हम जानते हैं कि बीते हुए युग की घटनाओं के संबंध में जानकारी देने वाले साधनों को ऐतिहासिक स्रोत की संज्ञा दी जाती है। ये साहित्यिक स्रोत भी हो सकते हैं और पुरातात्विक स्रोत भी।
मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत:
प्राचीन काल की अपेक्षा मध्य काल मे इतिहास रचना की ओर अधिक ध्यान दिया गया। इस काल के ऐतिहासिक स्रोतों (मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत) में पुरातात्विक स्रोत व साहित्यिक स्रोत प्रमुख हैं। इनमें प्रथम स्थान साहित्यिक स्रोत के अंतर्गत आने वाले ऐतिहासिक ग्रंथो का है जिनमे से अधिकांश फ़ारसी भाषा मे लिखे गए थे।
इनके अलावा साहित्यिक स्रोत के अंतर्गत आने वाले विभिन्न साहित्यिक ग्रन्थ भी इस काल को जानने के लाभदायक स्रोत हैं जो फ़ारसी भाषा के साथ साथ संस्कृत तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में लिखे गये थे।
संबंधित लेख:-
1. प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के साहित्यिक स्रोत
2. प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के पुरातात्विक स्रोत
3. प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के विदेशी विवरण
इस काल की विभिन्न प्रकार की रचनाओं में इतिहास की रचनाएं, शासकों की जीवनियां व आत्मकथाएं, प्रशासनिक फरमान(आदेश पत्र) संबंधी रचनाएं, साहित्यिक कृतियां, व विदेशी यात्रियों द्वारा लिखित भारत के संबंध में यात्रा विवरण आदि इस काल के इतिहास को जानने के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
इनके अतिरिक्त इस काल की प्राप्त पुरातत्व सामग्री भी इस काल को जानने की बहुमूल्य सामग्री है। विभिन्न अभिलेख(यद्यपि ये अधिक नहीं हैं), विभिन्न स्मारक , किले और अन्य इमारतें , मुद्राएँ और चित्र(मुख्यतया मुग़लकालीन चित्र) आदि भी मध्ययुगीन भारतीय इतिहास को जानने के महत्वपूर्ण स्रोत/साधन हैं।
परन्तु इन स्रोतों का (विशेषकर ऐतिहासिक और साहित्यिक ग्रंथों का) अध्ययन सावधानीपूर्वक करना चाहिए। इनमें कुछ दोष हैं ये निम्न हैं―
● ये पक्षपात दृष्टिकोण से लिखे गए हैं। इसका कारण यह है कि ये ग्रंथ मुख्यतः मुसलमान विद्वानों द्वारा लिखे गए हैं जिनमें से अधिकांश को राजकीय संरक्षण प्राप्त थे। इस कारण उनका व्यवहार व विवरण दोनों हिंदुओं के प्रति अनुदार रहा, अपने संरक्षके सुल्तानों व बादशाहों के प्रति प्रशंसात्मक रहा और जनसाधारण के जीवन के प्रति उदासीनता का रहा।
● इन ग्रंथों में सबसे बड़ा दोष यह है कि इनमें सांस्कृतिक दशा के वर्णन का पूर्णतया अभाव है। इनमें केवल युध्दों, नीतियों व संधियों का ही वर्णन है। फिर भी यह ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
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मध्यकालीन भारतीय इतिहास को जानने के प्रमुख स्रोत इस प्रकार हैं―
1. तहक़ीक़-ए-हिन्द: Sources of medieval indian history
रचनाकार~अलबरूनी
भाषा~ अरबी
अनुवाद~ एडवर्ड साची (अंग्रेजी भाषा: ‘अलबरूनी इंडिया’, ‘ऐन एकाउंट ऑफ द रेलिजन’)
रजनीकांत शर्मा (अंग्रेजी से हिन्दी)
इसके 80 अध्यायों में अलबरूनी ने महमूद गजनवी के समय के भारत की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व धार्मिक स्थितियों के बारे में विस्तार से वर्णन किया है।
उसने अपनी दूसरे ग्रंथ ‘किताबुल-हिन्द’ में भारतीयों की विशेषकर पवित्र स्थानों पर तालाबों तथा जल संग्रहण कार्यों के निर्माण में प्रवीणता की प्रसंशा की है। अलबरूनी ने ‘किताब-उल-हिन्द’ में भारतीय चरित्र की कमजोरियों और भारतीयों की सामाजिक राजनैतिक व्यवस्था की कमियों, जिनके कारण आक्रमणकारियों के हाथों उन्हें पराजित और अपमानित होना पड़ा, का तटस्थ विवरण प्रस्तुत किया है।
