10 Republics of ancient india : छठी शातब्दी ईसा पूर्व के सोलह महाजनपदों के अतिरिक्त कुछ गणराज्य थे जिनकी संख्या बौद्ध साहित्य में दस बतलाई जाती है। यही प्राचीन भारत के 10 गणराज्य के रूप में जाने जाते हैं। इनका विशद विवेचन सर्वप्रथम रीजडेविड्स ने किया है।
ध्यातव्य है कि सोलह महाजनपदों में, जिनमें अधिकांश बौद्ध युग (566-486 ईसा पूर्व) में अपना स्वतन्त्र अस्तित्व खोकर मगध, वत्स, कौशल तथा अवन्ति के समक्ष घुटने टेक दिये थे, अधिकतर राजतन्त्रात्मक थे, किन्तु वज्जि, मल्ल गणतन्त्रात्मक शासन में थे। ये गणराज्य बौद्ध युग में गंगा घाटी में कौशल से पूर्व हिमालय तथा गंगा के बीच कई अन्य गणतन्त्र विद्यमान थे जिन्हें बुध्द कालीन गणराज्य कहा जाता है।
बुद्ध के जीवन के अन्तिम दिनों में इन्हें भारी विपत्ति का सामना करना पड़ा। एक ओर कौशल के महत्वाकांक्षी किन्तु क्रूर विड्डभ के हाथों कपिलवस्तु के शाक्यों को दुर्दिन देखने पड़े तो दूसरी ओर अपने समय के सबसे बड़े साम्राज्यवादी मगध के प्रसिद्ध शासक अजातशत्रु के हाथों वैशाली लिच्छवियों को बौद्ध युग के जिन दस गणराज्यों (बुध्द कालीन गणराज्य) की सूची प्राप्त होती है वह निम्नलिखित है।
10 Republics of ancient india : प्राचीन भारत के 10 गणराज्य
(1) कपिलवस्तु के शाक्य,
(2) अल्लकप्प के बुली,
(3) केसपुत्त के कालाम,
(4) सुंसुमार गिरि के भग्ग,
(5) रामगाम के कोलिय,
(6) पावा के मल्ल,
(7) कुशीनारा के मल्ल,
(8) पिप्पलिवन के मोरिय,
(9) मिथिला के विदेह,
(10) वैशाली के लिच्छवि।
(1) कपिलवस्तु के शाक्य : 10 ganrajya
शाक्यों का राज्य उत्तर में हिमालय, पूर्व में रोहिणी नदी और पश्चिम तथा दक्षिण में राप्ती से घिरा हुआ था। इसकी राजधानी कपिलवस्तु थी जो गौतम बुद्ध के जन्म स्थान लुम्बिनी वन से आठ मील पश्चिम की ओर रोहिणी नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित था। वर्तमान समय में इसके भग्नावशेष नेपाल की तराई में बस्ती जिले (उ. प्र.) के शोहरतगढ़ रेलवे स्टेशन से बारह मील उत्तर तौलिहवा बाजार के निकट तिलौकाकोट नाम से विद्यमान है। शाक्य जनपद में चातुमा, सामगाम, उलुप्प, सक्कर, शीलवती और खोमदुस्स प्रसिद्ध ग्राम एवं नगर थे ।
सिद्धार्थ गौतम का जन्म कपिलवस्तु के ही शाक्य राजवंश में ही हुआ था। ऐसा प्रतीत होता है कि यह जनपद कौशल महाजनपद के अधीनस्थ ही था। इसे कौशल नरेश विडूडभ (विरुद्धक) ने आक्रमण करके नष्ट कर दिया था। शाक्य लोग इक्ष्वाकु वंश की एक शाखा से उत्पन्न हुए थे तथा वे शाक वन में बसने के कारण शाक्य कहलाये।
(2) अल्लकप्प के बुली-
