16 संस्कार | Sanskar | अर्थ, परिभाषाएं, उद्देश्य 16 संस्कारों के नाम | प्राचीन काल के 16 संस्कार

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 जब गहरी दृष्टि से भारतीय जन-जीवन का अध्ययन किया जाता है तब ज्ञात होता है कि भारतीय जीवन संस्कारों से बधे रूप में दिखने को मिलता है।


संस्कार व्यक्ति को संगठित तथा अनुशासित करने के विभिन्न उपाय थे। जिससे कि वह समाज में रहकर सुखमय जीवन व्यतीत कर सके। उनसे व्यक्ति तथा समाज दोनों का ही हित होता था। संस्कार धार्मिक तथा कर्मकाण्ड कार्यों के रूप में जन्म से मरण पर्यन्त किये जाते थे। जिनका उद्देश्य उसको शुद्ध करना भी था।

16 संस्कार

संस्कार शब्द का अर्थ


संस्कार शब्द की व्युत्पति कृत्र धातु से धत्रु प्रत्यय करके की गई है। डा० कैलाश चन्द्र जैन के शब्दों में 'संस्कार शब्द का अन्य भाषा में तथातथ्य अनुवाद करना असम्भव है। किन्तु अधिक उपयुक्त पर्याय अंग्रेजी का सेक्रामेण्ट शब्द है। जिसका अर्थ है। धार्मिक विधान या कृत्य जो आंतरिक


एवं आत्मिक सौन्दर्य का वाह्य तथा दृश्य प्रतीक माना जाता है।' डा० राजबली पाण्डेय के अनुसार 'संस्कार शब्द का अनेक अर्थों में प्रयोग हुआ। मीमांसा यद्यांगभूत पुरोश आदि की विधिवत शुद्धि को, अद्वैत वैदयन्ती जीव पर शारीरिक क्रियाओं के मिथ्या आरोप को तथा नैयायिक भावों को व्यक्त करने की आत्म व्यंजक शक्ति को संस्कार समझते हैं।'

संस्कृत साहित्य के अनुसार 'इस भाषा के साहित्य में संस्कार का प्रयोग जिन अर्थों में हुआ है वे इस प्रकार हैं-शिक्षा, संस्कृति, प्रशिक्षण, सौजन्य, पूर्णता, व्याकरण-सम्बन्धी शुद्धि, संस्करण, परिष्करण, शोभा, आभूषण, प्रभाव, स्वरूप, स्वभाव, क्रिया, द्याप, स्मरण, शक्ति, स्मरण शक्ति पर पढ़ने वाला प्रभाव, शुद्ध-क्रिया, धार्मिक-विधि, विधान, अभिषेक, विचार भावना, धारणा कार्य का परिणाम तथा क्रिया की विशेषता।

 संस्कारों का अभिप्राय शुद्धि की धार्मिक क्रियाओं एवं व्यक्ति के बेहिक, मानसिक और बौद्धिक परिष्कार के लिये किये जाने वाले अनुष्ठानों में से है। जिनसे वह समाज का पूर्ण विकसित सदस्य हो सके।' परन्तु हिन्दू समाज के सन्दर्भ में संस्कार का अभिप्राय इस क्रिया से है जिससे शुद्धता प्राप्त हो तथा जिसके फलस्वरूप शिक्षा-दीक्षा के अनन्तर व्यक्तित्व का पूर्ण रूप से विकास भी हो। 

संस्कार प्रायः विश्व के समस्त समाजों में प्रचलित है। इस्लाम धर्म में सुजत तथा इसाई धर्म में वधति स्मा संस्कार ही है, परन्तु हिन्दू समाज में संस्कारों की अपनी ही विशेषता है। ये व्यक्ति की आयु, कर्म तथा आश्रम आदि से भी सम्बन्ध रहे हैं।

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संस्कारों की परिभाषा


विद्वानों ने अपने अपने मत में संस्कार शब्द की व्याख्या की है। कुछ विद्वानों की परिभाषा निम्न है-


(1) जेमिनी की संस्कार परिभाषा- 'संस्कार वह क्रिया है जिसके करने से कोई पदार्थ या व्यक्ति कार्य योग्य हो जाता है।'