2. ताज़-उल-मासिर: मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत
रचनाकार~ सदरुद्दीन मुहम्मद हसन निजामी
भाषा~ अरबी व फ़ारसी
अनुवाद~ इलियट और डाउसन(अंग्रेजी भाषा)
हसन निज़ामी निशपुर(खुरासान) में हुए मंगोल आक्रमण के समय भाग कर भारत आया और दिल्ली के सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक के अधीन नौकरी कर ली और आज्ञा पाकर ताज-उल-मासिर लिखना प्रारम्भ किया जोकि इल्तुतमिश के काल मे पूर्ण हुआ।
हसन निजामी के इस ग्रंथ में सन 1192 ई० से 1228 ई० तक की घटनाओं का वर्णन है। मुख्यतः कुतुबुद्दीन ऐबक के शासन काल की घटनाओं का , यद्यपि कहीं कहीं उसने मुहम्मद गोरी और सुल्तान इल्तुतमिश के समय मे हुई घटनाओं का उल्लेख किया है।
हसन निजामी ने मुख्यतः राजनीतिक स्थिति, युध्दों, उनके कारणों व परिणामों का वर्णन किया है तथापि कुछ प्रकाश उसने भारतीय शासन प्रणाली , सामाजिक स्थिति , भारतीय शहरों, मेलों, उत्सवों व मनोरंजन साधनों पर भी प्रकाश डाला है। किन्तु विस्तृत रूप से नहीं क्योंकि यह एक छोटा ग्रंथ है।
एक समकालीन वृत्तांत होने के कारण यह प्रथम कोटि का प्रमाणिक ऐतिहासिक स्रोत (मध्यकालीन भारतीय इतिहास को जानने के स्रोत) है।
3. तबकात-ए-नासिरी: Madhyakalin bharteey Itihas ke srot
लेखक~ मिनहाज-उस-सिराज
रचनाकाल~ 13वीं शताब्दी(1260 में पूर्ण हुआ)
भाषा~ फ़ारसी
अनुवाद~ इलियट और डाउसन(अंग्रेजी भाषा)
तबकात-ए-नासिरी एक विस्तृत ग्रन्थ है जिसमें न केवल मुहम्मद गोरी की भारत विजय व दिल्ली-सल्तनत के गुलाम-वंशों के सुल्तानों के शासन का प्रत्यक्ष वर्णन किया गया है अपितु इस्लाम के उत्थान, खलीफाओं के शासन, ईरान के शासकों, भारत में तुर्कों के शासन का आरम्भ, गजनी और गोर वंश का इतिहास, मुसलमानी राज्यों पर मंगोलों के आक्रमण आदि का विस्तृत वर्णन भी किया गया है।
यह भारत पर तुर्क आक्रमणों, दिल्ली में सल्तनत की स्थापना तथा इल्तुतमिश व रजिया के शासन के विषय मे अध्ययन के लिए एक मात्र समकालीन और प्रामाणिक स्रोत है।
आधुनिक इतिहासकर उसके सभी विवरण को प्रमाणित नहीं मानते हैं क्योकि वह एक पक्षपाती मनोवृत्ति का लेखक था तथा उसका झुकाव गोरी, इल्तुतमिश व बलबन की ओर अधिक था।
उदाहरण के रूप में मिनहाज-उस-सिराज के अनुसार सुल्ताना रजिया के पतन का मुख्य कारण उसका स्त्री होना था जिसे आधुनिक इतिहासकार स्वीकार नहीं करते।
4. अमीर खुसरो द्वारा लिखित विभिन्न ग्रन्थ- Medieval indian history sources in hindi
अमीर खुसरो के ग्रंथ मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत (Madhyakalin bharteey Itihas ke srot) की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं.
अमीर खुसरो का पूरा नाम अबुल हसन यामीन-उद्दीन खुसरो था। अमीर खुसरो अपने समय का एक महान् विद्वान और कवि था। सुल्तान बलबन के समय में उसने अपने जीवन का आरम्भ किया और सुल्तान कैकुबाद, जलालउद्दीन खलजी, अलाउद्दीन खलजी, कुतुबुद्दीन मुबारकशाह खलजी और गियासुद्दीन तुगलक का संरक्षण प्राप्त किया। वह ऐसा प्रथम भारतीय लेखक था जिसने हिन्दू शब्द एवं मुहावरों का प्रयोग किया।
खुसरव एक इतिहासकार नहीं था वह मुख्यतया एक कवि था। परन्तु तब भी उसके द्वारा लिखे गये मसनवी और दीवान तत्कालीन इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं और तत्कालीन इतिहास को जानने में सहायता प्रदान करते हैं।
अमीर खुसरो द्वारा लिखित ग्रंथ व उनके विवरण निम्नलिखित हैं―
(i) किरान-उस-सदायन:- 1289 ई०