अल्लकप्प के बुलियों का एक स्वतन्त्र राज्य था। परन्तु यह अधिक शक्तिशाली नहीं था। यह दस योजन विस्तृत था। इसका सम्बन्ध बेठद्वीप के राजवंश से था। श्री बील के अनुसार बैठद्वीप का द्रोण ब्राह्मण शाहाबाद (बिहार प्रदेश) के मसार नामक स्थान से वैशाली जाने वाले मार्ग में रहता था, अतः अल्लकप्प बेठद्वीप से बहुत दूर न रहा होगा। सम्भवतः बुलियों का राज्य आधुनिक शाहाबाद और मुजफ्फरपुर के बीच स्थित था। अल्लकप्प के बुलियों को बुद्ध धातु (अस्थि शेष) का अंत मिला था, जिस पर उन्होंने स्तूप बनवाया था।
(3) केसपुत के कालाम-
यह भी एक छोटा सा स्वतन्त्र राज्य था। इसकी राजधानी के सपुत्त पांचलक केसिनों से सम्बन्धित की गई है। गौतम बुद्ध के उपाध्याय आचार्य आलारकालाम का सम्बन्ध भी इन्हीं कालामों से था।
(4) सुंसुमार गिरि के भग्ग –
भग्ग को राजधानी सुंसुमार गिरि थी। भग्ग (भर्ग) राज्य आधुनिक मिर्जापुर जिले में गंगा से दक्षिणी भाग और कुछ आसपास का प्रदेश है। इसकी सीमा गंगा टॉस, कर्मनाशा नदियाँ एवं विन्ध्याचल की पहाड़ियाँ रहो होगी। सुसुनार गिरि मिजापुर जिले का वर्तमान चुनार कस्बा माना जाता है। सांकृत्यायन का मत है कि धर्म देश में वाराणसी, मिर्जापुर तथा गंगा के दक्षिण का इलाहाबाद का भाग सम्मिलित था।
डॉ. हेमचन्द्र राय चौधरी इसे विन्ध्य क्षेत्र में यमुना एवं सोण नदियों के बीच स्थित मानते हैं। डॉ. के. पी. जायसवाल भी भर्ग का विस्तार मिर्जापुर या उसके आसपास बतलाते हैं। बौद्ध युग का यह एक अति प्रसिद्ध नगर था। इसकी गणना बीस प्रसिद्ध नगरों में की गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि गौतम बुद्ध के समय में भग वत्स के अधीन था क्योंकि वत्सराज उदयन का पुत्र बोधि सुंसुमार गिरि में निर्मित कोकनद नामक प्रासाद में रहता था।
(5) रामगाम के कोलिय-
बौद्ध युगीन गणराज्यों में रामग्राम के कोलिया का महत्वपूर्ण स्थान था। ये रोहिणी के पूर्वी तट पर शाक्यों के पड़ोसी थे। कनिंघम कोलियों के रामग्राम को कुशीनगर एवं कपिलवस्तु के बीच स्थित मानते हैं तथा आधुनिक देवकाली गाँव से समीकृत करते हैं। ए. सो. कारलायल तथा बी. सौ. ला इसकी पहचान वर्तमान रामपुर (देवरिया) से करते हैं। इसके विपरीत डॉ. स्मिथ इसे नेपाल एवं गोरखपुर की सोमा पर स्थित धर्मोली के आसपास स्थित बताते हैं, तो राजबली पाण्डेय इसका समीकरण गोरखपुर के रामगढ़ ताल से करते हैं। यहाँ मत सर्वमान्य है।
पालि परम्परा के अनुसार कोलिय भी इक्ष्वाकु वंशीय महसम्भव के वंशज तथा क्षत्रिय थे। बौद्ध ग्रन्थों में कोलिय के नामकरण के बारे में पता चलता है। कहा जाता है कि इक्ष्वाकुराज के निर्वासित चार पुत्रों तथा पाँच पुत्रियों में से चार के तो एक दूसरे के साथ विवाह हो गये, किन्तु ज्येष्ठा बच गई और कुष्ठ रोग से पीड़ित होने के कारण अलग कर दी गई। इसी समय वाराणसी का एक राजा राम कुष्ठ रोग से पीड़ित होने के कारण यहाँ आकर एक कोलवृक्ष पर औषधि सेवन करता हुआ रोग मुक्त हो गया था।
