प्राचीन भारतीय इतिहास के ऐतिहासिक स्रोत (historical sources) के रूप में साहित्यिक स्रोत , पुरातात्विक स्रोत तथा विदेशी विवरण तीनों का सामान योगदान कहा जा सकता है। हम जानते हैं कि साहित्यिक स्रोत के अंतर्गत दो प्रकार के साहित्य आते हैं- 1. धार्मिक साहित्य ; 2. धर्मेत्तर साहित्य।
धार्मिक साहित्य के अंतर्गत प्राचीन भारत के तीनों धर्मों (हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म व जैन धर्म) के साहित्य आते हैं। सभी धर्मों के धार्मिक ग्रंथों में हमें उसकी धार्मिक विषयवस्तु के अलावा तत्कालीन इतिहास की भी झलक मिलती है जिससे इसका प्रयोग इतिहासकार ऐतिहासिक स्रोत के रूप में करते हैं।
ऐतिहासिक स्रोत के रूप में जैन ग्रंथ : historical sources
ब्राह्मण व बौद्ध धर्मों के ग्रंथों के जैसे ही जैन धर्म के ग्रंथ भी भारतीय इतिहास का मार्गदर्शन करते हैं। जैन ग्रंथों में हमें प्राचीन काल (जिस काल में वे लिखे गए) की घटनाओं की जानकारियां मिलती हैं जिससे इसकी महत्ता ऐतिहासिक स्रोत के रूप में साबित होती है।
नीचे इस article में हम इन ग्रंथों व उनसे प्राप्त सामग्रियों पर बात करते हुए इसके महत्व को समझने का प्रयास करेंगे।
साहित्यिक स्रोत के रूप में जैन ग्रंथो का योगदान :
जैन साहित्य : जैन धार्मिक ग्रन्थ भी महत्त्वपूर्ण साहित्यिक स्रोत के रूप में उपलब्ध है। जैन धार्मिक ग्रन्थों में भगवती सूत्र, भद्रबाहुचरित्र, पुण्याश्रत कथाकोष आदि प्रमुख हैं। जैन साहित्य में सबसे महत्त्वपूर्ण बारह अंग हैं। इनमें आचारांग सूत्र में जैन भिक्षुओं के आचार नियमों का उल्लेख है।
भगवती सूत्र में महावीर के जीवन पर कुछ प्रकाश डाला गया है। इन बारह अंगों में प्रत्येक का उपांग भी हैं। इन पर अनेक भाष्य लिखे गए जो नियुक्ति, चूर्णि, टीका कहलाते हैं। भगवती सूत्र में सोलह महाजनपदों का भी विवरण मिलता है। भद्रबाहुचरित्र से चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यकाल की घटनाओं की कुछ जानकारी प्राप्त होती है। सबसे महत्त्वपूर्ण जैन ग्रन्थ हेमचन्द्र कृत परिशिष्ट पर्व है जिसकी रचना ईसा की बारहवीं शताब्दी में हुई।
पूर्व मध्यकाल (लगभग 600 से 1200 ई.) में रचित जैन कथाकोषों और पुराणों जैसे हरिभद्र सूरि (705 से 775 ई.) द्वारा रचित समरादित्यकथा, धूर्ताख्यान और कथाकोश, उद्योतन सूरि (778 ई.) द्वारा रचित कुवलयमाला, सिद्धर्षिसूरि (605 ई.) द्वारा रचित उपमितिभव प्रपंच कथा, जिनेश्वर सूरि द्वारा रचित कथाकोषप्रकरण और नवीं शताब्दी ईसवी में जिनसेन द्वारा रचित आदि पुराण और गुणभद्र ने उत्तर पुराण में से तत्कालीन भारतीय समाज की सामाजिक और धार्मिक दशा की जानकारी मिलती है।
संबंधित लेख : इन्हें भी देखें
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▪︎ऐतिहासिक स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व
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धन्यवाद🙏
आकाश प्रजापति
(कृष्णा)
ग्राम व पोस्ट किलहनापुर, कुण्डा प्रतापगढ़ , उ०प्र०
छात्र: प्राचीन इतिहास कला संस्कृति व पुरातत्व विभाग, कलास्नातक तृतीय वर्ष, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय