खारवेल की उपलब्धियां | Kharavel ka Itihas | खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख | upsc

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हिंदुओं के प्रसिद्ध महाकाव्यों के अन्तर्गत मुख्यतः दो महाकाव्य आते हैं- 'रामायण' एवं 'महाभारत' । महाभारत नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ में कलिंग राज्य को महेन्द्रगिरी एवं सागर के बीच स्थिति कहा गया है। कलिंग राज्य के प्रमुख नगरों में सिंहपुर, दन्तपुर, राजपुर इत्यादि नगरों का उल्लेख मिलता है। ब्राह्मण कालीन राजा निमी का समकालीन कलिंग का राजा करण्डु था। 


 ● प्रसिद्ध इतिहासकार रामप्रसाद चन्द ने सुझाव दिया था कि कलिंग के चेदि राजवंश का उल्लेख वेसन्तर जातक में मिलता है। किन्तु मिलिन्द प्रश्न स्पष्ट रूप से चेतों का सम्बन्ध चेदि से स्थापित करता है। मिलिन्द प्रश्न में वर्णित चेत सुरपरिचर चेदि राजा उपरिचर से मिलता जुलाता है। 


खारवेल की उपलब्धियां
खारवेल की उपलब्धियां 


● विदेशी इतिहासकार प्लिनी ने संभवतः मेगस्थनीज के प्रसिद्ध ग्रन्थ 'इण्डिका' के आधार पर चन्द्रगुप्त के समय के कलिंग राज्य का वर्णन किया है जब वह एक स्वतन्त्र राज्य था। वहाँ के राजा के पास 60 हजार की विशाल सेना थी। मगध साम्राज्य की सामरिक वृत्ति को ध्यान में रखते हुए कलिंग राज्य ने संभवतः अशोक के समय तक अपनी सैन्य शक्ति संभवतः बढ़ा ली थी। इसी कारण संभवतः अशोक ने कलिंग राज्य पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में कलिंग के एक लाख सैनिक मारे गये एवं डेढ़ लाख बन्दी बनाये गये।


कलिंग का पुनरुत्थान:-


 अशोक की मृत्यु के पश्चात् संभवतः कलिंग राज्य में चेतवंशी राजाओं ने पुनः स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की होगी। पर यह घटना कैसे घटी इसका ज्ञान आधुनिक इतिहासकारों को नहीं हो सका है। क्योंकि चेत राजवंश के इतिहास जानने के एक मात्र साधन अभिलेख हैं जो उदयगिरि एवं खण्डगिरि की पहाड़ियों में निर्मित गुफाओं में अंकित हैं। इन अभिलेखों में चेतवंश के कम से कम तीन राजाओं का नाम अंकित किया गया था। पर उनमें से दो नाम स्पष्ट रूप से पढ़े नहीं जा सके हैं। लर्ड्स ने एक राजा वक्रदेव का उल्लेख किया है पर यह निश्चित नहीं किया जा सका कि यह वक्रदेव खारवेल का पूर्वज या वंशज था। 


खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख-


● कलिंग नरेश खारवेल के इतिहास जानने का एक मात्र साधन उड़ीसा की उदयगिरि नामक पर्वतों की गुफाओं में अंकित अभिलेख है। इन गुफाओं में यद्यपि कई अभिलेख हैं किन्तु उनमें खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख विशेष महत्व का है क्योंकि खारवेल के इतिहास जानने का यह एक मात्र साधन है।

● उल्लेखनीय है कि हाथी गुम्फा अभिलेख के अतिरिक्त इस कलिंग नरेश के शासन, जीवनवृत्त या किसी अन्य सम्बन्धित तथ्य की जानकारी हमें किसी दूसरे स्रोत यथा साहित्य, मुद्रायें, विदेशी विवरण या पुरातात्विक उत्खनन से नहीं प्राप्त होती।