इसमें सुल्तान कैकुबाद और उसके पिता तथा बंगाल के सूबेदार बुगराखाँ की पारस्परिक भेंट, दिल्ली नगर के वैभव, उसकी इमारतों, शाही दरबार, अमीरों व अधिकारियों के सामाजिक जीवन और भारत की समृद्धि का वर्णन किया गया है।
(ii) मिफ्ताह-उल-फुतुह:- 1291 ई०
शैली: काव्य शैली
इसमें मलिक छज्जू के विद्रोह और जलालउद्दीन खलजी के कुछ अन्य सैनिक अभियानों (रणथम्भौर पर सुल्तान की चढ़ाई व झायन की विजय) का में वर्णन किया गया है।
(iii) खजान-उल-फुतुह:-
शैली: गद्य शैली
इसे तारीख-ए-अलाई के नाम से भी जाना जाता है। इसमें अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल के प्रथम सोलह वर्षों तक की घटनाओं का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें अलाउद्दीन खिलजी के दक्षिण भारत के सैनिक अभियानी व उसके गुजरात, चित्तौड़, मालवा तथा वारंगल की विजयों का उल्लेख है।
अमीर खुसरव के अनुसार शतरंज खेल का आविष्कार भारत में किया गया। उसने अपनी इस रचना में शतरंज के बारे में वर्णन किया है।
(iv) आशिका:-
शैली~ काव्य शैली
इसमें गुजरात के राजा करन की पुत्री देवल रानी और अलाउद्दीन के पुत्र खिज खाँ की प्रेमगाथा का व अलाउद्दीन खिलजी की गुजरात तथा मालवा विजय व मंगोलों द्वारा स्वयं अपने कैद किए जाने का वर्णन है।
(v) नूह-सिपिर:-
इसमें अलाउद्दीन खिलजी के पुत्र मुबारकशाह खिलजी की विजयों के साथ साथ भारत की भौगोलिक स्थिति, जलवायु, पशु पक्षियोँ तथा धार्मिक जीवन का रोचक विवरण दिया है।
इस ग्रन्थ में खुसरव ने भारत की तलना स्वर्ग के उद्यानों से की है।
(vi) तुगलकनामा:-
शैली~ काव्य शैली
इसमें खुसरब खान व गयासुद्दीन तुगलक के मध्य कुटनीति व युद्ध तुथा गियासुद्दीन तुगलक द्वारा दिल्ली के सिंहासन को प्राप्त करने का विवरण है।
(vi) एजाज-ए-खुसरवी:-
इसमें धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन के बारे में विशेषकर सूफी मत से सम्बन्धित जानकारी मिलती है।
5. तारीख-ए-फ़िरोजशाही : Sources of medieval indian history
रचनाकार~ जियाउद्दीन बरनी
रचनाकाल~ 1358 ई०
भाषा~ फ़ारसी
अनुवाद~ इलियट और डाउसन (अंग्रेजी भाषा में)
इस ग्रन्थ में सुल्तान बलबन के सिंहासन पर बैठने के समय से लेकर सुल्तान फीरोज तुगलक के प्रारम्भिक छः वर्षों तक की घटनाओं का वर्णन किया गया है। उसने इस प्रन्थ को वहाँ से आरम्भ किया जहाँ से ‘तबकात-ए-नासिरी’ समाप्त होता है। अतः इससे हमें सुल्तान बलबन, खलजी-सुल्तानों और तुगलक-सुल्तानों के शासनकाल के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है।
बरनी ने इस में राजनीतिक घटनाओं, शासन-प्रबन्ध, सामाजिक स्थिति, आर्थिक दशा, आदि सभी का वर्णन किया है जिसके कारण यह ग्रन्थ मध्यकालीन भारतीय इतिहास और सभ्यता को जानने के लिए एक मूल्यवान ग्रन्थ माना गया है।
उल्लेखनीय है कि अलाउद्दीन खिलजी के बाजार नियंत्रण प्रणाली का सबसे प्रमाणित विवरण इसी ग्रन्थ से मिलता है।
संबंधित लेख : अवश्य देखें
● अरब आक्रमण से पूर्व भारत की स्थिति
● भारत पर अरबों का प्रथम सफल आक्रमण : (मुहम्मद बिन कासिम द्वारा) [Part-1]
● भारत पर अरब आक्रमण के प्रभाव [मो० बिन कासिम का भारत आक्रमण Part-2]
6. फतवा-ए-जहाँदारी:- मध्यकालीन भारतीय इतिहास को जानने के स्रोत
रचनाकार- जियाउद्दीन बरनी
यह तारीख-ए-फिरोजशाही की समकालीन तथा उसका एक पूरक खण्ड है। इस पुस्तक में बरनी ने अपने पूर्व लेखन के आधार पर सल्तनत काल के राजनीति दर्शन का विशद वर्णन किया है। इस ग्रन्थ में आदर्श मुसलमान शासकों के गुणों का उल्लेख किया गया है।
7. तारीख-ए-फ़िरोजशाही:- मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत
रचनाकार~ शम्स-ए-सिराज अफीफ
रचनाकाल- 15वीं सदी के प्रथम दशक
अफीफ को सुल्तान फ़िरोजशाह का संरक्षण प्राप्त था। अपने इस ग्रन्थ में अफीफ ने सुल्तान फीरोजशाह के जन्म, उसका सिंहासन पर बैठना, उसके समय में हुआ मंगोल-आक्रमण, उसका बंगाल पर आक्रमण, उसकी गुलामों की व्यवस्था, उसकी सैनिक व्यवस्था, उसके धार्मिक और लोकहितकारी कार्य, उसके समय की सामाजिक और आर्थिक स्थिति आदि सभी विषयों का वर्णन किया है।
8. सीरत-ए-फीरोजशाही- Medieval indian history sources in hindi
रचनाकार~अज्ञात
रचनाकाल~ 1370 के आस पास (सुल्तान फ़िरोजशाह के समय में)
यह अफीफ के ग्रन्थ तारीख-ए-फीरोजशाही का विस्तृत संस्करण है। इस ग्रंथ में सुल्तान फीरोजशाह की बहुत प्रशंसा की गयी है।
9. फुतुहात-ए-फ़िरोजशाही:- Madhyakalin bharteey Itihas ke srot
लेखक~ सुल्तान फ़िरोजशाह तुगलक (आत्मकथा) 32 page की पुस्तक
इसमें उसके इस्लाम धर्म के प्रसार के लिए किये गये प्रयत्नों का उल्लेख किया गया है। सुल्तान ने उसमें लिखा था कि उसने केवल इस्लाम द्वारा स्वीकृत करों को ही अपनी प्रजा से लिया, ब्राह्मणों से भी जजिया कर लिया, इस्लाम के विरुद्ध किये जाने वाले कार्यों को रोका, जनहित के विभिन्न कार्य किये, हिन्दू-मन्दिरों को तोड़ा और एक बड़ी संख्या में हिन्दुओं को मुसलमान बनाने में सफलता पायी ।
इस प्रकार, इसमें वह अपने को एक आदर्श मुसलमान शासक सिद्ध करना चाहता था। परन्तु इससे यह भी सिद्ध हुआ कि वह एक धर्मान्ध मुसलमान शासक था जिसने अपनी बहुसंख्यक हिन्दू प्रजा के साथ न्यायोचित व्यवहार नहीं किया था।
10. फतुह-उस-सलातीन : Sources of medieval indian history
रचनाकार~ ख़्वाजा अब्दुल्ला मलिक इसामी – (Sources of medieval indian history)
रचनाकाल~ 1250 ई०
शैली~ काव्य
इसमें यामिनी-वंश (महमूद गजनवी का वंश) के इतिहास से लेकर तुगलक वंश तक के इतिहास का वर्णन किया गया है। इसामी ने 1296 ई. में अलाउद्दीन खलजी द्वारा देवगिरि पर किये गये आक्रमण और मुहम्मद तुगलक के समय में दक्षिण भारत में हुए विद्रोहों का विस्तृत वर्णन किया है।
तत्कालीन इतिहासकारों में इसामी एक ऐसा विद्वान था जिसने किसी भी तुगलक-सुल्तान से संरक्षण प्राप्त नहीं किया इस कारण न उसे कोई लालच था और न कोई भय। इस कारण उसका विवरण सत्य के पर्याप्त निकट माना गया है ।
11. रेहला:- Medieval indian history sources in hindi
लेखक~ इब्न बतूता 【यात्रा वृत्तांत】Madhyakalin bharteey Itihas ke srot
भाषा~ अरबी
इब्न बतूता एक अफ्रीकी यात्री था जो 1333 ई० में मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में भारत आया तथा 14 वर्ष रहा।
उसने अपने इस ग्रंथ में गियासुद्दीन तुगलक की गुप्तचर व्यवस्था, डाक व्यवस्था, उसकी मृत्यु की व उसके शासन की परिस्थितियों का वर्णन किया है। उसने सुल्तान की क्रूरता, उदारता, राजधानी परिवर्तन व उसके परिणाम आदि के साथ साथ दिल्ली नगर, बाजार, भारतीय उत्सवों, मेलों, पशुओ पक्षियों, वेशभूषा, जलवायु आदि का वर्णन भी किया है।
इस प्रकार रेहला से हमें तत्कालीन इतिहास, राजनीति, शासन व्यवस्था, दरबार का जीवन, नागरिक जीवन , अर्थव्यवस्था, सामाजिक स्थिति, आदि सभी के बारे में जानकारी मिलती है।
12. मलफुजात-ए-तिमूरी:-
लेखक~ तैमूर लंग 【आत्मकथा】
भाषा~ तुर्की
अनुवाद~ अबू तालिब हुसैनी (फ़ारसी भाषा)
इसमें तैमूर के कार्यकलापों, विचारों और भारत पर आक्रमण का वर्णन मिलता है।
13. जफरनामा:-
यह तैमूर की जीवनगाथा है(मलफुजात की नकल)। इसे सराजुद्दीन अली याजदी ने अमीर तैमूर के पुत्र के संरक्षण में लिखा था।