(2) तन्त्रवार्तिक की संस्कार की परिभाषा 'संस्कार वे क्रियाएँ तथा रीतियाँ हैं। जिनसे योग्यता प्राप्त होती है।'

(3) वीर मित्रोदय की संस्कार की परिभाषा-'संस्कार वह योग्यता है जो शास्त्र-सम्मत क्रियाओं के करने से उत्पन्न हो। संक्षेप में संस्कार द्वारा व्यक्ति को अपने शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास का अवसर प्राप्त होता है।'

संस्कारों के उद्देश्य


मनुस्मृति के अनुसार शुद्धि कारक; हवन, चूड़ाकरण मौज्जी बन्धन संस्कारों गर्भ शास्व से उत्पन्न दोष दूर हो जाते हैं। हिन्दू संस्कार साधारण रूप में हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण अंग के रूप ही है। क्योंकि धर्म का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति एवं समाज को प्रत्येक दृष्टिकोण से विकसित करना भी है।


संस्कारों का विस्तार एवं संख्या


वैदिक काल में भी संस्कारों का उदय हो चुका था। समस्त इतिहासकार इस मत से सहमत है। परन्तु वेदों तथा ब्राह्मण ग्रन्थों में इसका उल्लेख देखने को नहीं मिलता है। ये गृह सूत्रों के विषय क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं परन्तु यहाँ भी उनका इस्तेमाल बास्तविक अर्थ में उपलब्ध नहीं है।

 डा० जैन के शब्दों में "बे समस्त गृह विधि-विधानों का वर्गीकरण विविध यज्ञों के अन्तर्गत करते हैं। वैदिक संस्कार पाक यज्ञों में सम्मिलित है।" पारस्कर गृह सूत्रों में पाक्यज्ञों को हुत, आहूत, प्रहृत तथा प्राशिक में विभक्त किया गया है। जब यज्ञ के समय आहूति दे दी जाती है तो उसे हुत कहते हैं।

 इसके अन्तर्गत विवाह के संस्कार आते हैं। अग्नि में आहुति देने के पश्चात जब ब्राह्मणों तथा अन्य व्यक्तियों को दान-दक्षिणा दी जाती है तो उसे प्रहृत कहा जाता है। इसमें जात कर्म से चोल पर्यन्त सम्पूर्ण संस्कारों का समावेश हो जाता है।

आहूत-जब कोई स्वंय अन्य व्यक्तियों से उपहार प्राप्त करता है तो उसे आहूत के नाम से पुकारा जाता है। उपनयन तथा समावर्तन संस्कार इसके अन्तर्गत आते हैं। बाद में इनको संस्कार का रूप दिया गया।


संस्कारों की संख्या | प्राचीन काल के 16 संस्कारों के नाम 


वेदों में संस्कारों का उल्लेख देखने को नहीं मिलता है। धर्मशास्त्रों में भी इनके विषय में मतभेद देखने को मिलता है। आश्वलयन गृहसत्र में 11, पारस्कर गृह सूत्र में 13, बौधयनं गृहसूत्र में 11. वैसखानम गृह सूत्र में 18 संस्कारों के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। महर्षि वाल्मीकि ने संस्कारों की संख्या चालीस बताई है; परन्तु आमतौर से इतिहासकार मानव के जन्म से मृत्यु तक 16 संस्कारों को स्वीकार करते हैं जिके नाम निम्नलिखित है-


(1) गर्भाधान संस्कार (2) पुंबयान संस्कार (3) सीमंतो संस्कार (4) जातक्रम संस्कार (5) नामकरण संस्कार (6) निष्क्रमण संस्कार (7) अन्नप्राशन संस्कार (8) चूडाकर्म संस्कार (9) कर्णवेध संस्कार (10) विद्यारंभ संस्कार (11) उपनयन संस्कार (12) वेदारम्भ संस्कार (13) केशान्त संस्कार (14) समावर्तन संस्कार (15) विवाह संस्कार और (16) अन्त्येष्टि संस्कार


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