● हाथी गुम्फा अभिलेख में खारवेल के राजवंश चेति, उसकी बाल्यावस्था, कुमारावस्था की शिक्षा युवराजवस्था का क्रमबद्ध वर्णन मिलता है। उसके बाद 24 वर्ष की अवस्था में उसके राज्यारोहण के बाद से उसके शासन का वार्षिक विवरण अभिलेख से प्राप्त होता है। इस प्रकार इस अभिलेख से एक ऐसे विशिष्ट व्यक्तित्त्व का ज्ञान हमें होता है जिसके अभाव में इतिहास का एक राजवंश अज्ञात रह जाता। 


● इस अभिलेख से हमें ज्ञात होता है कि खारवेल के वंश का नाम चेत के अतिरिक्त महामेघ वाहन भी था। किन्तु कुछ इतिहासकारों के सुझाव हैं कि वंश का नाम चेन या चेति था। महामेघवाहन सातवाहन की तरह ही परिवारिक विरुद (उपाधि) है जब कि अन्य इतिहासकारों की धारणा है कि महामेघवाहन चेतवंश का प्रथम शासक था। बरुआ ने इस महामेघवाहन की पहचान पुराणों में वर्णित मेघवंश से करने का असफल प्रयास किया। 


इस वंश का द्वितीय राज कौन था? इस सन्दर्भ में हमें जानकारी नहीं हो पायी है पर उनके अस्तित्व की पुष्टि खारवेल सम्बन्धित हाथीगुम्फा के विवरणों से ही होती है। जिसमें उल्लेख किया गया है कि खारवेल राजा होने के पूर्व युवराज था एवं 24 वर्ष की अवस्था में उसका महाराज के रूप में अभिषेक किया गया।


खारवेल की उपलब्धियां | Kharavel ka Itihas


चेदि वंश का तृतीय एवं अन्तिम राजा खारवेल था। खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख से ज्ञात होता है कि खारवेल 15 वर्ष की कुमारावस्था तक कुमार क्रीड़ा करता रहा एवं इस अवधि में उसने लेख रुप (कल) गणना (गणित) व्यवहार (राजनीति) एवं विधि की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वह नौ वर्ष तक युवराज रहा। इस विवरण से स्पष्ट है कि खारवेल को 15 वर्ष की आयु में युवराज नियुक्त कर दिया गया था। क्योंकि 24 वर्ष की आयु में उसका महाराज के रूप में अभिषेक हुआ। उसकी महारानी लालक नामक एक राजा की पुत्री थी जो स्वयं हत्थि सिंह का पौत्र था।


'हाथीगुम्फा' अभिलेख के आधार पर कलिंग नरेश खारवेल की उपलब्धियाँ शासन पर असीन होने के बाद से तेरह वर्षों का क्रमबद्ध विवरण हाथी गुम्फा अभिलेख से निम्न प्रकार से प्राप्त होता है- 


(1) शासन के पहले वर्ष में खारवेल ने कलिंग नगर के निर्माण और पुनर्निर्माण को बढ़ावा दिया। प्राचीर, नगर के मुख्यद्वार और दुर्ग का निर्माण और जीर्णोद्धार कराया। नगर को आकर्षण बनाने के लिए उसने जलाशयों का निर्माण कराया तथा अभिलेख के अनुसार जनता के मनोविनोद के लिए उसने 35 लाख मुद्रा व्यय किया।


(2) शासन के दूसरे वर्ष खारवेल ने किसी शातकर्णि नामक राजा को तुच्छ समझते हुए पश्चिम में अपनी विशाल सेना भेजा और यह सेना कण्ववेणा नदी तक पहुंच गयी है। लेकिन इतना वर्णन है कि अभियान के बाद कलिंग वापस लौटने पर खारवेल ने राजधानी में सोल्लास उत्सव मनाया था जिसमें नृत्यादि का आयोजन किया गया था। इससे स्पष्ट होता है कि इस अभियान में खारवेल को सफलता प्राप्त हुई और उसने शासन के तीसरे वर्ष में यह उत्सव मनाया था।