14. तारीख-ए-मुबारकशाही:-
लेखक~ यह्याबिन अहमद सरहिंदी – मुबारक शाह(सैय्यद वंश) के संरक्षण में
यह सैय्यद वंश का एकमात्र समकालीन स्रोत (Sources of medieval indian history) है। किन्तु यह सैय्यद वंश तक के इतिहास तक ही सीमित नही है। इसमें मुहम्मद गोरी के सिंहासन पर बैठने के बाद से सैय्यद वंश के तृतीय शासक सुल्तान मुहम्मद शाह के सिंहासन पर बैठने तक की घटनाएं वर्णित हैं।
15. वाक़ियात-ए-मुश्ताकि और तारीख-ए-मुश्ताकि:-
लेखक~ शेख रिजाकुल्लाह
इसमें लोदी और सूर वंशो के अतिरिक्त मालवा और गुजरात के अफगान राजवंशों का वर्णन है।
16. तारीख-ए-सलातीन-ए-अफगान या तारीख-ए-शाही:-
लेखक~ अहमद यादगार
रचनावर्ष~ 1601 ई०
इनका विवरण बहलोल लोदी के शासनकाल से शुरू होकर हेमू की मृत्यु तक समाप्त हो जाता है। मुख्यतः यह भारत मे हुए अफगान शासकों (लोदी और सूर वंश के शासक) के शासनकाल के विवरण है यद्यपि कहीं कहीं मुगल बादशाहों बाबर, हुमायूँ और अकबर के समय मे हुई घटनाओं पर भी दृष्टिपात किया गया है।
17. मुजखान-ए-अफगानी:-
लेखक~ नियामत उल्लाह
रचनावर्ष~ 1612 ई०
इसमें लोदी वंश के शासकों के समय की घटनाओं का विस्तृत रूप से वर्णन मिलता है।
18. तारीख-ए-दाउदी:-
लेखक~ अब्दुल्ला
रचनाकाल~ जहांगीर के शासनकाल में
ये विवरण लोदी शासक बहलोल लोदी के शासन से प्रारंभ होकर बंगाल के अफगान शासक, दाऊद की मृत्यु (1575 ई०) के समय पर आकर समाप्त हो जाता है
19. चचनामा:-
लेखक~ अज्ञात
भाषा~ अरबी
अनुवाद~ अबूबकर कूफ़ी (फारसी भाषा)
अरबों के सिन्ध विजय का विस्तृत उल्लेख चचनामा नामक ग्रंथ में मिलता है। मुहम्मद बिन कासिम के अभियान, उसके शासन प्रबंध आदि के संबंध में यह एक प्रमाणित स्रोत है।
चचनामा के अनुसार सिंध के सफल अभियान के तत्काल बाद खलीफा वाहिद ने मुहम्मद बिन कासिम को मृत्युदंड दे दिया था।
20. तुजुक-ए-बाबरी:-
लेखक~ बादशाह बाबर 【आत्मकथा】
भाषा ~ तुर्की
अनुवाद~ (i) मुगल काल मे 4 बार फ़ारसी में (जैन खां, पायंदा हसन, अब्दुर्रहीम खानखाना, मीर अबू तालिब द्वारा)
(ii) मैडम बैवरिज (अंग्रेजी भाषा में)
बाबर ने इसमें अपने जीवन की घटनाओं के अतिरिक्त विभिन्न स्थानो की जलवायु, प्रकृति, पशु पक्षियों, राजनीतिक स्थिति, विभिन्न व्यक्तियों और शासकों(दौलत खां, इब्राहिम लोदी, राणा संग्रामसिंह आदि) के चरित्र और व्यक्तित्व, युद्ध शैली, जन जीवन, आदि सभी के बारे में व गुजरात, मालवा, बंगाल और बहमनी के मुस्लिम राज्यों व विजयनगर के हिन्दू राज्यों के बारे में बहुत ही आकर्षक, स्पष्ट और सत्य के निकट लिखा है।
21. तारीख-ए-रशीदी:-
लेखक~ मिर्ज़ा मुहम्मद हैदर
भाषा~ फ़ारसी
इसमें उसने बाबर और हुमायूँ के समय की घटनाओं का वर्णन किया है। यह कश्मीर के इतिहास को जानने हेतु भी उपयोगी है।
22. हबीब-उरु-सियर:-
लेखक~ खवान्द अमीर
भाषा~ फ़ारसी
इसमें मुख्यतया बाबर द्वारा 1529 ई० में अफ़ग़ानों के विरुद्ध किये गए अभियानकार, उसमें हुमायूँ के शासनकाल के प्रथम 3 वर्षों की घटनाओं का भी वर्णन है।
23. कानून-ए-हुमायूँनी:-
लेखक~ खवान्द अमीर
हुमायूँ के शासनकाल की प्रथम कुछ वर्षों की घटनाओं को जानने का यह प्रमुख साधन है।
24. हुमायूँनामा:-
लेखक~ बाबर की पुत्री और हिन्दाल की बहिन गुलबदन बेगम (अकबर के आग्रह पर)
भाषा~ फ़ारसी
बेगम ने बाबर चरित्र, अपने संबंधियों से उसके व्यवहार, उसके अंतिम समय की महत्वपूर्ण घटनाएं, उसकी बीमारी और मृत्यु और हुमायूँ के जीवन की 1555 ई० तक की महत्वपूर्ण घटनाओं का विवरण इस ग्रंथ में दिया है। इसमें राजनीतिक घटनाओं पर बल नही दिया गया है।
25. ताज़किरात-उल-वाक़ियात:-
लेखक~ जौहर अफताब्वी (अकबर के आदेश पर)