इक्ष्वाकु राजकुमारी भी राजा के सम्पर्क से रोग मुक्त हो गई। दोनों का परस्पर विवाह हो गया तथा दोनों से बत्तीस सन्ताने पैदा हुई। राम का ज्येष्ठ पुत्र जब उन्हें लेने आया तो उन्होंने पुनः वाराणसी जाने की अनिच्छा प्रकट की तथा यहीं कालवृक्षों को काटकर एक नगर बसाने का आग्रह किया। ज्यष्ठ पुत्र ने ऐसा हो किया यह नया नगर कोलिय ने नगर तथा यहाँ के निवासी कोलिय कहे गये। परन्तु यह कथा अतिरंजित लगती है।
जातक ग्रन्थों में वर्णन है कि रोहिणी नदी के जल का उपयोग कोलिय तथा शाक्य दोनों सिंचाई के लिए करते थे। यह दावा प्राय: झगड़े का रूप धारण कर लेता था। जिस समय बुद्ध जेतवन में ठहरे थे, शाक्यों तथा कोलियों में पानी के लिए झगड़ा हो गया था तथा भयंकर रक्तपात की सम्भावना बढ़ गयी थी, किन्तु बुद्ध के हस्तक्षेप के कारण अनहोली टल गई। संयुक्त निकाय में कोलयों के शक्ति संगठन की चर्चा की गई है। कहा जाता है कि इनके पास एक पुलिस दल था, जिनके केशविन्यास विशिष्ट प्रकार के होते थे। ये चोर डाकुओं की तलाश करते थे।
(6) पावा के मल्ल-
इसे आधुनिक उत्तर प्रदेश में स्थित पड़रौना (देवरिया) से समीकृत किया जाता है। मल्ल लोग सैनिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। जैन साहित्य से पता चलता है कि मगध नरेश अजातशत्रु के भय से मल्लों ने लिच्छवियों के साथ मिलकर एक संघ बनाया था। अजातशत्रु ने लिच्छवियों को पराजित करने के बाद मल्लों को भी जीत लिया था।
(7) कुशीनारा के मल्ल-
कुशीनारा आधुनिक कुशीनगर या कसया है। बौद्ध ग्रन्थ महापरिनिर्वाण सूत्र के अनुसार मल्लों को वासिष्ठ कहा गया है। दिव्यावदान में मल्ल इक्ष्वाकु उत्पन्न नौ क्षत्रिय कुलों में से एक कहे गये हैं। रामायण के अनुसार लक्ष्मण के छोटे पुत्र चन्द्रकेतु को से कार (बस्ती जनपद का पूर्वोत्तर भाग और गोरखपुर का पश्चिमोत्तर भाग) का पूर्वी भाग राज्य करने को दिया था। चन्द्रकेतु की उपाधि मल्ल थी। उससे शासित भूमि मल्ल राष्ट्र कहलाई। राजधानी चन्द्रकान्ता थी। परन्तु बाद में कुशावती के नाम से प्रसिद्ध हुई जिसे कुशीनगर कहते हैं जिसको भगवान् राम के पुत्र कुश ने बसाया था।
भगवान बुद्ध के समय मल्ल राष्ट्र दो भागों में विभाजित था जिनकी राजधानियाँ क्रमश: कुशीनगर और पावा थीं। यह गणतन्त्र जनपद था जिसके पश्चिमोत्तर में शाक्य, पश्चिम में कोलिय, दक्षिण में मौर्य तथा पूर्व में वज्जि राष्ट्र थे । मल्ल राष्ट्र में गोरखपुर जनपद और चम्पारन तथा सारन का अधिकांश भाग सम्मिलित था।
(8) पिप्पलिवन के मोरिय-