(4) शासन के चौथे वर्ष खारवेल ने बाराबर तथा खानदेश के रठिकों (राष्ट्रिकों) तथा भोजकों पर आक्रमण करके उन्हें अपनी आधीनता स्वीकार करने के लिए वाध्य किया। इस युद्ध में विद्याधरों (जैन मतानुयायियों की एक शाखा) का उल्लेख किया गया है।


(5) शासन के पाँचवें वर्ष खारवेल नन्दराज द्वारा निर्मित 300 वर्ष प्राचीन एक नहर को तुनसिल से बढ़ाकर अपनी राजधानी कलिंग तक विस्तृत कराया।


(6) शासन के छठवें वर्ष खारवेल ने एक लाख मुद्रा अपने पौर तथा जनपद के कल्याणार्थ व्यय करके अपनी समृद्धि का परिचय दिया।


(7) शासन के सातवें वर्ष खारवेल को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।


(8) शासन के आठवें वर्ष खारवेल ने उत्तरभारत पर आक्रमण किया और उसकी सेना बराबर की पहाड़ियों को पार करती हुई राजगृह पहुँच गयी। अभिलेख के अनुसार उसने इस आक्रमण से भयभीत होकर यवनराज दिमित (डेकेट्रियस) भागकर गथुरा चला गया। 


(9) शासन के नवें वर्ष खारवेल ने प्राची नदी के दोनों तटों पर महाविजय पाद का निर्माण कराया।


(10) शासन के दसवें वर्ष खारवेल ने उत्तर भारत पर एक बार पुनः आक्रमण किया लेकिन इस अभियान के परिणाम के बारे में अभिलेख मौन हैं।


(11) शासन के ग्यारहवें वर्ष खारवेल ने दक्षिण भारत पर आक्रमण किया और पिथुण्ड नगर को नष्ट भ्रष्ठ कर दिया। यहाँ से उसने पाण्ड्य राज्य परं आक्रमण किया लेकिन वहाँ के राजा ने विरोध करने के स्थान पर खारवेल का मणियों और गुफाओं का उपहार भेंट दिया।


(12) शासन के बारहवें वर्ष खारवेल ने उत्तरभारत पर तीसरी बार आक्रमण किया तथा मगध पर आक्रमण करके तत्कालीन मगध नरेश वृहापतिमित्र को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया तथा वहां से जैन तीर्थकर में प्रतिमा वापस लाकर अपनी राजधानी कलिंग में उसे पुनः स्थापित कराया।


(13) शासन के तेरहवें वर्ष खारवेल ने खलतिक पर्वत पर जैनियों की एक सभा का आयोजन किया तथा एक जैन मंदिर का निर्माण कराया।


खारवेल का धर्म-


खारवेल के हाथी गुम्फा अभिलेख में प्रारम्भिक पंक्तिणमों अरहंताणं स्पष्ट करती है कि खारवेल जैन था। उसने जैन श्रमणों के लिये कई निवास स्थान बनवाये। जायसवाल के अनुसार उसने जैन भिक्षुओं की एक संगीति भी बुलाई थी। हाथीगुम्फा अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसने अनेक देवालयों का जीर्णोद्धार कराया। उसका यह कृत्य उसकी धार्मिक सहिष्णुता का द्योतक है।


निष्कर्ष 


दुर्भाग्य से हाथी गुम्फा अभिलेख से कलिंग नरेश खारवेल के शासन के मात्र तेरह वर्षों का विवरण मिल पाता है। उसके बाद चेत वंश का क्या हुआ, उसके शासन का अन्त कैसे हुआ आदि तथ्य अज्ञात है पर जो कुछ तथ्य हमारे समक्ष उपस्थित है उनसे हम कह सकते हैं कि कलिंग नरेश खारवेल एक महान् विजेता था।

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