भाषा~ फ़ारसी
इस ग्रंथ को हुमायूँ के चरित्र, उसके जीवन की घटनाओं, उसके दुर्दिनों की स्थिति, अकबर के जन्म व बाल्यावस्था के विषय मे प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है।
■ इस ग्रन्थ के अतिरिक्त बाबर और हुमायूँ के समय के इतिहास को जानने में शाह तहमास्प द्वारा लिखा गया ताज़किरात-ए-तहमास्प, बायजिद तियात के संस्मरण , तारीख ए हुमायूँ(बायजीद), अकबरनामा(अबुल फ़जल), तबकात-ए-अकबरी(निजामुद्दीन अहमद बक्शी) आदि फ़ारसी भाषा मे रचित ग्रंथ अत्यधिक मूल्यवान है।
26. तवारीख-ए-दौलत-ए-शेरशाही:-
लेखक~ हसन अली ख़ाँ
भाषा~फारसी
इस ग्रंथ से शेरशाह के जीवन और शासन प्रबंध पर उपयोगी विवरण प्राप्त होता है। ये ग्रंथ सभी इतिहासकारों द्वारा विश्वसनीय नहीं है।
27. तारीख-ए-शेरशाही अथवा तोहफा-ए-अकबरशाही:-
लेखक~ अब्बास खां सरवानी(अकबर के आदेश पर)
भाषा~ फ़ारसी
यह ग्रंथ शेरशाह के जीवन,चरित्र, विजयें व शासन प्रबंध के विषय मे ज्ञान प्राप्त करने का एक उपयोगी व विश्वसनीय स्रोत माना गया है।
इसी ग्रंथ में शेरशाह द्वारा चुनार और रोहतासगढ़ के किलों पर अधिकार किये जाने की घटनाओं और मुगल बादशाह हुमायूँ तथा शेरशाह के मध्य हुए संघर्ष का वर्णन किया गया है।
28. वाक़ियात-ए-मुश्ताकी और तारीख-ए-मुश्ताकी:-
लेखक~ शेख रिजकुल्ला मुश्ताकी
भाषा~ फ़ारसी
वाक़ियात-ए-मुश्ताकी शेरशाह, उसके उत्तराधिकारी और हुमायूँ के इतिहास को जानने में महत्वपूर्ण सामग्री प्रदान करता है। इसमें शेरशाह का शासन प्रबंध व उसके द्वारा बंगाल पर किये गए आक्रमण, उसके पुत्र कुतुबखां की मृत्यु और हुमायूँ द्वारा बंगाल पर किया आक्रमण व वापसी के बारे में लिखा गया है।
इसमें दोष भी है कि इसमें तिथियां नहीं दी गयी हैं, घटनाओं का विवरण क्रमानुसार नहीं है।
29. तारीख-ए-शाही:-
लेखक~ अहमद यादगार
रचनाकाल~ जहाँगीर के समय मे पूर्ण हुई
इसमें शेरशाह द्वारा किये गए अभियानों, उसकी मृत्यु व उसकी मुद्रा प्रणाली का उल्लेख है।
30. तारीख-ए-फिरिश्ता:-
लेखक~ फिरिश्ता
इसमें प्रायः भारत का सम्पूर्ण इतिहास दिया गया है। इसका अधिकांश विवरण तारीख-ए-शेरशाही पर आधारित है।
31. अकबरनामा:-
लेखक~ अबुल फजल
रचनाकाल~ अकबर के शासनकाल में
अकबरनामा को 3 भागों में बाँटा गया है। पहले भाग में अमीर तैमूर से लेकर हुमायूँ तक के मुगल-शासकों के इतिहास का वर्णन किया गया है। दूसरे और तीसरे भाग में 1602 ई. तक के बादशाह अकबर के इतिहास को दिया गया है।
बाबर के काल के इतिहास को लिखते हुए उसने उसके चरित्र, व्यक्तित्व, युद्ध-शैली, विद्वत्ता के कार्य, उसका अपने मित्रों और सम्बन्धियों के प्रति व्यवहार आदि का विवरण दिया और, इस प्रकार, तुजुके- बाबरी की अपूर्णता को पूर्ण करने का प्रयत्न किया।
उसने हुमायूँ की कठिनाइयों, उसके सम्बन्धियों और भाइयों से उसके सम्बन्ध, शेरशाह से उसका संघर्ष, भारत छोड़कर जाना पर पुनः दिल्ली को जीतना आदि का विस्तृत रूप से वर्णन किया है।
उसने अकबर द्वारा किये गये सैनिक अभियानों, उसकी विभिन्न नीतियों और उनके कारण और परिणामों पर पूर्ण प्रकाश डाला। अकबर का मित्र होने के नाते वह उसकी भावनाओं, महत्त्वाकांक्षाओं और उसकी परिस्थितियों को ठीक प्रकार समझता था और उसने उनका वर्णन प्रभावशाली भाषा में किया।
इस प्रकार, अकबरनामा मुगल-इतिहास को जानने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत-ग्रंथ (मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत) है। परन्तु इसका एक दोष भी है। उसने मुगल-बादशाहों बाबर, हुमायूँ और मुख्यतया अकबर के व्यक्तित्व को बहुत उज्ज्वल ढंग से प्रस्तुत किया जबकि उनके शत्रुओं शेरशाह और इस्लामशाह को नीचा दिखाने का प्रयत्न किया।