प्राचीन गणतन्त्रों में मोरिय गणतन्त्र एक प्रतिष्ठित गणतन्त्र था। जो प्रसिद्ध मौर्य कुल से सम्बन्धित थे। इनके नामकरण के बारे में बौद्ध साहित्य में अनेक कहानियाँ मिलती हैं। महावंश के अनुसार विड्रडभ के भय से शाक्य कुल के लोग हिमालय की ओर चले गये और यहाँ बस गये जहाँ वे बसे वहाँ पीपल वृक्षों का एक वन था। इसी वन में उन्होंने अपने नगर की स्थापना की इसीलिए इसे पिप्पलिवन कहा गया।
एक अन्य अनुश्रुति है कि मोरिय जहाँ रहते थे वहाँ बहुसंख्यक मोर पक्षी रहते थे। कुछ लोगों का यह भी विचार है कि उनके भवन मोर की गर्दन के सदृश्य बनते थे इसी कारण इन्हें मोरिय कहा गया। मोरियों को यह नामकरण जिस कारण भी मिला हो परन्तु यह निश्चित है कि वे अभिजात क्षत्रिय धे।
महापरिनिब्बान सुत्त में वर्णित है कि भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण पर मल्लों से जिन गणों एवं संघों ने धातु अंशों की प्राप्ति का दावा पेश किया था, उनमें मोरिय क्षत्रिय भी थे। कहा जाता है कि देर से पहुँचने के कारण उन्हें धातु- अंश तो नहीं मिल सका था, किन्तु अवशिष्ट अंगार मिल गया था, जिस पर उन्होंने पिप्पलिवन में स्तूप का निर्माण किया था। मोरियों ने मल्लों के पास सन्देश भेजकर कहा था, आप लोग क्षत्रिय हैं, हम भी क्षत्रिय हैं। इसीलिए हमें भी भगवान् के शरीर का अंश प्राप्त करने का अधिकार है।
अथ खो पिप्पलिबनिया मोरिया कोसिनारकानं।
मल्लानं दूतं पाहेसुं भगवापि खात्तियो मयमपि । खात्तियो मयमपि अरहाम भगवतो सरीरानं भागो।
पिप्पलिवन के भग्नावशेष आजकल गोरखपुर के कुसुम्ही स्टेशन से ग्यारह मील दक्षिण उपधौली नामक स्थान में प्राप्त हुए हैं।
(9) मिथिला के विदेह-
विदेह राष्ट्र का विस्तार उत्तर में हिमालय, दक्षिण में गंगा, पश्चिम में गंडक तथा पूर्व में कोसी नदियों से घिरा था। इसकी राजधानी मिथिला थी। मिथिला का समीकरण वर्तमान में जनकपुर से किया जाता है। महाजनक जातक के अनुसार मिथिला की स्थापना विदेह ने की थी। (मापितं सोमनस्सेन वेदेहेन यसास्सिना)।
विदेह की राजनीतिक स्थिति अधिक सुदृढ़ थी। सम्भवतः इसी कारण अनेक राजवंशों के राजाओं ने विदेह राजकुल से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया था। बिम्बिसार की एक रानी वेदेही भी थी। महाजन उदयन वैदेही पुत्र थे। महावीर की माता त्रिशाला भी विदेह राजकुमारी थी।
(10) वैशाली के लिच्छवी :
वैशाली वज्जी जनपद की राजधानी थी जो इस समय बिहार प्रदेश के मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 22 मील दूर अपने प्राचीन नाम से प्रसिद्ध है। वज्जी जनपद एक संघ राज्य था जिसके अन्तर्गत लिच्छवियों का गणतन्त्र सम्मिलित था। वैशाली अति समृद्धशाली नगरी थी। वैशाली में ही बौद्धों की दूसरी धर्मसभा हुई थी। आज भी उसके खण्डहर मीलों की परिक्रमा में फैले हुए अतीत गौरव की स्मृति दिलाते हैं। राजा विशाल ने ही वैशाली की स्थापना की थी। बुद्ध पूर्व युग के वैशाली राजाओं का उल्लेख हुआ है।