निचला नगर (Lower City/Town) |
■ हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और कालीबंगा से दो टीले मिले हैं। इन स्थलों पर पश्चिम दिशा में स्थित अपेक्षाकृत ऊँचे किन्तु छोटे टीले पर गढ़ी/दुर्ग स्थित थे। गुजरात में स्थित लोथल एवं सुरकोटदा में अलग-अलग दो टीले नहीं मिले हैं।
■ गुजरात के कच्छ जिले में स्थित धौलावीरा नगर दो के स्थान पर तीन सुस्पष्ट इकाइयों में बँटा हुआ था 1. किला / दुर्ग, 2. मध्यम नगर, 3. अवम नगर।
■ अभी तक ज्ञात प्रायः सभी दुर्ग क्षेत्र सुदृढ रक्षा प्राचीर से घिरे हुए थे जिनका निर्माण अधिकांशतः ईटों से किया गया था।
■ सुरकोटदा और धौलावीरा में रक्षा प्राचीरों की नींव पत्थरों से निर्मित थी रक्षा प्राचीरों का शेष ऊपरी भाग ईटों से इन स्थानों पर भी निर्मित था।
■ सिन्धु सभ्यता के सभी प्रमुख नगरों के दुर्ग टीलों से सार्वजनिक महत्त्व के भवनों के अवशेष मिले हैं। मोहनजोदड़ो के दुर्ग टीले से सब से अधिक संख्या में सार्वजनिक महत्त्व के भवन मिले हैं जिनको अटकल के आधार पर 'कार्य सूचक नाम' (Functional names) दिये गए हैं जैसे 'विशाल स्नानागार (12x7x2.50 मीटर), "अन्नागार' 'सभाभवन' 'पुरोहित-शासक आवास' (Collegiate Building) इत्यादि ।
■ हड़प्पा के दुर्ग टीले की अधिकांश ईटों का उपयोग जॉन ब्रन्टन और विलियम व्रन्टन ने सन् 1856 ईसवी में कराची से लौहार तक जाने वाली रेलवे लाइन को ऊँचा बनाने के लिए रोड़ों / गिट्टी (Ballasts) के रूप में कर लिया था, इसलिए दुर्ग क्षेत्र में स्थित अधिकांश भवनों की रूपरेखा के विषय में जानकारी नहीं हो सकी है।
■ हड़प्पा का दुर्ग टीला भी रक्षा प्राचीर से घिरा हुआ था जिसका आकार समलम्ब चतुर्भुज (420 x 196 मीटर) की तरह का था। दुर्ग के बाहर उत्तर दिशा स्थित लगभग 6 मीटर ऊँचे एफ. (F) टीले पर 'अन्नागार' 'अनाज कूटने के वृत्ताकार चबूतरे और श्रमिक आवास के साक्ष्य मिले हैं। 'अन्नागार' में रावी नदी की ओर से अनाज रखते/ चढ़ाते और ले जाते/उत्तारते रहे होंगे।
■ कालीबंगों में दुर्ग रक्षा-प्राचीर युक्त था। चारों दिशाओं में चार प्रवेश द्वार थे। राजस्थान के गंगानगर जिले में स्थित कालीबंगों के दुर्ग टीले के दक्षिणी भाग में पकी और कच्ची ईंटों से निर्मित पाँच-छः बड़े आकार के चबूतरे (Massive Platforms) मिले हैं जिनमें अनेक 'अग्नि कुण्ड' / 'वेदियाँ' बनी हुई थीं। इनका संभवतः धार्मिक कार्य के लिए उपयोग होता रहा होगा। उत्तरी आधे भाग में सार्वजनिक महत्त्व के आवासीय भवन सभ्रान्त वर्ग के व्यक्तियों के निवास हेतु निर्मित थे।
■ लोथल में यद्यपि 'दुर्ग' और 'नगर क्षेत्र' के पृथक् पृथक् टीले नहीं थे तथापि नगर का विन्यास स्पष्टतः दुर्ग एवं नगर क्षेत्र के रूप में था। लोथल का दक्षिणी-पश्चिमी भाग 'दुर्ग' तथा 'उत्तरी-पूर्वी' भाग नगर क्षेत्र' था। दुर्ग क्षेत्र में स्थित सार्वजनिक महत्त्व के भवनों में 'भण्डार गृह / मालगोदाम (Warehouse) उल्लेखनीय जिसका निर्माण लगभग 4 मीटर ऊँची 'कुर्सी' (Podium) पर किया गया था।
