भारतीय प्रागैतिहास में आदि पुरापाषाण काल के बाद मध्य पुरापाषाण काल का आगमन हुआ। अनेक विद्वानों ने भारत में मध्य पुरापाषाण काल को 'फलक-ब्लेड-स्क्रैपर संस्कृति' के नाम से सम्बोधित किया है।
☞ 1954 ई0 के पूर्व मध्य पुरापाषाण काल के उपकरणों के विषय में कोई सुनिश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं थी। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में प्रवाहित होने वाली गोदावरी नदी की सहायक 'पवरा सरिता' के बायें तट पर स्थित 'नेवासा (Nevasa) नामक पुरास्थल की 1954 ई. में पुरातत्वविदों ने खोज की। यहाँ से सर्वप्रथम मध्य पुरापाषाण काल के उपकरण प्रकाश में आये हैं।
☞ इसके पूर्व भी फलकों पर निर्मित पाषाण उपकरण भी समय-समय पर प्रतिवेदित हुए थे। बर्किट, कामियाडे, डी, टैरा, पैटरसन, टाड आदि पुरातत्वविदों ने फलक उपकरणों की खोज की थी। इन फलक उपकरणों को बर्किट और कामियाडे ने द्वितीय सीरीज (Series II) के नाम से सम्बोधित किया था।
☞ डॉ. एच. डी. संकालिया ने प्रारम्भ में नेवासा से प्राप्त फलक उपकरणों को द्वितीय सीरीज के नाम से अभिहीत किया था। अब अधिकांश विद्वान फलक प्रधान पुरापाषाणिक उपकरण परम्परा को मध्य पुरापाषाणकालीन मानते हैं।
☞ मध्य पुरापाषाण काल से सम्बन्धित पुरास्थल भारत के अधिकांश क्षेत्रों से ज्ञात हुए हैं। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक व आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात आदि से मध्य पुरापाषाणिक उपकारणों की खोज की गयी है। उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर और इलाहाबाद तथा बाँदा, हमीरपुर, झाँसी इत्यादि जिलों में मध्य पुरापाषाणिक स्थल है। मिर्जापुर, सिंगरौली बेसिन तथा इलाहाबाद का बेलन घाटी इस दृष्टि से उल्लेखनीय है।
बेलन घाटी का इतिहास : मध्यपुरापाषाण काल में उत्तर प्रदेश
➢ मध्य पुरापाषाणकालीन संस्कृति की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का बेलन घाटी क्षेत्र विशेष महत्वपूर्ण है। भारत का यह प्रथम स्थल है जहाँ पर मध्य पूर्व पाषाणकालीन उपकरणों की उत्पत्ति एवं विकास की समस्याओं पर प्रकाश पड़ा है तथा उत्पत्ति की प्रत्येक स्थिति का सम्बन्धीकरण निश्चित भू-वैज्ञानिक स्तरों से स्थापित किया जा सकता है।
बेलन घाटी में एक ही प्रकार के भू- वैज्ञानिक स्तर पर बहुत विस्तृत क्षेत्र में मिलते हैं। इस प्रकार का एक रूप निक्षेप अन्यत्र कहीं नहीं मिला।
प्रथम ग्रैवेल जमाव :
➢ बेलन घाटी में प्रथम ग्रैवेल से निम्न पूर्वपाषाण कालीन उपकरण मिले हैं। मध्य पूर्व पाषाणकालीन उपकरण द्वितीय ग्रैवेल से प्राप्त हुए हैं। इसकी अधिकतम मोटाई 5 मीटर है तथा और मोटाई 2.74 मीटर है। इसमें औसतन 2 से 4 सेमी. के पुल मिलते हैं। इस सम्पूर्ण ग्रैवेल जमाव को संरचना के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया गया है जिन्हें क्रमशः ऊपर से नीचे अ, ब, स, कहा गया है।
➢ इनमें से 'ब' जमाव से बहुत स्पष्ट क्रास संस्तरण मिलता है। कुछ स्थानों पर उपविभागों के बीच एक पतला गाद मिट्टी का जमाव दिखता है। इसे ग्रैवेल का प्रथम भाग निम्नतम उपविभाग 'स' निम्न पूर्व पाषाण काल से मध्य पूर्व पाषाण काल के परिवर्तन का द्योतक है। इस जमाव में प्राप्त उपकरण प्रथम ग्रैवेल के उपकरणों से आकार में अपेक्षाकृत छोटे हैं।
➢ इसके अतिरिक्त कुछ उपकरणों में पुनर्गठन के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं। हेण्डेक्स का अभाव सीमित संख्या में क्लीवरों का मिलना, फलक तत्व की अधिकता तथा उपकरणों के आकार में परिवर्तन आदि इस तथ्य की ओर निर्देश करता है कि प्राचीन उद्योग का अन्त तथा नवीन उद्योग का क्रमिक विकास हो रहा था। दो उपकरणों को छोड़कर अन्य सभी क्वार्टजाइट से बने हैं। इस स्तर से बाँस नमाडिक्स के जीवाश्म मिले हैं।
इन्हें भी पढ़ें ...
