इल्तुतमिश का इतिहास में महत्त्व | Iltutamish Ka Itihas Me Mahatva

0

 दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक अथवा इल्तुतमिश?


इल्तुतमिश

♦️ इल्तुतमिश का प्रारम्भिक तुर्क सुल्तानों के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। 

♦️ यद्यपि मुहम्मद गोरी के दास कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत में तुर्की सत्ता की नींव अवश्य रखी थी, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, लेकिन जब 1210 ई० में उसकी मृत्यु हुई, तो नवस्थापित तुर्की राज्य विखंडित होने के कगार पर था। साम्राज्य में सर्वत्र विद्रोह हो रहे थे। उसके मुख्य प्रतिद्वन्दी यल्दौज और कुबाचा दिल्ली के लिए खतरा बने हुए थे। राजपूताना में राजपूत स्वतन्त्र होने को उद्यत थे। ग्वालियर और कालिंजर स्वतन्त्र हो चुके थे। बंगाल में खलजी सरदार विद्रोह कर रहे थे और एवज खलजी स्वतन्त्र शासक बन बैठा था। मंगोल आक्रमण का भय बना हुआ था।

♦️भारत में तुर्की सत्ता के विकास में उसका उल्लेखनीय योगदान है। उसने मध्य एशियाई राजनीति से नाता तोड़कर दिल्ली सल्तनत को एक स्वतंत्र एवं वैधानिक स्वरूप प्रदान किया। तथा एक ऐसे राज्य की स्थापना की जो पूर्णतः भारतीय था।


♦️ वह एक साहसी सैनिक तथा योग्य सेनापति होने के साथ-साथ एक दूरदर्शी शासक था। 

♦️ उसने भारत में नव-तुर्की राज्य को शक्तिशाली व संगठित किया और उस पर अपने अपने वंश के अधिकार को सुरक्षित रखा। मंगोल आक्रमण के संकट से दिल्ली सल्तनत की रक्षा की तथा एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था का निर्माण किया।


♦️ उसने सुल्तान की जगह 'मलिक और सिपहसालार' की उपाधि धारण करके शासन किया और लाहौर को राजधानी बनाया था। ऐबक के पास नवीन प्रशासनिक प्रणाली, संगठित शासक वर्ग एवं राजत्व सिद्धान्त का अभाव था। 

♦️ जैसा कि प्रो० हबीबुल्ला और प्रो० के०ए० निजामी का कहना है कि ऐवक ने दिल्ली सल्तनत की सीमाओं और सम्प्रभुता की केवल रूपरेखा बनायी गयी थी।

♦️ ऐसी स्थिति में हम यदि विश्लेषणात्मक अध्ययन करें तो पाते हैं कि इल्तुतमिश ने अपने स्वामी कुतुबुद्दीन ऐबक से अनेक अधूरे प्रशासकीय, भवन निर्माण और साम्राज्यी कार्य विरासत में प्राप्त किये थे। 

♦️ इस विरासत में प्राप्त अधूरे कार्यों को इल्तुतमिश ने न केवल पूर्ण किया, बल्कि अपनी निजी नीतियों का भी संचालन किया।

♦️ इल्तुतमिश की मुख्य सफलता भारत में नवस्थापित तुर्की राज्य को स्थायित्व प्रदान कर उसे वैधानिक मान्यता दिलाना और अपने वंश के अधिकार को स्थापित करना था। 

♦️ डॉ० आर०पी० त्रिपाठी के अनुसार "भारत में मुस्लिम प्रभुसत्ता का इतिहास इल्तुतमिश से प्रारम्भ होता है।" 

♦️ इल्तुतमिश ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्द्वी ताजु‌द्दीन यल्दौज और नासिरुद्दीन कुबाचा का अन्त करके गजनी और गोर के स्वामित्व के दावे से दिल्ली सल्तनत को मुक्त किया। 

♦️ राजपूताना के राजपूत शासकों द्वारा दिल्ली सल्तनत से छीने गये प्रदेशों को पुनः अपने अधीन किया तथा दोआब के विद्रोह का दमन करके उसके आर्थिक महत्त्व को समझा। 