■ भण्डारगृह में 64 कक्ष (Blocks) थे जो कालान्तर में एक भयंकर अग्निकाण्ड में जल गए। भण्डारगृह का आधार कच्ची ईंटों (Mud Bricks) से निर्मित था जिसके ऊपर काष्ठ निर्मित भवन का ढाँचा (Wooden Superstructure) था। इस भवन से मिट्टी से निर्मित अनेक मुद्राँक (Clay sealings) जली हुई अवस्था में मिली हैं। इन मुहरों का उपयोग व्यापारिक वस्तुओं की गाँठो (Bales) पर मुहर की छाप लगाने के लिए किया गया रहा होगा।
■ लोथल के नगर क्षेत्र में, आवासीय भवनों के अतिरिक्त, एक बाजार तथा 'औद्योगिक क्षेत्र' था। लोथल से मनके (Beads) बनाने वाले शिल्पियों की कार्यशालाएँ/ उद्योगशालाएँ (Workshops) मिली हैं।
■ गुजरात के कच्छ जिले में स्थित धौलावीरा सिन्धु सभ्यता का एक अत्यन्त महत्त्व नगर रहा होगा। धौलावीरा के 'दुर्ग' क्षेत्र में x सार्वजनिक महत्त्व के अनेक भवन स्थित थे। इसका सन् -90 से निरंतर सन् 1998-99 तक उत्खनन चलता रहा है। इसकी विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित न होने के कारण 'दुर्ग' क्षेत्र में स्थित भवनों के विषय पूर्ण निश्चय के साथ कुछ कहना उचित नहीं होगा।
■ 'दुर्ग' (Citadel) को धौलावीरा के उत्खनन के निदेशक आर. एस. विष्ट ने 'प्रासाद' / 'उप-प्रासाद' /महल (Castle) और क्षेत्र (Bailey) इन दो भागों में विभाजित किया है। इन दोनों भागों में सार्वजनिक महत्त्व के अनेक भवन स्थित थे ।
आवासीय भवन :
सिन्धु सभ्यता के नगर क्षेत्र में सामान्य वर्ग के नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार, कुम्भकार, राजमिस्त्री / राजगीर (Masons), संगतराश (Stone- Cutter), मनके वाले शिल्पी (Bead makers), बढ़ई, स्वर्णकार, कांस्यकार आदि कारीगर और श्रमिक निवास करते थे।
■ सिन्धु सभ्यता के नगरों में प्रत्येक आवासीय भवन में एक आँगन होता था जिसके तीन या चारों ओर चार-पाँच कमरे, एक रसोईघर और एक स्नानघर बना होता था।
■ अधिकांश घरों में एक कुँआ भी होता था। सम्पन्न लोगों के घरों में शौचालय भी होते थे।
■ कतिपय बड़े आकार के भवनों में तीस कमरे तक मिले हैं। भवनों में मिली सीढ़ियों से इंगित होता है कि दुमंजिले भवन भी बनते थे।
■ घरों के दरवाजे मुख्य सड़क में न खुलकर पिछवाड़े की ओर गली में खुलते थे। सड़क की ओर खिड़की और रोशनदान भी नहीं होते थे।
■ मिट्टी कूट कर कच्ची ईंटें या पकी ईंटें बिछा कर भवनों के फर्श बनाये जाते थे। कुछ भवनों की दीवालों पर पलस्तर के भी साक्ष्य मिले हैं।
■ भवनों की छतों के विषय में स्पष्ट साक्ष्यों का अभाव है। अनुमान किया जाता है कि छतें समतल होती थीं। छतों पर घास-फूस बिछाकर ऊपर से मिट्टी छाप दी जाती थी।
■ मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा में पकी हुई ईंटों का प्रयोग भवनों के निर्माण के लिए किया गया है। लोथल, रंगपुर तथा कालीबंगों में भवनों के निर्माण के लिए कच्ची ईंटों का ही प्रायः उपयोग किया गया है।