इस कारण सूर-वंश के इतिहास को समझने के लिए एक विद्यार्थी को अकबरनामा के अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों का भी अध्ययन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, अबुल फजल की भाषा अलंकारपूर्ण है जिससे उसके वर्णन में अतिशयोक्ति आ गयी है। इन त्रुटियों के अतिरिक्त अकबरनामा एक उपयोगी स्रोत-ग्रन्थ है।
32. आईन-ए-अकबरी:-
लेखक~ अबुल फजल
इस ग्रन्थ को भी अबुल फजल ने तीन भागों में लिखा था।
इसमें राजनीतिक इतिहास नहीं है अपितु शासन, साहित्य, संस्कृति, धर्म, कला आदि का विवरण है। इस प्रकार, आईन-ए-अकबरी बादशाह अकबर के शासन सभ्यता और संस्कृति के बारे में जानने का एक मूल्यवान स्रोत-ग्रन्थ माना गया है।
33. रुकात-ए-अबुल फजल-
इसमें अबुल फजल द्वारा अपने माता-पिता, भाई, अकबर और उसकी पत्नियों और पुत्रियों तथा शाहजादा मुराद और दानियाल आदि को लिखे गये पत्रों का संग्रह है।
34. इंशा-ए-अबुल फजल :-
इसमें बादशाह अकबर द्वारा अबुल फजल से लिखवाये गये और स्वयं अबुल फजल द्वारा लिये गये पत्रों का संग्रह है ।
35. तबकात-ए-अकबरी:-
लेखक~ निजामुद्दीन अहमद
तबकात-ए-अकबरी तीन भागों में विभाजित है। इसमें भारत में मुस्लिम शासन के स्थापित होने से लेकर बादशाह अकबर के उनतालीसवें वर्ष तक का इतिहास दिया गया है। इसके पहले भाग में भारत में मुस्लिम शासन के आरम्भ से लेकर दिल्ली सुल्तानों तक के इतिहास का वर्णन किया गया है ।
इसके दूसरे भाग में मुगल बादशाह बाबर से लेकर अकबर के उनतालीसवें वर्ष तक का इतिहास दिया गया है। इसके तीसरे भाग में प्रान्तीय राज्यों मुख्यतया मालवा और गुजरात के इतिहासों का वर्णन किया गया है। इस प्रकार, तबकात-ए-अकबरी मध्ययुगीन भारत के एक बड़े भाग के इतिहास को जानने का एक महत्त्वपूर्ण, पक्षपातरहित स्रोत-ग्रन्थ माना गया है।
36. मुन्तखब-उत-तवारीख अथवा तारीख-ए-बदायूँनी:-
लेखक~ अब्दुल कादिर बदायूँनी
तारीख-ए-बदायूँनी को तीन भागों में विभाजित किया गया था प्रथम भाग में उसने सुबुक्तगीन के समय से लेकर हुमायूँ के शासनकाल तक की घटनाओं का वर्णन किया।
दूसरे भाग में उसने 1594 ई. तक के अकबर के शासन की घटनाओं को लिखा । उसने अकबर की धार्मिक नीति की कटु आलोचना की थी जिसके कारण उसने इस दूसरे भाग को अकबर के शासनकाल में गुप्त रखा।
तीसरे भाग में बदायूँनी ने अपने समकालीन विद्वानों और सन्तों के जीवन और उनकी गतिविधियों का वर्णन किया।
इसके अतिरिक्त, अकबर के शासनकाल के इतिहास को जानने के लिए इनायतउल्ला का लिखा हुआ तकमील-ए-अकबरनामा, जिसमें 1602 से 1605 ई. तक के अकबर के इतिहास को दिया गया है ।
मुल्ला मुहम्मद कासिम हिन्दूशाह (फरिश्ता) द्वारा रचित तारीख-ए-फरिश्ता उर्फ गुलशन-ए-इब्राहीम, जिसमें मुस्लिम शासनकाल के आरम्भ से लेकर जहाँगीर के सिंहासन पर बैठने तक के समय का तथा दक्षिणी भारत के राज्यों के इतिहास का वर्णन महत्त्वपूर्ण है।
37. तुजुक-ए-जहाँगीरी:-
लेखक~ यह जहाँगीर की आत्मकथा है जिसे जहाँगीर ने स्वयं अपने सिंहासन पर बैठने के समय से लेकर अपने शासन के सत्रहवें वर्ष तक लिखा। बाद में अपने स्वास्थ्य के खराब हो जाने के कारण उसने उसे लिखने का उत्तरदायित्व अपने बख्शी, मोतमिद खाँ को सौंप दिया जिसने उसे जहाँगीर के शासन के उन्नीसवें वर्ष तक पूरा किया।