♦️ बंगाल को दिल्ली सल्तनत का अभिन्न अंग बनाया और मंगोल चंगेज खाँ और मंगबरनी के आक्रमणों से कूटनीति पूर्वक दिल्ली की सुरक्षा की।

♦️ इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत को स्थायित्व प्रदान किया, उसकी सीमायें निश्चित की और खलीफा से सुल्तान पद की स्वीकृति-पत्र प्राप्त करके अपने तथा अपने वंश की अधिकार को स्थापित किया। 

♦️ विषम परिस्थितियों में भी न केवल विद्रोहियों का दमन किया, बल्कि साम्राज्य का विस्तार भी किया।

♦️ प्रशासन को सुदृढ़ किया, शाही सेना का संगठन किया, न्यायिक एवं मुद्रा-व्यवस्था में सुधार किया। 

♦️ 'इक्ता' प्रथा का प्रचलन किया। धर्म और राजनीति को दो पृथक विषय माना और उसे राज्य की नीतियों के निर्धारण में लागू किया। 

♦️ दिल्ली को न केवल राजनीतिक एवं प्रशासनिक, बल्कि सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र बनाया।

♦️ विद्वानों और योग्य व्यक्तियों को संरक्षण प्रदान किया और स्थापत्य निर्माण कराया।


इन उपरोक्त तथ्यों की पुष्टि विद्वानों के इन कथनों से भी होती है। 

♦️ मिन्हाजुस्सिराज के अनुसार - "इतना परोपकारी, सहानुभूतिपूर्ण और विद्वानों तथा बुजुर्गों का इज्जत करने वाला कोई भी ऐसा शासक नहीं हुआ, जिसने स्वयं अपने प्रयास से राजगद्दी प्राप्त की हो।"


♦️ प्रो० हबीबुल्ला के अनुसार - "ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की सीमाओं और सम्प्रभुता की रूपरेखा बनायी। इल्तुतमिश निःसन्देह उसका प्रथम सुल्तान था।" 

♦️ प्रो० के०ए० निजामी के अनुसार - "ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की रूपरेखा के बारे में केवल दिमागी आकृति बनायी थी। इल्तुतमिश ने उसे एक पद, एक व्यक्ति, एक प्रेरणा शक्ति, एक दिशा, एक शासन व्यवस्था, एक शासक वर्ग प्रदान किया।"

♦️ डॉ० ईश्वरी प्रसाद के अनुसार "गुलाम वंश - का वास्तविक संस्थापक इल्तुतमिश था।"


इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि इल्तुतमिश प्रारम्भिक तुर्क शासकों में सर्वश्रेष्ठ सुल्तान था। उसने नवास्थापित तुर्की राज्य को एक स्वतन्त्र, संगठित, वैधानिक राज्य बनाने का प्रयास किया, इसमें वह सफल रहा। 

♦️ इस कारण डॉ० आर०पी० त्रिपाठी का यह कथन बिल्कुल सही प्रतीत होता है कि "भारत में मुस्लिम प्रभुसत्ता का वास्तविक श्री गणेश इल्तुतमिश से होता है। उसी ने देश को एक राजधानी, स्वतन्त्र राज्य, राजतंत्रीय शासन और शासक वर्ग प्रदान किया।"

 वास्तव में, भारत में तुर्की शासन का वास्तविक संस्थापिक इल्तुतमिश ही था। उसे मध्यकालीन भारत का श्रेष्ठ शासक माना जाता है।


Related posts : इन्हें भी देखें


धन्यवाद🙏 
आकाश प्रजापति
(कृष्णा) 
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़ , उ०प्र० 
पुराछात्र- प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय


Tag: 

इल्तुतमिश, इल्तुतमिश कौन था, इल्तुतमिश का इतिहास, इल्तुतमिश गुलाम वंश, इल्तुतमिश किस वंश से संबंधित था, इल्तुतमिश का इतिहास में स्थान, इल्तुतमिश का महत्व, इल्तुतमिश का शासन काल, इल्तुतमिश की उपलब्धियां, दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक, Iltutamish, Iltutamish ka itihas me sthan, Iltutamish kaun tha, iltutamish ka itihas.

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)
To Top
close