● राखीगढ़ी का इतिहास (Latest Research)
● पुरास्थलों की खोज कैसे की जाती है ? (जानें पूरी जानकारी)
द्वितीय ग्रैवेल जमाव :
द्वितीय ग्रैवल के मध्य स्तर से फलक-ब्लैड-स्क्रैपर परम्परा के उपकरण मिले हैं। ये वास्तविक मध्य पूर्व पाषाणिक उपकरणों के ही समान हैं।
➢ इस स्तर में निम्नपूर्व पाषाणकालीन उपकरणों का अभाव है। इसमें स्क्रेपर 73% हैं जिनमें 57% क्वार्टजाइट तथा 43% चर्ट आदि पत्थरों के हैं।
➢ सबसे अधिक जीवाश्म इसी स्तर से मिले हैं। ग्रैवेल के अन्तिम उपविभाग 'स' भी लगभग वैसे ही उपकरण मिले हैं जैसे कि उपविभाग 'ब' से। अन्तर केवल उपकरणों के आकार में हैं। वे अब पहले की अपेक्षा और अधिक छोटे हो गये हैं।
➢ उनकी औसत लम्बाई-चौड़ाई 5×3 सेमी. है। इसके अतिरिक्त चर्ट तथा तत् सदृश पत्थरों का उपयोग 80% हो जाता है।
➢ द्वितीय ग्रैवेल के ऊपर रक्ताभ गाद मिट्टी का जमाव है। यह लाइम कार्बोनेट लैटेराइट की गोलियाँ तथा पत्थर की चिथियों से निर्मित है। इस जमाव की औसत मोटाई 1.26 मीटर है। इससे भी मध्य पूर्व पाषाणकाल के उपकरण मिले हैं। इसमें स्क्रैपर 80% तथा ब्लेड 15% हैं। उपकरण प्रमुखतया चर्ट तथा उसी के समान पत्थरों से बने हैं।
☞ बेलनघाटी के अतिरिक्त मध्य पूर्व पाषाणकालीन उपकरण निकटवर्ती क्षेत्र में पहाड़ियों की ढाल पर, नीचे पहाड़ियों के ऊपर तथा वेदिकाओं पर भी उद्योग स्थल के रूप में मिले हैं। ये स्थल पूर्व मध्य पाषाणकालीन उद्योगों के क्रमिक विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि विभिन्न स्थलों से प्राप्त उपकरण विकास की विभिन्न अवस्थाओं में रखे जा सकते हैं। मध्य पूर्व पाषाणकालीन उद्योगों में विशेष उल्लेखनीय हैं, खूँटावीर, मड़वा तथा नाऊन कला आदि हैं। बेलनघाटी में प्रथम ग्रैवेल से निम्नपूर्व पाषाणकालीन उपकरण मिले हैं। मध्य पूर्व पाषाणकालीन उपकरण द्वितीय त्रैवेल से प्राप्त हुए हैं। इसकी अधिकतम मोटाई 5 मीटर है तथा औसतन मोटाई 274 मीटर है।