■ कालीबंगों में पकी हुई ईंटों का प्रयोग केवल नालियों, कुओं तथा देहलीज के निर्माण के लिए किया गया है।
■ कई आकार- प्राकर की ईंटों का उपयोग होता था किन्तु सुप्रचलित आकार 28x14x7 सेमी था।
हड़प्पा सभ्यता की सड़कें :
हड़प्पा सभ्यता की वास्तुकला में सड़कों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। सड़कों का निर्माण एक सुनियोजित योजना के अनुसार किया जाता था।
■ मुख्य मार्गों का जाल प्रत्येक नगर को पाँच-छः खण्डों में विभाजित करता था। एक दूसरे को समकोण पर काटती हुई सड़कें मोहनजोदड़ों के नगर क्षेत्र में उत्तर से दक्षिण को फैली हुई थीं।
■ मोहनजोदड़ों में मुख्य मार्ग 9.15 मीटर तथा गलियाँ औसतन 3 मीटर चौड़ी थीं। कालीबंगों में मुख्य मार्ग 7.20 मीटर और रास्ते 1.80 मीटर चौड़े थे। लोथल में प्रमुख मार्ग उत्तर से दक्षिण दिशा में थे जिनकी चौड़ाई 4 से 6 मीटर तक थी गलियाँ 2 से 3 मीटर तक चौड़ी थीं।
■ सड़के कच्ची होती थीं। सड़कों की स्वच्छता एवं सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता था। कूड़ा-कचरा फेंकने के लिए सड़कों के किनारे या तो गड्ढे बने होते थे अथवा कूड़ेदान रखे रहते थे।
हड़प्पा सभ्यता की नालियाँ :
सिन्धु सभ्यता के नगरों में सड़कों तथा गलियों के जल एवं मल के निकास के लिए पकी हुई ईंटों की बनी हुई नालियों की व्यवस्था थी। इनकी चौड़ाई और गहराई आवश्यकतानुसार निर्धारित की जाती थी।
■ कुछ नालियाँ 25 सेमी चौड़ी तथा 30 सेमी तक गहरी थीं। प्रायः नालियों को बड़े आकार की पकी हुई ईंटों से ढँका जाता था। बड़ी नालियाँ पत्थर की पटियों से ढँकी हुई मिली हैं।
■ बरसाती और स्नानघरों के पानी और घरों के मल मूत्र के बहने के लिए मल-कूप (Manholes) बने हुए थे। घरों की नालियाँ सड़क के किनारे की बड़ी नालियों में गिरती थीं। मोहनजोदड़ों तथा हड़प्पा में ऐसी नालियाँ मिली है जो किसी नाली के स्थान पर सोख्ता गड्डों में गिरती थीं।
■ नगर के बाहर नालियाँ अंत में कहाँ पर गिरती थीं ? इसके विषय में कोई निश्चित जानकारी नहीं है। नालियों की संभवतः समय-समय पर सफाई की जाती थी। मोहनजोदड़ो में नालियों के किनारे मिले रेत के ढेर इसके साक्ष्य हैं।
निष्कर्ष : हड़प्पा सभ्यता की वास्तुकला
हड़प्पा सभ्यता की वास्तुकला महत्वपूर्ण विशेषताओं से भरपूर थी। यह सभ्यता गुप्त काल के समकक्ष है, और इसकी मुख्य विशेषता थी समृद्धि और यथासंभाव नगर योजना का अच्छा उपयोग। इसकी इमारतें अक्सर आवास और कार्यस्थल की भूमिका निभाती थीं। अद्यतन और साफ-सुथरी नाली प्रणालियों के साथ, यह वास्तुकला इनके योजनाकारी और अभियांत्रिक कौशल की बेहद प्रशंसा करती है। इसके विचारणीय हैं उनके मंदिरों की अभाव, जो नागरिक संरचनाओं और यथासंभाव समाज के सामाजिक समरसता पर ध्यान केंद्रित करते हो सकते हैं।