जहाँगीर ने अपने सिंहासन पर बैठने के अवसर पर बनाये गये नियमों, न्याय प्रदान करने के लिए अपने साधनों , खुसरव का विद्रोह, अपने पिता और सम्बन्धियों से अपने सम्बन्ध, अपने समय के सैनिक अभियान, दरबार में मनाये जाने वाले उत्सव हिन्दुओं और मुख्यतया राजपूतों से अपने व्यवहार, अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या, अपनी शिकार की यात्राएँ, अपनी कश्मीर की यात्राएँ, शेर अफगन की मृत्यु, नूरजहाँ से अपने विवाह आदि के बारे में लिखा।
महत्वपूर्ण लेख: अवश्य देखें
● वैदिक साहित्य(भाग-1) वेद(ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद)
● वैदिक संस्कृति भाग-1 (ऋग्वैदिक काल)
● वैदिक संस्कृति भाग-2 (उत्तर वैदिक काल)
● प्राचीन भारतीय इतिहास का सूत्र काल
पुरातात्विक स्रोत (Archaeological Source)
मुद्रा:-
मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी हमें तत्कालीन सिक्कों तथा शिलालेखों से भी प्राप्त होती है। इस समय के सिक्के शासनकाल की अन्तिम सीमा का ज्ञान कराते हैं, जिसे दरबारी इतिहासकारों ने प्रायः उपेक्षित रखा है, या अशुद्धता के साथ उसका वर्णन किया है।
शासक के सिंहासन पर बैठने की तिथि, उसके साम्राज्य का विस्तार, निकटवर्ती राज्यों के साथ उसके सम्बन्ध तथा धार्मिक नेताओं के साथ सम्बन्धों के विषय में हमें शासकों के सिक्कों से विश्वसनीय तथ्यों की जानकारी प्राप्त होती है। सिक्कों से ही हमें तत्कालीन आर्थिक दशा तथा विनिमय दर का पता चलता है। सुल्तानों के शासन के विषय में भी सिक्कों से जानकारी मिलती है।
दक्षिण भारत और उड़ीसा के हिन्दू राजाओं के सिक्कों से वहाँ के इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। सिक्कों से ही हमें अनेक मुगल शासकों तथा उनके साम्राज्य विस्तार का पता चलता है। सिक्कों से हमें पता चलता है कि मुगल बादशाहों ने सिक्कों के आकार आकृति, अभिकल्प, वजन, शुद्धता और सुलेख पर विशेष ध्यान दिया था ।
सिक्कों के अभिलेखों से सुल्तानों की धार्मिक एवं व्यक्तिगत प्रवृत्ति का ज्ञान भी होता है। यही नहीं, इनसे यह भी पता चलता है कि मुगल किस प्रकार भारतीय परम्पराओं से प्रभावित हुए थे।
अभिलेख:
एपीग्राफिया कर्नाटिका, एपीग्राफिया इण्डिका, एपीग्राफिया इण्डो मोस्लेमिका में प्रकाशित अभिलेख भी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। गुजरात के धृगंधु से एक अभिलेख गुजरात के सुल्तान अहमदशाह प्रथम के काल का मिला है।
इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि उस प्रान्त में मुस्लिम जनसंख्या अधिक रही होगी अत: वहाँ प्रार्थना हेतु मुनीर शाहतई द्वारा रजब हिज्रा 840 (16 जनवरी, सन् 1437 ई.) को एक मस्जिद बनवाई गई।
जे. एफ. फ्लीट का मत ठीक ही है कि अभिलेखों द्वारा बिना किसी कठिनाई के तिथियों को निश्चित करने एवं भारत के इतिहास को एकरूपता प्रदान करने में सहायता प्राप्त होती है। इनसे भाषा तथा लेखन कला पर भी प्रकाश पड़ता है।
कला:-
कला के अन्तर्गत स्थापत्य कला, चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, नृत्य एवं नाट्यकला, बागवानी, पच्चीकारी, जरी का काम, आभूषण आदि को सम्मिलित किया जाता है । कलाओं से देश की तत्कालीन कलात्मक, सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति की जानकारी प्राप्त होती है।
यह भी जानकारी प्राप्त होती है कि अलग वंश की कला की क्या विशेषता रही होगी और कला विशेष की उन्नति एवं विकास का सीमा चिह्न क्या रहा होगा ? कौन-सी कला परम्परागत रही होगी ? कौन-सी नवीन ? कौन-सी दोनों का मिश्रण रही होगी ? कौन-सी कला को संरक्षण दिया गया होगा और कौन-सी कला को संरक्षण नहीं दिया गया होगा ?
धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलाहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक द्वितीय वर्ष, इलाहाबाद विश्वविद्यालय